हिन्दी दे वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण दी कवता बात सीधी थी पर दा पहाड़ी अनुवाद पेश है।
गल सिद्धी थी पर
गल सिद्धी थी पर इक बरी
भाषा दे चकरे च
ज़रा ढेरी होई नै फसी गई ।
सै: मिली जाऐ इहा कोससा च
भासा पुट्ठी सिद्धी कीती
तोउ़ी मरोड़ी
घुमाई फराई
भई गल या ता बणै
या फिरी भासा ते बाह्र निकळै-
पर होया एह् भई भासा सौगी सौगी
गल होर भी घमळोंदी गई ।
सारिया मुसकला जो ठंडे दमागे नै समझे बगैर
मैं पेचे जो खोलने दे बजाए
बुरे हालें कसदा जा दा था
कैंह् कि इस करतबे पर मिंजो
साफ़ सुम्मा दी थी
तमाशबीनां दी शाबाशी कनै वाह वाह ।
आख़िरकार सैही होया जिह्दा मिंजो डर था –
ज़ोर ज़बरदस्ती करने ते
गल्ला दी चूड़ी मर गई
कनै सैह् भासा च फिजूल घुमणा लगी पई।
हारी फारी नै मैं तिहा जो मेखा साही
उसा ई ठाह्री गडी ता।
उपरा ते ठीक ठाक
पर अंदर
न ता तिसा च कस था
न ताकत।
गल, जेह्डी शरारती याणे साह्ई
मिंजो नै खेह्ला दी थी,
मिंजो पसीना पूंह्जदेयां दिक्खी पुछणा लगी –
“तैं भासा जो
सूह्लता नै बरतणा कदी नी सिक्खेया ?”
पर अंदर
न ता तिसा च कस था
न ताकत।
गल, जेह्डी शरारती याणे साह्ई
मिंजो नै खेह्ला दी थी,
मिंजो पसीना पूंह्जदेयां दिक्खी पुछणा लगी –
“तैं भासा जो
सूह्लता नै बरतणा कदी नी सिक्खेया ?”
रचनाकार: कुंवर नारायण
पहाड़ी अनुवाद: अनूप सेठी
बात सीधी थी पर -
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई ।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आये-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई ।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनायी दे रही थी
तमाशाबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।
आख़िरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था –
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ।
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया ।
ऊपर से ठीकठाक
पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त ।
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछती देख कर पूछा –
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई ।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आये-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई ।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनायी दे रही थी
तमाशाबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।
आख़िरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था –
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ।
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया ।
ऊपर से ठीकठाक
पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त ।
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछती देख कर पूछा –
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”
इसा
कवता पर पहाड़ी पंची दं पंचां दियां टिप्पणियां
नवनीत
शर्मा: बहुत खूब कने बड़ी मौके दी कविता। अनुवाद ता क्या ही
ग्लाइये। बड़ा छैळ। मिंजो एह हिस्सा बड़ा पसंद आया या चुभ्भा किछ भी गलाई सकदे। बड़ी
महीन मार है एह। कुथि
असां भी भाषा ने एह ही ता नी करा दे? मिंजो नी लगदा भई अज भूत नेडैं
औंहगा।
सारिया
मुसकला जो ठंडे दमागे नै समझे बगैर
मैं
पेचे जो खोलने दे बजाए
बुरे हालें कसदा जा दा था
कैंह् कि इस करतबे पर मिंजो
साफ़ सुम्मा दी थी
तमाशबीनां दी शाबाशी कनै वाह वाह ।
बुरे हालें कसदा जा दा था
कैंह् कि इस करतबे पर मिंजो
साफ़ सुम्मा दी थी
तमाशबीनां दी शाबाशी कनै वाह वाह ।
भूपेंद्र:
बहुत उम्दा सेठी सर।नवनीत भाइयां दिया गल्ला कन्ने सहमत। सेठी सर शब्द-चयन बड़ा ही
कमाल दा है जी ';नुवाद विच!
द्विजेंद
द्विज: बिल्कुल कवता दे मकैनिकां वाळी
भाषा।कवता जे कुथि है ता देह्ये देह्ये भाषा दे चुस्त मकैनिकां वला ई बचियो। कने
मकैनिक इ मकैनिक दिया भाषा जो समझी सकदा। अनूप भाई जी बधिया👌
मोनिका शर्मा स्वार्थी: अनूप जी बड़ीया बधिया कने जायज 100%सच्चाई है कवता दे अनुवादे चह।
सांख्यान बलदेव: सेठी जी ! मूल क्बीता ता मिंजो पता नि पर जेह्डा तुसें अनुवाद रिया सक्ला च लिख्या सैह बौह्त इ बधिया !
मोनिका शर्मा स्वार्थी: अनूप जी बड़ीया बधिया कने जायज 100%सच्चाई है कवता दे अनुवादे चह।
सांख्यान बलदेव: सेठी जी ! मूल क्बीता ता मिंजो पता नि पर जेह्डा तुसें अनुवाद रिया सक्ला च लिख्या सैह बौह्त इ बधिया !
ललित
मोहन शर्मा: गल्ला दी चूड़ी मरी गई।
अनूप जी
मज़ा ई आई गया। खरे अनुवाद पहड़िया च करी ने पहाड़ी न्य न्य रूप कने शब्दां दे लिबास
च भासा दे अंग अंगः च नोई जान
मुश्किल ते मुश्किल वचारं दा वजन सहने द दम रखगि।
गलतिय जो जल्दी भूली जांदे मरिया खातर।
गलतिय जो जल्दी भूली जांदे मरिया खातर।
सुरेश भरद्वाज निराश: सारिया मुस्कला जो ठन्डे दमागै
......................:त्माश्बीना दी शाबाशी कनै वाह वाह। बड़ा छेल कने सटीक शव्द इस्तमाल करी ने कितिया अनुबाद जे कवता जो इक सुंदर रूप दिया दा बाह अनूप जी वाह।
अनूप
सेठी : सारयां पंचां दा धन्नवाद।
अनुवादे च मेरा खास योगदान नीं है। कुंवर नारायण होरां लिखियो ही बड़ी छैळ है। मूल
हिंदी तुसां भी पढ़ा। अनुवादे च कोई कमी लगह्गी तां जरूर दसनयों।
ललित मोहन शर्मा: धन्यवाद अनूप एक अच्छी कविता से मिलाने के लिये। बात और शरारती बच्चे की उपमा वाह क्या बात है।
सुशील पठाणीया: अनुप जी छोटी सोच बड्डे बोल
माफ करी दिनेयो... सारीया कबता अनुवाद बडा़ छेळ कने बधिआ
पर इक लैना दे बारे फिरी सोचनो .....';जरा ढेरी होई ने फसी गई';.....
ठीक नी लग्गा दी
सुशील पठाणीया: ';जरा कर अडी गयी'; बाकि तुसां दिखा
ललित मोहन शर्मा: धन्यवाद अनूप एक अच्छी कविता से मिलाने के लिये। बात और शरारती बच्चे की उपमा वाह क्या बात है।
सुशील पठाणीया: अनुप जी छोटी सोच बड्डे बोल
माफ करी दिनेयो... सारीया कबता अनुवाद बडा़ छेळ कने बधिआ
पर इक लैना दे बारे फिरी सोचनो .....';जरा ढेरी होई ने फसी गई';.....
ठीक नी लग्गा दी
सुशील पठाणीया: ';जरा कर अडी गयी'; बाकि तुसां दिखा
No comments:
Post a Comment