पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Saturday, January 19, 2013

मेरी इक ताजा गज़ल




22 comments:

  1. saari he ghazal badi vadiya hai par last line badi he vadiya lagi....

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    1. भाई संतोष कुमार सकलानी जी,
      ब्लाग्गे तिकर पुजणें पर तुसाँ दा सुआगत है.
      अपणियाँ पहाड़ी हिमाचली कविताँ एह्त्थु लगा.ब्लाग्गे follow भी करा कनैं होर मितराँ जो भी प्रेरित करा. औन्दे रेह्या. असाँ कनैं जुड़ा.

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  2. ए ता चासणियां च पक्कियां जैह्रे दियां गोळियां हन.

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    1. भाई साहब,

      मेह्र्बान्नी.

      क्या इ गलाइये. खबरैं कुथु, काह्लू,कुण देह्यी मात्तर कुसी जो गुणें बैट्ठी जाये.
      असाँ लखारियाँ ता भड़ास ईह्याँ ई कह्डणी.

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  3. गज़ल है कि गुब्बा गुज्झा,
    पेल्ली ते डण्ड मितरा

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    1. भाई तेज कुमार जी,
      डण्ड काफ़िया तुसाँ लाईत्ता.एह गुज्झे गुब्बे दा जुआब नीं.तुसाँ गजल होर भी छैळ करीत्ति.

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    3. करीये भी क्या द्विज जी, तुहां गज़ल ही इतणी ’चौण्टे चक्क’ चमेड़ी छड्डीयो भई काफिया अपणे आप ही कन्नां च बज्जदा चला आऔन्दा...

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    4. भाई साहब
      धन्न भाग मेरे.
      तुसाँ जो पसन्द आई.

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  4. खुह्ना कुदालु तेरा
    नीआं दी झंड मितरा --बहत अच्छा शेर !मजेदार पहाड़ी रंग गज़ल !

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    1. भाई अश्विनी रमेश जी
      तुसाँ आई गे . मजा आई गेया.

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  5. ग़ज़लाँ तिज्जो घेरी रक्खण,
    रै देआ परचण्ड मित्तरा।

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    1. गज़लाँ दी होऐ बरखा
      बद्दळ पर्चण्ड मितरा.

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  6. भाई द्विज जी,
    आपका यह ब्लॉग आज देखा।
    इस अच्छे काम के लिए बहुत बधाई।

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    1. भाई गणेश पाण्डेय जी,
      नमस्कार ,
      आप यहाँ आ गये हैं, तो यह प्रयास सफल अवश्य होगा

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  7. Sir aapki shayri ke kya kehne . . .jitni tarif ki jaye kam hai

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    1. आयूष जी,

      धन्यवाद. होर मितराँ जो भी इस ब्लाग्गे बारे दस्सा

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  8. भाई जी, छोटी बैह़ खूब नभाई जी।

    लूणका नराड़ मेरा
    आद तेरी खंड मितरा

    दयारे च बसोणा लग्‍गा
    सारा भरमंड मितरा

    लकोलुआं च आदीं रैंदियां
    कीह्यां देणी छंड मितरा
    ......
    क्‍या गलाइए....सारी गजल बड़ी छैल कनैं बांकी। नंद आई...या।

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  9. छोटी जैई गजल कटारी...मन्ने मार करदी बडी भारी

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