पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Saturday, July 6, 2024

यादां फौजा दियां

 



फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदेतिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती थी 22 नवंबर 2020 जोदूंई जबानां च। हर म्हीनैं तुसां तक एक किस्त पूजी है बिना नागा। फौजी जीवन दे किस्मां किस्मां दे अनुभव तुसां पढ़े। अज पेश है इसा लड़िया दा पंचताह्ळुआं मणका। इस मण्के कन्नै ही असां जरा क बसौं लैणा है। अग्गैंं चली नै इन्हां मण्केयां दी माळा जारी रखणे दा इरादा है। थोड़े होर नौंएं तौर तरीके नै।    


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समाधियाँ दे परदेस च 


फौज च गिणे-चुणे सूबेदाराँ जो ही सूबेदार मेजर बणने दा मौका मिलदा है। इक यूनिट च इक्को ही सूबेदार मेजर हौंदा है। जेकर मैं सूबेदार मेजर बणदा ताँ मिंजो यूनिट ते कुसी तोपखाना ब्रिगेड हैडकुआटर जाँ तोपखाने दे कुसी दूजे उच्चे हैडकुआटर च अपॉइंटमेंट मिलणी थी। 

फौज च सालाना गुप्त रिपोर्टां प्रमोशन च खास रोल निभाँदियाँ हन्न। तिस वक्त सूबेदार मेजर बणने ताँईं सीनियरिटी दे बेस पर सूबेदाराँ दे इक बैच जो 105 नंबराँ दे स्केल पर परखेया जाँदा था। तिन्हाँ च तकरीबन 80 नंबर सालाना गुप्त रिपोर्टां दे हौंदे थे कनैं बाकी 25 नंबर फील्ड सर्विस, मैडल, कोर्स ग्रेडिंग, बगैरा ताँईं हौंदे थे।  मेरी फील्ड सर्विस बहोत घट थी। 5 नंबराँ ते मिंजो सिर्फ इक जाँ डिढ़ नंबर मिलणे वाळा था। मेरे सत्त मैडलां च मिंजो सिर्फ इक मैडल ही इक नंबर दुआणे वाळा था।  मेरा सूबेदार मेजर बणना मेरी सालाना गुप्त रिपोर्टां पर डिपेंड  करदा था। प्रमोशन ताँईं बैच दे सारे सूबेदाराँ दी पिछलियाँ पंज रिपोर्टां दी जाच-परख हौंदी थी।  मेरिट लिस्ट बणदी थी।  जिस साल जितणियाँ वैकेंसिंयाँ हौंदियाँ थियाँ, मेरिट च औंणे वाळे तितणे सूबेदार प्रमोशन ताँईं चुणे जाँदे थे कनै सीनियरिटी दे मुताबिक, जिंञा-जिंञा वैकेंसी हौंदी थी प्रमोट करी दित्ते जाँदे थे।  हरेक सूबेदारे जो तिन्न मौके मिलदे थे। 

तिस यूनिट च औंणे ते पैह्लैं मेरियाँ सारियाँ सालाना गुप्त  रिपोर्टां ‘आउटस्टेंडिंग’ थियाँ।  बस तिस यूनिट दी पैहली रिपोर्ट ही ‘अबव ऐवरेज’ थी जेह्ड़ी मिंजो हुणकणे सीओ ते पैहलकणे सीओं  दित्तिह्यो थी।  तिस सीओ साहबे जो मेरी  इमानदारी कनै सिद्धा-साफ बोलणे दी आदत शायद खरी नीं लगदी थी। तिन्हाँ शुरू-शुरू च तोपखाना रिकॉर्ड, नासिक रोड केंप च खुद जायी करी मिंजो अपणी यूनिट ते कढणे दी खूब कोशिश कित्ती थी अपर तिन्हाँ दी इक भी नीं चली थी। सैह् मिंजो पर इक ही रिपोर्ट लिक्खी सके थे अगली रिपोर्ट लिखणे ते पैहलैं तिन्हाँ दा दूइया ठाहरी तबादला होयी गिया था। हुणकणे सीओ साहब होराँ दियाँ लिक्खियाँ  मेरियाँ लगातार तिन्न रिपोर्टां ‘आउटस्टेंडिंग’ रहियाँ थियाँ अपर तिन्हाँ दी लिक्खिह्यो चौथी कनै आखिरी रिपोर्ट ‘अबव ऐवरेज’ थी। इस तरहाँ मेरियाँ आखिरी पंज रिपोर्टां च दो ‘अबव ऐवरेज’ कनैं तिन्न ‘आउटस्टेंडिंग’ थियाँ। 

मेरे बैच दे सूबेदार तिस ही साल सूबेदार मेजर दे प्रमोशन ताँईं परखे जाणे वाळे थे।  मिंजो पता था  कि मेरा नाँ ‘मेरिट लिस्ट’ च औंणे वाळा नीं है। जेकर आखिरी रिपोर्ट ‘आउटस्टेंडिंग’ हौंदी ताँ मैं मेरिट लिस्ट च औंणे दी थोड़ी-बहोत मीद करी सकदा था।  तिस आखिरी रिपोर्ट जो लिक्खणे ते किछ दिनाँ परंत  तिन्हाँ सीओ साहब होराँ दी भी पोस्टिंग हौयी गयी थी। दरअसल सैह् स्टडी लीव पर चली गै थे।  पता नीं तिन्हाँ जो इस गल्ल दा एहसास था भी जाँ नीं कि सैह् मेरियाँ सूबेदार मेजर बणने दियाँ मीदाँ गास पाणी फेरी गै थे। अपर मिंजो इस गल्ल दा पता चली गिया था कि सैह् नौंयें सीओ साहब जो मेरे बारे च जे किछ भी दस्सी करी गै थे सैह् खरा ही था। 

नौंयें सीओ साहब सिख अफसर थे। यूनिट दी कमाण संभाळने ते परंत तिन्हाँ इक सैनिक सम्मेलन कित्ता। सैनिक सम्मेलन दे खत्म हौंणे पर तिन्हाँ जुआनाँ जो चले जाणे ताँईं ग्लाया। हाले च सिर्फ अफसर कनै जेसीओ ही बैठी रैह्। सीओ साहब होराँ बारियें-बारियें सारेयाँ कन्नैं हत्थ मिलाया कनैं गल्ल-बात कित्ती। मिंजो नैं हत्थ मिलायी करी तिन्हाँ पुच्छेया,

“भगत राम साहब, सूबेदार मेजर कदी बणा दे?”

“सर, मैं सूबेदार मेजर नीं बणी पाणा है,” मैं उदास होयी करी जवाब दित्ता था।

ताह्लू तिन्हाँ ‘टू आई सी’ साहब होराँ जो ग्लाया था कि सैह् मेरे बारे च तिन्हाँ कन्नैं गल्ल करन। सैनिक सम्मेलन ते आयी करी ‘टू आई सी’ साहब होराँ मेरियाँ सालाना गुप्त रिपोर्टां दिया फाइला लई करी सीओ साहब होराँ कन्नैं मिल्ले थे।  तिन्हाँ दिनाँ च सालाना गुप्त रिपोर्टां दियाँ दो कापियाँ बणदियाँ थियाँ। पहली कापी रिकॉर्ड ऑफिस जो भेजी जाँदी थी कनैं दूजी कापी यूनिट च रैंह्दी थी। 

तिस ते परंत कमाण आफसर होंरा मिंजो अपणे दफ्तर च सद्दी नैं ग्लाया था,

“साहब, मैं एह् एनश्योर करना है कि तुसाँ सूबेदार मेजर बणन।” 

“सर, मैं अंडर-पोस्टिंग है। मिंजो नॉर्थ-ईस्ट च जाणा है। नौंयीं यूनिट हौंणी, पता नीं मैं सही परफॉरमेंस दर्ज करवायी भी पाँअ्गा जाँ नीं,”

मेरिया गल्ला जो बिच ही टोकदेयाँ तिन्हाँ बोल्या था,

“मैं इस गल्ल दा यकीन भी करह्गा कि तुसाँ इस यूनिट ते इक होर एसीआर लई करी जाह्ण। पोस्टिंग ताँ तुसाँ ताह्ली जाँणा है जाह्लू मैं तुसाँ जो भेजणा है।” 

मिंजो नीं लगदा था कि सीओ साहब होराँ मिंजो ज्यादा दिन तिकर जाणे ते रोकी सकणे वाळे थे अपर तिन्हाँ दे बोल कनैं सोच मिंजो ताँईं हौंसला बद्धाणे दा स्नेहा देया दे थे।  तिन्हाँ दिनाँ च भारत दी संसद पर उग्रवादी हमला हौयी गिया। पछमी सरहद पर ‘ऑपेरशन पराक्रम’ दे तहत फौज दा जमाबड़ा हौया।  मेरी सैह् यूनिट थलसेना दी इक ताकतवर ‘स्ट्राइक कोर’ दा हिस्सा थी जिन्नैं राजस्थान दी सरहद पर पाकिस्ताने उप्पर हमला करना था। आर्मी  हैडकुआटरैं उत्तर-पछम च तैनात  टुकड़ियाँ ते बाहर जाणे वाळी सब्भ पोस्टिंगां तरंत, अगले हुक्म तिकर, रोकी  दित्तियाँ थियाँ। मैं भी अपणी यूनिटा कन्नैं बीकानेर दे अक्खे-बक्खे  दे इलाके च चला गिया था। 

म्हारी तिस ‘स्ट्राइक कोर’ जो जाह्लू संयुक्त राज्य अमरीका दे उपग्रहाँ अग्गैं बद्धदेयाँ दिक्खेया ताँ तदकणे अमरीकी राष्ट्रपति होराँ असाँ दे तदकणे प्रधानमंत्रिये जो खबरदार कित्ता था।  पता नीं चूक कुत्थू होइयो थी पर तिसा दा ठीकरा म्हारे कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल साहब दे सिरे पर फोड़ी करी तिन्हाँ जो रातोंरात कमाण ते हटायी दित्ता गिया था कनैं तिस ‘स्ट्राइक कोर’ दी कमाण दूजे लेफ्टिनेंट जनरल जो देई दित्ती थी।  असाँ जो रातों-रात पिच्छे ट्हायी-ता था।  सैह् रात कयामत दी रात थी, पता ही नीं चल्ला दा था कि क्या हौआ दा है? 

कारगिल दी जंग च, जित्थू भारत दियें फौजैं बहादुरिया कन्नैं लड़ी करी दुश्मण मारी नह्ठाया था, 527 भारत दे फौजियाँ दियाँ जानाँ गइयाँ थियाँ अपर ‘ऑपेरशन पराक्रम’ च बगैर लड़ेयाँ ही 798 भारतीय फौजियाँ जो अपणे प्राणां ते हत्थ धोणा पई गै थे। ‘ऑपेरशन पराक्रम’ च देशैं गुआया मता किछ था कनैं खट्टेया किछ भी नीं था। तिस ताँईं काफी हद तिकर अनपढ़, अद्धपढ़, निक्कमी, लापरवाह, निर्दयी कनैं बड़बोली भारतीय पोलिटिकल लीडरशिप जिम्मेदार थी।

 

(इति)

  

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समाधियों के प्रदेश में (पैंतालीसवीं कड़ी)

 

सेना में गिने-चुने सूबेदारों को ही सूबेदार मेजर बनने का अवसर मिलता है। एक यूनिट में एक ही सूबेदार मेजर पाया जाता है। अगर मैं सूबेदार मेजर बनता तो मुझे यूनिट से किसी तोपखाना ब्रिगेड मुख्यालय अथवा तोपखाने के किसी अन्य उच्च मुख्यालय में नियुक्ति मिलनी थी। 

सेना में वार्षिक गोपनीय रिपोर्टें पदोन्नति में विशेष भूमिका निभाती हैं।  उस समय सूबेदार मेजर बनने के लिए वरिष्ठता के आधार पर सूबेदारों के एक बैच को 105 अंकों के पैमाने पर आंका जाता था।  उनमें से तकरीबन 80 अंक वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों के होते थे और शेष 25 अंक फील्ड सर्विस, पदक, कोर्स ग्रेडिंग, इत्यादि  के लिए होते थे।  मेरी फील्ड सर्विस बहुत कम थी।  5 अंकों में से मुझे महज एक या डेढ़ अंक मिलने वाला था। मेरे सात पदकों में से मुझे केवल एक पदक ही एक अंक दिलाने वाला था।  मेरा सूबेदार मेजर बनना मेरी वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों पर निर्भर  करता था।  इसके लिए बैच के सभी सूबेदारों  की पिछली पांच रिपोर्टों का मूल्याँकन होना था।  मेरिट लिस्ट बनायी जाती थी। जिस वर्ष जितनीं वैकेंसी हों, मेरिट में आने वाले, उतने सूबेदार प्रमोशन के लिए चुन लिए जाते थे और वरिष्ठता के अनुसार, जैसे-जैसे वैकेंसी होती थी पदोन्नत कर दिये जाते थे।  प्रत्येक सूबेदार को तीन अवसर मिलते थे। 

उस यूनिट में आने से पहले मेरी सभी वार्षिक गोपनीय रिपोर्टें ‘असाधारण’ थीं।  बस उस यूनिट की पहली रिपोर्ट ही ‘औसत से ऊपर’ थी जो मुझे वर्तमान सीओ से पहले वाले सीओ ने दी थी।  उन सीओ साहब को मेरी  इमानदारी और स्पष्टवादिता संभवतः पसंद नहीं थी।  उन्होंने शुरू-शुरू में तोपखाना अभिलेख, नासिक रोड केंप में व्यक्तिगत तौर पर जाकर मुझे अपनी यूनिट से निकालने के भरसक प्रयास किये थे लेकिन उनकी एक भी न चली थी। वे मुझ पर एक ही रिपोर्ट लिख पाये थे अगली रिपोर्ट लिखने से पहले उनका दूसरी जगह पर तबादला हो गया था। वर्तमान सीओ साहब द्वारा लिखित मेरी लगातार तीन रिपोर्टें ‘असाधारण’ रही थीं परंतु उनके द्वारा लिखी गयी चौथी और अंतिम रिपोर्ट ‘औसत से ऊपर’ थी। इस तरह मेरी अंतिम पांच रिपोर्टों में से दो ‘औसत से ऊपर’ और तीन ‘असाधारण’ थीं। 

मेरे बैच के सूबेदार उसी वर्ष सूबेदार मेजर के प्रमोशन के लिए परखे जाने वाले थे।  मुझे पता था कि मेरा नाम ‘मेरिट लिस्ट’ में आने वाला नहीं है। अगर अंतिम रिपोर्ट ‘असाधारण’ होती तो मैं मेरिट लिस्ट में आने की थोड़ी-बहुत उम्मीद कर सकता था।  उस अंतिम रिपोर्ट को लिखे जाने के कुछ दिन बाद उन सीओ साहब का भी तबादला हो गया था।  दरअसल वे स्टडी लीव पर चले गये थे।  पता नहीं उन्हें इस बात का एहसास था भी या नहीं कि वे मेरी सूबेदार मेजर बनने की उम्मीदों  पर पानी फेर गये थे।  परंतु मुझे इस बात का पता चल गया था कि वे नये सीओ साहब को मेरे बारे में जो कुछ भी बता कर गये थे वो अच्छा ही था। 

नये सीओ साहब सिख अफसर थे। यूनिट की कमान संभालने के बाद उन्होंने एक सैनिक सम्मेलन किया। सैनिक सम्मेलन की समाप्ति पर उन्होंने जवानों को चले जाने के लिए कहा। हाल में केवल अफसर और जेसीओ ही बैठे रहे। सीओ साहब ने बारी-बारी सभी से हाथ मिलाया और बातचीत की। मुझ से हाथ मिला कर उन्होंने पूछा,

“भगत राम साहब, सूबेदार मेजर कब बन रहे हो?”

“सर, मैं सूबेदार मेजर नहीं बन पाऊंगा,” मैंने उदास हो कर जवाब दिया था। 

तभी उन्होंने उप-कमान अधिकारी महोदय से मुखातिब हो कर कहा था कि वे मेरे बारे में उनसे बात करें। सैनिक सम्मेलन से लौट कर उप-कमान अधिकारी महोदय मेरी वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों की फाइल लेकर सीओ साहब से मिले थे। उन दिनों वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट की दो प्रतियाँ बनती थीं। पहली प्रति अभिलेखागार को भेज दी जाती थी और दूसरी प्रति यूनिट के साथ रहती थी।  

उसके बाद कमान अधिकारी महोदय ने मुझे अपने दफ्तर में बुला कर कहा था,

“साहब, मैं यह एनश्योर (सुनिश्चित) करूंगा कि आप सूबेदार मेजर बनें।” 

“सर, मैं अंडर-पोस्टिंग हूं। मुझे नॉर्थ-ईस्ट में जाना है। नयी यूनिट होगी, पता नहीं मैं सही परफॉरमेंस दर्ज करवा भी पाऊंगा या नहीं,”

मेरी बात को बीच में टोकते हुए उन्होंने कहा था,

“मैं इस बात का यकीन भी करूंगा कि आप इस यूनिट से एक और एसीआर लेकर जाएं। पोस्टिंग तो आप तभी जाँयेगे जब मैं आप को भेजूंगा।” 

मुझे नहीं लगता था कि सीओ साहब ज्यादा दिन तक मुझे जाने से रोक पायेंगे परंतु उनके शब्द और सोच मेरे लिए उत्साहवर्धक संदेश दे रहे थे।  तभी एक दिन भारतीय संसद पर उग्रवादी हमला हो गया।  पश्चिमी सीमा पर ‘ऑपेरशन पराक्रम’ के तहत सेना का जमाबड़ा हुआ।  मेरी वह यूनिट थलसेना की एक ताकतवर ‘स्ट्राइक कोर’ का हिस्सा थी जिसने राजस्थान की सीमा पर पाकिस्तान पर आक्रमण करना था।  सेना मुख्यालय ने पश्चिम में तैनात टुकड़ियों से बाहर जाने वाली सभी पोस्टिंगें तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक स्थगित कर दी थीं। मैं भी अपनी यूनिट के साथ बीकानेर के आसपास के क्षेत्र में चला गया था। 

हमारी उस ‘स्ट्राइक कोर’ को जब संयुक्त राज्य अमरीका के उपग्रहों ने आगे बढ़ते देखा तो तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति ने हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री को खबरदार किया था। पता नहीं चूक कहाँ हुई थी पर उसका ठीकरा हमारे कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल साहब के सिर पर फोड़ कर उन्हें रातोंरात कमान से हटा दिया गया था और उस ‘स्ट्राइक कोर’ की कमान दूसरे लेफ्टिनेंट जनरल के सुपुर्द कर दी गयी थी। हमें रातों-रात पीछे हटा लिया गया था। वह रात कयामत की रात थी, पता ही नहीं चल पा रहा था कि हो क्या रहा है? 

कारगिल युद्ध में, जहाँ भारतीय सेना ने वीरता से लड़ कर शत्रु को मार भगाया था, 527 भारतीय सैनिकों की जानें गयी थीं परंतु ‘ऑपेरशन पराक्रम’ में बिना लड़े ही 798 भारतीय सैनिकों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा था। ‘ऑपेरशन पराक्रम’ में देश ने बहुत कुछ खोकर कुछ भी हासिल नहीं किया था। काफी हद तक इसका श्रेय अनपढ़, अद्धपढ़, अकुशल, लापरवाह, असंवेदनशील और बड़बोले भारतीय राजनैतिक नेतृत्व को जाता है। 

(इति)


हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा से संबन्ध रखने वाले भगत राम मंडोत्रा एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उनकी  प्रकाशित पुस्तकें हैं 
     
 
जुड़दे पलरिह्ड़ू खोळूचिह्ड़ू मिह्ड़ूपरमवीर गाथा..फुल्ल खटनाळुये देमैं डोळदा रिहासूरमेयाँ च सूरमे और
हिमाचल के शूरवीर योद्धा।
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