पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Sunday, December 30, 2018

पहाड़ी भासा – अज के हलात कनै गांह् दी चिंता

डॉ अरुणजीत ठाकुर


पहाड़ी भासा पर चर्चा दा लिंक ठियोग दे वट्सऐप ग्रुप सर्जक च पाया ता ओथी गल चली पई। 
कनै खरी ई चली पई। एह जरूर है भई एह हिंदिया च सुरू होई अपर बाह्द च पहाड़िया तक भी पूजी। 
मुशी शर्मा होरां सुआलां दे जुआब भी दई ते। सैह् भी पहाड़िया च। 
असां जो एह लग्‍गा भई एह गलबात इसा चर्चा दी इक कड़ी ई है। 
किछ होर पैह्लू साम्‍हणै औआ दे। 
पढ़ी नै दिक्‍खा भला।

Anup Sethi: असां पहाड़ी भासा दी चर्चा सुरू करी ती है। दिक्खा कनै अपणे वचार भी देया।
Dr.Arunjit Thakur: Sir का हार्दिक स्वागत
Ashwini Ramesh: पहाड़ी भाषा यानि बोलियों की संख्या हिमाचल में इतनी ज्यादा है और भिन्नता उनमेँ इतनी है कि हिमाचल में एक पहाड़ी भाषा का होना अभी कतई मुश्किल है । कांगड़ी बोली कांगड़ा और हमीरपुर में तो लगभग समझने बोलने हालांकि भिन्नता वहां भी है जैसे उदाहरण नूरपुर में मिंजो सांजो को मेकी तेकी बोला जाता है ।
बाकी कहानी ही बिल्कुल भिन्न है। शिमला और मंडी जिले को ही लें तो कई बोलियां हैं और कहीं तो 15 कि. मी. में भी बोली में आंशिक परिवर्तन आ जाता है । ऊना में पंजाबी का ज़्यादा प्रभाव है। कुल मिलाकर संभावना हिमाचल में एक क्षेत्रीय भाषा की नहीं लग रही है।
Anup Sethi : सर मेरे ख्याल से अपनी बोली से प्यार करना जरूरी है, बाकी बातें बाद की हैं। वैसे डोगरी के कई इलाकाई रूप हैं पर भाषा चल रही है। विविधता और बहुलता ताकत है, बाधा नहीं। मांईडसेट का मामला है।
Ashwini Ramesh: बिल्कुल अपनी बोली से प्यार और  लगाव तो स्वभाविक ही है क्योंकि ये हमारी संस्कृति का हिस्सा है और हम तो बचपन से पहाड़ी बोलते आए हैं।
पहाड़ी लोगों को जो भी विचार मूलतः  पहाड़ी भाषा आएगा उसे किसी अन्य भाषा में जब व्यक्त किया जाता है तो वो अपनी मौलिकता खो देता है... पहाड़ी शब्दावली के कुछ शब्द अन्य भाषाओं में उपलब्ध भी नहीं है.. जैसे कि डाम=आग के जलने से पैदा हुआ दर्द और निशान... . पहाड़ी भाषा का सरलीकरण व एकीकरण की कोशिश होनी चाहिए... पहाड़ी संस्कृति को अन्य भाषाओं में समझना आसान नहीं है... पहाड़ी में कई कालजयी रचनायें भी बनी हुई है... पहाड़ी कहावतों का तो कहना ही क्या है...
Ashwini Ramesh: कंवरसाहब, पहाड़ी कहावतों का मैं इसलिए कायल हूँ कि इनमें कुछ ही शब्दों में जीवन का सार तत्व छिपा होता है।
जैसे
बुरी नी हांडनी दूरी हांडनी ।
 Virendra Kanwar: हाँ सर... पहाड़ी भाषा में बहुलता और फरक होने के बावजूद लोग आसानी से समझ सकते हैं... ज्यादातर पहाड़ी भाषाओं की जननी संस्कृत व हिंदी ही है..
Ashwini Ramesh: कंवर साहब हिंदी नहीं संस्कृत और प्राकृत ही बोलियों का सोर्स है
Virendra Kanwar: हाँ सर... हिन्दी प्रेम मुझे थोड़ा पक्षपाती बना देता है..  पहाड़ी को सजोने की जरूरत है.. कब सीढ़ी को शीढ़ बोला जाता है और कब सगआह... जानना जरूरी है आदि
.. कहीं ऐसा न हो हम मंदिर जाएं और good morning देवता जी बोलें.. बाकि फर्क पड़े या न पड़े पर संस्कृति पर तो पड़ता ही है..
Ashwini Ramesh: मेरे ख्याल से मंदिर की सीढ़ी को सगाह और आम घर की सीढ़ी को शीढ़ बोलते हैं
Anup Sethi: पहाड़ी भाषा पर आप मित्रों के विचार उत्साहजनक हैं।
Anup Sethi: अगर इन्हें आप अपनी बोली में पहाड़ी दयार ब्लॉग के कमेंट बॉक्स में डालें तो हमारी चर्चा सार्थक हो जाएगी। कुछ नए रास्ते भी निकलेंगे।
Virendra Kanwar: हाँ sir.. आप तो बखूबी जानते हैं पर अब हम अपने बच्चों को पहाड़ी भाषा और संस्कृति से दूर कर रहे हैं.....भाषा खून में दो‍डती हैं...
Virendra Kanwar: अभी में घर से बाहर हूँ... बैट्री भी ख़त्म हो रही है.. मिलता हूँ...
Ashwini Ramesh: अनूप सेठी जी पहाड़ी दयार में ये बोली ठियोग की सिर्फ शिमला ज़िला वाला समझ सकता है । आप चाहो तो जो आपको ठीक लगे शेयर कर दें ।
Anup Sethi: कोई दिक्कत नहीं। पहाड़ी की सामर्थ्य और सीमा ऐसे ही पता चलेगी। हम समावेशी होना चाहते हैं।
Ashwini Ramesh: 19 साल की उम्र में जब मैने अपनी पहली कविता ठियोग के साहित्यिक मंच पर पढ़ी तो वो पहाड़ी में ही थी। आप यहां की पहाड़ी चर्चा चाहो तो शेयर कर सकते हो पर यदि हमने लिखना होगा तो विषयवार ही लिखना पड़ेगा।
Anup Sethi: धन्यवाद। यह शेयर कर देता हूं। और वो छह सवाल यहां शेयर कर देता हूं जिन पर चर्चा शुरू की है।
Ashwini Ramesh: बिल्कुल ।
Virendra Kanwar: Sir, पहाड़ों की संस्कृति एक ही है और पहाड़ी भाषा खून की तरह है... अलग अलग पहाड़ी भाषाएं तो blood group की तरह हैं जो अलग तो हो सकते हैं.. पर समझ से परे नहीं... मिलजुल कर कोशिशें होनी चाहिए..
Ashwini Ramesh: स्पीति और किन्नौर की मुश्किल है, पर दिलचस्पी हो तो वो भी समझी बोली जा सकती है
Virendra Kanwar: हाँ sir... थोड़ा संस्कृति में भी फर्क है...
Ashwini Ramesh: मुंशी राम जी कुछ बहुत टाइप कर रहे हैं


इसते बाह्द असां दे सुआलां दे मुंशी राम होरां दे पहाड़िया च एह जुआब आए।

जी आपका स्वागत पर एथि पाडीया च लिखने बोलणे आले कट ही ए जी । गलाणे च बी फर्क़ रहीी जान्दा क्यूंकि कुसी जो भि भ्यास नी ए । तां 
पहले-पहल स्वल्ला पर तां सम्जो बिल्कुल बी कट कम होयदा ।
दूजे स्वाला रा एडा जे कुसी जो टेम नी कुसी रा ध्यान नि तां कुसी जो ये स्यापा ल्ग्दा ए । ए बी गल ए जे इन्ने सारे च्मेले पेयादे कि पाडीया इंदीया या ग्रेजी च फर्क़ ई सोचणे रा टेम नि ।
तीजे रा एद्दा जे जालू लिक्ने पढ़ने जो क्तबां मिल्दी रेंहगी तां लोकों जो थोड़ा थोड़ा भ्यास पोंगा तां सोची सक्दे जे कियां अगे ब्दीये ।
चौथा सुआल जे गलान्दे तुसां अग्लिया पीडिया जो गल पूजाणे रि तां म्हारे मुल्खा च तां ग्लाई बोली के ई पौन्चदी । बाकी हुन तां क्तबां क्न्ने ओर सारे तरिके आई ज्ञे हन ।
पंजवां सुआल इस साबा ने ता ना मिल्णी भासा न रेह्णे गीत जी ।
छेउआं सुआल अज तां कितनी बी भासा बोली ओए तां कट ल्ग्ती ईयां इक्की ने बी च्लेया ओया कम तां।न बी ओवे तां मोबाईल तां ए ही ।
तुसां जो जय राम जी की ।

Anup Sethi: ओ साबासे।

Munshi Sharma:  इयां आसे तां म्हसुई पहाडिये पर ग्लाई सम्ज लेन्दे जी क्लूरि कंग्ड़ी क्न्ने थोड़ी मंडियैली

Ashwini Ramesh: मुंशी राम जी तोहाँ खरी ग्ला दे कांगड़ी बी । शाबासी  ते बनदी है । इक महासुई दा मुंडा इहाँ कांगड़ी भावें मिक्स होवे ग्ला सकदा है । इहाँ ही कांगड़ी ग्लाने आले जो बी महासुई दी प्रैक्टिस करनी चाहिदी ताँ ही आपसी आदान प्रदान होना।


5 comments:

  1. अनूप सेठी जी ,
    आपका द्वारा हमारे ग्रुप की चर्चा यहां दिया जाना दिलचस्प है ,अपनी पहाड़ी भाषा और संस्कृति की जिस विरासत को हम आये दिन भुलाते जा रहे हैं उसको यदि अभी न संजोया गया तो अगली पीढ़ी पहाड़ी भाषा और संस्कृति को नहीं जान पाएगी।

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  2. एह सम्वाद तां भ्याकणीयां चलकोरा सांहईं गरमैस पाS करदा। गल्ल गलाई नै मुकदी, भुख खाई नै चुकदी। नौआं साल पहाड़ीया दे तईं भरोसेयां दीया धुप्पा आळा होयै।

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  3. जी, मिंजो एह लगता जे इस्तेमाल करदे रैंह्ंगे ता भाषा चलदिया रैह्णा।
    तुसां सारेयां मितरां दा धनवाद।

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  4. जी खरी गल्ल ओआदि जे किन्नी बी लोके आप्निया बोलियाच पी लिखण वास्ते सोचा।

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  5. मुंशी जी, अश्विनी जी, तुसां दा गलाणा ठीक है। सारयां ते बड़ी गल्ल-असां दियां इन्हां बोलियां कनै संस्कृति दे कारण ही असां जो एह म्हाचल इक छैल प्रांत मिलया। इन्हां जो साम्भणा असां दा फ़र्ज़ है। भासा च अंतरे वली जेड़ी गल्ल है। सैह सारियां भासां पर लागू होंदी। असां इकी दुए ने इकी दुए दी भासा च गल्ल करगे ता एह अंतर मटोदें जाणे कनै अंतरे मिलदे जाणे।

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