पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Saturday, November 16, 2019

पंजाबी कविता




उर्दू कनै पंजाबी दे कवि मनीर नियाज़ी होरां दी 
इक पंजाबी कविता दा पहाड़िया, हिन्दिया कनैं अंगरेजिया च अनुवाद दा नंद लेया। 
अनुवाद असांं दे प्‍यारे कवि कनै पत्रकार नवनीत शर्मा होरां कीतेयो। 
गुरुमुखी लिपि च मूल कविता भी पेश है।


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कांगड़ी
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क्‍लोकणी गल

कल बैठी की सोचा दा था
गल कोई बितेयो बेले दी
अपणे ग्रांए दे पिपले थल्‍लैं
छोटिया ईदा दे मेले दी
मैं जेहड़ा मसहूर है इतणा
मने दे भेद लकाह्णे बिच
गमे दी तिक्‍खी चींड लकाह्ई
बाहरैं हसदेयां जाणे बिच
तिस्‍सी पराणे ध्‍याडे़ अंदरैं
याद करी इक मौके जो
लाई जोर नी रोकी सकेया
अपणे दिले दे हौके जो

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ਪੰਜਾਬੀ
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ਕੱਲ ਦੀ ਗੱਲ

ਕੱਲ ਬੈਠਾ ਕੁਝ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸਾਂ
ਗੱਲ ਇੱਕ ਗੁੱਜਰੇ ਵੇਲੇ ਦੀ
ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਪਿੱਪਲਾਂ ਹੇਠਾਂ
ਛੋਟੀ ਈਦ ਦੇ ਮੇਲੇ ਦੀ
ਮੈਂ ਜੇਹੜਾ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹਾਂ ਏਨਾ
ਦਿੱਲ ਦੇ ਭੇਦ ਲੁਕਾਵਣ ਵਿੱਚ
ਗ਼ਮ ਦੀ ਤਿੱਖੀ ਚੀਖ ਨੂੰ ਘੁੱਟ ਕੇ
ਉਪਰੋਂ ਹੱਸਦਾ ਜਾਵਾਂ ਵਿੱਚ
ਓਸ ਪੁਰਾਣੇ ਦਿਨ ਦੇ ਵਿੱਚੋਂ
ਕਰਕੇ ਯਾਦ ਇੱਕ ਮੌਕੇ ਨੂੰ
ਜੋਰ ਵੀ ਲਾ ਕੇ ਰੋਕ ਨਾ ਸਕਿਆ
ਆਪਣੇ ਦਿੱਲ ਦੇ ਹੌਕੇ ਨੂੰ...

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हिंदी
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कल की बात

कल बैठा कुछ सोच रहा था
बात थी गुज़रे लम्‍हे की
अपने गांव के पीपल नीचे
छोटी ईद के मेले की
मैं ये जो मशहूर हूं इतना
दिल के भेद छुपाने में
ग़म की तीखी चीख घोंट कर
बाहर हंसते जाने में
उसी पुराने दिन के बीच से
करके याद इक मौके को
ज़ोर भी मारा रोक न पाया
अपने दिल की हूक को मैं

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English
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It happened only yesterday

Was thinking only yesterday
Something that had elapsed already
About the fair of Eid
Beneath the shade of my village banyan 
I, who is well known
For hiding the pangs of my heart
Clad are the shrilling cries of my heart
In the laughter I shower apparently
From one such old day
After remembering a moment
I tried my best but could not stop
The silent cry of the inmost heart.

नवनीत शर्मा

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