पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Thursday, June 6, 2024

यादां फौजा दियां


 फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदेतिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। ता असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती हैदूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा चुताह्ळुआं मणका। 


...................................................................

समाधियाँ दे परदेस च (चताह्ळ्मीं कड़ी)

 

मैं देवलाली च तिस वक्त जिस यूनिट च था सैह् भारत दी फौज दे तोपखाने दी एक छोटी यूनिट थी जिस्सेयो ‘सर्वेलेंस ऐंड टारगेट एक्विजिशन बैटरी’ दे नाँ ते जाणेयाँ जाँदा था। 

फौज दी हर यूनिट च, हर महीनें, इक ‘सैनिक सम्मेलन’ हौंदा है जिसदी चेयरमैनशिप तिस यूनिट दे कमाण अफसर होराँ करदे हन्न। एह् रुआज अंग्रेजाँ दे जमाने ते चली औआ दा है। इसजो पहलैं ‘दरबार’ बोल्या जाँदा था।  आजाद भारत च ‘दरबार’ जो ‘सैनिक सम्मेलन’ दा नाँ देई  दित्ता गिया।  सैनिक सम्मेलन च यूनिट दे सारे अफसर, जेसीओ कन्नै दूजे रैंक शामिल हौंदे हन्न।  सैनिक सम्मेलन च कमाण अफसर यूनिट दे डिसिप्लिन, ट्रेनिंग, खेलकूद, बगैरा पर अपणी पोळसियाँ दी जाणकारी अपणे मतैहताँ जो दिंदे हन्न कनैं सब्भ दी भलाई कन्नैं जुड़ेह्यो सुझावां कनै शिकायताँ जो सुणदे हन्न। 

नायक नारायण सिंहें मेरे समझाणे कनै डाँटणे ते  लाँस हौळदार दे रैंक पैह्नी लैह्यो थे।  तिस दौरान इक सैनिक सम्मेलन होया था। तिस सैनिक सम्मेलन च जाह्लू कमाण अफसर होराँ  सुझाओ कनैं शिकायताँ मंगियाँ ताँ इक नायक (नाई) उठी खड़ौता कनै बोलणा लग्गेया “महोदय, असाँ दे मानजोग हैडक्लर्क, सूबेदार भगत राम साहब रेलवे वारंट देणे च भेदभाओ बरतदे हन्न।  मैं स्टेशन च जद अपणी बीबी-बच्चेयाँ जो लई आया ताँ साहब होराँ मिंजो फ्री रेल वारंट दित्ता अपर जाह्लू मैं अपणी फैमिली जो घर भेजणे ताँईं फ्री रेल वारंट मंगेया ताँ तिन्हाँ एह् ग्लायी करी सिद्धी नाँह् करी दित्ती कि छे महीनेंयाँ दे अंदर फ्री फेमिली वारंट नीं देई  सकदे। तिन्हाँ मिंजो सिर्फ कन्सेशन वाउचर ही दित्ता जद कि सैह् होरनाँ जो फ्री फैमिली वारंट दिंदे रैह् हन्न।”  

एह् सुणदेयाँ ही मैं तरंत अपणी कुर्सी ते उठी खड़ौता कनै कमाण अफसर होराँ जो ग्लाणा लग्गा था, “सर, एह् इल्जाम मिंजो पर लगाया गिह्या है इस ताँईं मिंजो इसदा जवाब देणे दी इजाजत दित्ती जाए।”  कमाण अफसर साहब होराँ मिंजो बक्खी दिक्खी नै बोले, “हैडक्लर्क साहब, तुसाँ बैठी जा।” अपणी सफाई च बोलणे दा मौका नीं मिलणे पर मिंजो बहोत गुस्सा आया था।  जिंञा ही मैं सैनिक सम्मेलन ते वापस मुड़ी करी अपणे दफ्तर च आयी नै बैठया, कमाण अफसर होराँ मिंजो ते आई.ए.एफ.टी-1707 (IAFT-1707) वारंट बुक कनै ‘वारंट इसू रजिस्टर’ मंगी लै थे।  तिन्हाँ तिस मामले दी छाणबीण ताँईं इक इन्क्वायरी बठाळी दित्ती थी जिस च इक मेजर, सूबेदार  मेजर कनै बैटरी हौळदार मेजर शामिल थे।  तिन्नैं कमेटियैं दो-तिन्न घंटेयाँ च अपणा कम्म निपटाइता कनैं तिस नायक (नाई) दे लगाह्यो इल्जाम गलत पाये  थे। 

जाह्लू सूबेदार मेजर साहब इन्क्वायरी वाळा कम्म निपटायी करी मेरे ऑफिस च आये ताँ मैं तिन्हाँ ते मजाक-मजाक च पुच्छेया था, “एस.एम. साहब, काह्लू लटका दे मिंजो फांसी पर?”  “ओ साहब, इंञा ही, इस नाई दी मत मारी गइह्यो। तुसाँ कुसी जो गलत तरीके नै कोई वारंट इसू नीं कित्तेह्या है। हाँ, इक जुआने जो छे महीनेंयाँ ते पैह्लैं तुसाँ रिजर्वेशन करुआणे ताँईं वारंट दित्तेह्या है अपर सैह् छै महीने पूरे हौंणे ते परंत ही छुट्टी गिह्या है।” 

“एसएम साहब, नाई दी मत ताँ मारी गइह्यो ही है, मिंजो लग्गादा सीओ साहब दी मत भी मारी गइह्यो है। मिंजो कल सीओ साहब दा इंटरव्यू चाहीदा।” 

“कजो, क्या होयी गिया?” एसएम साहब होराँ हैराण होयी करी मिंजो ते पुच्छेया था। 

“साहब, इंटरव्यू दे टैमें तुसाँ भी ताँ तित्थू ही हौंणा है। ताह्ली सुणी लैन्ह्यों। हाँ, मैं सैनिक सम्मेलन च होयी तिसा गल्ला दे सिलसिले च ही सीओ साहब कन्नैं गल्ल करनी है” मैं जवाब दित्ता था। 

उंञा ताँ मैं सीओ साहब कन्नै दिन भर च कई बरी मिलदा था, अपर तिस वक्त मैं विधिवत इंटरव्यू मंग्गेया था किंञा कि मैं समझदा था कि भरे सैनिक सम्मेलन च मेरे कैरेक्टर पासैं उंगळी ठुआई गयी कनै सीओ साहब नैं मिंजो सफाई देणे दा मौका ही नीं दित्ता था। मिंजो सीओ साहब दा इंटरव्यू मिली गिया था। जिंञा ही मैं सीओ साहब जो सेल्यूट कित्ता, तिन्हाँ मिंजो ते पुच्छेया था, “हाँ साहब, क्या होया?” 

“सर, मिंजो उप्पर सैनिक सम्मेलन च सरेआम इल्जाम लगाया गिया। तिस पर तुसाँ क्या कित्ता?” मैं तिन्हाँ ते पुच्छेया। 

“मैं जाँच कित्ती जिसा च तिस नायक दी गल्ल गलत पायी गयी।” 

“मिंजो तुसाँ तिस वक्त सारी यूनिट दे साह्म्णे सफाई देणे दा मौका नीं दित्ता। हुण यूनिट जो कुण दसह्गा कि मेरा कोई कसूर नीं है।” 

“मैं नीं समझदा कि सारी यूनिट जो दसणा जरूरी है।” 

“अपर सर, मैं समझदा कि यूनिट जो एह् दसणा जरूरी है कैंह् कि एह् मेरे कैरेक्टर पर झूठी तोहमत है।” 

“हैडक्लर्क साहब, तुसाँ चांह्दे क्या?” 

“सर, मैं सारेयाँ जो एह् दसणे ताँईं अगले सैनिक सम्मेलन दी निहाग नीं करना चांह्दा। पता नीं तैह्ड़िया तिकर मैं जाँ तुसाँ इस यूनिट च रैह्ण जाँ नीं रैह्ण। मैं चांह्दा कि अज्ज ते लगातार तिन्न ‘रोल कालाँ’ च, डियूटी जेसीओ साहब एह् सुणांन कि पिछले सैनिक सम्मेलन च हैड क्लर्क दे उप्पर लगाया गिया इल्जाम गलत था। मैं एह् हौंदा दिक्खणे ताँईं हर रोल काल दे वक्त हाजिर रैंह्गा।” 

सीओ साहब दा चेहरा तमतमाणा लगी पिया था। ताह्ली तिन्हाँ अपणे मेज दे सज्जैं पासैं खड़ोह्तेयो सूबेदार मेजर साहब होराँ जो ग्लाया था, “एसएम साहब, जिंञा हैड क्लर्क साहब चांह्दे, तिंञा कित्ता जाये।” कनैं गुस्से नैं मिंजो ग्लाया था, “साहब, तुसाँ जाई सकदे हन्न। 

मैं तिन्हाँ जो विधिवत सैल्यूट देई करी तिन्हाँ दे ऑफिस ते बाहर आयी गिया था। 

मिंजो पता था जेह्ड़ा भी हौआ दा था सैह् मिंजो ताँईं खरा नीं हौआ दा था। मिंजो लग्गा दा था मेरा सूबेदार मेजर बणने दा सुपना, बस सुपना ही रैह्णे वाळा है। 

(अग्गैं, अगलिया कड़िया च….) 

 

...................................................................

समाधियों के प्रदेश में (चवालीसवीं कड़ी)

 

 मैं देवलाली में उस समय जिस यूनिट में था वह भारतीय सेना के तोपखाने की एक छोटी यूनिट थी जिसे ‘निगरानी एवम् लक्ष्य खोज बैटरी’ के नाम से जाना जाता था। 

सेना की हर यूनिट में, हर महीने, एक ‘सैनिक सम्मेलन’ होता है जिसकी अध्यक्षता उस यूनिट के कमान अधिकारी महोदय करते हैं। यह परम्परा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। इसे पहले ‘दरबार’ कहा जाता था।  स्वतंत्र भारत में ‘दरबार’ को ‘सैनिक सम्मेलन’ का नाम दे दिया गया। सैनिक सम्मेलन में यूनिट के सभी अधिकारी, जेसीओ और अन्य रैंक सम्मिलित होते हैं। सैनिक सम्मेलन में कमान अधिकारी यूनिट के अनुशासन, प्रशिक्षण, खेलकूद, इत्यादि पर अपनी नीतियों से अपने अधीनस्थों को अवगत कराते हैं और सर्वहित से संबंधित सुझावों और शिकायतों को आमंत्रित करते हैं। 

नायक नारायण सिंह ने मेरे समझाने और डाँटने के फलस्वरूप लाँस हवलदार के रैंक पहन लिये थे।  इसी दौरान एक सैनिक सम्मेलन हुआ था। उस सैनिक सम्मेलन में जब कमान अधिकारी महोदय ने सुझाव और शिकायतें आमंत्रित कीं तो एक नायक (नाई) उठ खड़ा हुआ और कहने लगा, “महोदय, हमारे माननीय हैडक्लर्क, सूबेदार भगत राम साहब रेलवे वारंट जारी करने में भेदभाव करते हैं।  मैं स्टेशन में जब अपने बीबी-बच्चों को लाया तो साहब ने मुझे फ्री रेलवे वारंट दिया लेकिन जब मैंने अपनी फेमिली को घर भेजने के लिए फ्री रेलवे वारंट मांगा तो उन्होंने यह कह कर साफ मना कर दिया कि छह् महीनों के अंदर फ्री फेमिली वारंट नहीं दिया जा सकता। उन्होंने मुझे केवल कन्सेशन वाउचर ही दिया जब कि वह दूसरों को फ्री फेमिली वारंट देते रहे हैं।”  

यह सुनते ही मैं तुरंत अपनी कुर्सी से खड़ा हो कर कमान अधिकारी से मुखातिब हुआ, “महोदय, यह इल्जाम मुझ पर लगाया गया है अतः मुझे इसका जवाब देने की अनुमति दी जाए।” कमान अधिकारी साहब मेरी तरफ देख कर बोले, “हैडक्लर्क साहब, आप बैठ जाइये।” अपनी सफाई में बोलने का मौका न मिलने पर मुझे बहुत क्रोध आया था।  जैसे ही मैं सैनिक सम्मेलन से लौट कर अपने कार्यालय में आ कर बैठा, कमान अधिकारी ने मुझ से आई.ए.एफ.टी-1707 (IAFT-1707) वारंट बुक और ‘वारंट इसू रजिस्टर’ मांग लिए थे।  उन्होंने उस मामले की छानबीन के लिए एक इन्क्वायरी बैठा दी थी जिसमें एक मेजर, सूबेदार  मेजर और बैटरी हवलदार मेजर शामिल थे।  उस कमेटी ने दो-तीन घंटो में अपना काम निपटा लिया और उस नायक (नाई) द्वारा लगाये आरोप गलत पाये थे।  

जब सूबेदार मेजर साहब इन्क्वायरी वाला काम निपटा कर मेरे ऑफिस में आए तो मैंने उनसे मजाक-मजाक में पूछा था, “एस.एम. साहब, कब लटका रहे हो मुझे फांसी पर?”  “ओ साहब, ऐसे ही, इस नाई की मत मारी गयी है। आपने किसी को गलत ढंग से कोई वारंट इशू नहीं किया है। हाँ, एक जवान को छह महीने से पहले आपने रिजर्वेशन कराने के लिए वारंट दिया है लेकिन वह छह महीने पूरे होने के बाद ही छुट्टी पर गया है।” 

“एसएम साहब, नाई की मत तो मारी ही गयी है, मुझे लगता है सीओ साहब की मत भी मारी गयी है। मुझे कल सीओ साहब का इंटरव्यू चाहिए।” 

“क्यों क्या हो गया?” एसएम साहब ने हैरान हो कर मुझ से पूछा था। 

“साहब, इंटरव्यू के समय आप को तो वहाँ होना ही है। वहीं सुन लीजिएगा। हाँ, मैंने सैनिक सम्मेलन में हुई उसी बात के बारे में सीओ साहब से बात करनी है” मैंने जवाब दिया था। 

वैसे तो मैं सीओ साहब से दिन भर में कई बार मिलता था, लेकिन उस समय मैंने विधिवत इंटरव्यू मांगा था क्योंकि मैं समझता था कि भरे सैनिक सम्मेलन में मेरे चरित्र की ओर उंगली उठायी गयी और सीओ साहब ने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया था। मुझे सीओ साहब का इंटरव्यू मिल गया था। जैसे ही मैंने सीओ साहब को सेल्यूट किया, उन्होंने मुझ पूछा था, “हाँ साहब, क्या हुआ?” 

“सर, मुझ पर सैनिक सम्मेलन में सरेआम इल्जाम लगाया गया। उस पर आपने क्या किया?” मैंने उनसे पूछा। 

“मैंने जाँच की जिसमें उस नायक की बात गलत पायी गयी।” 

“मुझे आपने उस समय सारी यूनिट के सामने सफाई देने का मौका नहीं दिया। अब यूनिट को कौन बताएगा कि मैं निर्दोष हूं?” 

“मैं नहीं समझता कि सारी यूनिट को बताना जरूरी है।” 

“लेकिन सर, मैं समझता हूं कि यूनिट को यह बताना जरूरी है क्योंकि यह मेरे चरित्र पर झूठा लाँछन है।” 

“हैडक्लर्क साहब, आप चाहते क्या हो?” 

“सर, मैं सभी को यह बात बताने के लिए अगले सैनिक सम्मेलन का इंतजार नहीं करना चाहता। पता नहीं तब तक मैं या आप इस यूनिट में रहें या न रहें। मैं चाहता हूं कि आज से लगातार तीन ‘रोल कालों’ में, डियूटी जेसीओ साहब यह सुनायें कि पिछले सैनिक सम्मेलन में हैड क्लर्क पर लगाया गया आरोप गलत था। मैं यह होता देखने के लिए हर रोल काल के समय उपस्थित रहूंगा।” 

सीओ साहब का चेहरा तमतमाने लगा था। तभी उन्होंने अपने मेज की दायीं ओर खड़े सूबेदार मेजर साहब से कहा था, “एसएम साहब, जैसे हैड क्लर्क साहब चाहते हैं, वैसा किया जाए।” और गुस्से से मुझे कहा था, “साहब, आप जा सकते हैं।” 

मैं उन्हें विधिवत सैल्यूट दे कर उनके ऑफिस से बाहर आ गया था। 

मुझे पता था जो भी हो रहा था वह मेरे लिए सही नहीं हो रहा था। मुझे लग रहा था मेरा ‘सूबेदार मेजर’ बनने का सपना बस सपना ही रहने वाला है। 

(आगे, अगली कड़ी में…)


हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा से संबन्ध रखने वाले भगत राम मंडोत्रा एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उनकी  प्रकाशित पुस्तकें हैं 
     
 
जुड़दे पलरिह्ड़ू खोळूचिह्ड़ू मिह्ड़ूपरमवीर गाथा..फुल्ल खटनाळुये देमैं डोळदा रिहासूरमेयाँ च सूरमे और
हिमाचल के शूरवीर योद्धा।
यदाकदा 
'फेस बुकपर 'ज़रा सुनिए तोकरके कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं।


No comments:

Post a Comment