पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Saturday, November 1, 2025

अनंत आलोक दी क्हाणी

 

 

अज पेश है अनन्त आलोक दी इक कैणी मतलब क्हाणी  

जिज्जा बेइंदा न बैठदा 

यदि समझने में दिक्कत आए तो अंत में हिंदी में कहानी का परिचय आप पढ़ सकते हैं। 

रेखांकन शशि भूषण बडूनी का है। 

                                

गुरजी री गाड़ी दे थिए बे हम चार आदमी | ना रे ना सिजे गुरजी न आथि इ | इ तो म्हारे स्कूलो दे पढ़ावणी आले गुरजी थिए | आहो बे, जेतणे ब माश्टर हुओं स्कुलो दे पड़ावणी आले सी सोब गुरजी माने जाओं गाँव दे |  सोबी ख गुरजी बोलों | हेम्बे, एब सोम्झे बे तुम ! स्कूलो रे माश्टर | सिजे गुरूजी तो भ्रागे खाए चेई साले ...लुच्चे-लफंगे, तिने तो गुरु रा नाव ब बदनाम कोरी रो राख दिया | ओरका, पोईली तो साले टेलीविजनो पांद आओ रे भाषण जाड़ों थे | एब लागा पोता जोब एक-एक कोरी रो सामणे आई करतूतो, एब पोड़ा राम जोब्ब भितरे खोटे, हाशी बे | राम पोड़ा | बेशक सारे गुरु जी सी बे एकशे न होंदे पोर इन्ने साले बश्वास खो पाया एब तो डोर लागों कोसी खरेसड़े गुरु जी बोलणी दा ब ! राम राम ! का जमाना आ गुआ ! जिउणा मुश्किल कोर पाया !

गाड़ी दा एक हाँ इ थिया बे रो होरो म्हारी साथी थिए नोयणी रे एक साब, साब एशे तो सी ब गाँव रे इ ओसदिये, पोर आजकली नोयणी नोग्रो दे रों | तेथी आपणे ड्यूटी कोरों, रो तेथी हुंदे रोय रों | मजाकिया पोर भोते, थुड़ी-थुड़ी बातो री एशि बात बणाओं जू  होसी होसी रो बाखी पुलटिओं | छोटे-मोटे कोदो रे रो मस्त आदमी | भई साब तो भोत देखे पोर तेशे न देखिये ! भोत एशे ओसदिये, मतलब का बोली सी अंग्रेजी दु जॉली पर्सन | मुओं दी मूछ एक न राखदे, चिकणे बोणी रो रोंदे | स्मार्ट तो पोयली ओसदिये गोयली जवान !  भोत कोम उम्री म साब बोण गोए | एशि किश्मत सोबी री न उंडी बई | मेणती तो ओसी दिए, जोबे दे आय ब रोये तोबे दे लोको पोता लाग गोवा जे एशा ब साब उओं | पोयली आदे आदमी  इ ब पोता न थिए जे एशा कुई डपाटमेंट ब उओं जिले दा | मितोर एशे जू यारो रे यार | बाकी का बोली बी एब !

म्हारी साथी रेके आदमी थिए सिंघा जी, इब बई भ्होत बोडिया आदमी ओसदिये | पोड़े-लिक्खे सोब्बी दे जादा, डाक्टर ! पढ़ाई डाक्टर ... सिज्जा न सुए लाणी आला न थिए ! डॉक्टरेट री पढ़ाई कोरणी आला डाक्टर ! पोर जेरा ब मान न आपणी पड़ाई रा | कुई गमंड न ! बिलकुल सिंपल आदमी | देखणी तो जाणियो पातले शे रो चुरकदे बेज्जाई | हांडों पोर सरक... सरक.. सरक .. , बई जे मात्मा गांदी ब उओं था न आज तो तेसी ब पाछू छाड़दों थे | जे कोईं पोयदल ब चालणु पोड़ो थो तो हामो दे एक किलो मीटर आगे रों | तिसरा आदमी थिया तिसरे कनारे रा | शास्त्री, नांव पोता न का तेसरू | इशु ब नाव दु का राखो, काम से मोतलब ओणा चेई | बंदा इ ब भोत बोडिया ओसदिया ! बात एशि तो मुओ मेंदी उंडी न छाड़दे रो जे बोल पाई तो लाख टक्के री एक्के | छोटे कोद-काठी रा मेणती रो गंबीर माणु | पांदे दा कोवि, लिखदा रों कुछ न कुछ | बई चोथा आदमी आं तो आपणी तो का लाणी बी बात, एशिए बे आलमाल |

नोकरी लागरी, दिन भोरी ड्यूटी कोरुं रो ब्याल्के रा जु टेम बोचों तेदी म आपणे लिखणी पोडणी रा काम | छुट्टी उयों तो दिन बोरी बेठा रों आपणी घुरी दा | एक द्कान ओसदी घोरे तिओं द्कानी पाछ एक घुरी शि ओस दी बे | तिंदी भीतरी कताबी री ल्मारी रो कंप्यूटर रो पोता न का-का | एसरे तो एके इ काम चाये घोरे कुई पावणा-दावणा ब आई रों | एसरा जी न बोल्दा भेइंडे निकलणी ख | बस एदी  में इ खुश ओसदिया, लिखदा रों रो भेद्जा रों पत्रिका, अखबार रो पोता न का का, दुनिया भोरी रु कबाड़ राखों कोठू कोरी रो | एब का लाणी बात शुणदा तो आथि न कोसरी | अम्मा थी तो बोलों थी जे म्हारे एक तो बेशक ओसदिया पोर काम सारे कोरों | कामो री कुई कणाच न एब बेन मानदा | कोविता रे पाछे पोता न कोथ-कोथ घुम गुआ मुल्को दा | नोखे शोंख एशे भईया जू का लाणी बात !

पांचवें म्हारे गुरजी, बई मानगे बात | हामो मेंज सोबी दे बजुर्ग पोर एकदम नोजवान री साथी नोजवान | एक से बढ़ के एक शटराले मारों, जिंदादिल आमदी | हामो तो पोता न बई पोर लोको गेदा शुण राखा जे घोरे भोत काम कोरों | तकड़े जिमीदार रो एशि का चीज जू घोरो दी आथि न | होस्णी आली कविता तो खूब लिखो ब रो शणाओ ब बोड़े मोज़े से |

कुल मलाई रो एशि ओसदी बात जे सारे कोविता रे आदमी थिए | जाओं थे ब्याओ में, एक दोस्त ओस दिया सी ब कोवि तेसरा ब्या ओसदिया | एक कोवि रे ब्याओ ख न डोवे तोब कोथ जाणो बी ! तोब चाल रोये सारे | हास्सी मज़ाक ठाठे लांदे ! एषा तो आजकली कोस्सी ओसदिया टेम ! इए बे कोईं ब्या कारजों में जांदे जे थोड़ी भोत हास्सी मज़ाक कोरपा | “आज बचारा दुर्गु ब शईद ओजाणा बी |” गुरजी ए म्हारी बातो दा तोड़का लाया, रो सोबी ए ताड़ी मारी रो  हासी रे फ्वारे छाड़े |देइं एजा ध्यान थोई जे हामे पोंयची केथे रोये | आं तो आय ब आगली बेरिया रोया इथे उदा |” साब बोलणी लागा रो सोब चुप उई गोए | “रे तुमे चिंता न कोरो साब जी आं तुओं राचणी न देंदा, तुमे राम से बेठे रो |” गुरजी मोड़ काटदे शटेरिंग गमाया रो यू टर्न लोय रो नोए रोड़ो पांद गाड़ी दबाई दी | “लो जी इ लागा तारा मजुटली रा रोड़ | बस तुमे थुड़ी देर आपणी खुट्टी एल शेप में राखो, कुई पन्दरा मिंट में हाम पोंच ब जाणे |” बोलदे-बोलदे गुरजी ए देशबोर्डो पांदे दा मोबाइल चोका रो टेम ब देखा | “ठीक पांच बाजे हाम ब्याओ आले रे बेड़े दे ओंणे, एबी चार बाजी रो चवाली मिंट ओये | ”ओह ! आमे तो बोड़े शिग्गे पौऊँचे |” बाँव तानी रो डॉ साब बोलणी लागे | सोब एकी रेके री काणी देखि रो मुंडो दे हाथ फेरी रो उंडे पुंडे लागे घिसरणी | बेठे-बेठे सोब जोणे खोड़ी ब रोये थे एब | सोब आपणे-आपणे पाकिस्तान उंडे पुंडे घस्राई रो इनो ख राम लागे देणी | बेठी बेठी रो पिड़ो  लाग रोई थी | होस्दे-खेल्दे रोस्ता कोब कोट गोआ पोता इ न लागिये | गुरजिए गाड़ी बेक कोरो रो लाई दी | ड्रेवर साइड रा काला बोटण उबेख खेंचा रो सारे शीशे बोंद ओये गोए गाड़ी रे |

एक-एक कोरी रो सोब जोणे बाइंडे निकली रो उंडे-पुंडे ख झाड़ो पाछी पीठ फेरी रो खोड़े ओई गोए | उबके दी वाज आई

“लाड़े दा मामा आया रे नंधार

आया  रे नंधार ...

निले घोड़े दे शवार ...|”

साब मेरी काणी देखि रो बोलणी लागे “ये गीत मामा ...” हाँ मोये बीच में इ बात पाकड़ी | तुम बिलकुल ठीक पछाण कोरी साब, इ मामे रा स्वागत लागरा उणी | ठीक टेम रे हाम ब आए रो इनरे मलोखी ब आए बेड़े म ! मलोखी मतलब मामे इ ओ बे सी संस्कार गीत जिनो लिखणी री बात कोरों थे तुम साब जी | आज इनो सोब गीतो हाम रिकॉर्ड कोरोंगे रो तोब लिखोंगे | एक पंथ रो दू काज | ब्याओ रा ब्या रो काम रा काम | “बिलकुल ठीक बोलो तुयें |” मेरी काणी देखि रो डॉ साब बोलणी लागे | शास्त्री ब मूंड लकाणी लागा | सोबी ए आपणी आपणी बेलटी एशि कोशी जेशे एबी जाणो इन रे परेट कोरनी कोईं | साब रो डॉ आपणी कंवगी काड़ी रो मुंडो लागी पजोड़णी | मेरी रो शास्त्री री मुंडो तो पोयली क्रिकेटो रे मदान, हामो तो जरूरत आथी न कान्वगी री रो ना हम राखदे फाग्टो दी कान्वगी | हाम तो टोपी लाई रो राखों बई साची शि बात | न शीशा देखणा न बाल बणाणे | चलो बई चलो एब भोत उई गुए नोखरे | किये बोलो तुमे इ देख रोणे ब्याओ दे  कोसरे |” गुरजिए साब रो डॉ री पीठी दा स्यारा देई रो ऊबे ख दकेये | पाछे-पाछे दे आं रो शास्त्री ब चाल पोड़े | दो चार मिंट में हाम ब्याओ आले रे बेड़े दे थिए | म्हारे सामणे पारली काणी म्लोखी ! आगे-आगे बूढ़े–खाड़े तिनोरे पाछे नोजवान रो छूटू सोबी दी पाछे बोइरो, मुंडो पांद चुंटी लाई रो ओई री थी खोड़ी |

बोइरे मुओं दा चुंटी रा पाला थाम राख था जेशी ब्लो इनो कोयदी षडान लागरी उओं | ब्याव आले रे ग पांच–सात बोइरो मुंडो ग चुंटी और मुओं रे हाथ लायरो लांबी लेर देई रो लागरी थी ब्याव री गितो गाणी | एक लांबी शी बोइयर थी तिनरी ठोकणी, जिओं ख सी सोब बुआ बोलों थी | हाम बेठिये नाथी बस तिनरी गितो लागे शुणणी | हाम एक आदमी पुछा तो तिणीये बताओ जे इनो गितो री सार तो इए जाणो बे बुआ | इ बुआ भोत दुरके दी आई री |  “आछा जी, तोबे तो इ म्हारे बेगे काम की ओसो |” साब मेरी काणी देखियो लागे बुलणी | मोये बोलो बात करूँ | “ना ना गुरु जी एबी न, एबी इनो आपणे टोल दियो निपटाणे दाणिक |” साबे हाथ हिलाया | “देइं शुणो तो तुयें ... चुपे रो उदे |” डॉ बीचो दा बोला | बुआ ए लांबी लेर मारी रो पाछे दी रेकी बोइरो ब लागी गाणी “

“लो जी लो चाय पकोड़े खाओ, दुर्गु जेरा ख बीजी ओस दिया, एबी आला तुमो मिलणी | तुम राम से बेठो |” दो आदमी आए रो तिने चाय रे ग्लास रो नमकीन-बिस्कुट, पकोड़े री प्लेटो पकड़ाई | “हाशी बे भूख ब लाग री एब तो, खांदे ब रो, रो शुण दे ब रो |” गुरुजिये बोलो रो फोटाफोट प्लेट खाली कोर दी | म्लुखी रा स्वागत उणी लागरा था | टिक्के री रस्म, जेतणे मोर्द बूढ़े-नोजवान रो छूटू सोबी रा टिक्का | टिक्के में चोंकी चड़ाय रो टिक्का लगाओं, चोंकी द्वारो पांद रखी जाओं तोब मुओं दा लाड्डू देओं रो एक सूट | जेसरा टिक्का उओं सी थाली दे दश–बीष रुपैये राखला रो उतर जाला चोंकी पांदे दा | जेतणी बोइरी छूटी उल्ली म्लुखणी में, तिनरे सोबी रे टिक्के लाले रो माला पाले टाटी दी, लाड्डू ख्लाय रो मू मिठ्ठा कोरले |

शास्त्री ए बीच में छेड़ कोरी “हारे गुरु जी म्हारा ब कोरले इ टिक्का ? म्हारे ब खाणा था एक –एक लाड्डू |” सोब होसणी लागे, “कोरले तो कोरले बे ठोर जाओ जेरा” बुआ ए बात ताड़ पाई | टिक्के दा बाद मिलणा-चालणा उया रो म्लुखी री सेवा पाणी | हामो मोका मिल गोया बुआ री साथी बात कोरणी रा | हाम सोब बुआ रे दौरे  बेठ गुए रो लागे पुछणी जे कुण जे कुण संस्कार गीत हुए ब्याव रे एब्बी तक ? बुआ ए बोलो “तारे आणे दे पोयली कार संस्कार ओई गुआ क्योंकि सी ब्याव दा तीन दिनों पोयली ओ जाओं | मतलब कार रख देओं तेदरु गीत शणा देऊँ आं तुमो ख | बाकी तो तारे सामणे गाओंगे हाम, शुण दे रोइओ | शुणो

“लिखे-लिखे चिट्ठी बाना बानी जी नो भेजे...

आवना कि ना बानी तेरी राह में

निवें-निवें आवना, जरुरी ए”

अहा ! बुआ जी थारी जीबी पान्द तो साक्षात सुरसती बैठी ओसदी धनो तुमो ख | “ए तो थियु नोसु यानी दुल्हे री काणी दु रो लाड़ी री काणी दु केशो गावों बुआ जी” मुए बात आगे बड़ाई तो | “हाँ बेटा लाड़ी आले गाले... “शुणो बे

“लिखे-लिखे चिट्ठी बानी बन्ने जी नो भेजे

अइयो जी अइयो बाना मेरी राह में

निवें-निवें अइयो जरुरी ए |”

भई क़माल ओसदिये म्हारे संस्कार रो धनो तुम बुआ जी | तुम तो रस गुल देयों कानो दा आहा | बस तेतणीय ख एक बोइयर आई रो बुआ बलाई रो लो गुई | तोब हम रो गये थैठे !

हम ब उट्ठे तो घोरो पाछी दी पुडूये रो आवाज आई, तो हम ब तिओं काणी ख ओई हुए | खूब पुडुआ लाग्रा था ! बोइरे नाची नाची रो बेड़ा खुद दिया था | हम शुणणि लागे !

“जिज्जा भेंइदा न बैठदा कुर्शी बिना ...

जिज्जा भेंइदा न बैठदा कुर्शी बिना ...

जेशु केले रु ठूण्ड...

तेशो मेरे जिज्जे रु मूड...

जिज्जा भेंइदा न बैठदा कुर्शी बिना ...

जिज्जा भेंइदा न बैठदा कुर्शी बिना ...”

 होस्सी होस्सी रो बाक्खी दी पिड़ो लाग गुई | शास्त्री रो साब तो होस्सों बोइरी रा पुडुआ देखी देखी रो ...| हम उन्डू-पुंडू लागे देखणी “म्हारा एक बन्दा कोम ओसदिया कोथ डेया ? मोये बुल्लू तो सोब लागे देखणी ..” “ओहो साची बे डाक्टर कोथ उटा ? एबे का कोरी ?”  साब लागे बोलणी !


कहानी के बार में 

आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई यह कहानी हिमाचल के संस्कार गीतों के साथ साथ सिरमौरी की विवाह परंपरा की कुछ रस्मों की ओर संकेत करती है। इस सिलसिले की यह कहानी दो तीन खंडों में आएगी। पहले खंड में जिला सिरमौर में विवाह संस्कार गीतों को पहले दिन से यानी जिस दिन कार रखी जाती है, जिसे चिट्ठी भेजना भेजना भी कहा जाता है, वहाँ से विवाह संस्कार गीत देखने को मिलते हैं।

कहानी में कुछ रस्मों तक के गीत गाने के बाद, विवाह संस्कार पर किया जाने वाला लोकनृत्य (पुड़वा) दिखाया गया है, उसी के तहत कहानी का शीर्षक गीत है जिज्जा भेइंदा न बेठदा कुर्शी बिना।

कहानी की शुरुआत जिला भाषा अधिकारी के साथ इन विवाह संस्कार गीतों के डोकुमेंटशन के एक सफर पर निकलने से होती है। और विवाह समारोह स्थल पर इस यात्रा के साथ विवाह के गीत एक बुजुर्ग महिला के द्वारा प्रेक्टिकल रूप से गाए जाते हुये रेकॉर्ड भी किए जाते हैं और कुछ जिज्ञासाएँ भी शांत की जाती हैं उस बुजुर्ग महिला/गायिका से पूछ कर।    

अनंत आलोक

कवि, कहानीकार और अनुवादक।

तलाश (काव्य संग्रह), यादो रे दिवे (हाइकु अनुवाद) प्रकाशित,

मेरा शक चाँद पर साहिब (हिंदी ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशनाधीन।

पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो दूरदर्शन पर सक्रिय,

पॉकेट ऍफ़ एम् पर ऑडियो उपन्यास 'मिस 420' उपलब्ध।

सिरमौर कला संगम, हिमोत्कर्ष द्वारा सम्मानित।

No comments:

Post a Comment