पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Thursday, January 18, 2024

गल सुणा : सोशल मीडिया च हिमाचली

 


अजकला सोशल मीडिया पर कई कुछ चली रैंह्दा। रात दिन। मता किछ छडणे आळा, थोड़ा जेह्या दिखणे सुणने लायक। हत्थे च मोआइल। मोबाइले च इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब। मैं जाई पूज्या इक्की चैनला पर, जिसा दानांहै-  द हिमाचली पॉडकास्ट। तिस च मता किछ है। थोड़ा जेह्या नजारा तुसां दी दिक्खी लेया । 


सोशल मीडिया पर पॉडकास्ट एक नौंआ माध्यम है। उपदेश होरां यूट्यूब पर इक चैनला साही देह-देह्या ई इक पॉडकास्ट चलांदे- नां है द हिमाचली पॉडकास्ट। सैह् इसा चैनला पर हिमाचल दे लग-लग विधां दे कलाकारां दे लम्मे-लम्मे इंटरव्यू लैंदे। अजकला सोशल मीडिया पर रीलां कनैं शॉर्ट्स चलदे जेह्ड़े छोट-छोटे वीडियो हुंदे। पॉडकास्ट पर लम्मे, टिकुआं, सारिया जिंदगिया समेटणे आळे इंटरव्यू बड़े छैळ लगदे। इस च सिर्फ कलाकारां जो इ नीं, दूएयां पासेयां च नां कमाणे आळयां जो भी सददे। मैं इसा चैनला पर कुछ वीडियो पिछलयां दिनां दिक्खे। कल पहाड़ी स्टेंड अप कमेडियन विशाल शर्मा नै इक्क घंटे दी गलबात सुणी। 

विशाल शर्मा इंस्टाग्राम पर इनसेन-कॉमिक नाएं दे छोटे-छोटे ड्रामे बणांदे। सैह् इस च कइयां किरदारां दे रोल नभांदे। 

हिमाचले दे कलाकार अजकल सोशल मीडिया पर अलग-अलग तरीके नै अपणी कला दस्सा दे हन। गौर करने आळी गल है भई सैह् अपणे वीडियो हिंदी, पहाड़ी या मिली-जुली हिंपहाड़ी च बणांदे। एह्थी अपणी मतलब हिमाचली किस्मा दी हिंदी कन्नां च पौंदी, अपणिया बोलिया दे लैह्जे च मुड़कोइयो। कवि अजेय देह-देहिया भाषा दी खूब पैरवी करदे। 

असां आम तौर पर बड़े परेशान रैंह्दे भई हिमाचली लोग पहाड़ी या हिमाचली भाषा या अपणी बोली नीं बोलदे। पर जनाब, सोशल मीडिया पर जेह्ड़े नौइयां किस्मां दे प्रोग्राम चलेयो, तिन्हां च अपणी बोली धड़ल्ले नै बोली जा दी। इसा गल्ला ते इक उम्मीद जगदी है। इन्हां कलाकारां दे फालोअर्स भी मते हन। गौर करने आळी गल एह् भी है भई साहित्य जादा लोकां तक नीं पूजदा। इस करी नै साहित्य आळे बड़ी चिंता करदे। जे नौंए तौर-तरीकेयां नैं भाषा दूर-दूर कनै मतेयां लोकां तक पूजा दी है ता एह् खरी गल है। इसते एह् भी लगदा भई साहित्य आळेयां जो आत्ममंथन करना चाहिदा। 

जयसिंहपुरे दे मूल निवासी विशाल शर्मा पेशे ते इंजीनियर हन कनै दिलिया नौकरी करदे। पहाड़िया च स्टैंड अप कॉमेडी करदे। स्टैंड अप कॉमेडी नौंए जमाने दी कला है। पुराणयां जमानेयां च लोक कलाकार कनै खबरै मनसुखा इा रीसां लांदा हुंगा। बीह्यां क सालां ते, जदूं ते टेलिवीजने पर लाफ्टर चैंलेंज देहे प्रोग्राम आए, स्टेंड अप कॉमेडियनां दा नौंआ अध्याय शुरु होया। बंगलौर, हैदराबाद, मुंबई, गुड़गांव जेह् शैह्रां च अंग्रेजिया च भी कॉमेडियां होआ दियां। हुण असां दिया पहाड़िया च एह् शुरुआत होणा लगी है। लोक दिखणा औंदे, सैह् भी टिकटां खरीदी। एह् खुशिया दी गल है। विशाल शर्मा होरां दस्सेया, तिन्हां दे हमीरपुर, धर्मशाला, कांगड़ा, चंडीगढ़ दे शो हाउसफुल रह्यो। मजेदार गल एह् है भई शो कुसा जगह करना है, किा करना है, टिकट बुकमाईशो पर बेचणे हन, एह् सारे कम विशाल अप्पू करदे। मतलब कलाकार अपणी कला भी दसह्गा कनै दसणे दा इंतजाम भी अप्पू ही करह्गा। एह् नौंआ तरीका है। साहित्य आळे इा कम करने दे बारे च नीं सोचदे। तिन्हां ते एह् चौधरां नीं हुंदियां। साहित्य आळे इसजो कारोबार गलांदे। कवि, कहाणीकार इसा उमीदा च रैंह्दा भई कोई सादा औऐ ता सैह् अपणियां रचनां पेश करह्गे। पर इंतजाम कुनी करना भाई? दर्शकां श्रोतेयां कुण सदह्गा। एह् ठीक है नौंए माध्यम खर्चीले भी हन। हॉल, माइक वगैरा कराए पर लैणा पौंदे। साहित्य आळे स्कूलां कालजां देयां कमरेयां च ही बही लैंदे। पहाड़ी कलाकारां कनै नौंए कलाकारां जो प्रायोजक ता मिलदा नीं। तिन्हां खर्चा कढणा ही है। वैसे साहित्य आळे सोची सकदे भई इस तरीके नै टिकट बेची नै कवि सम्मेलन भी होई सकदे? 

विशाल शर्मा दियां इंस्टाग्राम दियां कुछ रीलां मैं दिखियां। सैह् ठेठ पहाड़ी बोलदे। जेह्ड़े लोक असां जिंदे-जागदे दिक्खेयो- मा-बुढ़े, दादा-दादी, भाई-भैण, बुआ-जीजा वगैरा। विशाल इन्हां दी रीस लांदे। तिन्हां दे एकल अभिनय करदे। बड़ा खरा लग्गा जाह्लू तिन्हां दस्सेया भई सैह् मेहनत करने पर जादा जोर दिंदे। जेह्ड़ा प्रोग्राम तिन्हां करना होऐ, पैह्लें तिह्दी स्क्रिप्ट तयार करदे, रिहर्सल करदे, तां फिरी शो करदे। तिन्हां एह् भी दस्सेया भई सैह् कामयाबी-नाकामयाबी दी परवाह नीं करदे। बस मेहनत करदे रेह्या। तिन्हां दा एह् दृष्टिकोण बड़ा सकारात्मक है। इस करी नै तिन्हां दा कलाकार भी चमका दा है।     


उपदेश और विशाल शर्मा 


द हिमाचली पॉडकास्ट पर विशाल शर्मा के बहाने से 

सोशल मीडिया पर पॉडकास्ट एक नया माध्यम है। उपदेश यूट्यूब पर एक चैनल की तरह ऐसा ही एक पॉडकास्ट चलाते हैं- नाम है द हिमाचली पॉडकास्ट। वे इस चैनल पर हिमाचली के अलग अलग विधाओं के कलाकारों के लंबे-लंबे इंटरव्यू लेते हैं। आज सोशल मीडिया में रीलें और शॉर्ट्स चलते हैं, जो अपेक्षाकृत छोटे वीडियो होते हैं। पॉडकास्ट में लंबे ठहरे हुए पूरे जीवन वृत्त को समेटने वाले इंटरव्यू देखना प्रीतिकर अनुभव है। इसमें सिर्फ कलाकार ही नहीं दूसरे क्षेत्रों में नाम कमा रहे लोगों को भी बुलाया जाता है। मैंने हाल ही में इस चैनल पर कुछ एक वीडियो देखे हैं। कल पहाड़ी के स्टैंड अप कॉमेडियन विशाल शर्मा का एक घंटे का इंटरव्यू देखा सुना।

विशाल शर्मा इंस्टाग्राम पर इनसेन-कॉमिक नाम से छोटे-छोटे मिमिक बनाते हैं। एक ही अभिनेता यानी वे खुद कई पात्रों का अभिनय करता हैं।

हिमाचल प्रदेश के कलाकार सोशल मीडिया पर तरह-तरह से अपनी प्रतिभा दिखाने लगे हैं। गौरतलब बात यह है कि वे अपने वीडियो हिंदी में या पहाड़ी में या मिली जुली भाषा में बनाते हैं। यहां अपनी यानी हिमाचली तरह की हिंदी और अपनी बोली की लचक वाली हिंदी सुनने को मिलती है। कवि अजेय इस तरह की भाषा की खूब पैरवी करते हैं।    

हम लोग प्राय चिंतित रहते हैं कि हिमाचली लोग पहाड़ी भाषा या हिमाचली भाषा या अपनी बोलियों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। सोशल मीडिया पर चल रहे नई तरह के कार्यक्रम इस धारणा को झुठला देते हैं। इन कार्यक्रमों से एक उम्मीद बंधती है। इन कलाकारों के देखने सुनने वाले या फॉलोअर्स भी बहुत हैं। गौरतलब यह भी है कि साहित्य की पहुंच लोगों तक कम है इसलिए साहित्य से जुड़े हुए लोग ज्यादा चिंतित रहते हैं। अगर नए माध्यमों को पहाड़ी भाषा में दूर-दूर तक और बहु संख्या में सुना जा रहा है तो यह एक शुभ लक्षण है। साथ ही यह साहित्य से जुड़े लोगों के लिए आत्ममंथन का मौका भी देता है।

जयसिंहपुर के मूल निवासी विशाल शर्मा पेशे से एक इंजीनियर हैं और दिल्ली में नौकरी करते हैं।  पहाड़ी में स्टैंड अप कॉमेडी करते हैं। स्टैंड अप कॉमेडी नए जमाने का माध्यम है। पुराने जमाने में लोक कलाकार या मनसुखा शायद इस तरह का काम करता था। पिछले दो दशकों से, जब से टेलीविजन में लाफ्टर चैलेंज जैसे कार्यक्रम आए, स्टैंड अप कॉमेडियनों का नया अध्याय शुरू हुआ है। बैंगलोर, हैदराबाद, मुंबई, गुड़गांव जैसे शहरों में अंग्रेजी के भी स्टैंड अप कॉमेडियन हैं। अब पहाड़ी में यह शुरुआत हो रही है। लोग उन्हें देखने आते हैं, वह भी टिकट खरीद कर; यह और भी सुखकर है। विशाल शर्मा ने बताया कि हमीरपुर, धर्मशाला, कांगड़ा, चंडीगढ़ में उनके शो हाउसफुल रहे हैं।

मजेदार बात यह है कि शो कहां करना है, कैसे करना है, टिकट बुकमाईशो के जरिए बेचे जाने हैं, यह काम विशाल शर्मा खुद ढूंढ़ कर, पता लगाकर करवाते हैं। मतलब कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन भी करेगा और उसे दिखाने का इंतजाम भी करेगा। यह एक नया तरीका है। साहित्य से जुड़े लोग इस तरह से काम करने के बारे में न सोचते हैं, न कर पाते हैं। इस तरह के काम को व्यवसाय माना जाता है। कवि, कहानीकार इस उम्मीद में रहते हैं कि कोई उन्हें बुलाए और वे अपनी रचनाएं पेश  करें। लेकिन इंतजाम कौन करेगा? दर्शक श्रोता को कौन बुलाएगा? नए माध्यम साहित्य की तुलना में खर्चीले भी हैं! हॉल का किराया होता है, साउंड सिस्टम का किराया होता है, दूसरी तरह के इंतजाम के खर्च होते हैं। पहाड़ी के लोगों को या नए कलाकारों को कोई प्रायोजक तो मिलेगा नहीं। इसलिए स्वावलंबी होने का यह एक बढ़िया तरीका है। साहित्य के लोगों के लिए एक सीख है कि क्या इस तरह से कवि सम्मेलन भी किया जा सकते हैं?

विशाल शर्मा की इंस्टाग्राम की रीलें मैंने देखी हैं। ठेठ पहाड़ी में बोलते हैं। जो चरित्र हमने अपने जीवन में देखे हैं- माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन, बुआ-जीजा आदि, उनसे जुड़े हुए प्रसंगों का वे एकल अभिनय करते हैं। यह जानकर अच्छा लगा कि वे मेहनत पर बहुत बल देते हैं। जो प्रोग्राम उन्हें करना है उसके लिए पहले स्क्रिप्ट तैयार करते हैं, रिहर्सल करते हैं फिर जाकर दिखाते हैं। वे यह भी कहते हैं कि सफलता असफलता से प्रभावित नहीं होते। वे मेहनत करते रहने में यकीन करते हैं। अपनी कला के प्रति यह दृष्टिकोण बहुत ही सकारात्मक है जो उन्हें बेहतर कलाकार भी बनता है। 

The Himachali Podcast

विशाल शर्मा 


Saturday, January 6, 2024

यादां फौजा दियां



फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे
तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती हैदूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा उण्ताह्ळमां मणका।

पिछले मणके च तुसां पढ़या भई मंडोत्रां होरां लोकनाथने जो सुधारने ताईं अपणा रनर बणाई लया। हुण पढ़ा भई तिन्हां लोकनाथने पर नजर किञा रखी। 


....................................................................

समाधियाँ दे परदेस च

थोड़ी कि देरा परंत लोकनाथनें आयी नै मिंजो सेल्यूट कित्ता कनै दस्सेया कि सूबेदार मेजर साहब होराँ तिस्सेयो मिंजो रिपोर्ट करने ताँईं गलाह्या। मैं तिस्सेयो इक होर कुर्सी मेरे टेबल दे खब्बे पासैं लगाणे ताँईं  ग्लाया। कुर्सी लगी जाणे ते परंत मैं तिस्सेयो तिसा पर बैठणे जो ग्लाया। पहले ताँ सैह् कुर्सिया पर बैठणे ते झिज्किया अपर जाह्लू मैं जोर देयी नै ग्लाया ताँ सैह चुपचाप बैठी गिया। मैं बोलणा शुरू कित्ता, "दिक्खा लोकनाथन, अज ते बाद तुसाँ मिंजो कन्नै रैह्णा है। तुसाँ मेरे इलावा कुसी होरसी दे हुक्म पर नीं चलणा है। जेकर कोई मिंजो ते सीनियर तुसाँ जो हुक्म दिंदा है ताँ मिंजो दस्सी करी तिस पर अमल करना है। तुसाँ जो शायद इस गल्ल दा पता नीं कि तुसाँ कुस मुसीबत च आयी फसेह्यो हन्न। मैं चाँहदा कि तुसाँ फौज ते पेन्शन लई करी जा। पेन्शना बाह्जी तुसाँ अपणा टब्बर किञा पाळना है? तुसाँ तगड़े जरूर हन्न अपर शराब दे अग्गैं तुसाँ हारी चुकेह्यो हन्न। मैं चाँहदा कि तुसाँ शराब दी आदत कन्नै लड़ा कनै जित हासिल करा। तुसाँ इक बद्धिया खिलाड़ी हन्न। तुसाँ जो जित्तणा ओंदा है। बस तुसाँ मिंजो शराब ते जित्ती नै दस्सा। जेकर तुसाँ इस लड़ाई च हारी गै ताँ तुसाँ दी बीबी कनै बच्चेयाँ भुक्खेयाँ रैह्णा है। तुसाँ दा टब्बर बिखरी जाणा है। मैं रिस्क लई नै तुसाँ दी जिम्मेदारी लइह्यो है नीं ताँ तुसाँ जो पेन्शना बाह्जी घर जाणा पोंदा।”  मेरियाँ इन्हाँ गल्लाँ जो सुणी करी लोकनाथन रोयी पिया था। मैं चुप होयी गिया कनै अपणे कम्में लगी पिया था।  सैह् भी थोड़ी कि देरा परंत शांत होयी गिया था।  

सैह् लोकनाथन जेह्ड़ा शराब पी करी, नशे च चार-पंज जुआनाँ दे काबू नीं ओंदा था, बेहोयी नै चुपचाप मिंजो साह्म्णे बैठी रैंह्दा था। मिंजो तिस पर तरस ओंदा था। नशा आदमी जो कुत्थी दा भी नीं छडदा है। तिसदे किछ मित्र जुआन कनैं खिलाड़ी तिस्सेयो शराब पीणे ताँईं पलकेह्रदे थे। सैह् जाणे-अणजाणे च तिसदी बरबादी दी वजह बणदे जाह्दे थे। 

मैं तिस्सेयो होळैं-होळैं 'रनर' दे तौर पर इस्तेमाल करना शुरू करी दित्ता। मैं जेह्ड़ा भी कम्म तिस्सेयो दिंदा सैह् तिसजो तंरत करी नै मिंजो व्ह्ली आयी करी कुर्सिया पर बैठी जाँदा था। मिंजो जाह्लू भी टैम मिलदा मैं तिसदा हौंसला बद्धांदा रैंह्दा। मैं तिस्सेयो अपणी कहाणी सुणायी थी कि किंञा मैं 35-36 बह्रियाँ परंत बीड़ी-सिगरेट पीणे दी लत छड्डी थी। टैम बीतणे कन्नै मिंजो तिस च सुधार सुझणा लगे थे। सैह् खुश रैह्णा लगी पिया था। 

लोकनाथन जुआनाँ दिया बैरका च रैंह्दा था कनै मैं यूनिट ते चार किलोमीटर दूर पोणे वाळी फैमिली एकोमोडेशन च अपणे परिवारे कन्नै। मैं शराब ते दूर रैह्णे वाळे दो भरोसेमंद जुआनाँ जो तिस पर नजर रखणे ताँईं गलाह्या था। सैह् जुआन मिंजो भ्यागा दी पीटी (फिजिकल ट्रेनिंग) दे बग्त लोकनाथन दियाँ पिछलिया राती दियाँ हरकताँ दी रिपोर्ट दिंदे थे। जदैह्ड़ी मैं पीटी च नीं ओंदा था तदैह्ड़ी मैं तिन्हाँ जो बारी-बारी सद्दी करी दफ्तर ते बाहर मिली लैंदा था। 

जिंञा कि मैं पहलैं भी जिक्र कित्तेह्या लोकनाथन हॉकी कनै फुटबॉल दा इक बद्धिया प्लेयर था। सैह् इन्हाँ  दूंहीं खेलाँ च अपणी यूनिट जो रिप्रेजेंट करदा था। फौज दियाँ यूनिटां च खिलाड़ियाँ जो खास तवज्जो दित्ती जाँदी है। तिन्हाँ जो बख-बख खेल मुकाबलेयाँ ताँईं तैयारी करने वास्ते एक्स्ट्रा खुराक दे तौर पर दुद्ध बगैरा खरीदणे ताँईं यूनिट दे कमांडिंग ऑफिसर रेजिमेंटल फंड ते पैसा खर्चणे दी मंजूरी अक्सर दिंदे रैंह्दे हन्न। यूनिट दे खिलाड़ियाँ कनै एथलीटां जो यूनिट दे कूणे पर मौजूद इक अलग-थलग बैरक च रक्खेया जाँदा है, जित्थू सैह् इक मनमाने ढंगे दा जीण जींदे हन्न। तिन्हाँ पर कोई खास रोक-टोक नीं होंदी है। सैह् जित्थू मरजी दौड़ने दे बहाने घूमी-फिरी सकदे हन्न। अपणी परफॉर्मेंस बेहतर करने ताँईं खिलाड़ी अपणी जेब ते भी खुली नै खर्च करदे हन्न। तिन्हाँ च किछ ताँ कई तरहाँ दे नशे भी करना शुरू करी दिंदे हन्न। लम्मे समै तिकर तिस आजाद माहौल च रैंह्दे होये तिन्हाँ च किछ नशेड़ी बणी जाँदे हन्न। लोकनाथन तिन्हाँ च इक था। सैह् इक अल्कोहलिक था। 

शराब पीणे दियें आदतैं तिसदी घरेलू जिंदगी जो भी अस्तव्यस्त करी रक्खेह्या था। जाह्लू मैं तिस्सेयो समझाणा लगदा था ताँ सैह कई बरी रोणा लगी पोंदा था। इक बरी रोंदें-रोंदें तिन्नी मिंजो दस्सेया था कि जेकर सैह् नौकरी छड्डी नै घर गिया ताँ तिसदी घरेवाळिया अपणे दूंहीं बच्चेयाँ कन्नै अपणी जान देई देणी है। मैं तिसते तिसदी घरेलू जिंदगी दे बारे च कई बरी जाणने दी कोशिश कित्ती थी अपर सैह् कोई जवाब नीं दिंदा था। बस बच्चेयाँ साहीं रोणा लगी पोंदा था। मैं अनुमान लगायी सकदा था कि तिस बरगे शराबी दा घरेलू जीण कदेहा हुंगा। 

तिन्नी शराब सचमुच छड्डी दित्तिह्यो थी। मैं तिस ताँईं दिन भर दा इक टाइम-टेबल बणायी रक्खेह्या था। सैह् भ्यागा उठी नै तैयार होयी करी पीटी च शामिल होंदा। तिसते परंत ब्रेकफास्ट करी नै दफ्तर च आयी जाँदा कनै मेरा टेल, कुर्सी, अलमारी, साह्म्णे लगिह्यो इक कुर्सी कनै अपणी कुर्सिया जो कपड़े नै खरा की साफ करदा। दोपहर जो मैं तिस्सेयो साढ़े बारह बजे खाणा खाणे ताँईं भेजी दिंदा। खाणा खायी करी सैह् तरंत मिंजो व्ह्ली दफ्तर च आयी जाँदा।  जाह्लू दोपहर डेढ़-दो बजे दे करीब दफ्तर बंद होंदा ताँ सैह् अपणी बैरक च जाई करी चारपाइया पर आराम करदा था।  जाह्लू दूजे जुआन गेम परेड बास्ते फॉल-इन होणे ताँईं निकळदे ताँ सैह् दफ्तर च आयी करी अपणी कुर्सिया पर बैठी जाँदा था। ताह्लू तिकर मैं भी ऑफिस च आयी जाँदा था। संझा दफ्तर बंद होणे ते परंत सैह् नोंह्दा कनै मेरी सलाह दे मुताबिक रात दा खाणा सबेला ही खायी लैंदा कनै फिरी यूनिट दे सूचना एवं मनोरंजन कक्ष च चली जाँदा था।  जाह्लू राती दस बजे मनोरंजन कक्ष बंद होयी जाँदा, सैह् बैरक च आयी नै चुपचाप अपणिया चारपाइया पर सोयी जाँदा था। 

फौज च हप्ते च तिन्न बरी संझा जो नान-वेज बणदा है। तिस दिन पेमेंट पर शराब भी बंडी जाँदी है। बंडी जाणे वाळी शराब दी मात्रा आमतौर पर इक पेग यानि कि 60 मिलीलीटर ते ज्यादा नीं होंदी है। शराब खरीदणे वाळे हर जुआन दा नाँ बाकायदा इक रजिस्टर च दर्ज कित्ता जाँदा है। शराब तिस दिन दे ड्यूटी अफसर दी निगरानी च बंडी जाँदी है। अंत च रजिस्टर च शराब दी बंड दी इक समरी दर्ज कित्ती जाँदी है जिस च इस चीज दा जिक्र होंदा है कि कितणियाँ बोतलाँ यूनिट रन कैंटीन (यू आर सी) ते निकाळियाँ गइयाँ थिंयाँ, कितणेयाँ जुआनाँ शराब खरीदी, कितणे पैसे, कितणी भरियाँ कनै कितणियाँ खाली बोतलाँ यूनिट रन कैंटीन च वापस जमा कित्तियाँ गइयाँ। तिस समरी जो ड्यूटी अफसर साइन करदा है। अगले दिन सैह् रजिस्टर सूबेदार मेजर साहब ते होंदा होया कमांडिग अफसर तिकर जाँदा है।  

अक्सर यूनिट डयूटी अफसर जेसीओ रैंक दे होंदे थे। मिंजो पता होंदा था कि कुस खास दिन दा डयूटी अफसर कुण है फिर भी मैं, मचला बणी ने, शराब बंडोणे वाळे दिन अक्सर लोकनाथन ते जाणीबूझी करी पुछदा, "लोकनाथन, अज दा ड्यूटी अफसर कुण है? सैह् तरंत मिंजो तैह्ड़कणे डियूटी अफसर दा नाँ दसी दिंदा था। "जा, तिन्हाँ जो गला मैं तिन्हाँ जो याद करा दा।" मैं तिस्सेयो आर्डर दिंदा। लोकनाथन तरंत जाँदा कनै डयूटी अफसर जो सद्दी लियोंदा। मैं एह् सब्भ लोकनाथन दे सब्र दा टेस्ट लैणे ताँईं करदा था। मैं जाणीबूझी नै तिस जो शराब बंडोणे दिया जगहा च भेजदा था। मिंजो व्ह्ली डयूटी अफसर कन्नै डिस्कस करने ताँईं कोई न कोई मुद्दा जरूर होंदा था चाहे तिसदा ताल्लुक तिस कन्नै होये जाँ चाहे तिसदे अंडर जुआनाँ कन्नै। 

यूनिट दे जुआन लोकनाथन जो शराब बंडणे वाळी जगह पर ओंदा दिक्खदेयाँ ही जोरे नै चिलाणा लगी पोंदे थे, "आयी-जा लोकनाथन, इक पेग लगायी लैह् यार, हेड क्लर्क साहब जो कोई पता नीं लणा।" मैं लुक्की नै दिक्खदा था। सैह् शराबे पासैं दिक्खदा भी नीं था कनै उल्टे पैरां मिंजो व्ह्ली आयी नै बैठी जाँदा था। तिस बग्त तिस पर क्या गुजरदी होंगी तिसदा अंदाजा इक भुग्तभोगी ही लगायी सकदा है। 

दिन, हप्ते गुजरना लगे। सैह् सुधरदा गिया। मैं कनै यूनिट कमांडिंग अफसर दिन भर च घट ते घट दो-तिन्न बरी आमणे-साह्म्णे होयी नै मिलदे थे। तिन्हाँ कदी भी मिंजो ते लोकनाथन दे बारे च गल्लबात नीं कित्ती अपर तिन्हाँ जो तिस च आये सुधार दियाँ खबराँ, सूबेदार मेजर कनै दूजे साधनाँ दे जरिये बरोबर मिला दियाँ थियाँ। लोकनाथने कन्नै शराब पीणे वाले कनै कई दूजे हिरखी जेसीओ कनै जुआन तिस्सेयो सुधरदा दिक्खी नै खुश नीं थे। सेह् चाँह्दे थे कि लोकनाथन फिरी शराब पीये कनै यूनिट च हंगामा करै। तिन्हाँ ताँईं लोकनाथन महज इक तमाशे दा साधन था। तिसदी जिंदगी कनै परिवार कन्नै तिन्हाँ जो कोई हमदर्दी नीं थी। किछ गैरजिम्मेदार स्वभाव दे लोकां दिया तरफा ते तिसदे मने दी ताकत तोड़ने दियाँ लगातार कोशिशां होआ दियाँ थियाँ। मिंजो तिन्हाँ लोकां च कइयां जो दफ्तर च सद्दी करी वार्निंग भी देणा पई थी। 

(बाकी अगलिया कड़िया च….)

 

....................................................................


समाधियों के प्रदेश में (उनतालीसवीं कड़ी)


कुछ देर बाद लोकनाथन ने आकर मुझे सेल्यूट किया और बताया कि सूबेदार मेजर साहब ने उसे मुझे रिपोर्ट करने को कहा है। मैंने उसे एक अतिरिक्त कुर्सी मेरे टेबल के बायीं ओर लगाने के लिए कहा। कुर्सी लग जाने के बाद मैंने उसे उस पर बैठने के लिए कहा।  पहले तो वह कुर्सी पर बैठने से हिचकिचाया परंतु जब मैंने जोर देकर कहा तो वह चुपचाप बैठ गया।  मैंने कहना शुरू किया, "देखो लोकनाथन, आज से आप मेरे साथ रहोगे। आप मेरे इलावा किसी और के आदेश पर नहीं चलोगे। अगर कोई मुझ से सीनियर आपको कोई आदेश देता है तो मुझे बता कर फिर उसका पालन करोगे। आपको शायद इस बात का पता नहीं कि आप किस मुसीबत में आ फंसे हो। मैं चाहता हूँ कि आप फौज से पेंशन ले कर जाओ। बिना पेंशन के आप अपने परिवार को कैसे पालोगे? आप ताकतवर ज़रूर हो परंतु शराब के आगे हार चुके हो। मैं चाहता हूँ कि आप शराब की आदत से लड़ो और जीत हासिल करो। आप एक अच्छे खिलाड़ी हो। जीतना आपको अच्छी तरह से आता है। बस मुझे शराब से जीत कर दिखा दो। अगर आप इस लड़ाई में हार गये तो आपके बीबी और बच्चे भूखे रहेंगे। आपका परिवार बिखर जायेगा। मैंने रिस्क लेकर आपकी जिम्मेदारी ली है, नहीं तो आपको बिना पेंशन के घर जाना पड़ता।" मेरी यह बातें सुन कर लोकनाथन रो पड़ा था। मैं चुप हो गया और अपने काम में लग गया था। वह भी कुछ देर बाद शांत हो गया था। 

वह लोकनाथन जो शराब पीकर, नशे में चार-पांच जवानों के वश में नहीं आता था, विवश होकर चुपचाप मेरे सामने बैठा रहता था। मुझे उस पर तरस आता था। नशा आदमी को कहीं का भी नहीं छोड़ता है। उसके कुछ साथी जवान और खिलाड़ी उसे शराब पीने के लिए उकसाते थे। वे जाने-अनजाने में उसकी बरबादी की वज़ह बनते जा रहे थे। 

धीरे-धीरे मैंने उसे 'रनर' के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। मैं जो भी काम उसे देता वह उसे तुरंत करके मेरे पास आकर कुर्सी पर बैठ जाता। मुझे जब भी समय मिलता मैं उसका मनोबल बढ़ाता रहता। मैंने उसे अपनी कहानी सुनायी थी कि कैसे मैंने 35-36 बर्ष के बाद बीड़ी-सिगरेट पीने की लत को छोड़ा था। समय बीतने के साथ मुझे उसमें कई सुधार नजर आने लगे थे। वह खुश रहने लगा था। 

लोकनाथन जवानों की बैरक में रहता था और मैं यूनिट से चार किलोमीटर दूर स्थित एक आवासीय परिसर में अपने परिवार के साथ। मैंने शराब से दूर रहने वाले दो विश्वसनीय जवानों को उस पर नजर रखने के लिए कह रखा था। वे जवान मुझे सुबह की पीटी (फिजिकल ट्रेनिंग) के दौरान लोकनाथन की पिछली रात की गतिविधियों की रिपोर्ट देते थे। जिस दिन मैं पीटी में नहीं आता था उस दिन मैं उन्हें बारी-बारी बुला कर ऑफिस के बाहर मिल लेता था। 

जैसे कि मैंने पहले भी जिक्र किया है लोकनाथन हॉकी और फुटबॉल का एक बढ़िया खिलाड़ी था। वह इन दोनों खेलों में अपनी यूनिट का प्रतिनिधित्व करता था। थलसेना की यूनिटों में खिलाड़ियों को विशेष महत्व दिया जाता है। उन्हें विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी करने के लिए अतिरिक्त खुराक के तौर पर दूध इत्यादि खरीदने के लिए यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर रेजिमेंटल फंड से पैसा खर्चने की मंजूरी अक्सर देते रहते हैं। यूनिट के खिलाड़ियों और एथलीटों को यूनिट के किनारे पर स्थित एक अलग-थलग बैरक में रखा जाता है, जहाँ पर वे एक स्वछंद जीवन जीते हैं। उन पर कोई विशेष रोक-टोक नहीं होती है। वे जहाँ चाहें दौड़ने के बहाने घूम-फिर सकते हैं।  अपना प्रदर्शन बेहतर करने के लिए खिलाड़ी अपनी जेब से भी खुल कर खर्च करते हैं। उन में से कुछ तो कई प्रकार के नशे भी करना शुरू कर देते हैं। लंबे समय तक उस स्वछंद वातावरण में रहते हुए उनमें से चंद-एक लोग नशेड़ी बन जाते हैं। लोकनाथन उन्हीं में से एक था। वह एक अल्कोहलिक  था। 

शराब पीने की आदत ने उसके परिवारिक जीवन को भी अस्तव्यस्त कर रखा था। जब मैं उसे समझाने लगता था तो कई बार रोने लग पड़ता था। एक बार रोते-रोते उसने मुझ से कहा था कि अगर वह नौकरी छोड़ कर घर गया तो उसकी पत्नी अपने दोनों बच्चों के साथ अपना जीवन समाप्त कर लेगी। मैंने उससे उसके परिवारिक जीवन के बारे में कई बार विस्तार से जानने का प्रयास किया था पर वह कोई उत्तर नहीं देता था। बस बच्चों की तरह रोने लग पड़ता था। मैं अनुमान लगा सकता था कि उस तरह के शराबी का परिवारिक जीवन कैसे होगा। 

उसने शराब को सचमुच छोड़ दिया था। मैंने उसके लिए एक दिनचर्या बना रखी थी। वह सुबह उठ कर तैयार होकर पीटी में सम्मिलित होता। उसके बाद ब्रेकफास्ट करके दफ्तर में आ जाता और मेरा टेल, कुर्सी, अलमारी, सामने लगी एक कुर्सी और अपनी कुर्सी को कपड़े से अच्छी तरह से साफ करता। दोपहर को मैं उसे साढ़े बारह बजे खाना खाने के लिए भेज देता। खाना खाकर वह तुरंत मेरे पास दफ्तर में आ जाता। जब दोपहर डेढ़-दो बजे के करीब दफ्तर बंद होता तो वह अपनी बैरक में जाकर चारपाई पर आराम करता था। जब अन्य जवान गेम परेड के लिए फॉल-इन होने के लिए निकलते तो वह दफ्तर में आकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता था। तब तक मैं भी ऑफिस में आ जाता था। शाम को दफ्तर बंद होने के बाद वह नहाता और मेरी सलाह के अनुसार रात का खाना जल्दी खा लेता और फिर यूनिट के सूचना एवं मनोरंजन कक्ष में चला जाता था। जब रात को दस बजे मनोरंजन कक्ष बंद हो जाता, वह बैरक में आकर चुपचाप अपनी चारपाई पर सो जाता था। 

सेना में सप्ताह में तीन बार शाम को नान-वेज बनता है। उस दिन पेमेंट पर शराब भी वितरित की जाती है। बांटी जाने वाली शराब की मात्रा आमतौर पर एक पेग अर्थात 60 मिलीलीटर से अधिक नहीं होती है। शराब खरीदने वाले हर जवान का नाम बाकायदा एक रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। शराब का वितरण उस दिन के ड्यूटी अफसर की निगरानी में होता है। अंत मे रजिस्टर में शराब वितरण की एक समरी दर्ज की जाती है जिसमें इस बात का उल्लेख होता है कि कितनी बोतलें यूनिट रन कैंटीन (यू आर सी) से निकाली गयी थीं, कितने जवानों ने शराब खरीदी, कितने पैसे, कितनी भरी और कितनी खाली बोतलें यूनिट रन कैंटीन में वापस जमा की गयीं। उस समरी को ड्यूटी अफसर हस्ताक्षरित करता है। अगले दिन वह रजिस्टर सूबेदार मेजर साहब से होता हुआ कमांडिग अफसर तक जाता है।  

आमतौर पर यूनिट ड्यूटी अफसर जेसीओ रैंक के होते थे। मुझे पता होता था कि किसी विशेष दिन का ड्यूटी अफसर कौन है फिर भी मैं मदिरा वितरण वाले दिन अक्सर लोकनाथन से जानबूझ कर अनजान बनकर पूछता, "लोकनाथन, आज के ड्यूटी अफसर कौन हैं? वह तुरंत मुझे उस दिन के ड्यूटी अफसर का नाम बता दिया करता था। "जाओ उनसे कहो मैं उन्हें याद कर रहा हूं।" मैं उसे आदेश देता। लोकनाथन तुरंत जाता और ड्यूटी अफसर को बुला लाता। मैं यह सब लोकनाथन के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए करता था। मैं जानबूझ कर उसे शराब वितरण की जगह पर भेजता था। मेरे पास ड्यूटी अफसर से डिस्कस करने के लिए कोई न कोई मुद्दा जरूर होता था चाहे उसका ताल्लुक उससे हो या चाहे उसके अधीन जवानों से। 

यूनिट के जवान लोकनाथन को शराब बंटने वाली जगह पर आता देख चिल्ला कर कहते, "आ जाओ लोकनाथन, एक पेग लगा लो यार, हेड क्लर्क साहब को कोई पता नहीं चलेगा।" मैं छुप कर देखता था। वह शराब की तरफ देखता तक नहीं था और उल्टे पांव मेरे पास आकर बैठ जाता था। उस समय उस पर क्या गुजरती होगी उसका अंदाजा एक भुग्तभोगी ही लगा सकता है। 

दिन, सप्ताह गुजरने लगे। वह सुधरता चला गया। मैं और यूनिट कमांडिंग अफसर दिन भर में कम से कम दो-तीन बार आमने-सामने होकर मिलते थे। उन्होंने कभी भी मुझ से लोकनाथन के बारे में बातचीत नहीं की परंतु उन्हें उसमें आये सुधार की खबरें, सूबेदार मेजर और अन्य स्रोतों के माध्यम से बराबर मिल रहीं थीं। लोकनाथन के शराबी साथी और कई अन्य ईर्ष्यालु जेसीओ व जवान उसे सुधरता देखकर खुश नहीं थे। वे चाहते थे कि लोकनाथन फिर से शराब पीये और यूनिट में हंगामा करे। उनके लिए लोकनाथन मात्र एक मनोरंजन का साधन था। उसके जीवन और परिवार से उन्हें कोई सहानुभूति नहीं थी। कुछ गैरजिम्मेदाराना प्रकृति के लोगों की ओर से उसका मनोबल तोड़ने के प्रयास निरंतर हो रहे थे। मुझे उन लोगों में से कइयों को दफ्तर में बुला कर चेतावनी भी देनी पड़ी थी। 

(शेष अगली कड़ी में…..)


हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा से संबन्ध रखने वाले भगत राम मंडोत्रा एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उनकी
  प्रकाशित पुस्तकें हैं 
     
 
जुड़दे पलरिह्ड़ू खोळूचिह्ड़ू मिह्ड़ूपरमवीर गाथा..फुल्ल खटनाळुये देमैं डोळदा रिहासूरमेयाँ च सूरमे और
हिमाचल के शूरवीर योद्धा।
यदाकदा 
'फेस बुकपर 'ज़रा सुनिए तोकरके कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं।