फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा अठमा मणका।
........................................................................
सहीदां दियां
समाधियां दे परदेसे च
म्हारियां गड्डियां बोमड़िला दी चढ़ाइया हौळें-हौळें गोहा दियां थियां। मैं अपणिया सीटा पर संभळी करी बैठी
गिया था कनै चौकन्ना
होई नै सहीदां दियां समाधियां जो सळूट करा दा था ता कि नायक यादव जो मेरे दिल-दमाके च चलदे तुफानें दा पता नीं लगे।
बोमड़िला दी उचाई तकरीबन 7920 फुट है। जुलाई महीनें तित्थू ठंड थी। बद्दळ
रुक्खां दियां चूंडियां जो छुआ दे थे। बड़ा सांत महोल था। हालांकि बोमड़िला अरुणाचल
प्रदेशे दे वेस्ट कामेंग जिले दा हैडकुआटर है पर तिस जमाने च तित्थू सड़का च या सड़का दे अक्खें-बक्खें कोई खास हळचळ नीं थी। सड़का दे कनारेयां च कुत्थी-कुत्थी झोपड़ियां सांहीं होटल थे जिन्हां जो देसी पहनावे च तित्थू दियां जणासां
चलांदियां सुझदियां थियां। नायक यादवें मिंजो दस्सेया था कि तिन्हां ढाबेयां च खाणे
जो दाळ-चोळ, मीट-मच्छी कनै पीणे जो अपणी मरज़ी मुताबक चाह्
कनै सराब मिली जांद थी।
ग्लांदे हन् कि मध्यकाले च बोमड़िला तिब्बत
दे साम्राज्य दा इक हेस्सा होंदा था। किछ सबूत इसा गल्ला दे भी मिलदे कि
तित्थू भूटान दियां जनजातियां दा राज होंदा था। कुसी जमानें बोमड़िला दर्रे ते तिब्बत
दे ल्हासा तिकर सिद्धा रस्ता जांदा था।
तिब्बत पर चीन दा कब्जा होणे दे परंत मते सारे बौद्ध भिक्षु एत्थू
आई करी बस्सी गै थे। तिस बजह ते बोमड़िला दे अक्खें-बक्खें बौद्ध संस्कृति
दा बड़ा असर है। चीन कनै भारत दे बिच एह इलाका इक लम्मे समै ते झगड़े दी बजह रैंह्दा
रिहा है। सन्
1962 दी भारत-चीन जंग च चीनी फौजें बोमड़िला पर
कब्जा करी लिया था पर बाद च चीनी फौज अपणे आप बापस चली गई थी।
किछ देरा परंत असां बोमड़िला पार करी नै दूजे
पासे दिया ढळाना च थल्ले जो उतरा दे थे। ताह्लू दिक्खदेयां-दिक्खदेयां ही असां ते थोड़ा कि दरेड्डें सड़का गास उपरा ते इक बड्डा ल्हा आई पिआ था, जिसदिया बजह ते म्हारियां दोयो गड्डियां रुकी गइयां थियां। तिन्हां वक्तां च तिस पासें प्राइवेट
गड्डियां नीं सुझदियां थियां।
मै अपणिया गड्डिया ते उतरी करी नै टूआइसी साहब
होरां व्ह्ली गिया था। सैह्
भी अपणिया जोंगा ते सड़का पर उतरी आयो थे।
तिन्हां ल्हाए बक्खी नजर देई करी अंदाजा लगादेयां बोलया था कि
शैद ही तैह्डी सड़क खुली सके। तिन्हां मिंजो दोपहरां दा खाणा खाई लैणे तांईं ग्लाया था। तिन्हां दिया गड्डिया च तिन्हां दा
खाणा था पर मैं तां अपणा खाणा कन्नै लई करी चल्लेह्या नीं था। मैं चुपचाप अपणियां गड्डिया व्ह्ली
मुड़ी आया था कनै नायक यादव जो दपैहरां दा खाणा खाई लैणे दा ऑर्डर पास कित्ता था।
मैं मनै-मनै च सोचा दा ही था कि यादवें अप्पू सोगी खाणा लियांदेया होंगा कि नीं,
ताह्ली नायक यादवें पिच्छें बैठेयो जुआने जो गड्डिया च रक्खेयो खाणे
जो नकाळणे तांईं उआज लगाई थी। सैह् जुआन गड्डिया ते इक बड्डा सारा पतीला, जिस च पूरियां कनै सब्जी भरियो थी, कड्ढी करी लई आया
था। टूआइसी होरां दा डरैवर कनै सहायक भी अपणा खाणा लई करी असां व्ह्ली आई गै थे। तिन्हां व्ह्ली भी सब्जी कनै पूरियां
थियां।
सफर दे वक्त फौजियां जो अक्सर पूरियां जां प्यूळे
चौळ कनै सुक्की सब्जी दित्ते जांदे हन्। खाणे नै भरोया पतीला गड्डिया दे बोनट
पर रक्खी करी असां सारेयां मिली-बंडी करी खाणे दा मजा लिया था। सारेयां अपणा-अपणा खाणा हत्थां च रक्खी करी खाह्दा था। खाई करी घुल्लेया खाणा नायक यादवें
ढक्की-संभाळी करी रक्खी लिया था।
थोड़ी कि देरा परंत ग्रेफ (GREF) दे आदमी कनै मसीनां सड़का जो साफ करने तांईं आई
गै थे। तिन्हां फुर्तिया
नै कम्म करी नै तकरीबन दो-ढाई घंटेयां च जीप नकाळणे लायक सड़क
साफ करी दित्ती थी। बहोत बड्डे-बड्डे सपड़ां कनै पत्थरां जो टाह्णे
तांईं तिन्हां बारूद दा बखूबी इस्तेमाल कित्तेया था। तिन्हां दा कम्म दिक्खी मैं हैराण
रही गिया था।
उप-कमान अफसर होरां मिंजो ताह्लू दस्सेया था कि तिन्हां दिया जोंगा तां निकळी
जाणा था अपर वन टन गड्डिया जो नकाळनें जितणी सड़क खोलणे तांईं देर लगी जाणी थी। तिन्हां मिंजो सड़क खुलणे तिकर तित्थू
ही निहाळ करनें तांईं ग्लाया था कनै रस्ता साफ होंदेयां ही सैंगे (Senge) नांएं दिया जगह चले ओणे दी हिदायत दित्ती थी। तिन्हां बोलेया था कि राती दे गर्म
खाणे कनै सोणे दा इन्तजाम तित्थू ही था।
एह् दस्सी करी सैह् चली पै थे। तिस इलाके च किह्ली गड्डी लई जाणे
दे ऑर्डर नीं थे। उप-कमान अफसर होरां दिया जोंगा कन्नै तित्थू रुकियां दो जीपां होर भी मिली गइयां
थियां।
तकरीबन इक घंटे परंत असां दिया गड्डिया जो भी
अग्गे बद्धणे दा इसारा होई गिया था। असां कन्नै गड्डियां दा इक काफला
चला दा था। मेरे पुच्छणे
पर नायक यादवें दस्सेया था कि असां जो सैंगे पोंह्चणे जो नेह्रा होई जाणा था।
तित्थू मैं दिक्खेया था कि मतियां ठाह्रीं सड़का
दे कनारेयां पर बोर्ड लगेह्यो थे जिन्हां च लिक्खेया था, 'सावधान आगे पदमा नाच रही है'। तिन्हां दिनां च देवानंद दी फिल्म 'जानी मेरा नाम' च एक्ट्रेस पदमा खन्ना दा इक नसीला नाच
लोकां दियां यादां च ताजा था। बोर्डे पर लिक्खोया होणे दे बावजूद पदमा मिंजो कुत्थी भी नचदी नजर नीं आई थी। जाह्लू मैं तिसदे बारे च नायक यादव ते पुच्छेया तां तिन्हां
इक जोरे दी ठाठी मारी थी कनै ग्लाणा लग्गे थे, 'बाबू जी कृष्ण
भगुआन दिया मेहरा ते भला होया कि असां जो पदमा दा नाच नजर नीं आया।' मैं हैराण होई नै तिन्हां दे चेहरे
बक्खी दिक्खदेयां बोलेया था, 'यादव, मैं
समझेया नीं।' 'सर,
जित्थू-जित्थू ग्रेफ वाळेयां एह् बोर्ड लगाह्यो
हन तिन्हां ठाहरीं पर पहाड़ां ते पत्थर पोंदे हन। इतणिया उपरा ते थल्ले बक्खी ओंदा
इक निक्का देहा गिट्टा भी प्राण लई सकदा है।'
मैं चुपचाप संभळी नै अपणिया सीटा पर बैठी
करी, अग्गे बक्खी दिक्खदा होया,
मनै ही मनै भगुआने नें बिनती करना लगेया था कि तैह्ड़ी पदमा दा नाच नीं
होए।
..............................................................................
शहीदों की
समाधियों के प्रदेश में
हमारी गाड़ियां बोमडिला की चढ़ाई हौले-हौले तय करती जा रही थीं। मैं अब अपनी सीट पर संभल कर
बैठ गया था और चौकन्ना हो कर शहीदों की समाधियों को सेल्यूट कर रहा था ताकि नायक यादव
को मेरे हृदय में चल रही झंझानिल का अहसास न हो।
बोमडिला की ऊँचाई लगभग 7920 फुट है। जुलाई महीने में वहां ठंड थी। बादल पेड़ों
के शिखरों को छू रहे थे। हर तरफ शांत माहौल था। यद्यपि बोमडिला अरुणाचल प्रदेश के
वेस्ट कामेंग जिले का मुख्यालय है,
पर उस जमाने में वहां सड़क पर या सड़क के आसपास कोई खास हलचल नहीं थी। सड़क के किनारे
कहीं-कहीं झोपड़ीनुमा होटल थे जिनको पारंपरिक वेषभूषा में सज्जित
वहां की औरतें चलाती
नज़र आईं थीं। नायक यादव
ने मुझे बताया था कि उन होटलों में खाने को दाल-चावल,
मीट मछली और पीने को
अपनी रुचि के मुताबिक चाय अथवा मदिरा मिल जाती थी।
कहते हैं कि मध्यकाल में बोमडिला तिब्बत के
साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। कुछ साक्ष्य इस बात के भी पाए जाते हैं कि यहां पर
भूटान की जनजातियों का शासन रहा है। किसी जमाने मे बोमडिला दर्रे से तिब्बत के ल्हासा
तक सीधा रास्ता जाता था| चीन के तिब्बत पर कब्जे के
बाद काफी संख्या में तिब्बती बौद्ध भिक्षु यहां आकर बस गए थे।
इसलिए बोमडिला के आस पास बौद्ध संस्कृति का व्यापक प्रभाव है। चीन और भारत के बीच यह इलाका लम्बे
समय से विवाद का विषय बना रहा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में चीन की सेना ने बोमडिला पर क़ब्ज़ा कर लिया था लेकिन बाद में चीनी सेना अपने आप
वापस लौट गई थी।
कुछ देर के बाद हम बोमडिला को पार कर दूसरी
ओर की ढलान से नीचे उतर रहे थे। तभी देखते ही देखते हम से थोड़ी सी
दूरी पर आगे ऊपर से बड़ी-बड़ी चट्टानें और मिट्टी खिसक कर सड़क पर
आ गई थी जिसकी बजह से हमारी दोनों गाड़ियां रुक गईं थी। उस समय उस सड़क पर प्राइवेट वाहन
नहीं दिखते थे।
मैं अपनी गाड़ी से उतर कर उप-कमान अधिकारी के पास गया था वह भी अपनी जोंगा से नीचे
उतर आए थे। उन्होंने स्थिति का जायजा ले कर अंदेशा जताया था कि शायद ही उस दिन सड़क
खुल पाए। उन्होंने दोपहर
का भोजन कर लेने के लिए कहा था। उनकी गाड़ी में उनका खाना था पर मैं तो अपना खाना साथ ले कर आया ही नहीं था। मैं चुपचाप अपनी गाड़ी की ओर लौट
गया था। मैंने नायक यादव को दोपहर का भोजन कर लेने के लिए कहा था।
मैं मन ही मन सोच रहा था कि यादव अपने साथ
खाना लाए होगें या नहीं तभी नायक यादव ने पीछे बैठे जवान को गाड़ी में रखा खाना निकालने
के लिए आवाज दी थी। वह
जवान गाड़ी से एक बड़ा सा पतीला, जिसमें पूरियां और सब्ज़ी भरी
थी, निकाल कर ले आया था। उप-कमान अधिकारी
के ड्राइवर और सहायक भी अपना खाना लेकर हमारे पास ही आ गये थे। उनके पास भी पूरियां
और सब्ज़ी थी।
सफर के दौरान सैनिकों को अक्सर पूरियां अथवा
पीला चावल और सूखी सब्जी दी जाती है। खाने से भरा पतीला गाड़ी के बोनट पर रख कर हम
सभी ने मिल बांट कर भोजन का आनंद लिया था। सभी ने खाना अपने हाथों पर रख कर
खाया था। नायक यादव ने बचा हुआ भोजन ढक-संभाल कर रख लिया था।
कुछ ही देर में ग्रेफ (GREF) के आदमी और मशीनें सड़क को साफ करने के लिये पहुंच
गये थे। उन्होंने तेजी
से काम करके लगभग दो-अढ़ाई घंटों में जीप निकालने लायक सड़क साफ
कर दी थी। उन्होंने बड़ी-बड़ी चट्टानों को नीचे धकेलने के लिए विस्फोटकों
का प्रयोग बड़ी कुशलता के साथ किया था। उनकी कार्य-कुशलता देख
कर मैं दंग रह गया था।
उप-कमान अधिकारी महोदय ने मुझे बताया कि उनकी जोंगा तो निकल जाएगी पर वन टन गाड़ी
को निकालने जितना रोड साफ करने में देरी लगेगी। उन्होंने मुझे सड़क खुलने तक इंतज़ार
करने को कहा था और उसके साफ होते ही सैंगे (Senge) नामक जगह पर
आ जाने के निर्देश दिये थे जहां उन्होंने हमारा इंतज़ार करना था। उन्होंने बताया कि
रात के गर्म खाने और सोने का प्रबंध वहीं होगा। यह कह कर वह चल दिए थे। उस क्षेत्र
में अकेली गाड़ी ले जाने के आदेश नहीं थे। उप-कमान अधिकारी महोदय की जोंगा
के साथ वहां रुकी हुई दो जीपें और मिल गईं थीं।
लगभग एक घंटे के बाद हमारी गाड़ी को भी आगे बढ़ने
का संकेत मिल गया था। हमारे साथ सैनिक गाड़ियों का एक काफिला चल रहा था। मेरे पूछने
पर नायक यादव ने बताया था कि हमें सैंगे तक पहुचने तक अंधेरा हो जाना था।
वहां मैंने देखा था कि कई जगह पर सड़क के किनारे सूचना
पट ( बोर्ड) लगे हुए थे जिनमें लिखा था "सावधान आगे पदमा नाच
रही है"। उन दिनों देवानंद की फ़िल्म 'जानी मेरा नाम' में अभिनेत्री पदमा खन्ना के एक मादक
नृत्य की यादें लोगों की याददाश्त में ताजी थीं। बोर्ड पर लिखा हुआ होने के बावज़ूद
मुझे पदमा कहीं नाचती नज़र नहीं आई।
जब मैंने अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उसके बारे में नायक
यादव से पूछा तो उन्होंने जोर से एक ठहाका लगाया और कहने लगे, ' बाबू जी, कृष्ण भगवान की दया से अच्छा हुआ हमें अभी तक
पदमा का नाच नज़र नहीं आया।' मैंने हैरानी से उनके चेहरे की ओर देखते हुए कहा,
'यादव, मैं समझा नहीं।' 'सर, जहां-जहां ग्रेफ वालों ने ये बोर्ड लगाए हैं उन जगहों पर पहाड़ों से पत्थर गिरते
हैं। इतनी ऊंचाई से नीचे
आता एक छोटा सा पत्थर भी जानलेवा हो सकता है।'
मैं सहम कर चुपचाप अपनी सीट पर बैठे,
आगे की ओर देखता हुआ, मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगा था कि उस दिन
पदमा का नाच न दिखाई दे। (ऊपर दिया गया चित्र सांकेतिक है और इंटरनेट से लिया गया है।)
भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर
दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन।
फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर
(ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) दे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी
सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.ए.
(अंग्रेजी साहित्य) दी डिग्री हासिल कित्ती। इस
ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी.
च, 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसर'
दी जिम्मेबारी निभाई।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें
ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी
रही। आखिर च घरें आई
सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार
कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी
चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट
अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली
चुकेया।
हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तो' करी नैं कदी-कदी किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।