पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Saturday, January 13, 2018

ग़ज़ल

तेज सेठी जी दी इक गजल

ग़ज़ल


जिन्हां जे चलणा खड़ें क्याड़ें,
दिन नि दूर तिन्हां दे माड़े।
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मत्था उन्हां देवीयाँ टेक्कां,
सरहदां पर जिन्हां दे लाड़े।
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चुंग जे लाये इक भी दुस्मण,
करी औह्न वीर सौ फाड़े।
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मत सेक्कें लोक्कां दियाँ धुप्पां
घुआड़ अपणे इ गुआड़-पुछाड़े।
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चक्केयो झण्डे उपर-उपर,
थल्लो-थळीया अपणे ब्याड़े।
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बुरा  मरुथल वी नि धूसर,
लिश्कदे रंग पगां दे गाढ़े।
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रात्तीं मस्त  भजन जगरातें
दिन भर लग्गा करदे राह्ड़े।
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बेच्चा दे बाब्बे परबचनां,
दुगणे  रात्ती मंगदे भाड़े।
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हड़ जे औन्दा कुसी नि सुणदा,
ना मिंणतां ना छन्दे हाड़े।
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कुर्सिया इसा  कड्ढ बिच्चे ते
दिख फ्ही कुण लीडर हन स्हाड़े।
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बुजुर्गां स्हेड़ेयो थे रुख भाऊ
आई नै हण तैं  जेह्ड़े राड़े।
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जनता दूँह दे प्हाड़े तिक, बस
नेतेयाँ जो घट दसां दे प्हाड़े।
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ए कुण हन फूक्का दे अग्गीं
नौंएँ कनै पुआ-दे पुआड़े।
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जाळा दे सरकारी बस्सां,
पत्थर-बाजी दिनें-धियाड़े।

हाक्खीं बंद हन हण ए कु:दियाँ
पुच्छा, कुण हन ए छछ्राड़े?
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चुप हन तां भी सै: हन दोषी
सच्चे हन तां कैंह् नि लताड़े?

 तेज सेठी

सारेयां जो लोह्ड़‍ि‍या दी कनै संगरांदी दी बड़ी बड़ी मुबारक.