पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Wednesday, September 6, 2023

यादां फौजा दियां

 


फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदेतिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती हैदूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा पैंतुह्आं मणका।


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समाधियाँ दे परदेस च

संझा जो असाँ ऑफिस बंद करने वाळे ही थे कि ताह्लू लाँस नायक कृष्ण कुमार यादव होराँ मिंजो व्ह्ली आयी करी बोलणा लग्गे, "सर, सैह् बाहर खड़ोह्तेया है कनै तुसाँ नै मिलणा चाँह्दा है।"  एह् सुणदेयाँ ही मैं फौरन ऑफिस ते बाहर आयी गिया। मैं दिक्खेया कि सैह्  चुपचाप खड़ोह्तेया था अपर तिसदे हत्थ खाली थे। जिंञा ही मैं तिसदे नेडैं ढुकेया, तिन्नी कोटे दे अंदर हत्थ पाया कनै प्लास्टिक दी इक पन्नी कड्ढी नै मिंजो पासैं गाँह करी दित्ती। तिस च किछ कागजात थे।  मैं प्लास्टिक दी सैह् पन्नी अपने हत्थैं  पकड़ी लई कनै तिस जो ग्लाया, "कल भ्यागा ब्रेकफास्ट दे टैमे आयी नै मिंजो ते एह् लिफाफा मुड़ी लई लैह्नेयों।" 

सैह् बगैर किछ ग्लायें वापस चली गिया था। मैं ऑफिस दे अंदर आयी नै पन्नी ते कागद निकाळे। सैह् कुल मिलायी नै 8 जाँ 9 लैटर साइज पेपर थे। जिंञा ही मेरी नजर पहले पेज पर गयी मैं तरंत समझी गिया कि सैह् कुसी कोर्ट दे फैसले दी नकल थी।  मिंजो तिस दी कॉपी चाहिदी थी। तिन्हाँ दिनाँ च फौज च फोटोस्टेट मशीन होणे दी गल्ल ताँ दूर, सिविल च भी इसा दा चलण अतिह्यें आम नीं होह्या था। मिंजो तिन्हाँ कागदाँ दी नकल टाइपराइटर पर टाइप करी नै बणांणी थी। इस ताँईं मैं फैसला कित्ता कि टैम बचाणे ताँईं, मैं सैह् कागद पहलैं नीं पढ़णे बल्कि टाइप करदेयाँ-करदेयाँ ही पढ़णे हन्न। 

मैं लाँस नायक यादव होराँ जो बोल्या था कि मैं रात दा खाणा तौळा खायी करी दफ्तर च कम्म करना है, इस ताँईं सैह्, लाइट ताँईं पैट्रोमैक्स जो ठीक-ठाक करी लैण। रेजिमेंट दे हुक्म मुताबिक, राती दफ्तर खोलणे ताँईं इक कंपिटैंट अफसर दी इजाजत लैणा जरूरी थी।  मिंजो ताँईं सैह् कंपिटैंट अफसर यूनिट दे एडजुटेंट थे।  सैह् मेजर दे रैंक दे अफसर थे। मैं तिन्हाँ ते फौजी  टेलीफोन दे जरिये अर्ज कित्ती कि सैह् मिंजो रात दे बग्त दफ्तर खोली नै कम्म करने दी परमिशन देण।  इसते पहलैं कि मैं तिन्हाँ जो बजह दसदा तिन्हाँ  मिंजो टोकी करी हुक्म दित्ता कि जेहड़ा भी कम्म है तिस्सेयो मैं कल कराँ कनै रात जो आराम कराँ। ताह्लू  मैं एडजुटेंट साहब होराँ जो दस्सेया था कि मैं तिस जुआन ते इम्पोर्टेन्ट कागद लैणे ताँईं कामयाब होयी गिह्या कनै मिंजो टाइप करी नै तिन्हाँ दी इक कॉपी तैयार करनी है कनै भ्यागा ब्रेकफास्ट टैम च सैह् तिस्सेयो वापस करने हन्न। तिन्हाँ  मिंजो शाबाशी दित्ती थी कनै कन्नै ही राती जो दफ्तर खोलणे ताँईं परमिशन भी। 

रात दा खाणा खुआणे ते परंत, लाँस नायक यादव होराँ इक पेट्रोमैक्स जळायी करी, दफ्तर च मेरे टेबल कन्नै गड़ेह्यो इक खूंडे च टंगायी दित्ता था।  सैह् खुंड मेरी कुर्सी दे खब्बे पासैं इक एहो जेह् कोण च गड़ोह्या था कि तिस पर टंगोह्यो पैट्रोमैक्स दी लाइट च मेज पर रखीह्यो फाइल, टाइपराइटर दा की-बोर्ड कनै रोलर पर चढ़ेह्या कागद साफ-साफ सुझदे थे।  जिंञा-जिंञा मैं कोर्ट दे फैसले दी तिस नकल जो टाइप करदा गिया, मेरे रौंगटे खडोंदे चली गै थे।  मिंजो तिस शांत कनै चुपचाप रहणे वाळे जुआन दे अंदर लुक्केह्या डरौणा बहशी दरिंदा साफ सुझणा लगी पिया था। अदालतें तिस्सेयो बलात्कार दा दोषी पायी करी सजा सुणायी थी। तिन्नी निचली अदालत दे फैसले दे खिलाफ उपरली अदालत च अपील करी दित्ती थी। फिरी सैह् जमानता पर बाहर आयी गिया था। 

सैह् जुआन तिस सारी वारदात दे सिलसिले जो किछ इस तरहाँ मैनेज करने च कामयाब रिहा था कि यूनिट च कुसी जो तिसदी रतीभर भी भणक तिकर नीं लगी सकी थी।  जेह्ड़ा भी तिन्नी कित्तेह्या था सैह् सब्भ किछ छुट्टी दे दौरान ही कित्तेह्या था। रूल दे मुताबिक पुलिस जो तिसदे गुनाह कनै गिरफ्तारी दी जाणकारी फौज जो देणी चाहिदी थी, अपर अजेहा नीं होया था। तिस्सेयो कचहरिया ते मिल्लिह्याँ तरीखां पर हाजर होणे ताँईं, किछ होर बहाना बणायी नै, बार-बार छुट्टी मंगणा पोंदी थी तिस करी नै तिसदे बैटरी कमांडर जो तिस पर शक होयी गिया था। बैटरी कमांडर होराँ यूनिट दे कमांडिंग अफसर कनै सलाह मशवरा करी नै तिसदे जिले दी पुलिस जो चिट्ठियाँ लिखियाँ थियाँ जिन्हाँ दा कोई जवाब नीं आया था। 

अदालत दे फैसले च दर्ज, तिस जुआन दी दरिंदगी दी कहाणी किछ इस तरहाँ थी - तिसदे ग्राँयें दे इक कनारे पर निचली जात दे मन्ने जाणे वाळे लोकां दे किछ घर थे। सैह् लोक उच्ची जात दे कहाणे वाळे लोकां देयाँ खेतराँ च मेहनत-मजदूरी करी नै अपणा जीण जींदे थे। तिन्हाँ टब्बराँ च इक टब्बर दी इक जुआन बिट्टी थी।  तिसा दा व्याह होयी गिह्या था अपर अतिह्यें 'घेरे-फेरे' (गौणा) नीं होह्यो थे यानी कि सैह् कुड़ी कुसी बजह ते सौहरेयाँ दे घर नीं गइह्यो थी। इक दिन सैह् कुड़ी खेतराँ च कम्म करा दी थी।  छुट्टियाँ पर ग्राँ च गिह्या सैह् जुआन खेतर च जाई करी तिसा कन्नै पळचोयी पिया कनै तिसा जो दबोची करी नै जबरदस्ती करने दी कोशिश करना लगेया। कुड़िया दी चीख-पुकार सुणी करी इक अधेड़ जणास, जेह्ड़ी कन्नै लगदे खेतराँ च कम्म करा दी थी, रौळा पांदिया कुड़िया दिया मददा ताँईं  दौड़ी पई। तिसा जणासा दे हत्थें दराह्टी थी। तिसा जो ओंदा दिक्खी नै सैह् जुआन कुड़िया जो तित्थू ही छड्डी करी नह्ठी गिया। कुड़िया दी इज्जत बची गयी अपर तिसा दे कपड़े फटी गै थे।  मामला ग्राँ पंचायत व्ह्ली गिया। पंचायतें दोषी मूंडुये पर जुर्माना लगाया कनै लड़की कनै तिसा दे टब्बरे वाळेयाँ दे साह्म्णे माफी मंगवायी करी मामला रफा-दफा करी दित्ता गिया। 

सैह् जुआन किछ महीनें परंत फिरी छुट्टी गिया।  इक दिन तिन्नी तिसा कुड़िया जो किह्ला (अकेला) दिक्खी नै खेतराँ च तिसा कन्नै जबरदस्ती करी दित्ती थी।  इसा बारिया भी कुड़ियें रौळा पाया था अपर जाह्लू तिकर दूर खेतराँ  च कम्म करा दियाँ दो जणासाँ तिसा दी मदद करने ताँईं आयी पांदियाँ ताह्लू तिकर तिसा कुड़िया दी इज्जत लुटी चुकिह्यो थी।  तिन्हाँ दूंहीं जणासाँ गुनहगार जो विल्कुल नेड़े ते दिक्खेह्या था।  अदालत च गुआह दे तौर पर पंचायत दे मेंबर कनै सैह् दो जणासाँ हाजिर होइयाँ थियाँ। मुकदमा चलेया कनै अदालतें तिस जुआने जो दोषी पायी करी, जित्थू तिकर मिंजो याद ओंदा है, पंज जाँ सत्त सालाँ दी सख्त सजा सुणायी थी। 

आर्मी एक्ट-1950 दे मुताबिक जेकर कुसी जुआन जो सिविल कोर्ट दोषी ठहराँदा है ताँ तिस्सेयो फौज ते तरंत, बगैर कुसी फायदे ते, बर्खास्त करना लाजिमी होंदा है। तिन्नी जुआनें दो गुनाह कित्तेह्यो थे पहला गुनाह बलात्कार था कनै दूजा गुनाह पहले गुनाह जो फौज ते छुपाणा था।  तिस जुआन जो 'समरी कोर्ट मार्शल' (एस सी एम) दे जरिये ही बर्खास्त कित्ता जाई सकदा था।  डिसिप्लिन नै ताल्लुक रखणे वाले मामले मेरी जिम्मेदारी च ओंदे थे इस ताँईं तिसदे बारे च उपरलेयाँ अफसराँ जो सलाह देणा मेरा ही कम्म था। 

मैं राती दे तकरीबन बारह बजे अपणा कम्म निपटायी करी कनै दफ्तर बंद करी नै अपणे स्लीपिंग बैग च घुसड़ेया था। अपर मिंजो डिढ़-दो घंटे तिकर निंदर नीं आयी थी। शायद इस ताँईं कि मैं सोचदा रिहा था कि अगले दिनें मैं एडजुटेंट कनै कमांडिंग ऑफिसर होराँ जो तिस केस दे बारे च क्या ब्रीफिंग देणी है। 

(कागजे पर चारकोल कनै रेखांकन: सुमनिका) 

(बाकी अगलिया कड़िया च….)

 

 

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समाधियों के प्रदेश में (पैंतीसवीं कड़ी) 

शाम को हम दफ्तर बंद करने वाले ही थे कि तभी लाँस नायक कृष्ण कुमार यादव मेरे पास आकर कहने लगे, "सर, वह बाहर खड़ा है और आप से मिलना चाहता है।" यह सुनते ही मैं तुरंत दफ्तर के बाहर आ गया। मैंने देखा वह शांत खड़ा था परंतु उसके हाथ खाली थे। जैसे ही मैं उसके समीप पहुंचा उसने कोट के अंदर हाथ डाला और प्लास्टिक की एक पन्नी निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दी। उसमें कुछ कागजात थे। मैंने प्लास्टिक की पन्नी अपने हाथ में ले ली और उससे कहा, " कल सुबह ब्रेकफास्ट टाइम में आकर मुझ से यह लिफाफा वापस ले लेना।" 

वह बिना कुछ बोले वापस चला गया था। मैंने दफ्तर के अंदर आकर पन्नी से कागजात निकाले। वे कुल मिलाकर 8 अथवा 9 लैटर साइज पेपर थे। जैसे  ही मेरी नज़र पहले पेज पर पड़ी मैं तुरंत समझ गया कि वह किसी कोर्ट के फैसले की नकल थी।  मुझे उसकी कॉपी चाहिए थे। उन दिनों सेना में फ़ोटोस्टेट मशीन होने की बात तो दूर, सिविल में भी इसका चलन अभी तक आम नहीं हुआ था। मुझे उन कागजों की नकल टाइपराइटर पर टाइप करके बनानी थी। अतः मैंने निर्णय लिया कि समय बचाने के लिए, मैं उन कागज़ों को अलग से नहीं पढ़ूंगा बल्कि टाइप करता-करता ही पढ़ूंगा। 

मैंने लाँस नायक यादव से कहा था कि मैं रात का खाना जल्दी खाकर दफ्तर में काम करूंगा अतः वे रोशनी के लिए पैट्रोमैक्स को ठीक-ठाक कर लें। रेजिमेंट में आदेशानुसार रात को दफ्तर खोलने के लिए एक सक्षम अधिकारी की आज्ञा लेना अनिवार्य थी।  मेरे लिए वे सक्षम अधिकारी यूनिट के एडजुटेंट थे। वे मेजर के रैंक के अधिकारी थे। मैंने उनसे सेना के टेलीफोन पर आग्रह किया कि वे मुझे रात को दफ्तर खोल कर काम करने की परमिशन दें।  इससे पहले कि मैं उनको बजह बताता उन्होंने मुझे टोक कर निर्देश दिया कि जो भी काम है उसे मैं कल करूं और रात को आराम करूं। तब मैंने एडजुटेंट साहब को बताया था कि मैं उस जवान से  महत्वपूर्ण कागज़ात प्राप्त करने में कामयाब हो गया हूँ और मुझे टाइप करके उनकी एक कॉपी तैयार करनी है व सुबह ब्रेकफास्ट टाइम में उन्हें उसे वापस करना है। उन्होंने मुझे शाबाशी दी थी और साथ में  रात को दफ्तर खोलने के लिए इजाज़त भी। 

रात का खाना खिलाने के उपराँत, लाँस नायक यादव ने एक पेट्रोमैक्स जला कर, दफ्तर में मेरे टेबल के साथ गड़े एक खूंटे में टांग दिया था।  वह खूंटा मेरी कुर्सी की बायीं ओर एक ऐसे कोण पर गड़ा हुआ था कि उस पर टंगे हुये पैट्रोमैक्स की रोशनी में मेज पर रखी फ़ाइल, टाइपराइटर का की-बोर्ड और रोलर पर चढ़ा कागज साफ-साफ नज़र आते थे।  जैसे-जैसे मैं कोर्ट के फैसले की उस नकल को टाइप करता गया, मेरे रौंगटे खड़े होते चले गये।  मुझे उस शांत और चुपचाप रहने वाले जवान के अंदर छुपा भयानक बहशी दरिंदा स्पष्ट नज़र आने लगा था। कोर्ट ने बलात्कार का दोषी पाकर उसे सजा सुनायी थी।  उसने निचली अदालत के फैसले के विरुद्ध उच्च अदालत में अपील कर दी थी।  वह जमानत पर बाहर आ गया था। 

वह जवान उस समस्त घटनाक्रम को इस तरह नियोजित करने में सफल रहा था कि यूनिट में किसी को उसकी भनक तक नहीं लग पायी थी। जो कुछ उसने किया था वह सब छुट्टी के दौरान किया था।  नियमों के अनुसार पुलिस को उसके अपराध और गिरफ्तारी की सूचना सेना को देनी चाहिए थी, परंतु ऐसा नहीं हुआ था। उसको अदालत द्वारा दी जाने वाली तारीख़ों में हाज़िर होने के लिए, कोई बहाना बनाकर, बार-बार छुट्टी मांगनी पड़ती थी जिससे उसके बैटरी कमांडर को उस पर शक हो गया था। बैटरी कमांडर ने यूनिट के कमान अधिकारी से सलाह मशविरा करके उसके ज़िले की पुलिस को पत्र लिखे थे जिनका कभी कोई जवाब नहीं आया था। 

अदालत के फैसले में दर्ज, उस जवान की दरिंदगी की कहानी कुछ इस प्रकार थी - उसके गाँव के एक छोर पर तथाकथित निचली जाती के कुछ घर थे।  वे लोग तथाकथित उच्च जाति के खेतों में मेहनत मजदूरी करके अपना जीवनयापन करते थे। उन्हीं में से एक परिवार की एक जवान बेटी थी।  उसका विवाह हो गया था परंतु अभी तक 'गौना' नहीं हुआ था अर्थात वह किसी कारणवश अपने ससुराल नहीं गयी थी। एक दिन वह लड़की खेत मे काम कर रही थी।  छुट्टी पर गाँव गया वह जवान, खेत में जा कर उस पर झपट पड़ा और उसे दबोच कर बलात्कार का प्रयास करने लगा। लड़की की चीख-पुकार सुन कर एक अधेड़ महिला, जो पास के खेत में काम कर रही थी, शोर मचाती हुई लड़की की सहायता के लिए दौड़ पड़ी। उस महिला के हाथ में हंसिया था।  उसे आता देख कर, वह जवान लड़की को वहीं छोड़ कर भाग खड़ा हुआ। लड़की की इज्ज़त बच गयी परंतु उसके कपड़े फट गये थे।  मामला गाँव पंचायत में गया। पंचायत ने दोषी लड़के पर जुर्माना लगाया और लड़की और उसके परिवार वालों के आगे माफी मंगवा कर मामला रफा-दफा कर दिया गया। 

वह जवान कुछ महीनों के उपराँत फिर छुट्टी गया।  एक दिन उसने उस लड़की को अकेला पा कर खेतों में उसके साथ बलात्कार कर डाला।  इस बार भी लड़की ने शोर मचाया था लेकिन जब तक दूर खेतों में काम कर रही दो औरतें उसकी सहायता के लिए पहुंच पाती तब तक लड़की की इज्ज़त लुट चुकी थी।  उन दोनों औरतों ने अपराधी को बिल्कुल क़रीब से देखा था। अदालत में गवाह के तौर पर पंचायत के सदस्य और वे दो औरतें पेश हुई थीं।  मुक़दमा चला और अदालत ने उस जवानको दोषी पाकर, जहाँ तक मुझे याद आता है, पाँच या सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनायी थी। 

सेना अधिनियम-1950 के अनुसार अगर कोई जवान सिविल कोर्ट द्वारा दोषी पाया जाता है तो उसे तुरंत सेना से, बिना किसी लाभ के, सेवानिवृत्त किया जाना अनिवार्य होता है। उस जवान ने दो अपराध किये थे पहला अपराध बलात्कार था और दूसरा अपराध पहले अपराध को सेना से छुपाना था। उस जवान को 'समरी कोर्ट मार्शल' (एस सी एम) द्वारा ही बर्खास्त किया जा सकता था। अनुशासन संबन्धी बिषय मेरी जिम्मेदारी में आते थे अतः उसके बारे में उच्चाधिकारियों को सलाह देना मेरा ही काम था। 

मैं रात के तकरीबन बारह बजे अपना काम निपटा कर और दफ्तर बंद करके अपने स्लीपिंग बैग में घुसा था। लेकिन मुझे डेढ़-दो घंटे तक नींद नहीं आयी थी। शायद इसलिए कि मैं सोचता रहा था कि अगले दिन मैं एडजुटेंट और कमांडिंग ऑफिसर को उस केस के बारे में क्या ब्रीफिंग दूंगा। (कागज पर चारकोल से रेखांकन : सुमनिका) 

(शेष अगली कड़ी में….)


हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा से संबन्ध रखने वाले भगत राम मंडोत्रा एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उनकी  प्रकाशित पुस्तकें हैं      
 
जुड़दे पलरिह्ड़ू खोळूचिह्ड़ू मिह्ड़ूपरमवीर गाथा..फुल्ल खटनाळुये देमैं डोळदा रिहासूरमेयाँ च सूरमे और हिमाचल के शूरवीर योद्धा।
यदाकदा 
'फेस बुकपर 'ज़रा सुनिए तोकरके कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं।


3 comments:

  1. मंडोत्रां होरां हरेक कड़िया बिच फौजी जिंदगिया दे अनुभव दसदे। पिछलियां दूंह् कड़ियां ते बड़ी मजेदार क्हाणी चलियो है। मंडोत्रां होरां सस्पेंस खरा बणाह्या है। अगलिया कड़िया दी निहाळप लगियो है।

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    1. सेठी साहब जी, शुक्रिया तुसां दा।

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  2. सेठी साहब जी, शुक्रिया तुसां दा।

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