पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Friday, January 27, 2023

इक ब्राजीली कविता

 


पकिया उमरा दा कीमती वक्त

मारियो इ अंदरेदे ब्राजील दे कविउपन्यासकारआलोचककला इतिहासकारसंगीतशास्त्री कनै छायाचित्रकार हन । 1922 च छपया  Hallucinated City इन्हां दा बड़ा जरूरी कविता संग्रह है ।  मारियो दा ब्राजील दे आधुनिक साहित्य पर गैह्री छाप है। संगीत च इन्हां दे योगदान ताईं भी इन्हां जो याद कीता जांदा है । नवंबर म्हीनैं असां एह्थी इन्हां दी इक कविता दे अंग्रेजी अनुवाद सौगी पहाड़ीपंजाबी कनै हिंदी अनुवाद पेश कीते थे । कविता दा नां है Valuable time of Maturity । पहाड़ी अनुवाद तेज कुमार सेठीपंजाबी अनुवाद अमरजीत कोंके कनै हिन्दी अनुवाद अनूप सेठी नै कीतेया है। हुण इसा कवता दे दो अनुवाद पेश हन। कुमाउनी भाषा च हिंदी दे कवि-कहानीकार हरि मृदुल होरां कीतेया। हरि मृदुल कुमाउनी च भी लिखदे हन। दूआ अनुवाद वागड़ी भाषा च हिंदी सेवी कनै कवि हेमंत भट्ट होरां कीतेया है। एह् दोयो अनुवाद अनूप सेठी दे हिंदी अनुवाद ते कीतेयो हन। इसा कवता दे पहाड़ी, पंजाबी, हिंंदी अनुवाद पढ़ने एत्थी क्लिक करा। (फोटो:हरबीर) 


कुमाउंनी

बुढ्यां काल क कीमती बखत

 मैंले गिन्यान आपणि उमर का बरस

त पत लाग छ कि

भौत बिति गौ

आब बखत कमि बचि रौ

 

खूब खर्च है गै जिंदगी

कमि बचि रै आब  

 

एस लाग छ हो महराज कि

जस्यां कै लौंड क हाथ डाल्लि भरि हिसालू पड़ि ग्यान

त खपाखप खानै गौ उ

जब मुट्ठि भरि बचि ग्यान हिसालु

तब वीलै रस ली-ली बैर एक-एक टोप्पो टिपि बैर खान शुरू करछ

 

आब मी थें बखत नै छन कि छोटि-मोटि बातों क पच्छा पड़ूं

 

मि आब उन जागा कभै नै जान चायूं

जां 'मि ठुल-मि ठुलहो

इन डाहा क पुड़ा है भगवान बचौ

इनौ क बस चलौ त सब है होशियार आदमि कै लै इन बदनाम करि द्यौन

वीकि जागा में बैठि जौन

वीकि कुर्सि, अक्कल और भाग्ग देखि जलि बैर क्वेल है जौन

 

फाल्तु बातों खन बखत नै छन मी थें महराज

जिनौं क दगड़ कै मतलबै नै

उनूं क बार में किलै बात करी जौ

 

एस लोगों के मन्यून क बखत ना छन मी थैं

जिन उमर क हिसाब लै त सज्यान छन

परंतु उनूं में समझदारी ना छन

मि उनूं क मुख लै नै देखन चानूं

जु हर बात में पधान बनन चानान

जिनौक मुख बठे कभै लै सज्यानो क्वीड़ ना सुन्यो

किलै करूं उनूं कि याद

बखत कमि छ हो

मैंके त आब चैंछ सांचि-सांचि बात  

 

झट्ट कर हो

मैंके हैरोछ आब तौलाट

 

मेरि डाल्लि में आब हिसालु भौत कमि छन

 

मि उन मान्सों क दगड़ रौन चांछु, जो मयालु छन

जो आपनि गल्ति कै समझनान

जिनूं कै दुसरा कि पीड़े कि छ पच्यान

 

मि उनूं है भौत दूर रौं

जिनूंक दिमाग पुजि रौंछ आसमान

जो बाकरा क न्याति 'मि मिकरनान

 

मि कै तौलाट है रौछ आब

उमर बढ़न क साथ जु अक्कल आ रैछ

आब वीक साथ जिंदगी बितौन छ

 

मैंले डाल्लि में बच्या क हिसालु बर्बाद नै करंछन

 

मैंके पत्त छ कि डाल्लि में बच्या क जो हिसालु छन

उन हिसालू है लै

भौत मिठ होला

जु खै हाल्यान

मि आखिरी सांस आनंद लै लिन चांछु

आपन हित-मित्रों का दगड़

उनूं क सामनि

 

एक चीन देश क विद्वान छ्यो नै – कन्फ्यूशियस

वीक कून छ्यो कि हमूं थें छन द्वी जिंदगी

दोसरि जिंदगी तब शुरू हुंछि

जब फाम ऊंछि कि एक्कै छ यो जीवन

हरि मृदुल 







 
      


वागड़ी

पाकी उम्मर नौ मोंघो वकत

गणवा बैठो ज़िंदगी ना साल

अंतरात्मा बोली थई बेहाल

घणु वीती  ग्यु

थोडु बच्यु,

जे ग्यु ए लांबु,भावी हे टुंकु घणु।

लाग्यु एवू के एक सोरा ने

दोंदो भरी मली चेरी,

शरुआत मीं तो ग्यो गटकतो

पण लाग्यु के बची हे थुड़ी

हवाद लई चुसवा लाग्यो एक एक करी।

मारे पाईं  अवे नती समय

के ऊं नानी नानी सीज़ हंकेलतो फरुं?

एवी सभाओं मीं

के ज़े दंभी मनक दस माता लई फरता होय

रकड़तो फरूं?

हैरान हूं दंभी पाखंडी थकी,

गुणी मनक ने करवा बदनाम

आम तेम फरें फांफा मारता;

नती आवडत इक पैसा नी,

पण ऊंसा पद ना लोभ ने लीदे

बेरुपा बणी फरता फरें लाज शरम विना,

लालसु हीं पद, लायकात ने किस्मत ना!

 

सुडो, समय नती मारे पाईं,

नवरी आवी वात बल्ले

बेकार है ईनणी ज़िंदगी पर वात करवी,

ज़े नती मारी ज़िंदगी नो भाग

आवभगत एवा मनक नी करवानो समय नती मारे पाईं,

थ्या डोकरा पर अक्कल ना मीड़ा,

नफरत हे मने वात करवानी हाते एणने ,

ज़े हणे बीज़ा ने खुद ना स्वार्थ बल्ले

काम नी वात सुडी ने

वात करे बिल्ला बस बिल्ला पर।

भाई नती समय मारे पाईं

बिल्ला पर वात करवानो ;

बस ज़ुवे मारे, ज़ुवे इक हंसती गाती जिंदगी।

आत्मा  मारी अवे उतावरी

थुड़ी बची हे दोंदा मीं मीठी मीठी चेरी,

खावा दो बस जीववा दो थुडी बची हे जिंदगी।

मने रेवा दो एवा मारा ज़ेवा मनक पाईं

ज़े नती बेरुपा,

के नती कदरूपा,

ज़े ठोकर खाई उठे, कारये न टूटे, अगाड़ी वदे मेहनत नी हाते,

खुद नी ताकतन चडे बीज़ा ने रवाड़े,

पर दूर रऊं एवा थकी

ज़ेणने घमंडी बणावया एणनी कपटी जीते,

एवा थकी दूर हूं

बस हूं हूं, कइं नती तू।

हाँ भाई हूं उतावर मीं हूं,

उतावरियों हूं  जिंदगी बची हे खुशी खुशी जीववा मीं,

 नती करवी बर्बाद मारे बचेली चेरी,

स्वादिष्ट हीं आ

अवे हुदी जे खादी एणनी थकी भी,

ध्येय मारो एटलो  अंत हुदी जवानों

संतुष्ट थई मज़ा मीं,

पोताना मारा प्यार ने हाते हूं रवानो।

केतो हतो कोंफ्यूशियस

बे जिंदगी लइ ने आवे हे मनक,

तारे आवे बीजी जिंदगी

जारे अंतरात्मा राड पाडे

बस तारे पाहें बस हे एक जिंदगी।

हेमंत भट्ट 

 


 


5 comments:

  1. गजब का है यह दयार। कितना अलग और प्रेरक कार्य। ऊर्जा देता। उत्फुल्ल करता। वाह।

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  2. हरि मृदुल, मुंबई।

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  3. किसी कविता का अनुवाद जब हम अपने आंचलिक भाषा में उतारते हैं, तो उस कवि की अंतरात्मा की आवृत्ति को अपनी भाषा की आवृत्ति से तद्रूप करते हैं जिससे आनन्द की एक लहर उमड़ती है ।
    दयार उसी आनन्द को पाठकों में बाँट रहा है ।
    दयार के जिन्दा रहने की मूल वजह यह भी है।

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  4. दयार के स्वभाव को आपने सही शब्दों में व्यक्त कर दिया।

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  5. क्या बात है! अद्भुत !

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