फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। ता असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा तरताह्ळुआं मणका।
(चित्र : सुमनिका, कागजे पर चारकोल)
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समाधियाँ दे परदेस च
लोकनाथनें, अप्पुयो मिलह्यो ‘कारण बताओ नोटिस’ दा जवाब, इक जेसीओ ते लिखुआयी करी दित्ता था। सैह् तिस जेसीओ दे अंडर बख-बख खेलाँ च हिस्सा लैंदा रिहा था। तिसदी तबाही ताँईं, कुत्थी न कुत्थी, सैह् जेसीओ भी जिम्मेदार था।
कमांडिंग अफसर होराँ सैह् जवाब पढ़ी करी मेरे हवाले करी दित्ता था। मैं तिस महीने दे आखिर च लोकनाथन जो तन्खाह दे तौरे पर साढ़े तिन्न हजार रुपए दी पेमेंट करी नै तिसदे घर जाणे दे खर्च दा बंदोबस्त करी दित्ता था। अगले महीने दी पहली तारीख जो, मेरिया सलाही पर कमांडिंग अफसर होंराँ लोकनाथन जो अपणे दफतर च सद्दी नै, सूबेदार मेजर साहब कनै मेरिया हाजरिया च, दस्सेया था कि तिस्सेयो फौज ते बर्खास्त कित्ता जाह्दा है। मैं डिस्चार्ज रोल दियाँ मुकर्रर जगहाँ पर तिसदे दस्तखत कमांडिंग अफसर दे दफतर च ही करुआई लै थे। तिसदे परंत सूबेदार मेजर साहब होराँ दे हुक्म पर दो जुआन तिस्सेयो तिसदे समाने समेत ‘नासिक रोड’ रेलवे स्टेशन तिकर छड्डी आये थे। तैह्ड़ी मिंजो बड़ा दुख होया था। अगले दिनैं मैं सूबेदार मेजर साहब होराँ ते लोकनाथन दे बारे च पता कित्ता ताँ तिन्हाँ मिंजो दस्सेया था कि पिछलिया राती सैह् यूनिट दे इक जुआनें जो तिस रेलवे स्टेशन च नशे च धुत होयी लम्मा पिह्या मिल्लेया था। अज्ज मिंजो याद नीं ओंदा कि मैं लोकनाथन दिया जणासा जो तिसदी फौज ते बर्खास्तगी दे बारे च खबर दित्ती थी कि नीं। मैं हर हादसे कन्नै निपटदे वक्त फौज दे कानूनाँ कनै कायदेयाँ दा पालन करदा था। तिस मामले च भी मैं कायदे मुताबिक कम्म कित्तेह्या होंगा।
जिंञा कि मैं पिछली कड़ी च दस्सेया था कि इक दहाई पहलैं नायक नारायण सिंह जो लगिह्यो चोटा दे बारे च फैसला दिंदे वक्त तदकणे बिग्रेड कमांडरे दे स्टाफे ते इक चूक होयी गइह्यो थी। तिस चूक जो सुधारने ताँईं कार्रवाई करने ताँईं मिंजो कमांडिंग अफसरे ते इजाजत मिली गयी थी।
इंज्यूरी रिपोर्ट दे तिस हिस्से च जित्थू ब्रिगेड कमांडर जो अपणा फैसला देणा होंदा है तित्थू किछ इस तरहाँ पहले ते ही छप्पेह्या होंदा है — “The injury is attributable/not attributable to military service in peace/field/operational area.” नायक नारायण सिंह दे मामले च उप्पर लिक्खेह्यो ते, ब्रिगेड कमांडर होराँ जो दस्तखत करदिया बेला, पेन कन्नै not attributable, peace कनै field अक्खर कटणे चाहिदे थे। मैं हौळदार दे रैंक च जाह्लू इक ब्रिगेड हैडकुआटर च पोस्टड था ताँ मैं गैर-जरूरी अक्खराँ जो पेंसिल कन्नै कटणे ते परंत ही कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी दी प्रोसीडिंग्स कनै इंज्यूरी रिपोर्ट जो ब्रिगेड कमांडरे व्ह्ली भेजदा था जिसते तिन्हाँ जो सही अक्खरां जो पैने कन्नै कटणे च सहूलियत होंदी थी अपर नायक नारायण सिंह दी जेह्ड़ी इंज्यूरी रिपोर्ट तिसदे फील्ड सर्विस डाक्यूमेंटां कन्नै लगिह्यो थी तिस च उप्पर लिक्खेह्यो ते कोई भी हर्फ कटोह्या नीं था। बस तित्थू ब्रिगेड कमांडर होराँ दी मूहर कन्नै तिन्हाँ दे साइन ही मौजूद थे। नतीजतन तिसदा गलत ‘पार्ट टू ऑर्डर’ छपी गिह्या था। तिसा गलतिया जो हुण आर्मी हैडकुआटर दे जरिए ही सुधारेया जाई सकदा था।
तिस ताँईं मैं इक ब्यौरेबार ‘स्टेटमेंट ऑफ द केस’ तैयार कित्ती थी। तिस ‘स्टेटमेंट ऑफ द केस’ च मैं तिस चूक दियाँ वजहाँ च इक वजह एह् भी दस्सिह्यो थी कि इंज्यूरी रिपोर्ट दियाँ चार कापियाँ बणदियाँ हन्न। ब्रिगेड कमांडर होराँ सब्भते उप्पर वाळी कापिया पर सही हर्फां जो कट्टी करी सारियाँ कापियाँ पर साइन करी दित्तेह्यो होंगे। तिन्हाँ दे स्टाफे ते बाकी दियाँ तिन्न कापियाँ च सही हर्फां जो नीं कटणे दी चूक होयी गइह्यो होंगी। तिस चूक दा खामियाजा नायक नारायण सिंह जो नीं भुगतणा पोये इस ताँईं कम्पीटेंट ऑथोरिटी जो भूल सुधारने दे आर्डर देणे चाहिदे।
तिस स्टेटमेंट ऑफ द केस जो पढ़ी करी मेरे कमांडिंग अफसर साहब होराँ मिंजो शाबाशी दित्ती थी कनै तिस पर दस्तखत करी दित्ते थे। हुण मिंजो याद नीं कि कुस ‘चैनल’ ते सैह् ‘केस’ आर्मी हैडकुआटर जो भेज्या गिया था। आर्मी हैडकुआटर तिकर पोंह्चणे ताँईं दो चैनलाँ होंदियाँ हन्न ― स्टाफ चैनल कनै डिपार्टमेंटल चैनल। स्टाफ चैनल यूनिट ते ब्रिगेड, डिवीजन, कोर कनै कमांड हैडकुआटराँ ते होंदी होयी आर्मी हैडकुआटर तिकर जाँदी है जद कि आर्टिलरी दी डिपार्टमेंटल चैनल यूनिट, आर्टिलरी ब्रिगेड, कोर आर्टिलरी ब्रिगेड, कमांड आर्टिलरी हैडकुआटराँ ते होयी करी आर्मी हैडकुआटर च ‘आर्टिलरी डायरेक्टरेट’ तिकर पोंह्चदी है।
इस किस्म देयाँ मामलेयाँ जो सुलझाणे च वक्त लगता है। नायक नारायण सिंह देवलाली दे स्टेशन आर्टिलरी मेस च ड्यूटी करदा था। तिस दौरान तिसते होइयो कुसी गलतिया दिया बजह ते कमांडिंग अफसर साहब तिसते नाराज होयी गै थे। तिन्हाँ मिंजो इशारेयाँ ही इशारेयाँ च एह् दस्सणे दी कोशिश कित्ती कि मैं नायक नारायण सिंह दे केसे पर कम्म करी नै फिजूल ही अपणी ऊर्जा कनै टैम गुआ दा है। मैं तिन्हाँ देयाँ इशारेयाँ जो समझदा होया भी तिस पर कम्म करदा रिहा कनै तिस गलती जो सुधारने च कामयाब होयी गिया।
हर तिन्न महीनेयाँ परंत पलटन च “प्रमोशन कांफ्रेंस” होंदी थी जिस च पलटन दे हैडक्लर्क दा बड़ा अहम् रोल होंदा था। प्रमोशन कांफ्रेंस च मैं सब्भ हाजिर साहिबानाँ जो दस्सेया था, “ऑपरेशनल एरिये च चोट लगणे दिया बजह ते नायक नारायण सिंह परमानेंट मेडिकल केटेगरी डाउन होया था इस बजह ते रूल दे मुताबिक सैह् प्रमोशन दा हकदार है अपर तिन्नी नायक ते हौळदार बणने ताँईं प्रमोशन कैडर पास नीं कित्तेह्या इस ताँईं तिस्सेयो हौळदार नीं बणायी सकदे। हाँ, जेकर कमांडिंग अफसर होंराँ चाहण ताँ तिस्सेयो सीनियर नायक होणे दे कारण ‘लांस हवलदार’ बणायी सकदे हन्न।” इस पर सारेयाँ हाजिर साहिबानाँ मेरी गल्ल दा समर्थन कित्ता था कनै कमांडिंग अफसर होराँ जो, नीं चांहदेयाँ भी, हाँ करनी पयी थी। मिंजो पता था नायक नारायण सिंह दे मामलैं मिंजो लई डुबणा है। कमांडिंग अफसर होराँ दी नाराजगी मिंजो सूबेदार ते सूबेदार मेजर बणने ते रोकी सकदी थी।
प्रमोशन कांफ्रेंस च मंजूर कित्ते गै प्रमोशन कनै अपॉइंटमेंटां यूनिट दे ‘पार्ट वन ऑर्डरां’ च छप्पणे ते परंत लागू होंदे हन्न। नायक नारायण सिहें तिस मामले जो होर बिगाड़ी करी रखी दित्ता था। होया एह् था कि तिस प्रमोशन कांफ्रेस दे नतीजे छपणे पर नायक नारायण सिंहें ‘लांस हवलदार’ दियाँ फीतियाँ अपणी वर्दिया पर लगाणे ते नाँह करी दित्ती कनै हौळदार बणाये जाणे ताँईं अड़ी गिया। तिस वक्त मैं कैजुयल लीव पर था। ड्यूटी च हाजिर होणे पर मिंजो सूबेदार मेजर साहब होराँ तिस मामले दी जाणकारी दित्ती कनै अगले कदम ताँईं मेरी रै (राय) जाणनी चाही थी।
मिंजो नायक नारायण सिंह पर बहोत गुस्सा आया था। मैं सूबेदार मेजर साहब होराँ जो ग्लाया था, “साहब, तिस्सेयो चार्ज सीट पर कमांडिंग अफसर साहब होराँ दे साह्म्णे खड़ेरा कनै नायक ते गनर (सिपाही) बणायी दिया।” सूबेदार मेजर साहब होराँ मिंजो ग्लाया था, “साहब, तुसां तिस कन्नै गल्ल करी नै दिक्खा जेकर सैह् फिरी भी नीं मन्नेंयाँ ताँ तिसदी चार्जशीट बणायी दिह्नेंयो।”
मैं अपणे आफिस रनर जो तरंत नायक नारायण सिंह जो सदणे ताँईं भेज्या। मैं तिस्सेयो हिदायत दित्ती थी, “नायक नारायण सिंह जो बोला कि सैह् लांस हवलदार दे रैंक लगायी करी तरंत मिंजो रिपोर्ट करे। जेकर तिस व्ह्ली वर्दी तैयार नीं होये ताँ कुसी होरसी ते मंगी करी पहनी लै।” नायक नारायण सिंह अद्धे घण्टे दे अंदर लांस हवलदार दी वर्दी च मेरे साह्म्णे आयी खड़ौता था। मैं तिस्सेयो बुरी तरहां डाँट लगाई करी सूबेदार मेजर साहब होराँ व्ह्ली भेजी दित्ता था।
(बाकी अगलिया कड़िया च….)
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समाधियों के प्रदेश में (तैतालीसवीं
कड़ी)
लोकनाथन ने, उसको दिये गये ‘कारण बताओ नोटिस’ का जवाब, एक जेसीओ से लिखवा कर दिया था। वह उसी जेसीओ के नेतृत्व में विभिन्न खेलों में भाग लिया करता था। उसकी बर्बादी के लिए कहीं न कहीं, वह जेसीओ भी जिम्मेदार था।
कमांडिंग अफसर ने वह जवाब पढ़ कर मेरे हवाले कर दिया था। मैंने उस महीने के अंत में लोकनाथन को वेतन के रूप में साढ़े तीन हजार रुपए की अदायगी करके उसके घर जाने के खर्च का प्रबंध कर दिया था। अगले महीने की पहली तारीख़ को मेरी सलाह पर कमांडिंग अफसर ने लोकनाथन को अपने कार्यालय में बुलाकर, सूबेदार मेजर साहब और मेरी उपस्थिति में, सूचित किया था कि उसे सेना से बर्खास्त किया जा रहा है। मैंने डिस्चार्ज रोल पर निर्धारित स्थानों पर उसके हस्ताक्षर कमांडिंग अफसर के कार्यालय में ही ले लिए थे। उसके वाद सूबेदार मेजर साहब के निर्देश पर दो जवान उसके समान सहित उसे ‘नासिक रोड’ रेलवे स्टेशन पर छोड़ आये थे। उस दिन मुझे बहुत दुख हुआ था। अगले दिन मैंने सूबेदार मेजर साहब से लोकनाथन के बारे में पता किया तो उन्होंने बताया था कि पिछली रात वह यूनिट के एक जवान को नशे में धुत होकर उसी रेलवे स्टेशन में पड़ा मिला था। आज मुझे याद नहीं कि मैंने लोकनाथन की पत्नी को उसकी सेना से बर्खास्तगी के बारे में सूचित किया था या नहीं। मैं हर घटना से निपटते समय सेना के कानूनों और नियमों का पालन करता था। उस मामले में भी मैंने नियमानुसार काम किया होगा।
जैसे कि मैंने पिछली कड़ी में बताया था कि एक दशक पहले नायक नारायण सिंह को लगी चोट के बारे में निर्णय देते समय तत्कालीन बिग्रेड कमांडर के स्टाफ से एक चूक हो गयी थी। उस चूक को सुधारने के लिए कार्रवाई करने के लिए मुझे कमांडिंग अफसर से आज्ञा मिल गयी थी।
इंज्यूरी रिपोर्ट के उस भाग में जहाँ ब्रिगेड कमांडर को अपना फैसला देना होता है वहाँ कुछ इस प्रकार पहले से ही छपा होता है — “The injury is attributable/not attributable to military service in peace/field/operational area.” नायक नारायण सिंह के मामले में उपरोक्त में से, ब्रिगेड कमांडर द्वारा हस्ताक्षर करते समय, पेन से not attributable, peace और field शब्द काटे जाने चाहिए थे। मैं हवलदार के रैंक में जब एक ब्रिगेड हैडक्वार्टर में सेवारत था तो मैं सम्बन्धित शब्दों को पेंसिल से काटने के बाद ही कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी की प्रोसीडिंग्स और इंज्यूरी रिपोर्ट को ब्रिगेड कमांडर के समक्ष भेजता था जिससे उन्हें सही शब्दों को पेन से काटने में सुविधा होती थी परन्तु नायक नारायण सिंह की जो इंज्यूरी रिपोर्ट उसके फील्ड सर्विस डाक्यूमेंट्स में उपलब्ध थी उसमें उपरोक्त से कोई भी शब्द काटा नहीं गया था। बस वहाँ ब्रिगेड कमांडर की मोहर के साथ उनके हस्ताक्षर ही उपलब्ध थे। परिणामस्वरूप उसका ‘भाग दो’ आदेश गलत प्रकाशित हो गया था। उस गलती को अब सेना मुख्यालय द्वारा ही सुधारा जा सकता था।
उसके लिए मैंने एक विस्तृत ‘स्टेटमेंट ऑफ द केस’ तैयार की थी। उस ‘स्टेटमेंट ऑफ द केस’ में मैंने उस गलती के कारणों में एक कारण यह भी बताया था कि इंज्यूरी रिपोर्ट की चार कॉपियाँ बनती हैं। ब्रिगेड कमांडर ने सबसे ऊपर वाली कॉपी पर सही शब्दों को काट कर सभी कॉपियों पर साइन कर दिए होंगे। उनके स्टाफ से बाकी की तीन कॉपियों में सही शब्दों को न काटने की चूक हो गयी होगी। उस चूक का खामियाजा नायक नारायण सिंह को न भुगतना पड़े इसलिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा भूल सुधारने के आदेश दिये जाने चाहिए।
उस ‘स्टेटमेंट ऑफ द केस’ को पढ़ कर मेरे कमांडिंग अफसर ने मेरी पीठ थपथपायी थी और उस पर हस्ताक्षर कर दिये थे। अब मुझे याद नहीं किस ‘चैनल’ से वह ‘केस’ सेना मुख्यालय को भेजा गया था। सेना मुख्यालय तक पहुंचने के लिए दो चैनल होती हैं ― स्टाफ चैनल और डिपार्टमेंटल चैनल। स्टाफ चैनल यूनिट से ब्रिगेड, डिवीजन, कोर और कमांड मुख्यालयों से होती हुई सेना मुख्यालय तक जाती है जब कि आर्टिलरी की डिपार्टमेंटल चैनल यूनिट, आर्टिलरी ब्रिगेड, कोर आर्टिलरी ब्रिगेड, कमांड आर्टिलरी मुख्यालयों से हो कर सेना मुख्यालय में ‘आर्टिलरी डायरेक्टरेट’ तक पहुंचती है।
इस तरह के मामलों को सुलझाने में समय लगता है। नायक नारायण सिंह देवलाली स्थित स्टेशन आर्टिलरी मेस में कार्यरत था। उसी दौरान उससे हुई किसी चूक की वजह से कमांडिंग अफसर उससे नाराज हो गये थे। उन्होंने मुझे इशारों ही इशारों में यह बताने की कोशिश की थी कि मैं नायक नारायण सिंह के केस पर काम करके व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा और समय गंवा रहा हूँ। मैं उनके इशारों को समझते हुये भी उस पर काम करता रहा और उस गलती को सुधारने में सफल हो गया।
हर तीन महीनों के बाद यूनिट में “प्रमोशन कांफ्रेंस” होती थी जिसमें यूनिट के हैडक्लर्क का अति महत्वपूर्ण रोल होता था। प्रमोशन कांफ्रेंस में मैंने सभी उपस्थित अधिकारियों को बताया था, “ऑपरेशनल एरिया में चोट लगने की वजह से नायक नारायण सिंह परमानेंट मेडिकल केटेगरी डाउन हुआ था अतः नियमों के अनुसार वह प्रमोशन का हकदार है परंतु उसने नायक से हवलदार बनने के लिए प्रमोशन कैडर पास नहीं किया है इसलिए उसे हवलदार नहीं बनाया जा सकता। हाँ, अगर कमांडिंग अफसर चाहें तो उसे सीनियर नायक होने के कारण ‘लांस हवलदार’ नियुक्त कर सकते हैं।” इस पर सभी उपस्थित अधिकारियों ने मेरी बात का समर्थन किया था और कमांडिंग अफसर को, न चाहते हुए भी, हाँ करनी पड़ी थी। मुझे पता था नायक नारायण सिंह का मामला मुझे ले डूबेगा। कमांडिंग अफसर की नाराजगी मुझे सूबेदार से सूबेदार मेजर बनने से रोक सकती थी।
प्रमोशन कांफ्रेंस में स्वीकृत किये गये प्रमोशन और नियुक्तियाँ यूनिट के ‘पार्ट वन ऑर्डरों’ में प्रकाशित होने के उपरांत लागू होते हैं। नायक नारायण सिंह ने उस मामले को और बिगाड़ कर रख दिया था। हुआ यह था कि जब उस प्रमोशन कांफ्रेस के रिजल्ट प्रकाशित हुए तो नायक नारायण सिंह ने ‘लांस हवलदार’ की फीतियाँ अपनी वर्दी पर लगाने से इन्कार कर दिया और हवलदार बनाये जाने की जिद करने लगा। उस समय मैं कैजुयल लीव पर था। ड्यूटी पर हाजिर होने पर मुझे सूबेदार मेजर साहब ने उस मामले से अवगत कराया और अगले कदम के लिए मेरी राय जाननी चाही थी।
मुझे नायक नारायण सिंह पर बहुत क्रोध आया था। मैंने सूबेदार मेजर साहब से कहा था, “साहब, उसे चार्ज शीट पर कमांडिंग अफसर के सामने पेश कीजिए और नायक से सिपाही बना दीजिए।” सूबेदार मेजर साहब ने मुझे कहा था, “साहब, आप उससे बात करके देखो अगर वह फिर भी नहीं माना तो उसकी चार्ज शीट बना देना।”
मैंने
अपने आफिस रनर को तुरंत नायक नारायण सिंह को बुलाने के लिए भेजा। मैंने उसे हिदायत
दी थी, “नायक नारायण सिंह से कहो कि वह लांस हवलदार के रैंक लगा कर तुरंत मुझे रिपोर्ट
करे। अगर उसके पास वर्दी तैयार न हो तो किसी दूसरे से मांग कर पहन ले।” नायक नारायण
सिंह आधे घण्टे के भीतर लांस हवलदार की वर्दी में मेरे सामने आ खड़ा हुआ था। मैंने उसे
बुरी तरह से डाँट कर सूबेदार मेजर साहब के पास भेज दिया था।
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