देह्-देह्यां बंकरां च दित्ता भगत राम मंडोत्रा नै इंटरव्यू |
जियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा इकह्उआं मणका।
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समाधियाँ दे परदेस च
लुम्पो इक उच्चे पहाड़ दी ढळान पर पोंदा है। एह् ढळान भारत दे पासैं इक डुग्घे मुस्कल नाळे च जाई नै मुकदी है। तित्थू मेरी नोंईं यूनिट दियाँ दो लड़ाकू बैटरियाँ थियाँ। मोर्चेयाँ दे अन्दर दूंहीं बैटरियाँ दियाँ पहाड़ां पर इस्तेमाल होणे वाळियाँ तोपाँ दे दहाने हरदम चीन दे पासैं रैंह्दे थे। पहाड़ी तोपाँ आम तोपाँ ते लोह्कियाँ होंदियाँ हन्न। तिस बग्त तिन्हाँ जो खोली करी, कई हिस्सेयाँ च बंडी नै, खच्चराँ पर लद्दी करी, पहाड़ां पर इक जगह ते दूजी जगह तिकर लई जाँदे थे। हुण ताँ हेलीकॉप्टर दे जरिए चुक्की करी हलकियाँ तोपाँ जो कुत्थी भी लई जाई सकदे हन्न। देहा करना तिस बग्त आम गल्ल नीं थी।
मैं लुम्पो पोंह्चदे ही सिद्धा यूनिट दे हेडकुआटर च गिया। तित्थू सारा ऑफिस स्टाफ मिंजो नै खुली करी मिल्लेया कनै तिन्हाँ चाह् पियाई करी मेरा सुआगत कित्ता। फौज च सुआगत च चाह् पियाणे दा रुआज आम है। तिस इलाके च होर किछ मिलदा भी ताँ नीं था। मेरी तैनाती यूनिट दे हेडकुआटर च थी इस ताँईं रहणे, खाणे-पीणे कनै दूजे बंदोबस्त दियाँ जरूरताँ ताँईं मिंजो, होरनाँ साँह्ईं, हेडकुआटर बैटरी च रक्खेया गिह्या था।
ऑफिस दे साह्म्णे इक पतळा जेहा नाळा था। नाळे दे पार मेरी बैटरी दा लंगर (मेस) था। असाँ जो ऑफिस ते मेस तिकर उप्पर ते घुमी करी जाणा पोंदा था जित्थु तिस छोटे जेहे नाळे जो पार करने ताँईं बाँसाँ दी पुळिया जेही बणिह्यो थी। ओणे जाणे ताँईं पतळियां पगडंडियाँ बणिह्याँ थियाँ। तिन्हाँ पगडंडियाँ पर बरसात च पाणी कनै सर्दियाँ च बर्फ पोणे पर फिसलण ते बचणे ताँईं जैम दे डिब्बे इक सार खड़े दबाह्यो थे। जिंञा असाँ दे पासैं पत्थराँ दे चणाट होंदे थे बिलकुल तदेहे ही। तित्थू तकरीबन इक किलो वजन दे गोळ जैम दे डिब्बेयाँ दे दो-अढ़ाई फुट चौड़े चणाट थे। तिन्हाँ च ज्यादातर डिब्बे जैम समेत ही दबाह्यो लगदे थे।
जिंञा कि मैं पहलैं दस्सेह्या, मेरी नोंईं यूनिट प्योर अहीर यूनिट थी। अहीर जैम दा इस्तेमाल घट ही करदे थे। तिसदे पिच्छैं तित्थू फैलेह्या इक वहम था। तित्थू कुह्न्कीं इक अफवाह फैलाई दित्तिह्यो थी कि जैम खाणे वाळेयाँ जाह्लू गर्म पधरे इलाकेयाँ च जाणा है ताँ तिन्हाँ दे बदन च बहोत सारा दर्द देणे वाळे फोड़े-फुंसियाँ निकळी ओणे हन्न। इस ताँईं ब्रेक फास्ट च बहोत घट जुआन जैम दा इस्तेमाल करदे थे। जेह्ड़े जैम दा सेवन करदे थे सैह् सिर्फ मिक्स्ड जैम जाँ पाइनएप्पल जैम दा इस्तेमाल ही करदे थे।
अगले दिन जाह्लू में ब्रेकफास्ट करना गिया ताँ मेस कमाँडर नै मिंजो ते पुच्छेया कि मैं नमकीन पूरियाँ कन्नै जैम लेणा पसंद करह्गा कि नीं। मेरा उत्तर हाँ च सुणी करी तिन्नी फिरी मिंजो ते पुच्छेया, "कुण देहा जैम?" "फिलहाल जेह्ड़ा है सैही देई दिया, उइंञा मिंजो मैंगो जैम खरा लगदा है" मेरा जवाब था। नमकीन पूरियाँ कुरकुरियां कनै सुआदिष्ट थियाँ। मैं पाइन एप्पल जैम कन्नै ब्रेकफास्ट दा मजा लिया।
तैह्ड़ी संझा तिकर सारी यूनिट च एह् गल्ल फैली गई कि यूनिट हैडकुआटर च इक डोगरा हौळदार आह्या जेह्ड़ा जैम खाँदा है। तिन्हाँ जो मेरा जैम खाणा किछ नोखा जेहा लग्गा-दा था। दरअसल होया एह् था कि हैडकुआटर बैटरी दे मेस कमाँडर नै मिंजो ते जैम दे बारे च मेरी चॉइस पुच्छी करी दूजे मेसाँ ते मैंगो जैम दे किछ डिब्बे मिंजो ताँईं मंगबाई लैह्यो थे।
तैह्ड़ी तकरीबन साढ़े दस बजे अफसर मेस हवलदार
मिंजो कन्नै मिलणा आया। गल्लाँ ही गल्लाँ च तिन्नी मिंजो दस्सेया कि पिछलिया राती डिनर दे
टैमे अफसर मेस च मेरे बारे च चर्चा होआ दी थी कनै टूआईसी साहब दूज्जेयाँ अफसराँ दे
साह्म्णे मेरी तारीफाँ दे पुळ बन्हाँ दे थे।
तैह्ड़ी संझा जो कमाँडिंग अफसर होराँ भी छुट्टी कट्टी नै लुम्पो च आई गैह्यो थे। अगले दिन भ्यागा तिन्हाँ कन्नै इंटरव्यू होणे वाळा था। फौज च, यूनिट च पोस्टिंग, छुट्टी, टेम्पररी ड्यूटी बगैरा ते ओणे कनै जाणे दे टैमें हर कुसी दा कमाँडिंग अफसर इंटरव्यू करदे हन्न। मैं भी इंटरव्यू ताँईं कमाँडिंग अफसर दे बंकर दे बाहर लैणी च खड़ोतेह्या था।
कमाँडिंग अफसर बाहर आए कनै लैणी च खड़ोतेह्यो जुआन बारी-बारी अपणा आर्मी नंबर, रैंक, नाँ कनै कुत्थू ते आया जाँ कुत्थू जो चल्लेह्या उंच्ची उआज च दसणा लग्गे। कमाँडिंग अफसर जुआंनाँ ते सुआल भी पुच्छा दे थे कनै तिन्हाँ जो हिदायताँ भी देया दे थे। जाह्लू मेरा नंबर आया ताँ मैं भी उच्ची कनै चुस्त उआज च दस्सेया, "नंबर 1266835पी हवलदार भगत राम, हेडक्वार्टरज …. आर्टिलरी ब्रिगेड से आया, श्रीमान्"। तिन्हाँ मिंजो पर इक डुग्घी नजर दित्ती कनै यूनिट दे एडजुटेंट कन्नै बोले, "इन से मैं ऑफिस में बात करूंगा (इन्हां कन्नै मैं ऑफिस च गल्ल करनी है)। "
मिंजो कमाँडिंग अफसर दे बंकर च बणेह्यो ऑफिस च कायदे नै मार्च कित्ता गिया। जिंञा ही मैं तिन्हाँ जो सलूट कित्ता सैह् तरंत बोल्ले, "तो तुम हो वोह हवलदार भगत राम जो मेरी यूनिट में नहीं आना चाहता था (ताँ तू है हौळदार भगत राम जेह्ड़ा मेरी यूनिट च नीं ओणा चाँहदा था?")
"सर, मुझे जैसे ही ब्रिगेड हेडक्वार्टर ने भेजा… मैं आ गया (सर, मिंजो जिंञा ही ब्रिगेड हेडक्वार्टरज् ने भेज्या… मैं आई गिया।")
"तुम्हें पता है मेरी यूनिट आर्टिलरी की बेहतरीन यूनिटों में से एक है और तुमने आते-आते छे महीने लगा दिए। मैं तुम से नाराज था पर टूआईसी साहब की सिफारिश पर माफ कर रहा हूँ (तिज्जो पता है मेरी यूनिट आर्टिलरी दी बेहतरीन यूनिटां च इक है कनै तैं ओंदे-ओंदे छे महीने लगाइते। मैं तिज्जो ते नाराज था अपर टूआईसी साहब दिया सिफारिशा पर तिज्जो माफ करा दा।")
मैं बाहर उजाळे ते बंकर दे अंदर आया था। बंकर दे अंदर मिंजो किछ भी साफ नीं सुज्झा दा था। एत्थू तिकर कि मैं अपणे कर्नल रैंक दे सिख कमाँडिंग अफसर दे चेहरे दे हाव-भाव भी पढ़ी नीं पाह्दा था कि तिन्हाँ दा गुस्सा असली था या बणावटी।
मैं हाखीं गड़ाई करी दिक्खेया, उप-कमाण अफसर साहब तिस बड़े जेहे बंकर च, कमाण अफसर दे पिच्छैं दैहणे पासैं, लगी बुखारी दे साह्म्णे बैठेह्यो अपणे हत्थ सेका दे थे कनै मेरे पासैं दिक्खी नै हौलैं-हौलैं मुस्करा दे थे।
कमाण अफसर होराँ मिंजो ते पुच्छेया था, "ब्रिगेड हेडक्वार्टर्ज में कौन सी ब्राँच डील करते थे (ब्रिगेड हेडक्वार्टर्ज च कुण जेही ब्राँच डील करदे थे?)"
" 'ए' ब्राँच, सर।"
"ठीक है, इधर आप यूनिट की 'ए' ब्राँच देखोगे। उसके अतिरिक्त सभी अफसरों की डॉक्यूमेंटेशन की जिम्मेदारी आप की होगी। आप मेरे और टूआईसी साहब के पी.ए. भी होंगे (ठीक है, एत्थू तुसाँ यूनिट दी 'ए' ब्राँच दिक्खणी है। तिसदे इलावा सारेयाँ अफसराँ दी डॉक्यूमेंटेशन दी जिम्मेदारी तुसाँ दी होंगी। तुसाँ मेरे कनै टूआईसी साहब दे पी.ए. भी होंगे।)
"ठीक है, सर", मेरा छोटा जेहा जवाब था।
"काम ज्यादा तो नहीं (कम्म जादा ताँ नीं?)"
इक आदमी ताईं कम्म किछ ज्यादा ही था पर
मैं तिसजो चैलेंज दे तौर पर लिया।
"नहीं सर, मैं कर लूंगा (नहीं सर, मैं करी लैणा।)"
"आप जा सकते हैं (तुसाँ जाई सकदे हन्न)।"
मैं सलीके नै सलूट करी नै चुस्तिया कन्नै मार्च करदा होया बंकर ते बाहर आई गिया था।
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समाधियों के प्रदेश में (इक्कीसवीं कड़ी)
लुम्पो एक ऊंचे पहाड़ की ढलान पर स्थित है। यह ढलान भारत की ओर एक गहरे दुर्गम नाले में जाकर समाप्त होती है। वहाँ मेरी नई यूनिट की दो लड़ाकू बैटरियाँ थीं। मोर्चों के अन्दर दोनों बैटरियों की पर्वतीय तोपों के दहाने हरदम चीन की तरफ रहते थे। पर्वतीय तोपें आम तोपों से छोटी हुआ करती थीं। उस समय उन्हें खोल कर, कई भागों में बाँट कर के खच्चरों पर लाद कर पहाड़ों पर एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाया जाता था। अब तो हेलीकॉप्टर से उठा कर छोटी तोपों को कहीं भी ले जा सकते हैं। ऐसा करना उस समय आम बात नहीं थी।
मैं लुम्पो पहुंचते ही सीधा यूनिट के मुख्यालय में गया। वहाँ समस्त ऑफिस स्टाफ मुझ से खुल कर मिला और उन्होंने चाय पिला कर मेरा स्वागत किया। सेना में स्वागत में चाय पिलाने का रिवाज आम है। उस इलाके में और कुछ उपलब्ध भी तो नहीं था। मेरी तैनाती यूनिट के मुख्यालय में थी अतः रहने, खाने-पीने और अन्य प्रशासनिक जरूरतों के लिए मुझे औरों की तरह हेडक्वार्टर बैटरी में रखा गया था।
ऑफिस के सामने एक छोटा सा नाला था। नाले के उस पार मेरी बैटरी का लंगर (मेस) था। हमें ऑफिस से मेस तक ऊपर से घूम कर जाना पड़ता था जहाँ उस छोटे से नाले को पार करने के लिए बाँसों की पुलिया सी बनी हुई थी। आने जाने के लिए पतली पगडंडियों बनीं हुईं थीं। उन पगडंडियों पर बरसात में पानी और सर्दियों में बर्फ पड़ने पर फिसलन से बचने के लिए जैम के डिब्बे एक सार खड़े दबाए हुए थे। जैसे हमारे यहाँ पत्थरों के चणाट हुआ करते थे बिलकुल वैसे ही वहाँ तकरीबन एक किलो वजन के बेलनाकार जैम के डिब्बों के दो-अढ़ाई फुट चौड़े चणाट बने हुए थे। उनमें अधिकतर डिब्बे जैम के साथ ही दबाए हुए लगते थे।
जैसे कि मैंने पहले बताया है, मेरी नई यूनिट शुद्ध अहीर यूनिट थी। अहीर जैम का प्रयोग कम ही करते थे। इसके पीछे वहाँ फैली हुई एक भ्राँति थी। वहाँ किसी ने यह वहम फैला दिया था कि जैम खाने वाले जब गर्म मैदानी इलाकों में जाएंगे तो उनके शरीर में भयंकर पीड़ादायक फोड़े-फुंसियाँ निकल आएंगे। अतः ब्रेक फास्ट में बहुत कम सैनिक जैम का इस्तेमाल करते थे। जो जैम का सेवन करते थे वे केवल मिक्स्ड जैम अथवा पाइनएप्पल जैम का प्रयोग ही करते थे।
दूसरे दिन जब में ब्रेकफास्ट करने गया तो मेस कमाँडर ने मुझ से पूछा कि मैं नमकीन पूरियों के साथ जैम लेना पसंद करूंगा या नहीं। मेरा उत्तर हाँ में सुन कर उसने फिर मुझ से पूछा, "कौन सा जैम?" "फिलहाल जो है वही दे दो, वैसे मुझे मैंगो जैम अच्छा लगता है" मेरा जवाब था। नमकीन पूरियाँ कुरकुरी और स्वादिष्ट थीं। मैने पाइन एप्पल जैम के साथ ब्रेकफास्ट का आनन्द लिया।
उसी दिन शाम तक सारी यूनिट में यह बात फैल गई कि यूनिट हैडक्वार्टर में एक डोगरा हवलदार आया है जो जैम खाता है। उन्हें मेरा जैम खाना कुछ अजीब सा लग रहा था। दरअसल हुआ यह था कि हैडक्वार्टर बैटरी के मेस कमाँडर ने मुझे से जैम के बारे में मेरी चॉइस पूछ कर दूसरे मेसों से मैंगो जैम के कुछ डिब्बे मेरे लिए मंगवा लिए थे।
उसी दिन लगभग साढ़े दस बजे अफसर मेस हवलदार मुझ से मिलने आया। बातों ही बातों में उसने मुझे बता दिया कि पिछली रात डिनर के समय अफसर मेस में मेरे बारे में चर्चा हो रही थी और टूआईसी साहब अन्य अफसरों के सामने मेरी तारीफों के पुल बाँध रहे थे।
उसी दिन शाम को कमाँडिंग अफसर महोदय भी छुट्टी काट कर लुम्पो पहुंच गए थे। अगले दिन सुबह उनसे मेरा इंटरव्यू होने वाला था। सेना में, यूनिट में पोस्टिंग, छुट्टी, अस्थाई ड्यूटी वगैरह से आने व जाने के समय हर किसी का कमाँडिंग अफसर इंटरव्यू करते हैं। मैं भी इंटरव्यू के लिए कमाँडिंग अफसर के बंकर के बाहर पंक्ति में खड़ा था।
कमाँडिंग अफसर बाहर आए और पंक्ति मे खड़े जवान बारी-बारी अपना आर्मी नंबर, रैंक, नाम और कहाँ से आया अथवा कहाँ जा रहा है, ऊंची आवाज में बताने लगे। कमाँडिंग अफसर जवानों से सवाल भी पूछ रहे थे और उन्हें हिदायतें भी दे रहे थे। जब मेरा नंबर आया तो मैंने भी ऊंची और चुस्त अवाज में बताया, "नंबर 1266835पी हवलदार भगत राम, हेडक्वार्टर्स …. आर्टिलरी ब्रिगेड से आया, श्रीमान्"। उन्होंने मुझ पर एक गहरी नजर डाली और यूनिट के एडजुटेंट से बोले, "इन से मैं ऑफिस में बात करूंगा।"
मुझे कमाँडिंग अफसर के बंकर में स्थित ऑफिस में विधिवत मार्च किया गया। जैसे ही मैंने उन्हें सलूट किया वह तपाक से बोले, "तो तुम हो वो हवलदार भगत राम जो मेरी यूनिट में नहीं आना चाहता था?"
"सर, मुझे जैसे ही ब्रिगेड हेडक्वार्टर्स ने भेजा… मैं आ गया।"
"तुम्हें पता है मेरी यूनिट आर्टिलरी की बेहतरीन यूनिटों में से एक है और तुमने आते-आते छे महीने लगा दिए। मैं तुम से नाराज था पर टूआईसी साहब की सिफारिश पर तुम्हें माफ कर रहा हूँ।"
मैं बाहर उजाले से बंकर के अंदर आया था। बंकर के अंदर मुझे कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था। यहाँ तक कि मैं अपने कर्नल रैंक के सिख कमाँडिंग अफसर के चेहरे के हाव-भाव भी पढ़ नहीं पा रहा था कि उनका गुस्सा असली था या बनावटी।
मैंने आंखें गड़ा कर देखा, उप-कमान अफसर साहब उस बड़े से बंकर में कमान अफसर के पीछे दाहिनी ओर लगी बुखारी के सामने बैठे हाथ सेंक रहे थे और मेरी तरफ देख कर मंद-मंद मुस्करा रहे थे।
कमान अफसर ने पूछा, "ब्रिगेड हेडक्वार्टर में कौन सी ब्राँच डील करते थे?"
" 'ए' ब्राँच, सर।"
"ठीक है, इधर आप यूनिट की 'ए' ब्राँच देखोगे। उसके अतिरिक्त सभी अफसरों की डॉक्यूमेंटेशन की जिम्मेदारी आप की होगी। आप मेरे और टूआईसी साहब के पी.ए. भी होंगे।"
"ठीक है, सर", मेरा संक्षिप्त सा उत्तर था।
"काम ज्यादा तो नहीं?"
एक आदमी के लिए वह काम कुछ ज्यादा ही था
पर मैंने उसे चैलेंज के तौर पर लिया।
"नहीं सर, मैं कर लूंगा।"
"आप जा सकते हैं।"
मैं विधिवत सलूट करके चुस्ती से मार्च करते हुए बंकर से बाहर आ गया था।
भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन। फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) दे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) दी डिग्री हासिल कित्ती। इस ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी. च, 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसर' दी जिम्मेबारी निभाई।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही। आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।
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