जियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा उन्नुआं मणका।
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समाधियाँ दे परदेस च )
जिंञा कि मैं इक जगह पहलैं भी जिक्र कित्तेह्या, हेलीकॉप्टर, जित्थु तिकर मुमकिन होंदा है, पहाड़ां दियाँ चूंडियाँ पर जाणे दे बजाय
घाटियाँ दा रस्ता लैंदे हन्न कनै नदी-नाळेयाँ
दे स्हारें उड़दे हन्न। अरुणाचल प्रदेश च तंग घाटियाँ पाइयाँ जाँदियाँ हन्न। म्हारा
चीता तवाँग ते निचले पासें आया कनै तवाँग-चू
दे स्हारें उड़णा लग्गा। मिंजो ऊंचाइया ते डर लगदा है।
मेरे
मने च नकारे ख्याल ओणा लगी पै थे। मैं लेफ्टिनेंट कर्नल होराँ ते पुच्छी ही
लिया था,
‘सर, इस च कितणे इंजण हन्न?’ तिन्हाँ मुंहए ते किछ ग्लाणे दे बजाय अपणे
हत्थे दी इक उंगळी खड़ेरी दित्ती थी। मैं समझी गिया था, ‘चीते’ च इक्को ही इंजण था। असाँ तौळे ही अपणिया
जगह तिकर सही सलामत पुज्जी जाह्ण मैं अपणे इष्टदेव कन्नै परार्थना करना लगी पिया था।
जिंञा-जिंञा हेलीकॉप्टर अग्गैं बद्धदा जाह्दा
था, उप-कमान अधिकारी होराँ खास-खास जगहाँ पासें अपणी उंगळी दा इसारा करी
नै मिंजो तिन्हाँ दे नाँ दसदे जाह्दे थे। मैं तिन्हाँ जगहाँ बक्खी दिक्खी नै
अपणा सिर लाँह्दा जाह्दा था। लूम-ला, गोरसम कनै लुम्पो दे इलावा होर जगहाँ दे
नाँ मैं पहलैं कदी सुणेह्यो ही नीं थे। मिंजो हेलीकाप्टर दी तेज गड़गड़ाहट च लेफ्टिनेंट
कर्नल होराँ दे कई बोल साफ नीं सुणोहा दे थे अपर मैं सिर लाँह्दा जाह्दा था जिंञा कि
मिंजो सब्भ किछ समझ ओआ दा होए।
जाह्लू असाँ गोरसम दे उप्पर आए ताँ लुम्पो
ऊंचाइया पर साह्मणे सुज्झा दा था। लेफ्टिनेंट कर्नल होराँ लुम्पो च रेजिमेंट
दी लोकेशन दे पासैं इशारा कित्ता। हेलीकॉप्टर अपणी ऊंचाई बद्धादाँ जाह्दा
था। मैं एह् सोची करी चैन दा साह लिया था कि आखिर च असाँ सही सलामत अपणे ठकाणे पर उतरने
वाळे थे। सैह् महज
25-30 मिंट दी डुआर रहियो
होणी। जिंञा ही
‘चीता’ लुम्पो दे उप्पर आया उप-कमान अफसर होराँ मिंजो नै बोले, ‘चल तिजो चाइना बॉर्डर दसदे’
मेरे
किछ ग्लाणे ते पहलैं तिन्हाँ पायलट जो बोल्या, ‘शर्मा, हथुंग-ला चला’ कनै कैप्टन शर्मा होराँ ‘यस, सर’ ग्लाई नै चीते जो होर उच्चे पहाड़ां दिया
लड़िया पासैं मोड़ी दित्ता था। मिजों ‘चाइना बार्डर' गास
मंडराणे
दा कतई चा नीं था। मैं ताँ जळ्दी ते जळ्दी जमीना पर सही सलामत उतरना चाँह्दा था। इक
ताँ उच्चाई दा डर कनै तिस पर सैह् डरौणे पहाड़ कनै डुग्घी घाटियाँ।
तैह्ड़ी ज्यादातर चीनी चौकियाँ बदलाँ कनै
ढकोइयाँ थियाँ। म्हारा ‘चीता’ मैकमोहन लाइन दे इस पासें रही करी ही मंडरा
दा था। तित्थु दो लग्ग-लग्ग जगहाँ
पर
म्हारी रेजिमेंट दियाँ अगलियाँ निगरानी चौकियाँ भी थियाँ जित्थु ते चौबी घंटे चीनियाँ
दियाँ हरकताँ पर नजर रखी जाँदी थी। यूनिट च सामिल होणे ते परंत मिंजो पता चलेया
था कि तिन्हाँ निगरानी चौकियाँ ते हर रोज संझा 4-5 बजे दे करीब तित्थु ते नजर ओणे वाळी चीनी
फौज दी पिछले चौबी घंटेयाँ दियाँ हरकताँ दियाँ रिपोर्टां ओंदियाँ थियाँ
जेह्ड़ियाँ असाँ जो उप्पर भेजणा होंदियाँ थियाँ।
जेकर
तिस बिच बॉर्डर पर कोई खास घटणा घटदी थी ताँ तिस बग्त ही रिपोर्ट ओणा
सुरू
होई जाँदी थी। तिन्हाँ चौकियाँ च म्हारी यूनिट दे कैप्टन रैंक दे अफसर कनै किछ जुआन
तैनात थे। तिन्हाँ दी फ्हाजत, खाण-पीण बगैरा दा इन्तजाम तित्थु तैनात
इन्फेंट्री
बटालियन दे जिम्मे था।
किछ देर तिकर भारत-चीन सरहद गास मंडराणे ते परंत ‘चीता’ वापस मुड़ी गिया कनै असाँ तौळे ही फिरी
लुम्पो गास आई रैह्। मिंजो लग्गा बस असाँ उतरने वाळे ही थे अपर
लेफ्टिनेंट
कर्नल होराँ पायलट जो लुम्पो दे खब्बे पासें उच्चाइया पर मौजूद असम राइफल्स दियाँ सीमांत
चौकियाँ पासें चलणे जो ग्लाया। हुण ‘चीता’ होर भी ज्यादा उच्चाई हासिल करदा जाह्दा
था। उप-कमाण अफसर होराँ मिंजो तिस दुर्गम परदेस
दियाँ ज्यादा ते ज्यादा जगहाँ घुमाणा चाँह्दे थे अपर मैं
ऊंचाई
दे डरने दी अपणी कमजोरी दिया वजह ते ‘चीता’ दी सुआरी दा मजा नीं लई पाह्दा था।
मिंजो होआई जहाज कनै बड्डे हेलिकॉप्टर च
बैठी करी कतई डर नीं लगदा किंञा कि तिन्हाँ च बैठेयाँ जमीना पर सिद्धी नजर नीं पोंदी।
'चीते' च बैठी करी हर पासे ते नजर सिद्धी धरती
पर पोंदी है कनै उच्चाई पर होणे दा अहसास होंदा है।
मिंजो
याद है जाह्लू मैं दुनिया दे सब्भ ते बड्डे हेलीकॉप्टर एम.आई. - 26, जेह्ड़े म्हारे देस दी वायुसेना व्ह्ली
सिर्फ चार ही थे,
दी तेजपुर (असम) ते रूपा (अरुणाचल प्रदेश) तिकर सुआरी कित्ती थी ताँ मिंजो रति भी
डर नीं लग्गेया था।
असम राइफल्स दे ठिकाणे उप्पर ते नाळीदार
टीना दे बणयो परमानेंट घराँ साँह्ईं लग्गा दे थे। छत्ताँ पर लगिह्यो टीना दा रंग लाल
था। सैह् सैही जगह थी जित्थु भारत, भुटान कनै तिब्बत दे बॉर्डर अप्पु च मिलदे
हन्न।
‘चीता’ तित्थु ते मुड़ी नै फिरी लुम्पो दे उप्पर
आई गिया कनै तित्थु बणेह्यो हेलिपैड दे इक-दो
चक्कर लगाई करी धरती पर उतरी गिया था। उप-कमाण
अफसर होराँ दा सुआगत करने ताँईं हैलिपैड दे किनारे पर 8-10 फौजी खड़ोतेयो थे तिन्हाँ च इक मेजर रैंक
दे अफसर जेह्ड़े यूनिट दे एडजुटेंट थे कनै दो जेसीओ साहेबान भी सामल थे। लेफ्टिनेंट
कर्नल होराँ कनै पायलटां ताँईं गर्मागर्म चाय कनै पकौड़े भी आह्यो थे। मैं चुपचाप अपणे
पासे दा दरवाजा खोली करी हेलीकॉप्टर ते उतरी गिया। अपणा समान पिट्ठी पर लद्देया कनै
इक जुआन ते रस्ता पुच्छी करी साह्म्णे वाळे पहाड़ दी ढलाना पर बणेह्यो झोंपड़ेयाँ कनै
बंकराँ दे झुरमुट दे पासें चली पिया। सैही मेरी मंज़िल थी।
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समाधियों के प्रदेश में (उन्नीसवीं कड़ी)
जैसे कि मैंने एक जगह पहले भी जिक्र किया
है, हेलीकॉप्टर, जहाँ तक मुमकिन होता है, पहाड़ों की चोटियों पर जाने के बजाय घाटी
का रास्ता अपनाते हैं और नदी-नालों
के सहारे उड़ते हैं। अरुणाचल प्रदेश में तंग घाटियाँ पाई जाती हैं। हमारा चीता तवाँग
से नीचे की ओर आया और तवाँग-चू
के सहारे उड़ने लगा। मुझे ऊंचाई से डर लगता है। मेरे मन में नकारात्मक विचार आने लगे
थे। मैंने लेफ्टिनेंट कर्नल महोदय से पूछ ही लिया था, ‘सर, इसमें कितने इंजन हैं?’
उन्होंने
मुंह से कुछ कहने के बजाय अपने हाथ की एक उंगली खड़ी कर दी थी।
मैं
समझ गया था,
‘चीता’ में एक ही इंजन था। हम शीघ्र ही गंतव्य
तक सुरक्षित पहुंच जाएं मैं अपने इष्टदेव से प्रार्थना करने लगा था।
जैसे-जैसे हेलीकॉप्टर आगे बढ़ रहा था, उप-कमान अधिकारी महोदय खास-खास जगहों की तरफ उंगली से इशारा करके मुझे
उनके नाम बताते जा रहे थे। मैं उन जगहों की तरफ देख कर सिर हिलाता जा रहा था। लूम-ला, गोरसम और लुम्पो के अतिरिक्त मैंने दूसरे
स्थानों के नाम पहले कभी सुने ही नहीं थे। मुझे हेलीकाप्टर की गड़गड़ाहट की ध्वनि के
बीच लेफ्टिनेंट कर्नल साहब के कई शब्द साफ नहीं सुनाई दे रहे थे परंतु मैं सिर हिलाता
ही चले जा रहा था जैसे सब कुछ मेरी समझ में आ रहा हो।
जब हम गोरसम के ऊपर आए तो लुम्पो ऊंचाई
पर सामने दिखाई दे रहा था। लेफ्टिनेंट कर्नल महोदय ने लुम्पो में रेजिमेंट की लोकेशन
की तरफ इशारा किया। हेलीकॉप्टर अपनी ऊंचाई बढ़ाता जा रहा था। मैंने यह सोच कर चैन की
साँस ली थी कि आखिर हम सुरक्षित मंज़िल पर उतरने वाले थे। वह महज 25-30 मिनट की उड़ान रही होगी। जैसे ही ‘चीता’ लुम्पो के ऊपर आया उप-कमान अधिकारी महोदय मुझ से बोले, ‘चलो तुम्हें चाइना बॉर्डर दिखाते हैं’
मेरी
प्रतिक्रिया जाने बिना उन्होंने पायलट से कहा था, ‘शर्मा, हथुंग-ला चलो’ और कैप्टन शर्मा ने ‘यस, सर’ कह कर चीता को अधिक ऊँचे पहाड़ों की शृंखला
की ओर मोड़ दिया था। मुझे चाइना बार्डर पर मंडराने में कतई रूचि नहीं थी। मैं तो शीघ्रातिशीघ्र
ज़मीन पर सुरक्षित उतरना चाहता था। एक तो ऊंचाई से डर और उस पर वे डरावने पहाड़ और गहरी
घाटियाँ।
उस दिन ज्यादातर चीनी चौकियाँ बादलों से
ढकी हुईं थीं। हमारा
‘चीता’ मैकमोहन लाइन के इस ओर रह कर ही मंडरा रहा
था। वहाँ दो अलग-अलग स्थानों पर हमारी रेजिमेंट की अग्रिम
पर्यवेक्षण चौकियाँ भी थीं जहाँ से चौबीसों घंटे चीनियों की हरकतों पर नज़र रखी जाती
थी। यूनिट में शामिल होने के बाद मुझे पता चला था कि उन पर्यवेक्षण चौकियों
से हर रोज शाम
4-5 बजे के करीब वहाँ
से नज़र आने वाली चीनी सेना की पिछले चौबीस घंटों
की
हरकतों की रिपोर्ट आती थी जो हमें ऊपर भेजनी होती थी। अगर उसी बीच सीमा पर कोई महत्वपूर्ण
घटना घटती थी तो उसी समय रिपोर्ट आनी शुरू हो जाती थी। उन चौकियों में हमारी यूनिट
के कैप्टन रैंक के अधिकारी और कुछ जवान तैनात थे। उनकी सुरक्षा, भोजन इत्यादि का प्रबंध वहाँ तैनात इन्फेंट्री
बटालियन के ज़िम्मे था।
कुछ देर तक भारत-चीन सीमा रेखा पर मंडराने के उपराँत ‘चीता’ वापस मुड़ गया और जल्दी ही हम फिर लुम्पो
के ऊपर थे तभी लेफ्टिनेंट कर्नल महोदय ने पायलट को लुम्पो के बांईं ओर ऊपर ऊंचाई पर
स्थित आसाम राइफल्स की सीमांत चौकियों की तरफ चलने को कहा। अब ‘चीता’ और भी अधिक ऊंचाई हासिल करता जा रहा था।
उप-कमान अधिकारी महोदय मुझे उस दुर्गम प्रदेश
की अधिक से अधिक जगहें घुमाना चाहते थे पर मैं
ऊंचाई
से डरने की अपनी कमज़ोरी की वजह से ‘चीते’ की सवारी का आनंद नहीं ले पा रहा था।
मुझे हवाई जहाज और बड़े हेलिकॉप्टर में बैठ
कर कतई डर नहीं लगता क्योंकि उनमें बैठे हुए जमीन पर सीधी नज़र नहीं पड़ती।
चीता
में बैठ कर हर तरफ से नज़र सीधी धरती पर पड़ती है और ऊंचाई पर होने का आभास होता है।
मुझे
याद है जब मैंने दुनिया के सबसे बड़े हेलीकॉप्टर एम.आई. - 26, जो हमारे देश की वायुसेना के पास केवल चार
ही थे, की तेजपुर (असम) से रूपा (अरुणाचल प्रदेश) तक सवारी की थी तो मुझे तनिक भी डर नहीं
लगा था।
असम राइफल्स के ठिकाने ऊपर से नालीदार टीन
के बने हुए स्थायी घरों जैसे लग रहे थे। छत पर लगी टीन का रंग लाल था।
वह
वही स्थान था जहाँ पर भारत, भुटान
और तिब्बत की सीमाएं मिलती हैं।
‘चीता’ वहाँ से मुड़ कर फिर लुम्पो के ऊपर आया
और वहाँ स्थित हेलिपैड के एक-दो
चक्कर लगा कर ज़मीन पर उतर गया। उप-कमान
अधिकारी महोदय का स्वागत करने के लिए हैलिपैड के किनारे पर 8-10 सैनिक खड़े थे उनमें एक मेजर रैंक के अफसर
जो यूनिट के एडजुटेंट थे और दो जेसीओ साहेबान भी शामिल थे। लेफ्टिनेंट कर्नल महोदय
और पायलटों के लिए गर्मागर्म चाय और पकौड़े भी आए थे। मैं चुपचाप अपनी ओर का दरवाजा
खोल कर हेलीकॉप्टर से नीचे आ गया। अपना सामान पीठ पर लादा और एक जवान से रास्ता पूछ
कर सामने वाले पहाड़ की ढलान पर बने झोंपड़ों और बंकरों के झुरमुट की तरफ चल दिया। वही
मेरी मंज़िल थी।
भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन। फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) दे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) दी डिग्री हासिल कित्ती। इस ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी. च, 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसर' दी जिम्मेबारी निभाई।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही। आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।
हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तो' करी नैं कदी-कदी किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।