फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा ठ्हारुआं मणका।
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समाधियाँ दे परदेस च
तैह्ड़ी संझा तकरीबन छे बजे मिंजो स्नेहा मिल्ला कि मिंजो अगले दिन भ्यागा पंज बजे, सत्त होर जुआनाँ कन्नै लुम्पो ताँईं कूच करना था। मास्टर जी भी मिंजो कन्नै ही जाणे वाळे थे। भ्यागा सफर करना था इस ताँईं मैं कनै मास्टर जी राती तौळे ही सोई गै। राती दे तकरीबन साढ़े दस बजे मिंजो जगाया गिया। मिंजो ताँईं उप-कमाण अफसर होराँ दा स्नेहा था कि मैं भ्यागा अट्ठ बजे तिन्हाँ कन्नै हौआई रस्ते ते लुम्पो रवाना होणा था। जमीनी रस्ते से मेरा जाणा रद्द होई गिह्या था। मैं खुस था।
अगले दिन मैं भ्यागा साढ़े सत्त बजे उप-कमाण अफसर होराँ दी बंकरनुमा रिहाइशगाह दे अग्गैं जाई रिहा। तित्थु इक जोंगा (फौज दी तिस बग्त दी छोटी गड्डी) खड़ोतिह्यो थी। असाँ तवाँग च फौज दे हेलिपैड ताँईं रवाना होई गै। हेलिपैड च इक चीता हेलीकॉप्टर खड़ोतेह्या था। दो पायलट आए कनै चीता दे अगले पासे दियाँ अपणियाँ-अपणियाँ सीटाँ पर बैठी गै, तिन्हाँ च इक पायलट कनै इक को-पायलट था। दोह्यों तोपखाने दे कैप्टन रैंक दे अफसर थे।
चीता हेलीकॉप्टर दा इस्तेमाल तोपखाने दी हौआई निगरानी चौकी दे तौर पर कित्ता जाँदा था इस ताँईं तिन्हाँ दिनाँ च तिस दे पायलट आर्टिलरी रेजिमेंट दे अफसर होंदे थे। तिन्हाँ दा कम्म हौआ च ऊंचाई पर उड़देयाँ-उड़देयाँ दुस्मण दे ठिकाणेयाँ दी दुरुस्त जाणकारी तोपखाने जो देणी होंदी थी ताकि तोपाँ सही जगह पर गोले सट्टी करी दुस्मण जो तबाह करी सकण।
पायलटाँ दे पिच्छें तिन्न आदमियाँ जो बैठणे जितणी जगह थी। उप-कमान अफसर होराँ कनै मैं, तित्थु बैठी गै। मैं अपणा स्लीपिंग बैग कनै जरूरी सामान भी रक्खी लिह्या था। मैं एत्थु याद कराई दूं कि उप-कमान अफसर होराँ भी हेलीकॉप्टर दे ट्रेंड पायलट थे। तिन्हाँ जो कई सौ घंटे उड़ाण भरने दा तजुर्बा हासिल था।
हैलीकॉप्टर दा इंजण चालू होई गिया। इंजण दी बड़ी तेज उआज दे बिच उप-कमाण अफसर होराँ ने मिंजो अपणे हत्थां कन्नै सीट बेल्ट लगाणे दा इसारा कित्ता जेह्ड़ा मिंजो समझ नीं आया। तिस बग्त तिकर मिंजो पता नीं था कि उड़ाण दे बग्त सीट बेल्ट भी लगाए जाँदे हन्न इस ताँईं मैं चुपचाप बैठी रिहा। हेलीकॉप्टर उड़ाण भरने ही वाळा था। अफसर होराँ खुद झुकी करी मेरी सीट बेल्ट जो लगाई दित्ता। मिंजो सीट कन्नै बन्हेया जाणा अटपटा देहा लग्गेया। मैं पायलटाँ कनै उप-कमाण अफसर होराँ पासैं नजर दित्ती, सैह् भी सीट बेल्टाँ कन्नै बन्हेयो थे। चॉपर नै जमीन छड़देयाँ ही इक दो हिचकोले खाह्दे कनै उड़ी चल्लेया।
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समाधियों के प्रदेश में (अठारहवीं कड़ी)
तवाँग में मेरा छठा दिन था। मुझे कुछ और सैनिकों के साथ, शारीरिक जाँच के लिए, एम.आई. रूम (मेडिकल इंस्पेक्शन रूम) में भेजा गया। जाँच के उपराँत सेना के डॉक्टर ने मुझे 'लुम्पो' जाने के लिए फिट घोषित कर दिया। याद दिला दूं कि मेरी रेजिमेंट का मुख्यालय लुम्पो में था और मुझे वहाँ जाना था। वह जगह भारत-चीन सीमा पर स्थित है। मुझे साथी जवानों से जानकारी मिली थी कि जनवरी सन् 1989 में जब यूनिट लुम्पो चढ़ी थी तो तवाँग से पैदल चली थी और दो दिन की पैदल यात्रा के उपराँत लुम्पो पहुंची थी। जुलाई आते-आते हालात थोड़े सुधर गए थे। मुझे बताया गया कि लूमला तक छोटी फौजी गाड़ी (ट्रक वन टन 4×4 निशान) पंहुचा देगी, उसके आगे पैदल चल कर उसी दिन अंधेरा होने से पहले 'गोरसम' होते हुए लुम्पो पंहुचना था। मैंने मानसिक रूप से अपने आप को उस यात्रा के लिए तैयार कर लिया था।
उसी दिन संध्या के लगभग छह बजे मुझे संदेश मिला कि मुझे अगले दिन सुवह पाँच बजे सात अन्य सैनिकों के साथ लुम्पो के लिए कूच करना था। मास्टर जी भी मेरे साथ ही जाने वाले थे। सुबह सफर करना था इसलिए मैं और मास्टर जी रात को जल्दी ही सो गए थे। रात के तकरीबन साढ़े दस बजे मुझे जगाया गया। मेरे लिए उपकमान अधिकारी महोदय का संदेश था कि मुझे सुबह 8 बजे उनके साथ हवाई मार्ग से लुम्पो रवाना होना था। जमीनी रास्ते से मेरा जाना रद्द हो गया था। मैं खुश था।
अगले दिन मैं प्रातः साढ़े सात बजे उप-कमान अधिकारी महोदय की बंकरनुमा रिहाइशगाह के आगे पहुंच गया। वहाँ एक जोंगा (सेना की उस समय की छोटी गाड़ी) खड़ी थी। हम तवाँग स्थित सेना के हेलिपैड के लिए रवाना हो गए। हेलिपैड पर एक चीता हेलीकॉप्टर खड़ा था। दो पायलट आए और चीता के आगे की ओर स्थित अपनी-अपनी सीटों पर बैठ गए, इनमें एक पायलट और एक सहायक पायलट था। दोनों तोपखाने के कैप्टन रैंक के अफसर थे।
चीता हेलीकॉप्टर का उपयोग तोपखाने की हवाई पर्यवेक्षण चौकी के तौर पर किया जाता था इसलिए उन दिनों उसके पायलट आर्टिलरी रेजिमेंट के अधिकारी होते थे। उनका काम हवा में ऊंचाई पर उड़ते हुए शत्रु के ठिकानों की सटीक जानकारी तोपखाने को देनी होती थी ताकि तोपें सही जगह पर गोले गिरा कर शत्रु को नेस्तनाबूद कर सकें।
पायलटों के पीछे तीन आदमियों को बैठने जितनी जगह थी। उप-कमान अधिकारी महोदय और मैं वहाँ बैठ गए। मैंने अपना स्लीपिंग बैग और ज़रूरी सामान भी रख लिया था। मैं यहाँ याद दिला दूं कि उप-कमान अधिकारी महोदय भी हेलीकॉप्टर के प्रशिक्षित पायलट थे उन्हें कई सौ घंटे उड़ान भरने का अनुभव प्राप्त था।
हैलीकॉप्टर का इंजन चालू हो गया। इंजन की अति तेज ध्वनि के बीच उप-कमान अधिकारी महोदय ने मुझे अपने हाथों से सीट बेल्ट लगाने का संकेत किया जो मुझे समझ नहीं आया। उस समय तक मुझे पता नहीं था कि उड़ान के समय सीट बेल्ट भी लगाए जाते हैं अतः मैं चुपचाप बैठा रहा। हेलीकॉप्टर उड़ान भरने ही वाला था। अधिकारी महोदय ने खुद झुक कर मेरी सीट बेल्ट को लगा दिया। मुझे सीट के साथ बांधे जाना अटपटा सा लगा। मैंने पायलटों और उप-कमान अधिकारी की ओर देखा वो भी सीट बेल्टों से बंधे थे। चॉपर ने जमीन छोड़ते ही एक दो हिचकोले खाए और उड़ चला।
भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन। फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) दे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) दी डिग्री हासिल कित्ती। इस ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी. च, 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसर' दी जिम्मेबारी निभाई।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही। आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।
हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तो' करी नैं कदी-कदी किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।
बड़ी रोचक क्हाणी।
ReplyDeleteगांह दीयाँ क्हाणीयाँ पढ़ने दी भुक्ख जाग्गी उट्ठी।
बड़ी छैल लिखियो कहानी। बधाई हो मंडोश्रा जी।
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