अपणिया भासा च समाज दे बारे
च, समाज
दे विकासा दे बारे च लेखां दे मार्फत जानकारी हासल करने दा अपणा ही मजा है। समीर
कश्यप होरां
इक लेखमाला जाति व्यवस्था दे विकास पर लिखा दे हन। इसा माला दा पैह्ला मणका
असां कुछ चिर पैह्लें पेश कीता था। फिरी पहाड़ी भाषा पर चर्चा चली पई। हुण एह लेखमाला फिरी सुरू कीती है
अज पढ़ा इसा दा दुआ मणका।
वैदिक आर्य कबीलेयां रा इथी बसीरे लोका
के टकराव होर सहकार हुआ। जेता बिच वैदिक आर्य
कबीले दास कबीलेयां जो हरायें होर तिन्हा जो गुलाम बनाई देहाएं। इथी ले दास शब्दा रा अर्थ गुलाम, दस्यु, लुटेरा होर असुर शब्दा रा अर्थ राक्षस बणी जाहां। ये हुआं उत्तर वैदिक काला बिच। ये काल हा 1000 ई. पू. ले 500 ई.पू
तका रा। एता बिच वैदिक आर्य समाजा मंझ पैहली बार वर्ग सपष्ट रूपा के जन्मा लैहाएं। वर्णा रे बिच आनुवांशिक श्रम विभाजन, पैहली बार सजातीय ब्याह
प्रथा री गल्ल होर वर्णा बिच जातियां रे प्रकट हुणे री गल्ला रे प्रमाण मिलहाएं। एस दौरा बिच यजुर्वेद, सामवेद
होर अथर्ववेद रचे गए। जातियां रे
प्रकट हुणे रा कारण था दास कबीलेयां जो हटाई कने तिन्हा जो दास बनाणा। शुद्र नावां री एक जनजाती थी जेता रा मुख्य ईलाका सिंध था।
वैदिक आर्या ले एसा जाति रे हरने पर हारिरे
कबिलेयां रे सारे वर्गा जो तिन्हें शुद्र नांव
दितेया। यानि अधिनस्थ आबादी जो शुद्र वर्णा रा नावं दितेया गया।
अर्थशास्त्रा रे खंड तीना रे प्वाइंट 13 बिच कौटिल्य बोल्हाएं- शुद्र एक आर्य हा होर एजो बेची या गिरवी नीं रखी सकदे। एता कठे बाकायदा दंड रखीरा थी। पाणिनी रे कामा पर पतंजलि महाभाष्य लिखाहें होर स्यों बोल्हाएं- शुद्र स्यों आर्य थे ज्यों गांवां री सीमा रे भीतर हे रैहाएं थे। गांवा री सीमा ले बाहर कुछ अनार्य कबीले रैहाएं थे जिन्हां जो चार वर्णा री व्यवस्था बिच जगह नीं मिली री थी। ये पांझवां वर्ण या अंत्यज जाती बोली गई। हालांकि अझी तका अछूता रा जिक्र नीं आउंदा। मनुस्मृति बिच भी शुद्रा रे आर्य हुणे रा जिक्र आवहां। पहली बार ब्रह्मा रे मुहां ले ब्राह्मणा वाली परिकल्पना किती जाहीं।
ब्रुस लिंकन होर जॉर्नेस दुबेदिले दुनिया रे अलग-2 जगहा रे चरावाह समाजा पर अध्ययन कितिरा। स्यों बोल्हाएं भई चरावाह समाजा बिच तीन वर्ण हुआएं थे। पुरोहित, योद्धा होर आमजन यानी ब्रह्म, राजन्य होर विस्। ऋग्वेदा बिच चरवाहे समाजा रे वक्त वंशा रे मुखिया जो गृहपति बोल्हाएं थे। गृह हुआं था कबीला। चरवाहे समाजा ले 500 ई. पू. तक खेतीहर समाज बणी गया। खेतिहर समाज बणने ले जमीन होर मजदूर रा महत्व सामहणे आया। 10वीं सदी बीसी ले 7वीं सदी बीसी तक लोहा मिलणे ले वैदिक आर्य गंगा रे मैदाना बखौ बधे होर 500 बीसी तक बिहार होर बंगाला तक पौंहची जाहें। एस दौरा रे बारे बिच जानणे कठे रोमिला थापरा री गिफ्ट इकानॉमी पर कल्चरल पास्ट होर आर एस शर्मा री वर्ग पूर्व सामाजिक संस्तरीकरण (प्री क्लास स्ट्रैटीफिकेशन) महत्वपूर्ण कताबां ही। वैदिक आर्य नौवें कबीलेयां के संघर्ष होर सहकारा के तिन्हौ बी आपणे चार वर्णा बिच समेटी करहाएं थे। अगर भारता रे समाजा जो समझणा हो ता डी डी कोशाम्बी री कताबा जरूर पढनी चहिए। जाती रे उदगमा पर इतिहासकार सुविरा जायसवाला री कताबा बी जरूर पढनी चहिए।
9वीं होर 10वीं शताब्दी रे वैदिक रिकार्ड बिच एक गांवां मंझ 36 वर्णा रे हुणे री गल्ल कीतिरी। मिथिला रा 14वीं शताब्दी रा रिकार्ड हा वर्ण रत्नाकर जेता बिच 96 वर्णा रा जिक्र कितिरा। साफ तौरा पर लगहां भई ये 96 जातियां री गल्ल करी करहाएं। 14वीं होर 15वीं शताब्दी तका वर्ण होर जाती रा कई जगहा मिक्स प्रयोग हुई करहां था पर ज्यादातर जाती रा अलग प्रयोग हुई करहां था। पहली बार अंत्यज जातियां रा प्रमाण मिलहां 500-400 ई. पू महाजनपदा रे दौरा बिच।
600 ई.पू. ले 300 ई.पू. तका वर्ण-वर्ग व्यवस्था अस्तित्वा बिच आई चुकीरी थी। सजातीय ब्याह होर जातियां रा ढांचा बणी गईरा था। सीमाबद्ध राज्या (टैरिटोरियल स्टेट) रे ढांचे बणे होर 16 महाजनपद 300 ई.पू. तका कायम रैहे। एस काला बिच पैहली बार गुलाम या दास श्रमा रा भारी पैमाने पर इस्तेमाल हुई करहां था। हालांकि एस वक्त ज्यादातर राजे जनजातियां रे राजे थे। वैदिक आर्य आए ता इन्हा जनजातियां रा भी ब्राह्मणीकरण हुआ होर तिन्हें क्षत्रिय हुणे रा दावा कितेया। ये वक्त बुद्धा रा काल था। एस वक्त मुख्य धर्मा रे तौरा पर बौध होर जैन पैदा हुए। एस समय दास श्रम मुख्य रूपा ले शुद्र होर अंत्यज जातियां करी करहाईं थी। खेती रा काम, दस्तकारी होर घरेलू काम इन्हारे जिम्मे था। वैश्य मुख्य तौरा पर मुक्त किसान थे। मौर्य साम्राज्या (400-182 ई.पू.) रा पतन 182 ई.पू. बिच हुई गया। उत्पादक वर्ग मुख्य रूपा के शुद्र होर वैष्य थे। कॉमन इरा (सीई) री शुरूआत हुणे तका ये व्यवस्था चलदी रैही। पैहली शहरी क्रान्ति अगर हड़प्पा थी ता दूजी शहरी क्रान्ती महाजनपद थे।
राज्यसत्ता राजे रे हाथा बिच केन्द्रित थी। भूमी लगाना कठे ब्राह्मण अधिकारी लगाईरे थे। कौटिल्ये लिखीरा भई काराधान होर सिंचाई व्यवस्था बगैरा रा प्रबंध ब्राह्मण हे करहाएं थे। होर ब्राह्मणा जो ईनामा रे तौरा पर जमीना दिती जाहीं थी। जेता जो अग्रहार बोल्हाएं थे। ब्राह्मणा री प्रशासका री भूमिका थी। एस काला बिच ये बी देखणेयो मिलहां भई सुख सुविधा री चीजा, सोम रस होर शराब बगैरा रा प्रचलन बधी जाहां। खेती रे उपकरणा री जरूरत बधाहीं होर मुद्रा अर्थव्यवस्था पैदा हुआईं। बाजार बी एस दौरान ही पैदा हुआं। पैदावार बधणे ले व्यापार होर वाणिज्य री जरूरत पैदा हुणे ले व्यापारी वर्ग उत्पन्न हुआं। इतिहासकार आर एस शर्मा एताजो शुद्र-वैष्य उत्पादन व्यवस्था या प्राक सामंती किसान अर्थव्यवस्था रा नावं देहाएं। कलियुगा रे बारे बिच दसया जाहां भई एस युगा बिच वैश्या कर देणा बंद करी देणा होर शुद्रा आदेशा री अवहेलना करनी। वैश्य वर्णा रे समृद्ध गहपति यानि अमीर वैश्य किसान व्यापार बखौ चली जाहें। जबकि गरीब वैश्य किसान (ज्यों व्यापार नीं करी पांदे) शुद्र किसान बणी जाहें। एतारा समयकाल हा 1 ई. ले 6 ई. तक। जेता जो आसे कलियुगा रे संकटा रा काल बी बोली सकाहें। बौहत ज्यादा लगाना रे दबाबा री बजह ले वैश्य बगावता करी करहाएं थे। अमीर वैश्य व्यापार बखौ जाई करहाएं थे। दास श्रमा री बगावता री वजह ले स्वतंत्र किसाना जो शुद्र जातीयां रा स्टेटस दितया गया।
शुद्र पैहले बटाईदारा रे रूपा बिच पैदा हुए फेरी निर्भर
स्वतंत्र किसान बणे। पैहली बार शुद्र जातीयां मुख्य तौरा पर किसान
जातियां बणी। उत्तर वैदिक काला बिच खेती रा काम
वैश्य करहाएं थे। पर एस संकटा ले बाद शुद्र
निर्भर किसान होर वैश्य व्यापारी बणी गए। वैश्य हुणे रे बावजूद छठी सदी ई. बिच कन्नौजा रा राजा हर्षवर्धन बणहां। यानि 1 सदी ई. ले 5, 6 सदी
ई. तक उत्पादन व्यवस्था बिच बदलाव हुआं। वैश्य व्यापारी बणहाएं होर शुद्रा रा किसानी मुख्य पेशा बणी जाहां। मुद्रा रा प्रचलन हुआं।
बाह्मणा जो भूमी अनुदान मिल्हाएं। क्षत्रिया जो बी
भूमि अनुदान दिते जाहें थे। एता के बाह्मण होर
क्षत्रिय जमींदार या भूस्वामी रे रूपा बिच उभराहें। अस्पृश्यता पर विवेकानंद झा रा बौहत अच्छा अध्ययन हा। एस काला बिच अश्पृश्य
जातियां अब अर्ध दास या दास श्रमा री आपूर्ति
करदी लगाहीं। स्यों आपणी सेवा कृषक श्रम या सेवा
प्रदाता रे रूपा बिच देहाएं। इन्हां जातियां बिच चर्मकार,
चांडाल या होर चरवाही जातियां आवहाईं थी। वेदा बिच ये मिलहां भई
चर्मकारा रे पेशे रे प्रति कोई हेय दृष्टि के
नीं देखदा था।
वैदिक कर्मकांडा री सामग्री चमड़े
रे झोले बिच हे रखी जाहीं थी। इधी कठे चर्मकार प्रतिष्ठित जाति
थी। तरीजी सदी ई. बिच सामंतवादा रे परिपक्व हुणे पर अस्पृश्यता बडे पैमाने पर फैली। शुद्र अब हीन शुद्र होर अहीन शुद्रा बिच बंडही गया।
हीन शुद्रा बिच निषाद, चांडाल बगैरा जातियां शामिल किती गई। होर
तिन्हा जो अस्पृश्य मनी के चार वर्णा ले बाहर करी
दितया गया। प्रारंभिक बौध ग्रंथा बिच मांस खाणे
वाले जो हीन बोलया गया। बुद्ध धर्म मांस भक्षणा रे खिलाफ था।
पर 1000 ई. तका ब्राह्मण
खुद बड़े पैमाने पर मांस भक्षण करहाएं थे। होर यह 11वीं
होर 12वीं सदी ई. बिच बधलेया। छठी सदी ई. बिच
वराहमिहिर दसहाएं भई सभी राजयां जो हर धार्मिक समारोहा बिच
पशु रा मांस खाणा चहिए। इधी ले साबित हुआं भई मांस
भक्षणा ले अछूत नीं बणे। चौथी होर पांजवीं सदी ई.पू. बिच पैहली
अछूत जातियां रे प्रमाण मिलहाएं। पर अश्पृश्यता री शुरूआत मांस भक्षणा ले हुणे रा कोई प्रमाण नीं मिलदा। चौथी-पांजवीं सदी ई.पू. बिच एकी-एकी धार्मिक अनुष्ठाना मंझ हजार-हजार जानवर काटी दिते जाहें थे।
तेबे हे ता बुद्ध धर्म अहिंसा री मांग करी
करहां था। तेहड़ा हे जैन धर्म भी अहिंसा री हे
गल्ल करी करहां था। पर बुद्ध धर्मा रे पतना रे कारणा जो देखणे ले पता लगहां भई कर्म होर अहिंसा रा सिद्धांत जाति व्यवस्था जो
सुदृढ़ बनाणे बिच इस्तेमाल किते जाणे री
संभावना थी। कर्म होर पुनर्जन्मा रे सिद्धांता रा
प्रभाव बी जाति व्यवस्था जो मजबूत करने वाला था। बुद्ध धर्मा
रे अहिंसा रे सिद्धांता के जीव हत्या पाप घोषित हुई गई। जेता के
शिकार करने वाली होर चरवाहा जातियां एस धर्म ले
बाहर हुई गई। भिक्षु बणने री शर्त थी भई सैनिक, औरत, कर्जे
वाला किसाना रा दासत्व ले मुक्ति पाणा जरूरी हा। बुद्ध
धर्म जाति प्रथा कठे चुनौती नीं बणी पाया। हालांकि ये धर्म ब्राह्मणा रे वर्चस्वा कठे जरूर चुनौती बणया। जैन होर बौद्ध धर्मा बिच
क्षत्रियां जो वरीयता दिती जाहीं थी। क्योंकि इन्हा
धर्मा री शुरूआत करने वाले क्षत्रिय राजवंशा ले हे
आइरे थे। इधी कठे बुद्ध धर्मा पर ब्राह्मणे हमले किते। तेहड़े हे जैना पर बी खूब हमले हुआएं थे। दरअसल हिंदुआं रे कई मत बी आपु बिच
हमले करी करहाएं थे। कश्मीरा लिखीरी
राजतरंगणी बिच पता लगहां भई कई राजे वैष्णव, शैव होर शाक्त समेत कई मत एकी दूजे पर धन संपदा
कठे हमले करहाएं थे।