पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Thursday, January 19, 2012

सिक्‍का


मुदित होरां दे ब्‍लागे पर एह पोस्‍ट लगियो है. उप्‍परली रुपय्ये दे सिक्‍के दी पेंसला नै बणाइयो तस्‍वीर कनै अंगरेजिया च एह कवता

you humans, you ravening species
you created me, you coined me
and then
your blood em poisoned
your eyes blinded 
your minds hypnotized
you fell under my spell

my humans! my slaves!
you will now forever bow to my Power

-mudit



इसा कवता पहाड़ी अनुवाद पढ़ा 


ओ माह्णुआ, ओ भुक्खड़ प्राणिया 
तैं बणाया मिंजो, घड़ेया मिंजो 
कनै फिरी 
तेरे खूनें चढ़ेया बिस 
होया हांखीं दा अन्हा 
दमाग बसीभूत 
फिर गया मेरा झुरलू 


मेरा बंदा! मेरा गुलाम!
तू रेह्यां सदा मूंह्दा मेरी ताकत दे साम्हणे



हुण इसा दा हिंदी अनुवाद पढ़ा 


ओए इन्सान, ओए लालची प्राणी 
तूने बनाया मुझे, तूने घड़ा मुझे
और फिर
तेरे खून में चढ़ा वि‍ष 
हुआ दृष्टिहीन 
दिमाग वषीभूत
मेरा जादू तुझ पर चल गया

मेरे बंदे! मेरे गुलाम!
अब बजाओगे सलाम हमेशा मेरी ताकत के आगे 


मुदित होरां पैसे दी फितरत बड़े म्‍हीन तरीके नै साम्‍हणै रक्‍खी है. दिक्‍खा भला पहाडि़या कनै हिंदिया च 
कुछ गल बणी है कि नीं. जे कोई कोर कसर रही गई होऐ ता तुहां पूरिया क‍रा. जे कदल करैं ता सारिया कवतादा नौआ अनुवाद करी पा.  

4 comments:

  1. Reminds me of Gold, a poem written by anonymous writer long back...good

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  2. बड़ा बढ़िया लगेया ऐ ब्लॉग देखि कने... आपनियाँ भाषा च लिखना तां पढ़ना बड़ा ज़रुरी हा जे असां ऐ बचाई के रखनी तां| ऐ ब्लॉग शुरू करने कठे बहुत बहुत बधाई|

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