(तुआं कवि पवन करण होरां दी इक कविता 'एड़ियां' सुज्झी। पेस है अनुवादे दी कोसिस)
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अडियां
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असां जाह्लू बी सौग्गी-सौग्गी
पैडि़यां गोहंदे, मैं पैहलैं तिज्जो गलांदा
पैडि़यां गोहणे जो
तू भचक होई नै पुछदी, कैंह
तैं नी चलणा मिंजो कन्नैं
मैं तिज्जो गलांदा
तू गोह् तां सही, मैं बी औंदा
कनैं मैं बुह्र रुकी करी
पैडि़यां गोहंदेयां तेरेआं पैरां दीयां
चिटियां-चरेलियां अडियां दिखदा रैहंदा
जाह्रू तू सयाले दे धुप्पे च
पत्थरे नै रगड़ी-रगड़ी करी
अपणियां अडियां धोंदी
मैं तिज्जो चघाई नैं गलांदा
इन्नी पत्थरैं तेरियां अडियां नीं चमकाइयां
अपर तेरियां अडियां
इस पथरे जो
घरीसी-घरीसी करी चमकाई सट्टेया
कदीं कदांईं तूं इन्हां पर
लाई लैंदी लालखड़ा रंग
तां मैं तिज्जो टोकदा
मीये तैं इतणियां छैल़ अडियां
कजो रंगी चकाइयां
मैं कितणी बरी गलाया
भई तेरियां अडियां तिन्हां अडियां चा नी हन
जेहडि़यां लालखड़े रंगे ताईं बणियां हुंदियां
असां मते ठैहरी करी मिल्ले
असां पैहले ई मिल्लयों हुंदे तां मैं
तेरियां इन्हां अडियां जो
तिज्जो पींघ झटांदेयां
अप्पू ते दूर जांदेयां
नेड़ैं औंदेयां भी दिखया होणा था
इतणा ही नीं, मैं
पंजेयां दैं भारैं
रस्सिया कुददिया बेला
लाल फिरने आलि़यां
तेरियां इन्हां अडियां च
घटे ते घट इक बरी ता
अपणा गिटुए साहई चुभणा
जरूर मसूस कित्तेया हुंदा।
(कविता : पवन करण, कांगड़ी हिमाचली में अनुवाद का प्रयास : नवनीत शर्मा)
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(मूल कविता)
एड़ियां
हम जब भी साथ-साथ
सीढि़यां चढ़ते, मैं पहले तुमसे
सीढि़यां चढ़ने की कहता
तुम चौककर पूछतीं क्यों
क्या तुम मेरे साथ नहीं चलोगे,
मैं तुमसे कहता
तुम चढो तो सही, मैं आता हूं
और मैं नीचे रूककर
जीने चढ़तीं तुम्हारे पैरों की
उजलीं एड़ियां देखता
सीढि़यां चढ़ते, मैं पहले तुमसे
सीढि़यां चढ़ने की कहता
तुम चौककर पूछतीं क्यों
क्या तुम मेरे साथ नहीं चलोगे,
मैं तुमसे कहता
तुम चढो तो सही, मैं आता हूं
और मैं नीचे रूककर
जीने चढ़तीं तुम्हारे पैरों की
उजलीं एड़ियां देखता
जब तुम सर्दियों की धूप में
पत्थर से रगड़-रगड़कर
अपनी एड़ियां धोतीं
तुम्हें चिढ़आते हुए मैं कहता
इस पत्थर ने
तुम्हारी एड़ियों को
नहीं चमकाया
बल्कि तुम्हारी एड़ियों ने
घिस-घिसकर इस पत्थर को
चमका डाला है
पत्थर से रगड़-रगड़कर
अपनी एड़ियां धोतीं
तुम्हें चिढ़आते हुए मैं कहता
इस पत्थर ने
तुम्हारी एड़ियों को
नहीं चमकाया
बल्कि तुम्हारी एड़ियों ने
घिस-घिसकर इस पत्थर को
चमका डाला है
कभी-कभार तुम इन पर
महावर लगा लेतीं
तो मैं तुम्हें टोकता
अरे यार तुमने
इतनी सुंदर एड़ियों को
क्यों रंग डाला
कितनी बार कहा है
कि तुम्हारी एड़ियां
उन एड़ियों में से नहीं
जो महावर के लिये बनी होती हैं
महावर लगा लेतीं
तो मैं तुम्हें टोकता
अरे यार तुमने
इतनी सुंदर एड़ियों को
क्यों रंग डाला
कितनी बार कहा है
कि तुम्हारी एड़ियां
उन एड़ियों में से नहीं
जो महावर के लिये बनी होती हैं
हम बहुत बाद में मिले
हम पहले मिले होते तो मैेंने
तुम्हारीं इन एड़ियों को
तुम्हें झूला झुलाते हुए
अपने से दूर जाते
और पास आते भी देखा होता
हम पहले मिले होते तो मैेंने
तुम्हारीं इन एड़ियों को
तुम्हें झूला झुलाते हुए
अपने से दूर जाते
और पास आते भी देखा होता
इतना ही नहीं मैंने
पंजों के बल
रस्सी कूदते समय
लाल पड़ जाने वालीं
तुम्हारी इन एड़ियों में
कम से कम एक बार तो
अपना कंकर की तरह चुभना
जरूर महसूस किया होता ।
पंजों के बल
रस्सी कूदते समय
लाल पड़ जाने वालीं
तुम्हारी इन एड़ियों में
कम से कम एक बार तो
अपना कंकर की तरह चुभना
जरूर महसूस किया होता ।
-पवन करण
नवनीत भाई
ReplyDeleteकमाल दा अनुवाद| कमाल दी भाषा|
एह बांकी कने मजेदार कवता पढ़ी ने 'स्पेनिश लेडी' गीत
स्पेनिश "लेडी वाशिंग हर फ़ीट इन द कैंडल लाइट"
याद आई गया|
नवनीत जी, बड़ा छैळ अनुवाद कीत्तेया तुसां। कूळा कनै नर्म।
ReplyDeleteवाह. ..
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ReplyDeleteबोहत बधिया वाहहह
ReplyDeleteबोहत बधिया वाहहह
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