पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Saturday, May 6, 2023

यादां फौजा दियां

लुम्पो में ऑफिस स्टाफ 1989 : 
बायें से क्रमशः 1. हेड क्लर्क 2. डिस्पैचर 3. नायक (क्लर्क) राम मेहर यादव  4. हवलदार (क्लर्क) भगत राम  5. नायक (क्लर्क) रघुवीर यादव

फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदेतिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती हैदूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा इक्तुह्उआं मणका।


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समाधियाँ दे परदेस च 

जिंञा कि मैं पैहलैं भी जिक्र कित्तेह्या है कि अरुणाचल प्रदेश दे तवाँग जिले च पोणे वाले लुम्पो च मेरी यूनिट दी हेडकुआटर बैट्री कनै तिसा सोगी 'पापा' कनै 'क्यूबेक' दो लड़ाकू बैट्रियाँ तैनात थियाँ।  तीजी लड़ाकू बैट्री यानी कि 'रोमियो' बैट्री असाँ ते होर भी अग्गैं नीलिया च तैनात थी। लुम्पो च सारे दफ्तर, स्टोर, कुक हॉउस कनै रिहायशी सेल्टर तवाँग दे पासैं पोणे वाळिया पहाड़े दिया ढळाना पर बणेह्यो थे।  रेजिमेंट दा मेन ऑफिस, जिस च मैं कम करदा था, ढळान दे उपरले हेस्से च पोंदा था।  तिसते उप्पर कनै वक्खले पासैं किछ पराणे बंकर थे।  सब्भते उप्परले पासैं  रेजिमेंट दा मंदर था। 

यूनिट प्योर अहीर जाति दी थी। अहीर खास करी नै भगवान श्रीकृष्ण जो पूजदे हन्न, इस करी नै तित्थू सिर्फ मंदर ही था।  होरनाँ यूनिटाँ साँह्ईं गुरुद्वारा साहिब नीं था।  फौज दियाँ यूनिटाँ च सब्भना धर्मां दे पूजा स्थान होंदे हन्न। पीस टैम दियाँ फौजी छौणियाँ च मस्जिद कनै चर्च भी होंदे हन्न, जित्थू हर तुहार कनै दूजे खास मौकेयाँ पर, छौणी च पोंणे वाळियाँ सब्भना यूनिटाँ दे मुसलमान कनै ईसाई जुआन जाँदे हन्न।  खरे-खरे धर्मां देयाँ जुआनाँ दी गिणती दे हिसाबे नै यूनिट च धर्मगुरू यानी कि पंडत, ज्ञानी, मौलवी वगैरा तैनात कित्ते जाँदे हन्न।  फौज च धर्मगुरु बणने ताँईं इक खास म्तिहान पास करना पोंदा है कनै इक तय कोर्स पूरा करना होंदा है। सैह् फौज च सिद्धे जूनियर कमीशंड ऑफिसर दे रूप च शामिल कित्ते जाँदे हन्न। तिन्हाँ दा छोटे ते छोटा रैंक 'नायब सूबेदार' होंदा है।  धर्मगुरु छोटे हथियार चलाणे ताँईं ट्रैंड होंदे हन्न। सैह् आमतौर पर चिट्टा कुर्ता, पजामा जाँ धोती पहनदे हन्न अपर कई खास मौकेयाँ पर सैह् आम फौजी बर्दी च भी नजर आयी जाँदे हन्न, जिस च तिन्हाँ दे रैंक भी लग्गेह्यो होंदे हन्न।

म्हारा दफ्तर जिस शेल्टर च था तिस च पैह्लैं दो बड़े कमरे पोंदे थे।  तिन्हाँ कमरेयाँ नै लगदा त्रीया इक निक्का जेहा कमरा था। तिस आयताकार झोंपड़े दियाँ कंधाँ लकड़ी दियाँ मोह्डाँ गड्डी नै तिन्हाँ पर मेखाँ नै नाळीदार टीन लगाई करी बणाइयाँ थियाँ।  उपरा ते सैह् झोंपड़ा नाळीदार टीन कन्नै छाह्या था।  झोंपड़े दी छत इतणी दमदार थी कि भारी बर्फबारी दा बोझ झेली लैंदी थी। झोंपड़े दी उच्चाई तकरीबन 9-10 फुट थी। पहले कमरे च ओंण, तिस आयताकार झोंपड़े दे संगड़े कनारे दे पासैं बणे दरबाजे ते होयी करी होंदा था। तिस कमरे च यूनिट दे एडजुटेंट दा दफ्तर था। मेजर रैंक दे यूनिट एडजुटेंट इक मुसलमान फौजी अफसर थे।  दूजे कमरे च हेड क्लर्क समेत तिन्न होर  क्लर्क कनै डिस्पैचर कम्म करदे थे।  पैह्ले कनै दूजे कमरे दी गभली कंध च इक दरवाजा दूंहीं कमरेयाँ जो अप्पू च जोड़दा था। दूजे कमरे च ओंणे-जाँणे ताँईं, पहाड़ दी ढळाण दे पासैं इक  दरबाजा था।  तिस दरबाजे ते बाहर निकळी करी त्रीये छोटे जेहे कमरे दे अंदर जायी सकदे थे। क्लर्कां दे दफ्तर वाळे कमरे दे फर्श च लकड़िया दे तकरीबन  तिन्न-साढ़े तिन्न  फुट उच्चे खुंड गड्डी नै तिन्हाँ उप्पर, कम्में ओणे जोगे नीं रैह्यो, होआई जहाज ते सप्लाई गिराणे दे कम्म ओंणे वाळे ''स्किड बोर्ड' लगायी नै जुगाड़ मेज बणाह्यो थे।

त्रीये छोटे जेहे कमरे च लकड़ियाँ दे खुंड गड्डी करी 'स्किड बोर्ड' कनै बणिह्याँ तिन्न जुगाड़ चारपाइयाँ थियाँ। तिन्हाँ उप्पर हेसियन क्लॉथ (जूट) दे बणेह्यो कनै नरेळां देयाँ रेश्याँ कन्नै भरेह्यो ऊबड़खाबड़ जुगाड़ गद्दे बिछेह्यो थे।  तिन्हाँ तिन्न जुगाड़ चारपाइयाँ  पर मैं इक होर क्लर्क कनै डिस्पैचर कन्नै सोंदा था। इक क्लर्क दूजेयाँ जुआनाँ कन्नै इक बड्डे शेल्टर च सोंदा था। हेड क्लर्क साहब दे रैह्णे दा इंतजाम, जूनियर कमीशंड अफसराँ ताँईं लग्ग बणेह्यो झोंपड़े च था।

उत्तरप्रदेश दे रैह्णे वाळे लाँस नायक (ऑपरेटर रेडियो) कृष्ण कुमार यादव, डिस्पैचर कनै डिस्पैच राइडर, दूंहीं दा रोल नभाँदे थे।  सैह्, तुआर कनै गजटेड छुट्टियाँ जो छड्डी, हर रोज डाक तियार करी नै भ्यागा दस बजे दे करीब, हेडकुआटर 77 माउंटेन ब्रिगेड (चिंडिट) जो चली जाँदे थे।  तित्थू सैह्, ब्रिगेड हेडकुआटर दी डाक तिन्हाँ दे डिस्पैचर जो देयी दिंदे कनै बाकी लोकल यूनिटाँ दी डाक तित्थू तिन्हाँ ताँईं बणेह्यो लग्ग-लग्ग खाँनेयाँ च पाई दिंदे थे। सैह् ब्रिगेड हेडकुआटर दे डिस्पैचर ते अपणी यूनिट दी डाक कनै अपणी यूनिट दे खाने च पइह्यो लोकल यूनिटाँ दी डाक कट्ठी करी नै, सेना डाक सेवा कोर दे तहत चलदे  फील्ड पोस्ट आफिस  च  जायी करी यूनिट ताँईं बाहर ते आई डाक लई नै यूनिट च मुड़ी ओंदे थे।

लाँस नायक (ऑपरेटर रेडियो) कृष्ण कुमार यादव इक जोशीले, हंसमुख कनै तेजतर्रार 25-26 वरिह्याँ दे नौजुआन थे। दोपहराँ परंत ऑफिस च अपणा कम्म तौळा ही छोड़ी नै सैह् कन्नै लगदे, रैह्णे दे कमरे च राती दे खाणे-पीणे दा जुगाड़ करना चली जाँदे थे। भ्यागा दा ब्रेकफास्ट कनै दोपहराँ दा खाणा असाँ छोटे जेहे नाळुए दे पार बणेह्यो हेडकुआटर बैट्री दे कुक हाउस नै लगदे झोंपड़नुमा डाइनिंग हॉल च जाई नै खाँदे थे। अपर रात दा खाणा असाँ अपणे कमरे च ही खाँदे थे।

  

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समाधियों के प्रदेश में (इकतीसवीं कड़ी)

 

जैसा कि मैंने पहले भी जिक्र किया है कि अरुणाचल प्रदेश के तवाँग जिले में पड़ने वाले लुम्पो में मेरी यूनिट की हेडक्वार्टर बैट्री और उसके साथ 'पापा' और 'क्यूबेक' दो लड़ाकू बैट्रियाँ तैनात थीं।  तीसरी लड़ाकू बैट्री अर्थात 'रोमियो' बैट्री हमसे और भी आगे नीलिया में तैनात थी। लुम्पो में सभी कार्यालय, भंडार, कुक हॉउस और रिहायशी शेल्टर तवाँग की ओर पड़ने वाली पहाड़ की ढलान पर बने हुए थे।  रेजिमेंट का मुख्य कार्यालय, जिसमें मैं काम करता था, ढलान के ऊपरी भाग में स्थित था।  उससे ऊपर और बगल में कुछ पुराने बंकर थे।  सबसे ऊपर की ओर रेजिमेंट का मंदिर था। 

यूनिट विशुद्ध अहीर जाति की थी। अहीर विशेषकर भगवान श्रीकृष्ण को पूजते हैं अतः वहाँ केवल मंदिर ही था।  अन्य यूनिटों की तरह गुरुद्वारा साहिब नहीं था।  सेना की यूनिटों में सर्वधर्म स्थल होते हैं।  शांतिकालीन सैनिक छावनियों में मस्जिद और चर्च भी होते हैं, जहाँ हर रविवार और अन्य विशेष अवसरों पर, छावनी में स्थित सभी यूनिटों के मुस्लिम और ईसाई सैनिक जाते हैं।  विभिन्न धर्मों के जवानों की संख्या के आधार पर यूनिट में धर्म गुरू अर्थात पंडित, ज्ञानी, मौलवी इत्यादि तैनात किए जाते हैं।  सेना में धर्मगुरु बनने के लिए एक विशेष परीक्षा पास करनी पड़ती है और एक निर्धारित पाठ्यक्रम पूरा करना पड़ता है। वे सेना में सीधे जूनियर कमीशंड ऑफिसर के रूप में सम्मिलित किए जाते हैं। उनका न्यूनतम रैंक 'नायब सूबेदार'  होता है।  धर्मगुरु छोटे हथियार चलाने में भी प्रशिक्षित होते हैं।  वे अक्सर सफेद कुर्ता, पजामा अथवा धोती पहनते हैं परन्तु कई विशेष अवसरों पर वे सामान्य सैनिक बर्दी में भी देखे जा सकते हैं जिसमें उनके रैंक भी लगे होते हैं।

हमारा ऑफिस जिस शेल्टर में था उसमें पहले दो मुख्य बड़े कमरे थे। उन कमरों से सटा हुआ तीसरा एक छोटा सा कमरा था। उस आयताकार झोंपड़े की दीवारें लकड़ी की बल्लियाँ गाड़ कर उनपर कीलों से नालीदार टिन लगा कर बनाई गयी थीं। ऊपर से वह झोंपड़ा नालीदार टिन से छाया हुआ था।  झोंपड़े की छत इतनी मज़बूत थी कि भारी बर्फबारी का बोझ सह लेती थी। झोंपड़े की ऊंचाई तकरीबन 9-10 फुट थी। पहले कमरे में प्रवेश, उस आयताकार झोंपड़े के संकरे किनारे की ओर बने दरवाजे से हो कर था। उस कमरे में यूनिट के एडजुटेंट का ऑफिस था। मेजर रैंक के यूनिट एडजुटेंट एक मुस्लिम सैन्य अधिकारी थे।  दूसरे कमरे में हेड क्लर्क सहित तीन अन्य क्लर्क और डिस्पैचर काम करते थे। पहले और दूसरे कमरे के बीच की दीवार में बना एक दरवाजा दोनों कमरों को आपस में जोड़ता था। दूसरे कमरे में आने-जाने के लिए पहाड़ की ढलान की तरफ एक दरवाजा था।  उस दरवाजे से बाहर निकल कर तीसरे छोटे से कमरे के अंदर जाया जा सकता था। क्लर्कों के ऑफिस वाले कमरे के फर्श में लकड़ी के लगभग तीन-साढ़े तीन  फुट ऊंचे खूंटे गाड़ कर उन पर, प्रयोग करने योग्य न रह गये, हवाई जहाज से सप्लाई गिराने के काम आने वाले 'स्किड बोर्ड' लगा कर जुगाड़ मेज बनाये हुए थे।

तीसरे छोटे से कमरे में खूंटे गाड़ कर 'स्किड बोर्ड' से बनी तीन जुगाड़ चारपाइयाँ थीं। उन पर हेसियन क्लॉथ (जूट) से बने और नारियल के रेशों से भरे ऊबड़खाबड़ जुगाड़ गद्दे बिछे हुए थे। उन तीन जुगाड़ चारपाइयों पर, मैं एक अन्य क्लर्क और डिस्पैचर के साथ सोता था। एक क्लर्क दूसरे जवानों के साथ एक बड़े से शेल्टर में सोता था। हेड क्लर्क साहब के रहने का इंतजाम, जूनियर कमीशंड अधिकारियों के लिए अलग बनाये गये झोंपड़ों में था।

उत्तरप्रदेश से संबंध रखने वाले लाँस नायक (ऑपरेटर रेडियो) कृष्ण कुमार यादव, डिस्पैचर और डिस्पैच राइडर, दोनों की भूमिका निभाते थे। वे, रविवार और राजपत्रित अवकाश को छोड़ कर, प्रतिदिन डाक तैयार करके प्रातः 10 बजे के आसपास, मुख्यालय 77 पर्वतीय ब्रिगेड (चिंडिट) में चले जाते थे।  वहाँ वे, ब्रिगेड मुख्यालय की डाक उनके डिस्पैचर को दे देते और शेष स्थानीय यूनिटों की डाक वहाँ उनके लिए निर्धारित अलग-अलग खानों में डाल देते  थे।  वे ब्रिगेड मुख्यालय के डिस्पैचर से अपनी यूनिट की डाक और अपनी यूनिट के खाने में पड़ी स्थानीय यूनिटों की डाक एकत्रित करके, सेना डाक सेवा कोर के तत्वावधान में स्थापित फील्ड पोस्ट आफिस में जाकर यूनिट के लिए बाहर से आई डाक लेकर यूनिट में वापस आ जाते थे।

लाँस नायक (ऑपरेटर रेडियो) कृष्ण कुमार यादव एक ऊर्जावान, हंसमुख और होशियार 25-26 वर्षीय नवयुवक थे। दोपहर बाद ऑफिस में अपना काम जल्दी से निपटा कर वे साथ सटे अपने रिहायशी कमरे में रात के खाने-पीने का प्रबंध करने चले जाते थे। सुह का ब्रेकफास्ट और दोपहर का खाना हम छोटे से नाले के उस पार बने हेडक्वार्टर बैट्री के कुक हाउस के साथ सट्टे झोंपड़नुमा डाइनिंग हॉल में जाकर खाते थे। परंतु रात का खाना हम अपने कमरे में ही खाते थे।

हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा से संबन्ध रखने वाले भगत राम मंडोत्रा एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उनकी  प्रकाशित पुस्तकें हैं        जुड़दे पलरिह्ड़ू खोळूचिह्ड़ू मिह्ड़ूपरमवीर गाथा..फुल्ल खटनाळुये देमैं डोळदा रिहासूरमेयाँ च सूरमे और हिमाचल के शूरवीर योद्धा। यदाकदा 'फेस बुकपर 'ज़रा सुनिए तोकरके कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं।