अपणिया भासा च समाज दे बारे च, समाज दे विकासा दे बारे च लेखां
दे मार्फत जानकारी हासल करने दा अपणा ही मजा है। समीर कश्यप होरां इक लेखमाला जाति व्यवस्था
दे विकास पर लिखा दे हन। इसा माळा दा पैह्ला मणका असां कुछ चिर पैह्लें पेश कीता था। फिरी पहाड़ी भाषा पर चर्चा
चली पई। हुण एह लेखमाला फिरी सुरू कीती है। सत लेख तुसां पढ़ी लै, अज पढ़ा इसा लेखमाळा दा नौउआं मणका।
जाति उन्मूलना रा
कार्यक्रमः कुछ शुरूआती प्रस्ताव
जाति रे उन्मूलना कठे
आजा री जरूरत ही एक वर्ग आधारित जाति विरोध आंदोलन। क्या आसे जाति उन्मूलना री
लड़ाई राज्यसत्ता रे सौगी बैरमोल लितिरे बिना लड़ी सकाहें? क्या
भारता बिच राज्य सत्ता रा हमेशा ले हे जातिगत चरित्र नीं रैहिरा?
क्या
भारता बिच राज्य सत्ता रा पितृसतात्मक चरित्र नी रैहिरा? ये
सोचणा आपणे आपा जो मूर्ख बनाणा नी हा भई राज्य सत्ता एक निष्पक्ष अभिकर्ता हुआईं,
जेता
रा केसी वर्गा रे सौगी कोई पक्ष नीं हुंदा होर जेता रे कोई जातिगत पूर्वाग्रह नीं
हुंदे होर से वर्गा होर जातियां ले ऊपर कोई निष्पक्ष महान मध्यस्थ ही?
क्या
आसे उम्मीद करी सकाहें भई जाति रा उन्मूलन राज्य सत्ता रे अफर्मेटिव एक्शन यानि
सामाजिक अनुशंसावादा रे जरिये हुई सकहां या सरकारी नौकरी मंझ दलित तबके ले लोक चली
जाणे रे जरिये हुई सकहां, ये
सोचदे हुए भई सरकारा रे सोचणे होर कार्यवाई करने जो आसे सरकारी नौकरियां बिच जाई के
बदली सकाहें? क्या जाति उन्मूलना
कठे कल्हा एक सामाजिक आंदोलन हुणा हे भतेरा हा? क्या
जाति रा उन्मूलन पूरे सामाजिक आर्थिक ढांचे रे क्रान्तिकारी रूपान्तरणा रे बाझही
संभव हा।? आसारा मनणा ये हा भई
इन्हा सभी सवाला रा जबाब एक जोरदार नाह हा।
एतारा
कारण ये हा भई सामाजिक अधिरचना हमेशा-हमेशा राजनैतिक अधिरचने संभाली री होर बचाई
री हुआईं। सरकार होर राज्य सत्ता जातिगत उत्पीड़न या दमना रा समर्थन नीं करे ता से
टिकिरी किहां रैही सकाहीं। डा. अंबेदकरा रे राजनैतिक प्रयोगा रा अनुभव दसहां भई
ब्राह्मणवादा जो हमेशा ले राज्य सत्ता रा संरक्षण प्राप्त था चाहे से औपनिवेशिक
राज्यसत्ता हो या चाहें मुस्लिम या हिंदू राज्य सत्ता रैहिरी हो। जाति रे खिलाफ
लड़ना हो ता एस सारे राजनैतिक सत्ता रे ढ़ांचे रे खिलाफ जाणा पौणा। सामाजिक उत्पीड़न
होर आर्थिक शोषण कधी बी अलग-अलग नीं हुंदे बल्कि स्यों अन्तर्गुन्थित रूपा के एजी
दूजे के गुंथित हुआएं होर तिन्हा बिच द्वंद्वात्मक रिश्ता हुआं। राजनैतिक संरचना
यानि सरकार जाति जो टिकाए रखणे रा मुख्य ढांचा हा। राज्य सत्ता रे बिना सामाजिक होर
सांस्कृतिक अधिरचना टिकिरी नीं रैही सकदी। हालांकि ये बी सच हा भई सांस्कृतिक होर
सामाजिक अधिरचना री एक सापेक्षित स्वायत्ता हुआईं होर से बी राजनैतिक अधिरचना जो
प्रभावित करहाईं। कोई भी राजनैतिक अधिरचना एकी आर्थिक आधारा री सेवा करहाईं। एहड़ा
कोई बी आर्थिक आधार जे शोषण होर दमना पर आधारित हो से विभिन्न प्रकारा रे सामाजिक
उत्पीड़ना रे बगैर नीं चली सकदा, जेता
बिच जाति उत्पीडन बी शामिल हुआं। पूँजीवादी शोषणा री सारी प्रक्रिया जातिवाद,
ब्राह्मणवादी
होर सामाजिक उत्पीड़ना रे सभी रूपा रा इस्तेमाल किते बगैर नीं चली सकदी। ये गल्ल
बी सच ही भई जाति पूरी तरहा के अधिरचना रा हिस्सा नीं ही बल्कि ये आर्थिक आधारा रा
हिस्सा बी बणहाईं। जाति चीजा रे वितरणा रे अनुपाता जो किथी ना किथी प्रभावित
करहाईं। इधी कठे जाति उन्मूलना रा प्रश्न असलियता बिच समाजा रे क्रान्तिकारी
रूपांतरणा रा प्रश्न हा। जाति रा अंत क्रान्ति रे बिना नी हुणा। आज क्रान्ति रा
प्रश्न बी जाति रे प्रश्ना के तेहड़ा हे जुड़ीरा जेहड़ा जाति रा प्रश्न क्रान्ति
के जुड़ीरा। क्रान्ति हुई हे नीं सकदी अगर आजा ले हे आसे वर्ग आधारित जाति विरोधा
जो संगठित करने रा काम नीं करदे। वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना रे कामा बिच केसी
किस्मा रे अस्मितावाद, व्यवहारवाद
होर अर्जी या आवेदनवादा री जगह नीं हुणी। हालांकि मुद्दे इन्हारे बी स्यों हुई
सकाहें पर वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना रा तरीका क्रान्तिकारी हुणा होर इन्हा
ले अलग हुणा।
वर्ग
आधारित जाति विरोधी आंदोलना ले आसारा मतलब क्या हा। एस आंदोलना रा चरित्र एतारी
प्राथमिकता ले निर्धारित हुआं। अस्मितावादा री राजनीति प्रतीकात्मक मुद्देयां जो
वास्तविक मुद्देयां ले ज्यादा तरजीह देहाईं। हालांकि जिग्नेशा रा आंदोलन भौतिक
मुद्देयां जो तरजीह देही करहां जे अच्छी गल्ल ही। जे प्रश्न वर्ग आधारित जाति
विरोधी आंदोलना उठाणे स्यों 89-90 प्रतिशत
दलित आबादी जे मेहनतकश ही होर खेता खलियाना, कल-कारखानेयां
बिच खट्टी करहाईं तिन्हा जो प्रभावित करने वाले हुणे। वर्ग आधारित मुद्देयां री पैहचाण
किती जाणी चहिए। सभी थे बडा मुद्दा हा दलित विरोधी उत्पीड़ना री बधदी घटनावां रा।
इन्हां मंझा 96-97 प्रतिशत घटना मजदूर
वर्गा री दलित आबादी रे खिलाफ हुआईं। उत्पीड़ना रे माहौला रा सामना अस्मितावादी
ढंगा के नीं हुई सकदा। क्योंकि एकी अस्मिता रे बड़े हुणे ले दुजी अस्मिता बी आपणे
आप हे बडी हुंदी जाहीं। एतारा मुकाबला वर्ग आधारित आंदोलना के हे अस्मितावादी दुश्मणा
रे खेमे मंझ काम करिके तिन्हा जो बेअसर या न्युट्रेलाइज करूआँ हे कितेया जाई
सकहां। एता कठे सघन होर सतत जाति विरोधी प्रचार करना पौणा। खास करूआं मध्य जातियां
बिच प्रचार कितेया जाणा चहिए। दुश्मणा री पैहचाण करवाई जाणी चहिए ज्यों कुलीन
वर्गा रे रूपा बिच आपणी ही जाति मंझ मौजूद हुआएं। एक लंबी प्रक्रिया के ये मसला हल
कितेया जाई सकहां होर अस्मितावादा होर मध्यम जातियां रे टकराव जो बेअसर या
न्युट्रेलाइज कितेया जाई सकहां।
भारता
रे संबंधा बिच वर्ग होर जाति रे संबंधा जो एक वाक्यांश प्रतिबिंबित करहां। ये
वाक्यांश हा भई हर दलित उत्पीड़ित हा पर मेहनतकश वर्गा रा दलित उत्पीड़ना रे
बर्बरतम रूपा रा शिकार हा। दूजी गल्ल भई हर मजदूर शोषित हा पर दलित मजदूर आपणी
सामाजिक रूपा के आरक्षित स्थिति रे करूआं अतिशोषित हा। इधी कठे इन्हा मसलेयां पर
प्राथमिकता निर्धारित किती जाणी चहिए। दूजा प्रश्ना हा सजातीय ब्याह। ये सच्चाई ही
भई सजातीय ब्याह जातियां जो पुनर्उत्पादित करदा रैहां। एता कठे कई सांस्कृतिक
गतिविधियां किती जाणी चहिए। जिथी आसारी ताकत हो तिथी जाति तोड़ी के ब्याह करने
वालेयां जो सुरक्षा देणी चहिए। जेता जो समाज प्रतिष्ठा रे खत्म हुणे होर अपमाना रा
मुद्दा मनहां तेता जो आसे गरिमा के स्थापित हुणे होर सम्माना रा मुद्दा बनाई
सकहाएं। एता री एक सांस्कृतिक लैहर बनायी जाणी चहिए। जाति तोड़ो सामूहिक भोज
आयोजित किते जाणे चहिए। सामाजिक उत्पीड़ना रे विभिन्न रूपा रे खिलाफ जबरदस्त
सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा कितेया जाणा चहिए। आजा रे समकालीन समया री घटनावां रे बारे
बिच वर्ग आधारित एकता रे गीत बणाये जाणे चहिए।
सभी
थे महत्वपूर्ण मांग जे आसारी हुणी चहिए से ये ही भई जेहड़ा ग्रामीण बेरोजगारा कठे
रोजगार देणा सरकारे संवैधानिक तौरा पर आपणी जिम्मेवारी मनी लितिरी। इधी कठे आसा जो
सार्विक अधिकारा रे तौरा पर मांग करनी चहिए भई शिक्षा व्यवस्था बिच सभी कठे समान
होर निःशुल्क शिक्षा हो। शिक्षा होर रोजगारा कठे संविधाना बिच संशोधन करूआं यों
मूल अधिकार बिच लयाउणे चहिए। एता कठे आंदोलन करने जो बड़ा फ्रंट बनाणा चहिए सभी
युवा-छात्र संगठना होर जाति विरोधा फोरमा रा। हालांकि कई पूँजीवादी देशा बिच
यूनिफार्म स्कूल सिस्टम लागू हा। भारता बिच जेबे सभ समान हे ता 10
तरहा
रे सरकारी स्कूल कि हे प्राइवेटा री ता गल्ल हे रैहण देयो। एक किस्मा रा सरकारी स्कूल
देयो, एक हे पाठ्यक्रम देयो
ताकि अमीर, गरीब,
दलित,
ब्राह्मणा
रे बच्चे एकी स्तरा पर पढ़ी सको। एक स्तर आर्थिक होर अधिसंरचना रे तौरा पर बी हुणा
चहिए। यानि केसी स्कूला ता बौहत बढ़िया टीचर हे, स्विमिंग
पूल बी हा, बास्केटबाल कोर्ट बी
हा यानि सब कुछ हा पर केसी स्कूला ब्लैकबोर्ड नीं हा, बाथरूम,
पीणे
रा पाणी नी हा जिथी गरीब होर दलित आबादी पढ़दे जाहीं। क्या ये सीधा-सीधा जाति विरोधी
आंदोलना रा मुद्दा नीं बणदा। यूनिफार्म स्कूल सिस्टमा के निश्चित तौरा पर जाति
व्यवस्था पर चोट हुणी। एता ले अलावा शहरी रोजगार गारंटी कानूना कठे अभियान शुरू
कितेया जाणा चहिए। क्योंकि आजकाला रे मौजूदा दौरा बिच बेरोजगारी री दर बौहत ज्यादा
बधदी जाई करहाईं। एक मांग होर किती जाणी चहिए स्टेट हाउसिंगा री। रिहायशी पार्थक्य
एता के हे टुटणा। लोका जो मकाना रा मालिकाना नीं देयो पर तिन्हा री रिहायशी रा
प्रबंध कितेया जाणा चहिए। हालांकि आसौ पता हा भई एस पूँजीवादी व्यवस्था बिच यों
मांगा पूरी नीं हुणी पर आसे एहडी मांगा तेबे बी उठाहें क्योंकि आसे पूँजीवादी
वायदेयां जो अति अभिज्ञान यानि ओवर आइडेंटिफिकेश देहाएं। आसे बोल्हाएं भई एभे तुसे
इन वायदेयां रे बारे बिच बोली देतिरी इधी कठे आसारी मांगा जो पूरी करा। अगर आसा
बाले ताकत हो ता आसे सड़का पर आंदोलना के इन्हां मांगा जो मनवाणे कठे सरकारा पर
दबाब बनायी सकाहें। पर एस ताकता जो हासिल करने कठे संगठना जो विकसित करने री जरूरत
हुआईं। स्टेट हाउसिंग, सभी
कठे समान शिक्षा होर रोजगारा सरीखे यों मुद्दे उठघे ता जाति रा मुद्दा भौतिक रूपा
ले बडा मुद्दा बणी जाणा। तेबे जाति रा मुद्दा सिर्फ मूर्ति टुटणे होर यूनिवर्सिटी
रा नावं बदलणे तका रा मुद्दा हे नी रैहणा। दूजी गल्ल एता के आसा जो मौका मिलणा भई
जनता री गैर दलित आबादी बिच जे जातिगत पूर्वाग्रह हे तिन्हारे खिलाफ संघर्ष कितेया
जाई सको। हर आंदोलना बिच जाति रे प्रश्न एजेंडे बिच ल्याउणा चहिए। होर एता रे
खिलाफ लगातार प्रचार करना चहिए। जातिगत मैटरीमोनियला रे खिलाफ बी लगातार आंदोलन,
प्रचार
होर चोट करनी चहिए। यों कुछ मुद्दे हे पर ये एक पूरी सूची नीं ही एता बिच होर
भौतिक मुद्दे बी जुडी सकाहें।
इन्हा
मुद्देयां पर वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलन खड़ा कितेया जाए ता एहड़ी एकता पैदा
करी सकाहीं जे क्रान्तिकारी गोलबंदी होर संगठना के आसा जो अग्गे क्रान्ति री
मंजिला तका पौहंचायी सकहां होर बिना क्रान्ति के जाति उन्मूलन नीं हुई सकदा।
क्रान्ति ले बाद बी एकदम जाति उन्मूलन नीं हुई जाणा। समाजवादी क्रान्ति हुई बी जाओ
ता जाति पर सभी थे बड़ी चोट ये हुणी भई तुरंत हे राज्या रे अधीन सामूहिक किसानी
हुई जाणी होर सारी जागीरा भंग हुई जाणी। सारे स्वर्ण बड़े भूस्वामी री जमीना छीनी लेती
जाणी होर स्टेट फार्मिंग या सामूहिक फार्मिंगा बिच तब्दील हुई जाणी। स्टेट
फार्मिंगा ले दलित, शुद्र
होर गरीब जनता जो तिथी काम मिलणा। मजदूर खेता बिच छैह घंटे काम करघा,
फेरी
घरा जाईके बच्चेयां जो प्यार करघा, धूमदे-फिरदे
जांघा, फिल्मा देखघा,
सभ
कुछ करघा। क्योंकि तेबे तेस बाले पूरा वक्त हुणा। भूमीहीनता होर आर्थिक असमानता
जातिगत उत्पीड़ना जो टिकाई रखाहीं। जाति रे कुछ मामलेयां पर ता समाजवादी क्रान्ति
तुरंत हे भयंकर चोट करी देणी। सारी जमीना, सारे
कारखाने, खदाना होर निजी बैंका
रा राष्ट्रीयकरण हुई जाणा। जेता के जातिगत विभेद जो चोट पौंहचणी। जातिगत मानसिकता
री जमीन ही शारीरिक श्रम होर मानसिक श्रमा मंझ अंतर। एता रे अलावा गांव होर शैहरा
रा अंतर होर उद्योग होर कृषि रे अंतरा के बी असमानता बणहाईं समाजा बिच। समाजवादी
क्रान्ति ले बाद लंबे समया तक चलने वाले कई सांस्कृतिक आंदोलना रे जरिये ये
असमानता होर अंतर खत्म हुणे। जाति जो जड़ ले खत्म करने कठे समाजवादी समाजा जो 100
साल
बी लगी सकाहें तेबे जाई के ये खत्म हुणी। प्रसिद्ध इतिहासकार सुविरा जायसवाल बोल्हाईं
“जाति निजी संपति पितृसत्ता
होर वर्गा के सौगी पैदा हुई थी होर जाति निजी संपति पितृसत्ता होर वर्गा रे सौगी
हे खत्म हुई सकाहीं”। पूरी तरह के जाति
रा समाप्त हुणा एक समाजवादी समाजा मंझ हे संभव हा। पर क्रान्ति करने कठे एक वर्ग
आधारित जाति विरोधी आंदोलन आजा ले ही खड़ा करना पौणा जे सड़का पर लड़ने री ताकत
रखदा हो। सही दिशा ये ही।
(ये
लेख मजदूर बिगूल अखबारा रे संपादक अभिनव सिन्हा रे यू टयूब लैक्चरा ले लितिरे नोटस
पर आधारित हा।)