अपणिया भासा च समाज दे बारे च, समाज दे विकासा दे बारे च लेखां दे मार्फत जानकारी हासल करने दा अपणा ही मजा है। समीर कश्यप होरां इक लेखमाला जाति व्यवस्था दे विकास पर लिखा दे हन। इसा माळा दा पैह्ला मणका असां कुछ चिर पैह्लें पेश कीता था। फिरी पहाड़ी भाषा पर चर्चा चली पई। हुण एह लेखमाला फिरी सुरू कीती है। सत लेख तुसां पढ़ी लै, अज पढ़ा इसा लेखमाळा दा अठुआं मणका।
भारतीय कम्यूनिस्ट आंदोलन होर जाति प्रश्नः एक संक्षिप्त टिप्पणी
कम्यूनिस्ट आंदोलना रा जाति रे अंता कठे क्या योगदान था एता रे बारे बिच आसारा ये मनणा हा भई कम्यूनिस्ट आंदोलने जाति रे प्रश्ना पर आनुभाविक तौर पर हमेशा काम कितिरा पर सैद्धांतिक तौर पर नीं कितिरा। आनुभाविकता बिच आक्सिमिकता रा पैहलू मौजूद रैहां। 1920, 30 होर 40 रे दशका बिच कम्यूनिस्ट पार्टिये कई आक्समिक आनुभाविक एक्शन किते। पर तिन्हें आपणी पैहला पर सकारात्मक रूपा के पढ़ी, देखी होर समझीके जाति व्यवस्था री कोई ऐतिहासिक समझदारी नीं बनाई होर एतारे समाधाना रा कोई वैज्ञानिक रस्ता नीं निकालेया। पर जेबे बी जरूरत पई पार्टीये जाति रे प्रश्ना रा बहादुरी के सामना कितेया होर लड़ी बी। पर सकारात्मक तौरा पर जाति रे प्रश्ना जो किहां समझया जाए होर किहां एतारा वैज्ञानिक क्रान्तिकारी समाधान या कार्यक्रम निकालेया जाए, कम्यूनिस्ट ये नीं करी पाए। एतारी वजह ले आपणे तमाम मोर्चेयां होर आपणे संघर्षा बिच जाति रे प्रश्ना पर आपणे पक्षा जो रेखांकित करिके एता जो मसला बनाई के पूरे मेहनतकश वर्गा रे आंदोलना मंझ चेतना रा स्तर उन्नत नीं करी सके। पर एतारा मतलब ये नीं निकालेया जाणा चहिए भई कम्यूनिस्ट ये नीं करी पाए ता स्यों ब्राह्मणवादी थे। कम्यूनिस्ट करी सब कुछ करहाएं थे पर जाति रे प्रश्ना जो नीं समझी सके। कम्यूनिस्टा पर इल्जाम लगाया जाहां बंच ऑफ ब्राह्मिन गॉयस। पर ये इल्जाम आधारहीन हा। कोई ये बोले भई कम्यूनिस्ट पार्टी बिच कितने दलित नेता हुए ता पलटी के ये बी पूछया जाई सकहां भई दलित संगठना बिच कितने दलित मजदूर नेता हुए। रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई), इंडियन लेबर पार्टी (आईएलपी), शैडल्यूड कास्ट फेडरेशना (एससीएफ) बिच कोई दलित मजदूर नेता नीं मिलदा। एतारा कारण ये हा भई केसी बी दलित शोषित आबादी रे आंदोलना बिच प्राथमिक तौरा पर मिडल क्लास इंटैलिजैंसिया (मध्यम वर्गा रे बुद्धिजिवियां) ले नेतृत्वा री आपूर्ती हुआईं। क्योंकि ये फुर्सता वाला वर्ग हा जेस बाले वक्त हुआं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसा रे सब नेता या होरी केसी आंदोलना रा कोई भी नेता पूँजीवादी वर्गा ले नीं आउंदा स्यों आंदोलना जो वित्तीय सहायता हे देहें। जिहां आजादी ले पैहले कांग्रेसा रा सभी थे ज्यादा वित्तीय पोषण बिडले कितेया था। आज बी सभी पार्टियां रे नेतृत्वा रा वर्गमूल मिडल क्लास ही। इधी कठे यों दोन्हो हे सवाल गल्त हे। भारता री कम्यूनिस्ट पार्टी सन 1925 ई. मंझ बणी। सन 1933 ई. बिच पैहली केन्द्रीय कमेटी रा कोर चुनया गया। फिर सन 1936 ई. मंझ पैहले महासचिव चुने गए पी सी जोशी। सन 1943 ई. मंझ पार्टी री पैहली कांफ्रेंस हुआईं। पार्टी रा कोई बोल्शेविक ढांचा नीं था। सन 1951 ई. तक भारता री कम्यूनिस्ट पार्टी बाले क्रान्ति रा कोई कार्यक्रम नीं था। ये पता नीं था भई क्रान्ति री मंजिल क्या हुणी। मित्र शक्तियां होर शत्रु शक्तियां कुण-कुण हुणी। क्रान्ति केस तरीके के करनी होर केस रस्ते के करनी। क्रान्ति री रणनीति होर रणकौशल क्या हुणा। पार्टी बिच भटकावा के बीटीआर रा लेफ्ट होर डांगे रा राइट दो धडे कायम हुई गए। जाति, क्रान्ति, पितृसत्ता उन्मूलन होर दमित राष्ट्रीयताओं रे प्रश्ना पर भारता री कम्यूनिस्ट पार्टिये कोई कार्यक्रम नीं दितेया। पार्टी री सैद्धांतिक कमजोरी रे करूआं एतारी बिग ब्रदर पार्टियां री विचारधारात्मकता पर निर्भरता थी। सन 1951 ई. बिच पार्टी रा एक डेलिगेशन रूसा जो गया। तिथी तिन्हें स्तालिन होर मोलोतोवा के बी मुलाकात किती। भारता री उत्पादना री पद्धति रा आपणे आप रचनात्मक रूपा के मार्क्सवादी लेनिनवादी वैज्ञानिक पद्धति के अध्ययन करने री बजाय रूसा ले मिल्हीरा सुझाव पत्र हे पार्टीये आपणा कार्यक्रम बनाई दितेया। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी मानसिक तौर पर निर्भर पार्टी थी। नक्सलवाडी रे उतरवर्ती दशक एक सिंहावलोकन नांवां ले एक कताब लिखी जाहीं करहाईं। एसा कताबा ले भारता बिच कम्यूनिस्ट आंदोलना री समस्या स्पष्ट हुई जाणी। पर इतना ता स्पष्ट हे हा भई भारता री कम्यूनिस्ट पार्टी बिच सैद्धांतिक कमजोरी थी जेता करूआं पार्टी जाति समेत होरी सभी मसलेयां रे प्रश्ना जो प्रमुखता के रेखांकित नीं करी सकी।
पहाडी भाषा री नौवीं चेतना पहाडी दयारा रा लेखा जो सुंदर होर सुरूचीपुर्ण ढंगा के छापणे कठे बौहत-2 धन्यावाद, आभार होर शुक्रिया।
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