पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Tuesday, October 12, 2021

सिरमौरी छंद 'गंगी'

 


अज पेश है पुराणे छंद गंगी च अनंत आलोक होरां दी नौएं जमाने दी कविता। 
अनंत आलोक होरां गंगिया दे बारे च भी दस्सा दे कनै अपणे छंदांं जो हिंदिया च समझा दे भी हन। 


गंगी पारंपरिक और एक त्रिपदिक लोक छंद है | इसकी शुरुआत कब हुई कहा नहीं जा सकता लेकिन पंजाब में माहिया और हिमाचल में गंगी की बड़ी लम्बी परंपरा रही है | यह एक मात्रिक छंद है और आज भी हिंदी तथा पंजाबी में भी लिखा जा रहा है | हालाँकि इस छंद पर कवियों का कोई विशेष ध्यान आज नहीं है, वैसे तो छंद से ही दूर है आज का कवि | इसीलिए कविता आम जनमानस से दूर हुई जा रही है ; इस पर फिर कभी बात होगी फिलहाल कहना यह है कि माहिया ही हिमाचल में गंगी के नाम से प्रचलित था जो अब छिटपुट ही मिलता है | हैरानी की बात है कि प्रे गीत के नाम से प्रचलित इस लोगगीत को आज की युवा पीढ़ी जानती ही नहीं |

बारह दस बारह के इस मात्रिक छंद में वाचिक परंपरा का निर्वाह होता है |  इसके प्रथम और तृतीय पद में समान्त यानी काफिया रहता है और बीच का पद स्वतन्त्र रहता है | किसी भी परंपरा में इसे समझने के लिए वहां के डायलेक्ट की वाचिक परम्परा से वाकिफ होना निहायत जरूरी है | हिमाचल में सिरमौर, सोलन, बिलासपुर, मंडी, ऊना, शिमला और चम्बा में इसका प्रचलन रहा है, जहाँ आज भी कुछ लोग इसके बारे में जानते हैं | आज की तारीख में गंगी लगभग लुप्त प्राय विधा है | इसके भाव पक्ष पर थोड़ी बात करूँ तो इसमें शुरू में प्रेम और एक प्रेम प्रस्ताव गंगी के माध्यम से दिए जाते थे | इसे श्रम गीत कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि ये गीत खेत-खलिहान, जंगल या रास्ते चलते जोर जोर से इस मकसद से गाये जाते हैं कि कहीं दूर जंगल, खेत में या रास्ते से कोई जा रहा हो तो वह सुने और फिर जवाब दे |

इसकी शुरुआत नायक या नायिका में से कोई भी कर सकता है जिसका जवाब उसे देना होता है जिसे लक्ष्य कर यह प्रस्ताव या तंज किया जा रहा हो |  जिसे निशाना बना कर ये गाया जाता है या जिस से सवाल पूछा जा रहा हो, वह समझ ले और उसके पास इसका जवाब हो तो वह अवश्य देता है | इसमें सवाल-जवाब रहते हैं | यदि सामने वाला समझ न पाए या  जवाब नहीं दे पाता तो एक दो गंगी और गाई जाती है और फिर अंत में गंगी में यह गाया जाता है कि तुम हार गए हो, तुम्हें जवाब देना नहीं आता है | गंगी बरसात के मौसम में विशेष रूप से गाई जाती है | इसकी एक विशेषता यह भी है, जिसकी वजह से इसे श्रमगीत के रूप में जाना जा सकता है, कि इसे वाद्य यंत्रों के बिना ही घर से दूर गाया जाता रहा है | हालांकि आज कुछ लोकगायकों ने इसे म्यूजिक सहित रिकॉर्ड करवा कर संरक्षित किया है और आम जन में फिर से प्रचलित करने का प्रयास किया है फिर भी यह बहुत कम लिखी जा रही है | विशेषकर कविता की एक उपविधा के रूप में तो बहुत ही कम | हिमाचली लोक परंपरा में असंख्य गंगियाँ प्रचलन के पिछवाड़े भले ही खड़ी हों लेकिन उनके जानने वाले कुछ लोग हैं अभी, मेरे संग्रह में भी असंख्य ऐसी पारंपरिक गंगियाँ हैं, जिनका सन्दर्भ अगले आलेख में देने का प्रयास करूँगा | फिलहाल आदरणीय अनूप सेठी जी के स्नेह आदेश पर इतना ही | इस नाचीज ने सिरमौरी गंगी के माध्यम से नए बिम्ब, प्रतीकों और फैंटेसी का प्रयोग करते हुए आधुनिक भाव-बोध को गंगी के शिल्प में ढालने का लघुत्तम प्रयास किया है जिसकी बानगी आप नीचे हिंदी भावार्थ सहित देख पढ़ सकते हैं :

 इक

म्हारे बातो रे बे होए कुम्बड़े,                    

बातो लांदे खोड़िए नाथी |                   

नींज आई गुई तेरे कुम्बड़े |1|

नायक: मेरे और तुम्हारे बीच इतनी बातें हुईं कि उनके भारे यानी गट्ठर बांधे जा सकते हैं| हम बातें करते-करते थके नहीं अब तो ऐसा लगता है कि मुझे तुम्हारी गोद में ही नींद आ जाएगी |          

बातो लाय लोई निच्छ्ले जिये ,

तेरा ए शड़ाना न आथी |

पट लाय राखा लोको री धिये |2|

नायिका:  मैं तुम्हारे साथ जो भी बातें कर रही हूँ वह सब साफ़ मन से कर रही हूँ मेरे मन में ऐसा-वैसा  कोई भाव नहीं है और जिस पर तुमने अपना सिर रखा है, ये तुम्हारा तकिया नहीं है किसी की धी का पट है |

 दो

होरे बिउलो रे छिट्टे शाड़णे ,

ह्युन्ख्ड़े री तीन गुठिये |

घासो -बाखरो खे जादू छाड़णे |1|

नायक: हरे बियूह्ल (पेड़ का नाम) की पतली टहनियां को पानी में साड़ना और फिर रस्सी बनाने वाले लड़की के औजार, जो क्रॉस की तरह का होता है उसकी सहायता से रस्सी बनानी उसके बाद रस्सियों से गाय-बकरी को बाँधा जाना है |

बाटे शेल्लो री बे गुंदणी दाओं ,

ओबरे दी गाय-बोल्दो |

हामे बान्नी पाया सोंक्ला गाओं |2|

नायिका: शैल बाट कर दाँव यानी पशुओं को बाँधने वाली बटनदार रस्सियाँ बना कर तुमने तो केवल पशु बांधे हैं हमने तो मुहब्बत में पूरा गाँव बाँध दिया है |

 तिन

बातो लाइ लोई जादू रे जोरे ,

धन्नो बाबा इंटरनेटो |

होए दुनिया दे मितोर-सोरे |1|

नायक: लगता है कि हम जादू के दम पर एक दूसरे से बातें कर रहे हैं | इस इन्टरनेट बाबा का धन्यवाद जिसने पूरी दुनिया में हमें मित्र और सगे सम्बन्धी दे दिए |

कोशो दूरो दे बे बेगे देखियों ,

छुईयों न तो का कोरियों |

उमड़ाई खे तो उंडे भेटिओं |2| 

नायिका: कई कोस दूर होने पर भी दिखाई दे जाते हैं, एक दूसरे को छू नहीं सकते तो क्या करें एक दूजे की याद तो मिट जाती है |

चार

नेटो गाशे कोरी लोणी मितरी,

जिओ री बे पेटो भोउती |

घोरे-बायरो री इंदी भीतरी |1|

नायक: नेट पर दोस्ती करनी है | इस दिल के कई पेट हैं और घर की और बाहर की सभी दोस्तियाँ इसी के अन्दर रखनी हैं |

जिऊ आपणा रो जानी आपणी ,

मोयलो रे ठाठ देखयो |

गंगी फुकदी न छानी आपणी |2|

नायिका: दिल भी अपना और जान भी अपनी दूसरे के महल देख कर हमें अपनी झोपडी नहीं फूकनी चाहिए |

पंज

म्हारे बागड़ी दी शुक्की ल्होस्णो,

नारणा तू पाणी देइ दे |

मोर जाणी भुक्खी -चिश्सी ल्होस्णो |1|

नायक / किसान: खेतों में बिना बारिश के लहसुन सूख जा रहे हैं, है ईश्वर पानी बरसा दे, ये लहसुन भूख और प्यास से मर जायेंगे |

काटी जान्ग्लो रो बोणी शोड़की ,

बाँव शुक्की खाले रो नाले |

मेरी पोणयारी आपी तोड़फी |2|

ईश्वर:  जवाब आता है कि जंगल काट-काट कर तुमने सड़कें बना डाली हैं, गाँव की बावड़ियाँ और कुएँ, खाले-नाले सब सब सूख गए हैं| मेरा तो इंद्र धनुष खुद ही प्यासा है तुम्हें कहाँ से पानी दूँ | (गाँव में मान्यता है कि इन्द्रधनुष के माध्यम से पानी ऊपर पहुँचता है और फिर वर्षा होती है |)

 छे

गेऊं काटणी रा हेल्ला कोर दे ,

या तो दिल आपणा दे दे |

या तो मेरा दिल बेल्ला कोर दे |1|

नायक: गेहूं काटने का हेल्ला यानी सामूहिक श्रम (सहायता) कर दे, या तो अपना दिल मुझे दे दे या फिर मेरा दिल आजाद कर दे यानी मुझे लारे लप्पे में मत रख |

झुट्ठी लाईदी न दिन्नो रे धोले ,

तू तो बांडीं दिल सोबी खे ,

हामे रोइये नेबे एतड़े भोले |2|

नायिका: दिन के उजाले में झूठ नहीं बोलते, तू तो सभी को दिल बांटता फिरता है, अब हमें मालूम हो गया है | हम अब इतने भी भोले नहीं रह गए हैं |

सत्त

आई बिषड़ी रो पींगों पिंगणी ,

उंडी आय मेरी आन्गोय |

केल्ली बोयशियो रिंगो रिंगणी |1|

नायक: बिशु का त्यौहार है और पेड़ में झूले डालने का समय है, आ झूला झूलते हैं | लेकिन तू अन्य झूले में झूलेगी तो तुझे चक्कर आयेंगे, घूमने लगेगा सिर इस लिए मेरी गोद में आ जा, एक साथ झूला झूलेंगे |

मेरे पिंगणी ने भोउते उच्चे ,

सोब्बे जाणू तेरे जिओ री |

तूंए टोंडके बे भोउते लुच्चे |2|

नायिका: मुझे बहुत ऊँचा झूला नहीं झूलना है, मैं तुम्हारे दिल की बात जानती हूँ | तुम लड़के लोग बहुत चालाक हो |

अठ

गुठ्ठे-गुठ्ठी री परेट कोरयो ,

जोवानी री देस्सो गोंवाई |

हामे रात भोरी चेट कोरयो |1|

नायक: अँगूठे-उँगलियों की परेड कर के जिन्दगी के दिन फिजूल गवां दिए हम लोगों ने दिन रात फोन पर चैट कर के |

सोबे बोयरी जमाना देखियो ,

विडिओ दे ओमड़ाइ खे |

हामे देसो -राती उंडे भेटियो |2|

नायिका: ये सकल जमाना हमें बैरी नज़र आता है, जो हमें मिलने नहीं देता, बस वीडिओ काल के माध्यम से ही हम लोग मिल सकते हैं, और इसके लिए कोई समय की पाबन्दी भी नहीं है कभी भी मिल सकते हैं ; लेकिन रूबरू नहीं |

नौ

बातो भोउती थी जिओ भीतरी |

धन देवा नेट महाराज,

सारी दुनिया दी लागी मितरी |1|

नायक: मन में बहुत सारी बातें थीं जिन्हें बताने के लिए कोई विश्वसनीय दोस्त नहीं मिल रहा था लेकिन नेट देवता की वजह से सारी दुनिया में दोस्ती हो गई है और हम अनेक तरह की बातें और जानकारियां हासिल कर सकते हैं |

जेती तोलो री ए तेती गाशो री |

देखी भाली लाणी मितरी ,

भोरी दुनिया ए बोदमाशो री |2|.

नायिका: ये दुनिया बदमाश लोगों से भी भरी पड़ी है इसलिए ध्यान से दोस्ती करना क्योंकि यहाँ लोग जितने ऊपर दिखाई देते हैं उतने ही धरती के नीचे भी होते हैं, जिनका पता नहीं चलता |

दस

आगे बिशड़ी रो पाछे दा साजा ,

भावटे रा लॉकडाउनो |

भाना देवठी रा मिलणो आजा |1|

नायक: पहले बिशु का त्यौहार था जिसमें हमने मिलकर झूला झूला और इसके बाद सक्रांति का पर्व है | मंदिर जाने का बहाने ले कर मिलने के लिए आ जाओ |

ढालो दुरके दी लोणी ने भोगो ,

दुरा दुरा रोयी साजना ,

बेगे कोरोना रा चाली रा रोगो |2|

नायिका: देवठी यानी मंदिर में नहीं जाना, दूर से ही नमस्कार करना, भोग प्रसाद भी नहीं लेना क्योंकि कोरोना बीमारी है साजन इस लिए हम अब मिल नहीं सकते |

ग्यारा

काटे धोलू रे पूले बानणे,

कोमरी दी बाओं पायो |

तुम्मे कोईंथो मूले बानणे |1|

नायिका: घास काटते हुए जैसे घास के पूले बाँधते हैं, पूले की कमर में बांह डाल कर, वैसे ही कैंथ के पेड़ के नीचे तुम्हें भी अपनी बाहों में बांधना चाहती हूँ |

लुक्की छुप्पी रो तो देसो रे भेटो ,

देखी कोएँ वीडियो बाणों |

धारो-टिबड़ी दी राखणी झेटो |2|

नायक: छुप-छिपा कर तो बेशक हर रोज ही मिलते रहें लेकिन इस तरह बाँधने की बात मत कर और यदि तुम्हारा दिल कर रहा इस तरह आलिंगन को तो पहाड़ों और ऊँचे टीलों पर भी ध्यान रखो क्योंकि कोई हमारी वीडिओ भी बना सकता है | 

अनंत आलोक

कवि, कहानीकार और अनुवादक।

तलाश (काव्य संग्रह), यादो रे दिवे (हाइकु अनुवाद) प्रकाशित।

मेरा शक चाँद पर साहिब (हिंदी ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशनाधीन।

पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो दूरदर्शन पर सक्रिय।

पॉकेट ऍफ़ एम पर ऑडियो उपन्यास 'मिस 420' उपलब्ध।

सिरमौर कला संगम, हिमोत्कर्ष द्वारा सम्मानित।





Wednesday, October 6, 2021

यादां फौजा दियां

 


फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदेतिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती हैदूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा बारह्वां मणका।


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सहीदाँ दियाँ समाधियाँ दे परदेसे  


सन् 1962 दे भारत-चीन जंग दे दौरान राइफलमैन जसबंत सिंह रावत होराँ सेला दी फ्हाज़त ताँईं तैनात गढ़वाल राइफल्स दी चौथी बटालियन च सामल थे। तिस बग्त चौथी गढ़वाल राइफल्स, 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड दी कमाण च चीनी फ़ौज कन्नै लड़ी थी। मसहूर ब्रिगेडियर होशियार सिंह तिस बग्त 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड दे कमांडर हौंदे थे।  तवाँग दे पासे ते अग्गें बद्धदी चीनी फ़ौजा कन्नै चौथी गढ़वाल राइफल्स दे सूरमेयाँ तगड़े दो-दो हत्थ कित्ते थे।  नेफा दे इलाके च एह् इक किह्ली बटालियन थी जिन्नै चीनी फौज़ दे दंद खट्टे कित्ते कनै जिसा जो बैटल ऑनरनूरानाँगदित्ता गिया था। 

मैं कनै नायक यादव, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र दी समाध पर गै कनै तिन्हाँ जो सेल्यूट कित्ता।  तवाँग कनै तिस ते अग्गें पौंदी भारत-चीन सरहद तिकर जाणे ताँईं, इसा इक मात्र सड़का ते होई करी लंघणे वाळे सारे अफ़सर, जे.सी.ओ कनै जुआन, सहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ जो सन्मान देणे ताँईं तित्थू ज़रूर रुकदे हन्न।  इक उड़दी गप्प दे मुताबक जेकर कोई तिसा समाधिया जो इज्ज़त दित्ते बगैर अग्गें निकळी जाँदा है ताँ सैह् फिरी मुड़ी करी नीं औंदा।  इस रस्ते च सड़का दे दूंहीं पासें पत्थराँ दियाँ पट्टियाँ गड्डिह्याँ सुज्झदियाँ, जिन्हाँ च उन्हाँ लोकाँ दे नाँ लक्खोयो जेह्डे समै-समै पर तिस मुस्कल इलाके च हादसेयाँ दी बळि चढे़ह्यो। शायद इस उड़दी गप्प दे पिच्छें एही बजह होए।  कनै फिरी अपणी जान कुसजो प्यारी नीं लगदी! 

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ दी समाध ते किछ गज पहलैं दो तिन्न मंझले साइज दे बोर्ड लगेह्यो थे।  तिन्हाँ बोर्डां च तिस इलाके च होइयो लड़ाइया दा व्यौरा कनै सहीदाँ दे नाँ दर्ज थे। तिस बग्त यानि के जुलाई सन् 1989 च तित्थू इक निक्के जेहे पराणे बंकर च राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ दी वर्दी कनै तिन्हां दियां इस्तेमाल कितिह्यां किच्छ चीजां रक्खिह्यां थियां।  प्रेस कितिह्यो छैळ-बाँकिया वर्दिया पर सूबेदार मेजर दे रैंक लगेह्यो थे।  जितणा कि मिंजो याद औआ दा तिस बग्त बंकर दे साह्म्णे इक छोटा जेहा पक्का टियाळा था तिस गास शिवलिंग जाँ शिव भगुआन दी मूर्त थी।  टियाळा टिन्ना कन्नै छाह्या था।  मैं टियाळे पर पंज रुप्पेइए चढ़ाई नै मत्था टेकेया कनै मन ही मन अपणे परुआरे सौगी अपणी भी खैर मंगी।  तित्थू हाजिर इक जुआनें असां दे हत्थां पर प्रसाद दे किच्छ दाणे रक्खी दित्ते। 

इक बोर्डे पर हिन्दिया च किच्छ इस तरहाँ लक्खोया था—"राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र दी याद च, जिन्हाँ, अपणिया मर्ज़िया कन्नै, 17 नंवबर 1962 जो '' कंपणी, चौथी बटालियन गढ़वाल राइफल्स दे हिस्से दे तौर पर, लाँस नायक त्रिलोक सिंह नेगी कनै राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाँईं दिया मदता कन्नै, अपणी डिफेंस लाइन दे नेड़ें आइह्यो, कारगर फैर करदी दुस्मण दी मीडियम मशीन गन जो साँत कित्ता था।  तैह्ड़ी चौथी गढ़वाल राइफल्स नै तित्थू होए दुस्मण दे दो हमलेयाँ जो नाकामयाब करी दित्ता था। जसवंत सिंह रावत कनै गोपाल सिंह गुसाँईं नै, त्रिलोक सिंह नेगी दे कवरिंग फायर दी मदता ते, बड़ी हिम्मता कन्नै दुस्मण दी एम.एम.जी दे पासें ग्रेनेड सट्टणे तिकर दी नेड़ हासल कित्ती कनै पंज चीनी फ़ौजियाँ दी टुकड़ी जो तबाह करी नै तिन्हाँ दी एम.एम.जी खोही लई पर वापस मुड़दिया वेला जसवंत रावत कनै त्रिलोक नेगी सहीद होई गै। गोपाल गुसाँईं हालाँकि बुरे हालैं जख्मी होई चुक्केह्यो थे, दुस्मणा ते खोहियो एम.एम.जी कन्नै वापस औणे च कामयाब रैह् थे।  तिस पूरे हमले च तिन्न सौ चीनी फौज़ी मारे गै जाँ जख्मी होए जद कि गढ़वाल राइफल्स दे दो सूरमे सहीद होए कनै अट्ठ जख्मी होए थे।

 

तिस बग्त तिसा समाधिया दी देखरेख ताँईं तित्थू दो-तिन्न जुआन रैंह्दे थे। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ जो हर रोज़ टैमे-टैमे पर चाह् कनै खाणा परींह्दे  हन्न कनै राती जो बाक़ायदा तिन्हाँ दा बिस्तरा लगाया जाँदा है। 

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ दे बारे च कई दन्त कथाँ बणी गइह्याँ हन्न जिन्हाँ च इक कथा एह् भी है कि तिन्हाँ दो लोकल कुड़ियाँ, जिन्हाँ दे नाँ सेला कनै नूरा थे, दी  मदत लई करी चीनी फ़ौज जो रोकी करी रक्खेया था।  तिन्हाँ पर बणिह्यो फिल्म '72 घंटे' दी कहाणी भी इसा कथा पर चलदी है। अपर एह् गल्ल सच नीं लगदी किंञा कि से-ला कनै नूरानांग तित्थू जगहाँ दे नाँ हन्न जेह्डे सन् 1962 दे जंग ते पहले ते ही चलदे आए हन्न। 

हुण जसवंत गढ़ च इक शानदार जुद्ध यादगार (वार मेमोरियल) बणी गइह्यो है। 

 

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शहीदों की समाधियों के प्रदेश में (बारहवीं कड़ी) 


सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान राइफलमैन जसबंत सिंह रावत सेला की रक्षा के लिए तैनात गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में शामिल थे। उस समय चौथी गढ़वाल राइफल्स, 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड की कमान में चीनी सेना से लड़ी थी। प्रसिद्ध ब्रिगेडियर होशियार सिंह तब 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड के कमांडर थे।  तवाँग की तरफ से आगे बढ़ रही चीनी सेना के साथ चौथी गढ़वाल राइफल्स के बहादुर जवानों ने डटकर लोहा लिया था। यह पूर्वी युद्ध क्षेत्र में एक मात्र बटालियन थी जिसने चीनी सेना के दाँत खट्टे किये थे और जिसे बैटल ऑनर ‘नूरानाँग’ से नवाजा गया था।

मैं और नायक यादव, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र, की समाधि पर गए और उन्हें सेल्यूट किया। तवाँग और उससे आगे स्थित भारत-चीन सीमा तक पहुंचने के लिए, इस एक मात्र सड़क मार्ग से हो कर गुजरने वाले अफ़सर और अन्य रैंक शहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को सम्मान देने के लिए यहाँ पर ज़रूर रुकते हैं। एक किंवदंती के अनुसार अगर कोई इस समाधि को सम्मान दिए बिना आगे जाता है तो वह वापस लौट कर नहीं आता। इस सड़क मार्ग के दोनों ओर कई स्थानों पर लगीं पाषाण पट्टिकाओं पर उन लोंगों के नाम भी लिखे दिख जाते हैं जो इस दुर्गम क्षेत्र में समय-समय पर विभिन्न दुर्घटनाओं का शिकार हुए हैं। सम्भवतः इस किंवदंती के पीछे यही कारण रहा है। और फिर अपनी जान किसको प्यारी नहीं होती! 

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की समाधि से कुछ गज पहले दो-तीन मध्यम आकार के सूचनापट लगे हुए थे जिनमें उस क्षेत्र में हुई लड़ाई का संक्षिप्त वृत्ताँत और शहीदों के नाम दर्ज थे। उस समय अर्थात् जुलाई सन् 1989 में उस जगह पर स्थित एक छोटे से पुराने बंकर में उनकी वर्दी तथा उनके द्वारा प्रयुक्त कुछ वस्तुएं रखी थीं। अच्छी तरह से प्रेस की हुई वर्दी पर सूबेदार मेजर के रैंक लगे हुए थे। जहाँ तक मुझे याद है उस समय बंकर के सामने एक छोटा सा पक्का चबूतरा था उस पर शिवलिंग अथवा शिव भगवान की मूर्ति थी। चबूतरा टिन से छाया हुआ था। मैंने चबूतरे पर पाँच रुपए चढ़ा कर माथा टेका और अपने परिवार सहित अपनी सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना की थी। वहाँ उपस्थित जवान ने प्रसाद के कुछ दाने हमारी हथेलियों पर रख दिए थे। 

एक सूचना पट पर कुछ इस प्रकार लिखा हुआ था -

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र की याद में, जिन्होंने, स्वेच्छा से, 17 नवंबर 1962 को ए कंपनी, चौथी बटालियन गढ़वाल राइफल्स के हिस्से के रूप में, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाँईं की सहायता से, अपनी रक्षा पंक्ति के नजदीक आई हुई, कारगर फायर करती शत्रु की मीडियम मशीन गन को शाँत किया था। उस दिन चौथी गढ़वाल राइफल्स ने उस स्थान पर  हुए दुश्मन के दो हमलों को असफल किया था। जसवंत सिंह रावत और गोपाल सिंह गुसाँईं ने, त्रिलोक सिंह नेगी के कवरिंग फायर की सहायता से, बड़े साहस के साथ शत्रु की एम.एम.जी की तरफ ग्रेनेड फेंकने तक की दूरी तय की, और पाँच चीनी सैनिकों की टुकड़ी को तबाह कर के उनकी एम.एम.जी छीन ली पर वापस लौटने की प्रक्रिया के दौरान जसवंत रावत और त्रिलोक नेगी शहीद हो गए। गोपाल गुसाँईं, यधपि गंभीर रूप से घायल हो चुके थे, शत्रु की छीनी हुई एम.एम.जी के साथ वापस लौटने में सफल हुए थे  पूरे अभियान में 300 चीनी सैनिक मारे गए अथवा घायल हुए जबकि गढ़वाल राइफल्स के 2 सैनिक शहीद हुए और 8 घायल हुए थे। 

उस समय उस समाधि की देखरेख के लिए वहाँ पर 2-3 सैनिक रहते थे। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र को दिन में समय-समय पर चाय व भोजन परोसा जाता और रात को बाक़ायदा उनका बिस्तर लगाया जाता। 

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत के बारे में कई दन्त कथाएं प्रचलित हैं जिनमें एक किंवदंती यह भी है कि उन्होंने दो स्थानीय लड़कियों, जिनके नाम सेला और नूरा थे, के सहयोग से चीनी सेना को रोके रखा था।  पर यह सच प्रतीत नहीं होता है  क्योंकि से-ला और नूरानांग वहाँ जगहों के नाम है जो 1962 के युद्ध से पहले से चले आ रहे हैं। 

अब जसवंत गढ़ में एक भव्य युद्ध स्मारक बन गया है।

 भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन।  फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंटदे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.. (अंग्रेजी साहित्यदी डिग्री हासिल कित्ती। इस ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी, 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसरदी जिम्मेबारी निभाई।

      लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही।  आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।

     हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रहजुड़दे पुलरिहड़ू खोळूचिह्ड़ू-मिह्ड़ूफुल्ल खटनाळुये देछपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेताजो सर्वभाषा ट्रस्टनई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।

     हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तोकरी नैं कदी-कदी किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।