मुदित सेठी दा चारकोल कनै पेंसला नै बणाह्या इक स्केच कनै इक अंग्रेजी कविता।
कविता दा पहाड़ी कनै हिंदी अनुवाद तेज सेठी दा।
जाई नै दूर बद्दळां तैं उप्पर
खड़ोत्तीयो उच्ची पक्की भगत*
इक्क चट्टान दूह्री , बैंगणी सलेट्टी भूरी
लपो:ह्यीयो वर्फा नै चुफीर्दीया
झाक्का करदी झरोखुये जे:ह
ते
धूरीया दे जम्मेयो चोळे विच्चे ते
वाह भई क:देह्या छैळ
हया चिट्टा मुकुट
* भगत : ठिण्ड या बट्टण्क (बटण्क) बटंक
पहुंच कर दूर पार वारिदों से ऊपर
स्थित है ऊंची सशक्त दृढ़-तत्पर
एक चट्टान बैंगनी सलेटी भूरी, मुड़ी हुई
वर्फ से चतुर्दिक पुती हुई
झांकती एक झरोखे से
जमी हुई धुंध के चोगे से
वाह! कितना सुन्दर
है यह
श्वेत किरीट।
Reaching far, above the clouds
Standing tall, strong and staunch
A folded rock, purple grey brown
Painted with ice, all around
Peeping through a veil of, frozen
misty gown
Awe! how beautiful, is the White
Crown
No comments:
Post a Comment