फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा ब्याह्ळुआं मणका।
(चित्र : सुमनिका, कागजे पर चारकोल)
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समाधियाँ दे परदेस च
मिंजो
तंइयें लोकनाथन जो बचाणे दे हुण सब्भ रस्ते बंद होयी चुकेह्यो थे। उंञा भी तिसदे बारे
च जे किछ भी मैं तैह्ड़िया तिकर कित्तेह्या था सैह् मेरे कमांडिंग अफसर दी दरियादिल
इन्सानी सोच दिया बजह ते मुमकिन होया था। फौज च सारे कमाण अफसर तिन्हाँ साँह्ईं नीं
होंदे जेह्ड़े महज इक सूबेदार क्लर्क दे सुझावां पर सहानुभूतिपूर्ण बिचार करी नै इक
अल्कोहलिक जुआन जो सुधरने दा मौका देणे ताँईं राजी होयी जाह्ण। एह् ताँ लोकनाथन दी
बदनसीबी थी कि सैह् तिस सुनहरी मौके दा फायदा नीं लयी सक्केया था।
फौज
च लोकनाथन बरगे जुआनाँ कनै अफसराँ कन्नै निपटणे ताँईं कमाण अफसर होराँ व्ह्ली इक होर
तरीका भी होंदा है। फौज च इक फॉर्म होंदा है
जिस्सेयो ए.एफ.एम.एस.एफ-10 (AFMSF-10) नाँ ते जाणेया जाँदा है। मते कमाण अफसर अपणे ताँईं प्रॉब्लम बणदे जाह्दे
शख्स दे बारे च उप्पर दस्सेह्यो फॉर्म जो भरी
करी तिस्सेयो दिमागी तौर ते बीमार दस्सी नै
अगली जाँच कनै निपटाण ताँईं सम्बन्धित मिलिट्री हस्पताल च भेजी दिंदे हन्न। इंञा करने
ते सैह् प्रॉब्लम बणदे शख्स दे खिलाफ डिस्सिप्लिनरी जाँ एडमिनिस्ट्रेटिव एक्शन लैणे ते बची जाँदे हन्न। लोकनाथन दे बारे च पहले ते ही तोपखाना अभिलेख ते
तिस्सेयो नौकरी ते डिस्चार्ज करने ताँईं चिट्ठी आयी रखिह्यो थी। इस बजह ते तिसदे बारे च फॉर्म नंबर 10 भरने दा सुआल
ही पैदा नीं होंदा था।
लोकनाथन दा फौज ते निकाळेया जाणा हुण तय था। मैं कमाण अफसर दे ऑर्डर दे मुताबिक “कारण बताओ नोटिस” दा ड्राफ्ट तैयार करी नै तिन्हाँ ते मंजूर करुआई लिह्या था।
हिरासत च रखे गै जुआनाँ ते, किछ संतरियाँ दिया निगरानिया च, कम्म करुआया जाँदा है। लोकनाथन जो दो जुआनाँ दिया देखरेखा च पलटण दे हैडकुआटर दे साह्म्णे लगे बगीचे दियाँ क्यारियाँ ते रुक्खां ते टिरह्यो सुक्के पत्ते बिणने कनै चिक्का जो ताजा करने दा कम्म करने ताँईं लगाया जाँदा था। सैह् ज्यादातर मेरे दफ्तर दे साह्म्णे पौणे वाळी क्यारियों च ही कम्म करदा था। मैं अपणी कुर्सिया च बैठह्या तिस्सेयो कम्म करदे होये सिद्धा दिक्खी सकदा था। पहले ही दिन जाह्लू चाणचक मेरी नजर तिस पर पई ताँ तिन्नी, बगैर टोपी कनै बेल्ट दे, साबधान होयी करी मिंजो सेल्यूट दित्ता। मैं जाणीबुज्झी करी तिस्सेयो जवाब नीं दित्ता कनै देहा जाहिर कित्ता कि जिंञा मैं तिस्सेयो दिक्खेया ही नीं। ताह्लू जरा कि देरा परंत, तिस पर तैनात इक नायक मिंजो व्ह्ली आयी करी सेल्यूट देई नै बोल्या था, “सर, लोकनाथन तुसाँ कन्नै दो मिनट गल्ल करना चांहदा है।”
मैं दिक्खेया क्यारिया च खड़ोतेया
लोकनाथन मिंजो पासैं ही दिक्खा दा था। तिसदियाँ
नम हाखीं मिंजो अज्ज भी याद औंदियाँ हन्न। “ना, मिंजो तिस नै कोई गल्ल नीं करनी,” मैं
जाणीबुज्झी करी तिस नायक जो ऊंची आवाज च जवाब दित्ता था ताकि लोकनाथन जो भी साफ सुणायी
दे।
तिस
दौरान इक नायक दे मामले च कमाण अफसर होराँ मिंजो ते नाराज होयी गै थे। होया एह् था कि लोकनाथन दे सिलसिले ते तकरीबन अट्ठ-दस्स
महीनें पहलैं, इक दिन दफ्तर च मिंजो व्ह्ली
इक नायक रैंक दा जुआन आया। तिसदा नाँ नारायण सिंह था। सैह् कानपुर दा रैहणे
वाळा था। तिन्नी बड़िया सोबती कन्नै मिंजो ते अपणी इक प्रॉब्लम दे बारे च गल्ल करने
दी परमिशन मंगी। मैं तिसदी प्रॉब्लम ध्याने नै सुणी करी तिसदे कागजात जो सरसरी नजर
मारी कनै तिस्सेयो तसल्ली दित्ती कि मैं कमाण
अफसर कन्नै गल्ल-बात करी नै तिसदी प्रॉब्लम जो दूर करने दी पूरी-पूरी कोशिश करह्गा।
तिन्नी मिंजो एह् भी दस्सेया था कि तिसदे ग्राँ ते मेरे ही रैंक दा इक हेडक्लर्क आर्टिलरी
रिकार्ड्स च पोस्टड है, तिन्नी तिस्सेयो दस्सेह्या है कि तिसदी प्रॉब्लम दा समाधान
नीं होयी सकदा किंञा कि इक ताँ तिस समस्या दा घटनाक्रम दस साल ते भी पुराणा है कनै
दूजा तिस गलती दा कोई समाधान है ही नीं। मैं
तिस्सेयो दस्सेया था कि तकरीबन पंज-छे महीनेयाँ च मैं तिसदी समस्या जो सुलझायी सकदा।
मैं तैह्ड़ी ही कमाण अफसर कन्नै गल्ल करी नै नायक नारायण सिंह दी समस्या जो सुलझाणे
दी परमिशन मंगी। कमाण अफसर होराँ गल्ल सुणी नै मिंजो ग्लाया कि अगर मैं नायक नारायण
सिंह दे बारे च होयी फौज दी गलती जो सुधारी सकदा है ताँ बहोत बद्धिया गल्ल होणी। कमाण अफसर दी
परमिशन मिलणे पर मैं तिस जुआन दी समस्या पर कम्म शुरू करी दित्ता था।
नायक नारायण सिंह दी समस्या मोटे तौर च किछ इस तरहाँ थी ― सैह् नवें दी दहाई दे शुरू च, अपणी यूनिट कन्नै अखनूर च पोस्टड था। अंग्रेजाँ ते आजादी मिलणे परंत जम्मू-कश्मीर च, कदी सरहद पर ताँ कदी अंदर, बन्दूकां ते गोळियाँ निकलणे दियाँ आवाजाँ अक्सर औंदियाँ रैहदियाँ हन्न। इक दिन सैह् जुआन अपणी टुकड़िया सोगी गश्त करा दा था। चाणचक तित्थू धमाका होया कनै अफरा-तफरी च तिन्हाँ दी गड्डी पलटी गयी। तिसदी इक जंघ च सीरियस चोट (सीवियर इंज्यूरी) आयी। तिस्सेयो इलाज ताँईं मिलिट्री हस्पताल च दाखिल कित्ता गिया। तित्थू डाक्टराँ, फौज दे इक तयशुदा फार्म पर, इंज्यूरी रिपोर्ट जारी करी दित्ती।
इंज्यूरी
रिपोर्ट तीन-चार पेज दा इक फार्म होंदा है जिसदा शुरू दा हिस्सा फौज दे डाक्टर भरदे हन्न। तिसदे बाद दा हिस्सा
तिस जुआन दा कमाण अफसर भरदा है। तिस पर आखिरी फैसला ब्रिगेड कमांडर जो देणा होंदा है।
फौज च खास तौर च इंज्यूरी जो तिन्न किसमां च बंडेआ जाँदा है ― सीवियर इंज्यूरी, मोडरेटली सीवियर इंज्यूरी कनै माइनर इंज्यूरी।
सीवियर इंज्यूरी कनै मोडरेटली सीवियर इंज्यूरी होणे पर तिसदी वजह जाणने ताँईं इक कोर्ट
ऑफ इन्क्वायरी बिठायी जाँदी है। इंज्यूरी दे मामले च बैठायी गयी कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी
गुआहाँ दे बयानाँ कनै अपणी फांयडिंग जो लिक्खी नै कमाण अफसर जो देई दिंदी है। कमाण
अफसर इंज्यूरी रिपोर्ट कनै कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी दी प्रोसीडिंग्स जो अपणी रिकमेन्डेशन
सोगी ब्रिगेड कमांडर व्ह्ली तिन्हाँ दे फाइनल फैसले ताँईं घली दिंदे हन्न।
ब्रिगेड कमांडर दे फैसले दे मुताबिक सैह् कैजुअल्टी यूनिट दे ‘पार्ट टू ऑर्डराँ’ च पब्लिश कित्ती जाँदी है। नायक नारायण सिंह जो लगिह्यो चोट दे बारे च फैसला दर्ज करदे वक्त तदकणे बिग्रेड कमांडर दे स्टाफ ते इक चूक होयी गइह्यो थी। नतीजतन सैह् कैजुअल्टी यूनिट दे ‘पार्ट टू ऑर्डराँ’ च सही तरीके नै पब्लिश नीं होइयो थी। मिंजो तिस्सेयो सुधारने ताँईं लिखा-पढ़ी करनी थी।
मैं लोकनाथने जो तिस महीने दी 23 तारीख जो कमाण अफसर ते दस्तखत करुआयी नै “कारण बताओ नोटिस” जारी करी दित्ता था। तिस नोटिस च लोकनाथन दी ‘कंडक्ट सीट’ च बहोत सारी लाल स्याही दियाँ एंट्रियाँ दा हवाला दिंदे होंयाँ तिसते पुच्छेया गिह्या था कि आर्मी रूल 13 दे तहत तिस्सेयो कैंह् नीं फौज दी नौकरी ते कढ़ी दित्ता जाये। जबाव देणे ताँईं तिस्सेयो सत्त दिन दा टैम दित्ता गिया था। मिंजो पता था लोकनाथन दा जाणा हुण पक्का है इस ताँईं मैं तिसदी डिस्चार्ज रोल (IAFY-1948 A) भी तैयार करी लई थी।
(बाकी
अगलिया कड़िया च….)
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समाधियों के प्रदेश में (बयालीसवीं
कड़ी)
मेरे लिए लोकनाथन को बचाने के लिए अब सभी रास्ते बंद हो चुके थे। वैसे भी उसके बारे में जो कुछ मैंने अभी तक किया था वह मेरे कमान अधिकारी के उदारवादी मानवीय दृष्टिकोण की बदौलत संभव हो पाया था। सेना में सभी कमान अधिकारी उन जैसे नहीं होते जो महज एक सूबेदार क्लर्क के सुझावों पर सहानुभूतिपूर्ण विचार करके एक अल्कोहलिक जवान को सुधरने का मौका देने के लिए राजी हो जाएं। ये तो लोकनाथन की बदनसीबी थी कि वह उस सुनहरी मौके का लाभ नहीं उठा पाया था।
सेना में लोकनाथन जैसे जवानों और अधिकारियों से निपटने के लिए कमान अधिकारी के पास एक और उपाय भी उपलब्ध होता है। सेना में एक फॉर्म होता है जिसे ए.एफ.एम.एस.एफ-10 (AFMSF-10) नाम से जाना जाता है। कई कमान अधिकारी अपने लिए समस्या बनते जा रहे व्यक्ति के बारे में उपरोक्त फॉर्म भर कर उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ बताते हुए, आगे की जाँच और निपटान के लिए, सम्बन्धित सैन्य हस्पताल में भेज देते हैं। ऐसा करने से वे समस्या बने व्यक्ति के विरुद्ध अनुशासनात्मक अथवा प्रशासनिक कार्रवाई करने के झंझट से बच जाते हैं। लोकनाथन के बारे में पहले से ही तोपखाना अभिलेख से उसे नौकरी से डिस्चार्ज करने के लिए चिट्ठी आ रखी थी। इसीलिए उसके बारे में फॉर्म नंबर 10 भरने का सवाल ही पैदा नहीं होता था।
लोकनाथन का फौज से निकाला जाना अब तय था। मैंने कमान अधिकारी के निर्देशानुसार “कारण बताओ नोटिस” का प्रारूप तैयार करके उनसे स्वीकृत करवा के रख लिया था।
हिरासत
में रखे गए सैनिकों से कुछ संतरियों की निगरानी में काम करवाया जाता है। लोकनाथन को
दो सैनिकों की निगरानी में पलटन के मुख्यालय के सामने लगे बगीचे में क्यारियों में
से पेड़ों से गिरे सूखे पत्ते चुनने और मिट्टी को ताजा करने का काम करने लाया जाता था।
वह ज्यादातर मेरे दफ्तर के सामने पड़ने वाली क्यारियों में ही काम करता था। मैं अपनी
कुर्सी पर बैठे हुए उसे काम करते हुए स्पष्ट देख सकता था। पहले ही दिन जब अचानक मेरी
नजर उस पर पड़ी तो उसने, बिना टोपी और बेल्ट के, सावधान होकर मुझे
सेल्यूट दिया। मैंने जानबूझ कर उसको जवाब नहीं
दिया और ऐसा आभास दिया कि जैसे मैंने उसे देखा ही नहीं। तभी थोड़ी देर बाद उस पर तैनात
एक नायक मेरे पास आकर सेल्यूट देकर बोला था, “सर, लोकनाथन आपसे दो मिनट बात करना चाहता
है।”
मैंने देखा क्यारी में खड़ा लोकनाथन मेरी तरफ ही देख रहा था। उसकी नम आंखें मुझे आज भी याद आती हैं। “नहीं, मुझे उससे कोई बात नहीं करनी,” मैंने जानबूझ कर उस नायक को ऊंची आवाज में जवाब दिया था ताकि लोकनाथन को भी स्पष्ट सुनाई दे।
उसी दौरान एक नायक के मामले में कमान अफसर महोदय मुझ से नाराज हो गये थे। हुआ यह था कि लोकनाथन के घटनाक्रम से तकरीबन आठ-दस महीने पहले, एक दिन दफ्तर में मेरे पास एक नायक रैंक का युवक आया। उसका नाम नारायण सिंह था। वह कानपुर का रहने वाला था। उसने बड़ी तहजीब के साथ मुझ से अपनी एक समस्या के सिलसिले में बात करने की इजाजत मांगी। मैंने उसकी समस्या ध्यान से सुन कर उसके कागज़ात को सरसरी नज़र से देखा और उसे आश्वस्त किया कि मैं कमान अधिकारी से बात करके उसकी समस्या को हल करने का भरपूर प्रयास करूंगा। उसने मुझे बताया कि उसके गांव से मेरे ही रैंक का एक हेडक्लर्क आर्टिलरी रिकार्ड्स में सेवारत है। उसने उसे बताया है कि उसकी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है क्योंकि एक तो उस समस्या का घटनाक्रम एक दशक से भी पुराने समय का है और दूसरा उस गलती का कोई समाधान है ही नहीं। मैंने उसे बताया था कि लगभग पांच -छह महीने लगेंगे पर मैं इस समस्या को सुलझा सकता हूँ। मैंने उसी दिन कमान अधिकारी से बात करके नायक नारायण सिंह की समस्या को सुलझाने की आज्ञा मांगी। कमान अधिकारी ने मुझे बताया कि अगर मैं नायक नारायण सिंह के बारे में सेना द्वारा की गई भूल को सुधार सकता हूँ तो अच्छी बात होगी। कमान अधिकारी की आज्ञा मिलने पर मैंने उस जवान की समस्या पर काम शुरू कर दिया था।
नायक नारायण सिंह की समस्या संक्षेप में इस प्रकार थी ― वह नवें दशक के आरंभ में, अपनी यूनिट के साथ अखनूर में सेवारत था। अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में, कभी सरहद पर तो कभी अंदर, बन्दूकों से गोलियाँ निकलने की आवाजें अक्सर आती रहती हैं। एक दिन वह जवान अपनी टुकड़ी के साथ गश्त कर रहा था। अचानक वहाँ विस्फोट हुआ और अफरा तफरी में उनकी गाड़ी पलट गयी। उसकी एक टांग में गंभीर चोट (सीवियर इंज्यूरी) आयी। उसे उपचार के लिए सेना हस्पताल में दाखिल किया गया। वहाँ डाक्टरों ने, सेना के एक निर्धारित फार्म पर, इंज्यूरी रिपोर्ट जारी कर दी।
इंज्यूरी रिपोर्ट तीन-चार पेज का एक फार्म होता है जिसका शुरू का हिस्सा सेना के डाक्टर भरते हैं। उसके बाद का हिस्सा उस जवान विशेष का कमान अधिकारी भरता है। उस पर अंतिम फैसला ब्रिगेड कमांडर को देना होता है। सेना में मुख्यतः इंज्यूरी को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है ― सीवियर इंज्यूरी, मोडरटेली सीवियर इंज्यूरी और माइनर इंज्यूरी। सीवियर इंज्यूरी और मोडरटेली सीवियर इंज्यूरी होने पर उसके कारण जानने के लिए एक कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी बिठायी जाती है। इंज्यूरी के मामले में बैठायी गयी कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गवाहों के बयानों और अपनी फांयडिंग को कलमबद्ध करके कमान अधिकारी को सौंप देती है। कमान अधिकारी इंज्यूरी रिपोर्ट और कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी की प्रोसीडिंग्स को अपनी अनुशंसा के साथ ब्रिगेड कमांडर के पास उनके अंतिम निर्णय के लिए भेज देते हैं। ब्रिगेड कमांडर के निर्णय के अनुसार उस घटना को यूनिट के ‘भाग दो आदेशों’ में प्रकाशित किया जाता है। नायक नारायण सिंह को लगी चोट के बारे में निर्णय देते समय तत्कालीन बिग्रेड कमांडर के स्टाफ से एक चूक हो गयी थी। परिणामस्वरूप वह घटना यूनिट के ‘भाग दो आदेशों’ में सही ढंग से प्रकाशित नहीं हुई थी। मुझे उसे सुधारने के लिए लिखा-पढ़ी करनी थी।
मैंने
लोकनाथन को उस महीने की 23 तारीख को कमान अधिकारी से दस्तखत करवा कर “कारण बताओ नोटिस”
जारी कर दिया था। उस नोटिस में लोकनाथन की ‘कंडक्ट शीट’ में बहुत
सारी लाल स्याही की प्रविष्टियों
का हवाला देते हुए उससे पूछा गया था कि
उसे क्यों न सेना नियम 13 के तहत सैन्य सेवा से निकाल दिया जाए। जबाव देने के लिए उसे सात दिन का समय दिया गया था। मुझे पता था लोकनाथन का जाना अब तय है अतः मैंने
उसकी डिस्चार्ज रोल (IAFY -1948 A) भी तैयार कर ली थी।
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