पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Saturday, May 18, 2019

जाति व्यवस्थाः उदगम, विकास होर जाती रे अंता रा प्रश्न (मंडयाली लेख)-4



अपणिया भासा च समाज दे बारे च, समाज दे विकासा दे बारे च लेखां दे मार्फत जानकारी हासल करने दा अपणा ही मजा है। समीर कश्‍यप होरां इक लेखमाला जाति व्‍यवस्था दे विकास पर लिखा दे हन। इसा माला दा पैह्ला मणका असां कुछ चिर पैह्लें पेश कीता था। फिरी पहाड़ी भाषा पर चर्चा चली पई। हुण एह लेमाला फिरी सुरू कीती है जिसा दा त्रीया मणका तुसां पढ़ेया। अज पढ़ा इसा दा चौथा मणका। 


आजादी ले बाद भारता मंझ जाति-व्यवस्था



देशा री आजादी ले बाद आसा सामहणे आवहां देशा रा संविधान। आसारा संविधान देशा जो जनवादी, धर्मनिरपेक्ष होर समाजवादी घोषित करहां। पर संविधाना जो बनाणे वाली संविधान सभा समूची जनता ले सार्विक मताधिकारा रे अधिकारा के नीं चुनी गई थी। सिर्फ 11.6 प्रतिशत लोके ज्यों सम्पतीधारी, राजे-रजवाडे होर पूंजीपति वर्गा रे थे तिन्हां जो हे वोट पाणे रा अधिकार था। तिन्हारी चुनी री संविधान सभे आसारा संविधान बणाया। पैहली गल्ल जनवादी घोषित हुणे वाला आसारा संविधान जनवादी तरीके के बणाया ही नीं गईरा था। नेहरूए पैहले चुनावा बाद ये ठीक करने कठे बोल्या था पर कधी बी ठीक नीं हुई पाया। दूजी गल्ल संविधाना रे अनुच्छेद, धारा, उपधारा बिच नौवीं गल्ला बौहत कम ही। एता बिच ज्यादातर गल्ला गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 ले ज्यों की त्यों चकी लितिरी। संविधाना बिच बिना कोई संशोधन कितिरे आपातकाल लगाया गया था। आपातकाला रा प्रावधान संविधाना बिच पैहले ले हे था। जितनी दमनकारी धारा अंग्रेजा जो हिन्दुस्तानियां पर राज करने कठे जरूरी थी स्यों सभ दमनकारी धारा संविधान बिच शामिल रखी गई। आजादी रे बाद हालांकि कानूनी रूपा ले अश्पृष्यता खत्म करी दिती गई। पर आसारा संविधान संपूर्णता बिच क्या देहां होर ये केसरी सेवा करहां ये आसा जो जरूर देखणा चहिए। आसे देखेया भई उपनिवेश काला बिच पूंजीवादा रे विकास, औद्योगिकरण होर सीमित शहरीकरणा के अश्पृश्यता होर वंशानुगत श्रम विभाजन आंशिक तौरा पर टुटणा शुरू हुआ। आजाद भारता बिच ये प्रक्रिया होर तेजी के बधी।

भारतीय पूँजीपति वर्गा रे विकासा रे रस्ते पर टाटा-बिडला प्लान 1944 बिच बणना शुरू हुआ जेता बिच विकास अर्थशास्त्री, सांख्यिकीकार, पूँजीपतियां रे प्रतिनिधी टाटा, बिडला, थापर, गोयनका बगैरा शामिल थे। ये प्लान 1945 बिच बणी के तैयार हुई गया। क्रिप्स मिशना रे आउणे बाद ये साफ हुई गईरा था भई एभे अंग्रेजा रा केभे बी भारता ले जाणा पक्का हा। हालांकि स्यों जाणे री तिथी ले पैहले ही चली गए थे। टाटा-बिडला रे प्लाना रे हिसाबे अब देश चलाया जाणा था। एस प्लाना रे मुताबिक देशा जो विदेशी कर्जे पर ज्यादा निर्भर नीं रैहणा चहिए बल्कि राष्ट्रीय बचत इकट्ठी की जाणी चहिए। यानि साम्राज्यवादी देशा रे कर्जे पर निर्भर नीं रैहणे बल्कि आपणे देशा बिच राष्ट्रीय बचत बैंकिंग होर पोस्टल सेवा रे जरिये इकट्ठी की जाणी चहिए। दूजी गल्ल एस प्लाना बिच ये थी भई आयात कम करने री नितियां लागू करनी। देशा बिच जे भी जरूरता रा सामान हा चाहे से प्रोडक्शन गुड या उपभोक्ता सामान इन्हा रा आयात खत्म करदे जाणा ताकि देश आत्मनिर्भर बणी जाओ। इधी कठे सरकारी क्षेत्रा रे पूँजीवादा री स्थापना किती जाए। आधारभूत उद्योग राष्ट्रीय संपति रे रूपा बिच रखे गए। आधारभूत ढांचा हाईवे, रेलवे, बांध होर सिंचाई बगैरा पैहले सरकारा तैयार करने होर जेबे आधारभूत ढांचा तैयार हुई जांघा तेबे तिन्हारा निजीकरण कितया जाणा।

भूमि सुधार कठे लैंड सिलिंग एक्ट आवहां 1956-57 बिच। पर इथी भूमी सुधार किसान केन्द्रीत नीं बल्कि सामंत केन्द्रीत भूमी सुधार हुआ। ये सुधार फ्रांसा री क्रान्ति रे मॉडला पर नीं हुआ बल्कि जर्मनी रे प्रशिया बिच बिस्मार्क रे वक्ता साहीं युंकर टाइपा रा हुआ। जेता बिच पुराणे भूस्वामियां जो आज्ञा दिती जाहीं भई स्यों आपणे जो बदली लौ। एसा पृष्ठभूमि पर सत्यजीत रे री खूबसूरत फिल्म बणीरी जलसाघर। इन्हां सुधारा के स्वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय सामंत पूँजीवादी कुलक फार्मर बणी जाहें। आजादी रे बाद खेतीहर मजदूरा री अधिकांश आबादी दलित थी। आज बी खेतीहर मजदूरा मंझ 48 प्रतिशत दलित जातियां रे मजदूर हे। भूमिहीनता री जड़ इन्हां भूमि सुधारा बिच हे ही। स्वर्ण सामंती भूस्वामी प्रमुख कुलक पूँजीवादी बणी गए। उत्पादकता बधणे ले धनी किसाना रा वर्ग पैदा हुआ। पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थाना बिच हरित क्रान्ति हुआईं। धनी काश्तकार किसाना रा वर्ग हरित क्रान्ति के 80 रे दशका तक अग्गे बधया होर तिन्हा रे भारतीय किसान यूनियना सरीखे राजनैतिक संगठन पैदा हुए। मध्यम किसान जातियां रेड्डी, कम्मा, जाट, गुज्जर, मराठे बगैरा जो लाभ पौंहचेया। दलिता जो नाममात्रा री ही जमीन दिती गई। दक्षिण होर पूर्वी भारता बिच थोडे बौहत पट्टे दिते गए। दलिता रे छोटे जेह हिस्से बाली छोटी जमीना ही। एता के तिन्हा रा गुजारा नीं हुणे रे कारण स्यों होरियां री जमीना पर मजदूरी करहाएं या शैहरा जाईके कोई नौकरी करहाएं। दलिता रा बड़ा हिस्सा खेतीहर मजदूर हा।


पूँजीवादी विकास होर प्रतिस्पर्धा खेती रे क्षेत्रा बिच हुणे ले किसाना बिच बी विभेदीकरण पैदा हुआं। किसाना रा वर्ग होर पूँजीपति कुलका रा वर्ग पैदा हुआं। पैदावार बाजारा कठे हुआईं। तिन्हा जो प्रतिस्पर्धा रा सामना करना पौहां। आपणी लागत कमा ले कम करनी पौहाईं। एस प्रतिस्पर्धा बिच 90 प्रतिशत से हे किसान जीतहां जेस बाले ज्यादा पूँजी हुआईं। जे बेहतर टैक्नोलोजी होर बीजा रा इस्तेमाल करहां। तेसरी पौहुंच सरकारी कर्जेयां होर संस्थाबद्ध कर्जेयां तक हुआईं। स्यों गांवा रे आढतियां होर सूदखोरा ले कर्जे नीं लैंदे। बैंक होर वितिय संस्थाना ले तिन्हा जो हे लोन मिलहां ज्यों साखा वाले लोक हुआएं। प्रतिस्पर्धा के छोटी होर निम्न मंझौली किसाना री तबाह हुणे री प्रक्रिया 60-70 रे दशका ले शुरू हुआईं होर अझी तका चलीरी। छोटी किसानी लगातार तबाह हुई करहाईं। नौवां डैटा आइरा भई गांवां रे भीतर गैरकृषि गतिविधियां बिच लगीरी आबादी री संख्या 50 प्रतिशता ले ज्यादा हुई गईरी। कृषि री बडी आबादी सेवा होर उद्योग क्षेत्रा बिच लगी गईरी। छोटी, निम्न मझौली होर मझौली आबादी री तबाही हुणे ले तिन्हा रा सर्वहाराकरण हुई गईरा। कृषि करने वाले कई लोक अब शैहरा रैही के काम करी करहाएं होर तिन्हा बाले जे जमीन गांवा ही तेता जो स्यों बडे किसाना जो या आपणे हे केसी भाई बाले कमाणे जो छाडी देहाएं। कुछ एहडे बी अर्धसर्वहारा हे ज्यों शैहरा कमाहें होर गांव री खेती जो बचाणे कठे पैसा भेजहाएं पर तिन्हा जो खेती बदले बिच कुछ देंदी नीं ही बल्कि उल्टा तिन्हा जो खाई करहाईं। इन्हा बिच ओबीसी जाति रे लोक ज्यादा हे। नवउदारवादी नितियां रे दौरा ले बाद 1990 ले 2011 तका विकिसानीकरण रे आंकडे बौहत कुछ बोल्हाएं। 2001 री जनगणना बिच भूमि रे मालिक किसाना री संख्या 31 प्रतिशत थी जे 2011 री जनगणना बिच 27 प्रतिशत रैही गई। यानि 10 साला बिच 4 प्रतिशत किसाना री जनसंख्या तबाह हुई गई।


दलित जातियां रे अलावा आज केसी बी जाति रा साफ दिखदा वर्ग चरित्र नीं हा। आनंद तेलतुमडे लिखाएं भई दलिता रा 89-90 प्रतिशत हिस्सा मजदूर हा पर 10-11 प्रतिशत हिस्सा साफ तौरा पर मजदूर नीं हा। ये हिस्सा मध्यम वर्गा रा संस्तर या उच्च वर्ग या कुलीन हुई चुकीरा। प्रमुख किसान जाति ओबीसी रा छोटा हिस्सा खांदा-पींदा किसान हा। जबकि ज्यादा होर बड़ा हिस्सा नवउदारवादी नितियां रे करूआं तबाह होर बर्बाद हुई के अर्धमजदूर होर मजदूरा री जमाता बिच शामिल हुई गईरा। पूँजीवादी विकासे जातिगत समुह होर वर्गगत समुहा रा आच्छादन काफी हदा तक शिफ्ट करी दितिरा यानी बदली दितिरा। इधी कठे जाति री विचारधारा रा प्रयोग करीके लोका जो बांडणे कठे तिन्हा रे साम्हणे एक छद्म दुश्मण पैदा कितया जाई करहां। जिहां मराठा होर जाट जातियां साम्हणे पैदा कितेया जाई करहां। स्यों जे कुछ झेल्ली करहाएं तिन्हारे ज्यों जिम्मेवार हे तिन्हा जो कटघरे बिच खडा न कितया जाओ इधी कठे नकली शत्रु पैदा कितेया जाहां भई दलित शत्रु हा। यों जाति अत्याचार कानूना के पीडित करहांए होर आरक्षणा के नौकरी लेई जाहें। एस नकली शत्रु रे पैदा हुणे ले मराठा मोर्चा रा निशाणा दलित आबादी बणी जाहीं। छद्म शत्रु के लडने कठे जातिगत संस्कार हिलोरा मारदे लगहाएं। क्योंकि मराठा आबादी बिच सही लाईना जो लेयी के तिन्हा जो गोलबंदी करने वाली कोई ताकत मौजूद नीं ही। वर्ग लाईना पर चली के मराठा आबादी जो टारगेट करना चहिए पर एतारे बजाये स्यों आपणी अस्मिता री लडाई बिच पई जाहें। जेता के सारेयां री अस्मिता बडी हुंदी जाहीं। छद्म दुश्मण पैदा करने कठे भारता रा पूँजीपती वर्ग कई विचारधारा रा इस्तेमाल करहां। जेता बिच एक साम्प्रदायिकता री विचारधारा बी ही। ब्राह्मणवादी, पूँजीवादी, पितृसतात्मक होर साम्प्रदायिक शासक वर्गा जो हराणे रा एक हे तरीका हा वर्ग लाईना पर जातिगत गोलबंदी बिच सेंध लगाई के जाति अंता री परियोजना पर काम कितेया जाए। वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलन हे विकल्प हा।


भारता रे 7 करोड बाल मजदूरा मंझ 40 प्रतिशत दलित परिवारा ले हे। उत्पीडन, बेरोजगारी दर, पर कैपिटा कंसंपशन यानि प्रति व्यक्ति उपभोगा री कमी बिच दलित आबादी री संख्या होरी जातियां ले दुगुणी ही। हर जाति बिच वर्ग विभाजन जटिल हुईरा होर जातियां रा चरित्र बधलिरा। हर जाति मंझ कुलीन, उच्च मध्यम, मध्यम, निम्न होर मेहनतकोश लोक हे। निम्न वर्गा बिच मेहनतकश ज्यादा हे, मध्यमा बिच किसाना रा प्रतिशत ज्यादा हा होर उच्च वर्गा बिच सबसे ज्यादा प्रतिशत पूँजीपती, नौकरशाह, उच्च मध्यम वर्ग या नेता हे। सर्वहारा आबादी औद्योगिक, खेतीहर होर सेवा प्रदाता ही। कुल शहरी होर ग्रामीण मजदूर आबादी मंझ दलित 25-27 प्रतिशत, ओबीसी इन्हा ले थोडे ज्यादा 30-32 प्रतिशत होर जनजाति, मुस्लिम होर अन्य करीब 22 प्रतिशत हे। दलिता बिच 89-90 प्रतिशत शहरी या ग्रामीण मजदूर हे। ओबीसी बिच 70 प्रतिशत मजदूर हे जबकि जनजाति, मुस्लिम होर अन्या री कुल आबादी बिच दलिता ले बी ज्यादा मजदूर हे। पिछले 30 साला बिच जातिगत उत्पीडन बौहत ज्यादा बधी गईरा। इहां ता हर मजदूर शोषित हा पर दलित मजदूर अति शोषित हा। हर दलित पीडित हा पर मजदूर दलित उत्पीडना रे बर्बरतम रूपा रा शिकार हा। सामाजिक उत्पीडन आर्थिक उत्पीडना के गुंथित हुआं। गलोरिया रहेजा रा लेख हा एस बारे बिच सेंट्रलिटी ऑफ डोमिनेंट कास्ट देशा री आजादी बाद जाति री विशेषता मंझ वंशानुगत काम या ता लुप्त हुई चुकीरा या लुप्त हुणे रे कगार पर हा यानि मृतप्राय हा। अश्पृश्यता बी अब आम सच्चाई नीं ही। हालांकि जाति व्यवस्था री तरीजी विशेषता सजातिय ब्याह अझी तका नीं तोडया गइरा होर ये अझी बी बचीरा हा। बधलदे उत्पादना रे संबंधा होर पद्धति के जाति व्यवस्था बिच यों बदलाव आवहाएं।


शासक वर्ग जाति रा किहां इस्तेमाल करहां? शासक वर्ग दमित, शोषित होर शासित लोका जो आपु मंझ ग्रेडेड इनइक्वलिटी यानि संस्तरीबद्ध असमानता बिच बांडी रखहां। चाहे तिन्हा रा आनुवांशिक श्रम विभाजन खत्म बी क्युं नी हुई जाओ पर तेबे बे सजातिय ब्याह तिन्हा जो बान्ही रखहां होर संस्तरीबद्ध असमानता बणीरी रैहाईं। यानि 77 प्रतिशत मेहनतकश आबादी जो विभाजित रखहां। आनंद तेलतुमडे बोल्हाएं कास्ट डिवाइडस क्लास यूनाईटस। दूजी गल्ल शासक वर्ग लूटा रे माला रा बंटवारा यानि के संसाधन होर राजनैतिक सत्ता बिच केसरी भागीदारी कितनी हुणी इधी कठे आपसी प्रतिस्पर्धा बिच से आपणे जाति रे ब्लॉका रे जरिये प्रतियोगिता करहां। तरीजे वोट बैंका री राजनीति बिच जाति अस्मिता रा इस्तेमाल करहां। चुनावा बिच जीतणे रा फार्मुला जातिगत समीकरणा के तैयार हुआं। चौथे जातियां रे विघटना री प्रक्रिया कम हुई गईरी। अब कई जातियां राजनैतिक गठजोड बनाई करहाईं पर स्यों सामाजिक गठजोड नीं बनाई करदी। अब यूनिफाइड लेबर कोड बनाणे री गल्ला साम्हणे आई करहाईं। जेता रे मुताबिक अप्रैंटिस, ट्रेनी मजदूरा जो स्थायी मजदूरा री जगहा रखी सकाहें। न्यूनतम वेतना पर जितना समय काम करवाणा चाहो तो करवाई सकाहें। पैहले करीब 290 दिन पूरे हुणे पर मजदूरा जो स्थायी करना पौहां था से अब खत्म हुई जाणा। अल्पसंख्यक पूँजीपतियां री राज्य सत्ता ये जाति व्यवस्था कधी बी खत्म नीं करनी। आसे मौजूदा आरक्षणा जो खत्म करने री मांग नीं करदे पर नौवीं जातियां जो शामिल करने रे पक्षा बिच नीं हे। शिक्षा होर नौकरी बिच सीटा हे नीं ही। लगभग 2.1 प्रतिशता री रफ्तारा के सरकारी नौकरियां घटी करहाईं। वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना रा मसला हुणा चहिए सभीयां कठे एक समान होर निःशुल्क शिक्षा होर सभी कठे रोजगार। संवैधानिक संशोधन करीके ये अधिकार मूल अधिकारा बिच शामिल कितेया जाणा चहिए। ये अधिकार कई देशा बिच दितेया गइरा। अगर राज्य ये नीं देई पाओ ता तिन्हां जो भरण-पोषणा कठे भत्ता देणा चहिए। हालांकि बेरोजगारी भत्ते रे बारे बिच संविधाना रे दिशा निर्देशक सिद्धांत बिच लिखिरा बी हा। आरक्षण आजा रे समया बिच लोकतांत्रिक अधिकार नीं हा बल्कि लोकतांत्रिक भ्रम ज्यादा हा।


1 comment:

  1. पहाड़ी भाषा री नौवीं चेतना 'दयार' होर अनूप सेठी जी रा लेखा जो सुन्दरता के छापणे कठे बौहत-2 धन्यावाद, आभार होर शुक्रिया।

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