नूरानॉंग झरना |
फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा चौदुह्आं मणका।
.....................................................................
सहीदाँ दियाँ समाधियाँ दे परदेसे च
जसवंत गढ़ दे निचलैं पासैं जंग नाँएं दी इक जगह पोंदी है। जंग तवाँग-चू दे किनारे पर बस्सेह्या इक ग्राँ है। इत्थू तवाँग-चू बहोत डुग्घिया खाइया च बग्दी नजर ओंदी है। इसा जगहा च तित्थू दे मूल वासियाँ दी आबादी है। जंग, से-ला ते तवाँग दे पासैं तकरीबन चौताळी किलोमीटर दूर उतराइया च पोंदा है।
जंग दे बक्खैं-बक्खैं गुजरदिया सड़का ते तकरीबन अद्धा किलोमीटर उपरले पासैं नूरानाँग झरना है। इत्थू नूरानाँग नदी, से-ला (दर्रे) दी उत्तरी ढलाण ते निकळी नै, नूरानाँग होंदी होई, तकरीबन सौ मीटर उपरा ते पई करी, तवाँग-चू (नदी) च मिलदी है। एह् बहोत बड्डा झरना दिखणे जो बड़ा छैळ लगदा है। अरुणाचल प्रदेश च नूरानाँग वॉटरफॉल जो बोंग बोंग भी बोल्या जाँदा है। एह् भारत दे सब्भते खूबसूरत झरनेयाँ च इक है। हुण ताँ सुणेह्या, तित्थू इक छोटा हाइड्रो पावर प्लाँट भी बणी गिह्या है। राकेश रोशन दी सन् 1997 च बणाइह्यो शाहरुख खान कनै माधुरी दीक्षित दी फिल्म 'कोयला' दे इक सीन च इस झरने दी इक झलक दिखणे जो मिलदी है। इस्सेयो जंग दा झरना भी ग्लाँदे हन्न। जंग ते तवाँग जाणे ताँईं, जरा कि दरेडैं, तवाँग-चू पर एक छोटा पुळ पार करना पोंदा है। तिस बग्त सैह् पुळ संगड़ा जेहा था। सन् 1962 दी भारत-चीन जंग दे दौरान, चीनी फौज दा रस्ता रोकणे ताँईं, इस पुळ जो भारत दिऐं फौजैं तोड़ी दित्ता था।
तवाँग जंग ते तकरीबन उणत्ती किलोमीटर दूर दूजे पासैं उचाइया पर पोंदा है। तवाँग-चू दा पुळ पार करने ते किछ देरा परंत आबादी सुरू होई जाँदी है। तवाँग ते किछ दूर पहलैं बोमड़ीर ओंदा है। तिस बग्त तवाँग जाणे वाळी फौजी गडियाँ दे काफले बोमड़ीर च ही रुकदे थे कनै तित्थू ते ही वापिस असम दे तेजपुर कनै गुहाटी मुड़ने वाळी फौजी गडियाँ चला करदियाँ थियाँ।
असाँ दियाँ गडियाँ तवाँग बाजारे ते बाहरैं-बाहरैं होंदियाँ होइयाँ तकरीबन दो किलोमीटर उप्पर चढ़ाइया पर पोंणे वाळी ‘चूजे जीजी' नाँएं दिया ठाहरी जाई खड़ोतियाँ। नायक याद राम यादव नै मिंजो दस्सेया कि असाँ अपणिया मंजिला पर पोंह्ची गैह्यो थे। तिसा ठाहरी पर मेरी नोंईं रेजिमेंट दा ‘रियर' (पिछला हेस्सा) तैनात था। रेजिमेंट दियाँ गडियाँ दे बेड़े कन्नै सारे डरैवर तिसा जगह च ही रैंह्दे थे। रेजिमेंट दा मेन अगला हेस्सा, अग्गैं लुम्पो नाँएं दिया जगहा च था कनै इक बैटरी लुम्पो ते भी अग्गैं ‘नीलिया' नाँएं दिया ठाह्री तैनात थी।
मेरी नोंईं यूनिट दी मेन जिम्मेदारी, फौज दे पंजमें माउंटेन डिवीज़न दे अंडर पोंणे वाळे 77 माउंटेन ब्रिगेड (चिंडिट) दियाँ, भारत-चीन सरहदा पर तैनात, तिन्न इन्फेंट्री बटालियनाँ जो, ज़रूरत पोंणे पर, आर्टिलरी फायर स्पोर्ट देणा थी। तिस बग्त लुम्पो सड़क दे रस्तें तवाँग कन्नै जुड़ेह्या नीं था। तवाँग ते संगड़ी देही इक सड़क लुम्पो ते तिन्न-चार किलोमीटर पिच्छैं घुरसम नाँएं दिया इक जगह तिकर ही जांदी थी। तिसा सड़का च मात्र जीप/जोंगा कनै छोटे ट्रक वन टन ही मुस्कला नै ओंद-जाँद करी सकदे थे किंञा कि सैह् सड़क कच्ची कनै उबड़-खाबड़ भी थी। इसा बजह ते यूनिट दियाँ गडियाँ दा बेड़ा तवाँग दे उपरले हेस्से चूजे जीजी च रखणा पोंदा था।
अरुणाचल प्रदेश च मतियाँ जगहाँ दे नाँए कन्नै जीजी जुड़ेह्या होंदा है जिंञा कि चूजे जीजी। जीजी अंग्रेजी भासा दे अखराँ ‘ग्रेजिंग ग्राउंड' दा निक्का रूप है जिन्हाँ दा मतलब है—चारांद यानि कि सैह् जगहाँ याकाँ दे चाराँद होंदे हन्न।
फौज दी हर टुकड़ी (यूनिट) जो लीड करने कनै बंदोबस्त करने ताँईं पिरामिड नुमा ढाँचे च कठेरेया जाँदा है। आमतौर पर सब्भ किसमाँ दियाँ टुकड़ियाँ दा सब्भते छोटा हेस्सा सेक्शन होंदा है। तिसदे उप्परले हेस्से जो अलग-अलग किसमाँ दियाँ फौजी टुकड़ियाँ च अलग-अलग नाँ ते जाणेया जाँदा है जिंञा कि टैंकाँ वाळी फौज (आर्म्ड कोर) च कनै बड्डियाँ तोपाँ वाळी फौज (आर्टिलरी) च सेक्शन ते उप्पर ट्रूप होंदा है जिस च इक ते ज्यादा सेक्शन होंदे हन्न। पैदल फौज (इन्फेंट्री) च इस्सेयो प्ळटून (प्लाटून) दे नाँ ते जाणेया जाँदा है। ट्रूप जाँ प्ळटून ते उप्पर आर्म्ड कोर च ‘स्क्वाड्रन’ होंदा है, आर्टिलरी च ‘बैटरी’ होंदी है कनै इन्फेंट्री च ‘कंपणी’ होंदी है। इस ते उप्पर रेजिमेंट जाँ बटालियन होंदी है।
उप-कमाण अफसर होराँ, सड़का दे उपरले पासैं यूनिट दे अफसराँ ताँईं बणिह्यो बंकरनुमा रिहाइशा बक्खी चली गै। मिंजो सड़का दे निचले पासैं इक झोंपड़े दे पिछले हेस्से च अपणा सामान लई जाणे ताँईं बोल्या गिया। मैं दिक्खेया कि तिस झोंपड़े जो टिन दियाँ चादराँ लगाई करी दो हेस्सेयाँ च बंडेया गिह्या था। झोंपड़े दा पिछला हेस्सा तकरीबन तिसदा इक चौथाई हेस्सा था जिसदा दरवाजा सड़का पासैं खुलदा था। अगला तिन्न चौथाई हेस्सा तवाँग बाजार कनै तवाँग दे मसहूर बौद्ध मठ दे पासैं खुलदा था कनै तिस च तिरपाल बिछेह्या था। मैं दिक्खी करी एह् अंदाजा लगाया कि सैह् फौजियाँ ताँईं समै-समै पर चलणे वाळियाँ कलासाँ दे कम्में ओंदा होंगा।
मैं अपणे ठहरने दिया जगहा पर नजर मारा दा ही था कि तिसा रेजिमेंटा च कम्म करने वाळे सेना शिक्षा कोर दे इक हौळदार भी अपणा सामान लई करी तित्थू मिंजो व्ह्ली आई गै। तिन्हाँ मिंजो दस्सेया कि तिन्हाँ जो मिंजो कन्नै रैह्णे ताँईं भेज्या गिह्या था। तिसा जगह च कुसी दा किह्ले रैह्णा, खास करी नै राती जो, सेफ नीं मन्नेयाँ जाँदा था। इस ताँईं तिन्हाँ जो मिंजो सोगी रैह्णे जो भेज्या गिह्या था। उहिंञा भी फौज च ‘साथी व्यवस्था' (Buddy system) होंदी है। हर फौजी दा इक जोड़ीदार होंदा है जेह्ड़ा सुख-दुख च, खास करी नै जंग च हेस्सा लैंदे बग्त, तिसदा साथ दिंदा है।
इक दूजे कन्नै बाकमी करी नै असाँ किछ ही देरा च मित्र बणी गै। मैं
तिन्हाँ जो 'मास्टर
जी' करी नै बुलाँदा कनै सैह् मिंजो 'बाबू
जी' बोली करी पुकारदे। मास्टर जी हरियाणा दे रैह्णे वाळे थे। तिस बग्त तवाँग च बिजली नीं आइह्यो
थी। असाँ रम दी खाली
बोतला दे ढक्कण च छींडा करी नै तिस च फटेह्यो कपड़े दी बत्ती बणाई करी पाई दित्ती। इंञा
बोतला च मिट्टिया दा तेल भरी करी जरूरत पोंणे पर राती लो करने दा इंतजाम होई गिया।
.....................................................................
शहीदों की समाधियों के प्रदेश में (चौहदवीं कड़ी)
जंग के नजदीक गुजरती हुई सड़क से लगभग आधा किलोमीटर ऊपर की ओर नूरानाँग झरना है। यहाँ पर नूरानाँग नदी, से-ला (दर्रे) की उत्तरी ढलान से निकल कर नूरानाँग होती हुई, लगभग 100 मीटर की ऊंचाई से गिर कर, तवाँग-चू (नदी) में मिलती है। यह बहुत बड़ा झरना देखते ही बनता है। अरुणाचल प्रदेश में नूरानाँग वॉटरफॉल को बोंग बोंग भी कहा जाता है। यह भारत के सबसे खूबसूरत झरनों में से एक है। सुना है अब वहाँ एक छोटा हाइड्रो पावर प्लाँट भी बन गया है। राकेश रोशन द्वारा सन् 1997 में निर्मित शाहरुख खान और माधुरी दीक्षित द्वारा अभिनीत ‘कोयला' फिल्म के एक दृश्य में भी इस झरने की एक झलक देखने को मिलती है। इसे जंग का झरना भी कहते हैं। जंग से तवाँग जाने के लिए थोड़ी दूरी पर तवाँग-चू पर एक छोटा पुल पार करना पड़ता है। उस समय वह पुल संकरा सा था। सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, चीनी सेना का मार्ग अवरुद्ध करने के लिए, इस पुल को भारतीय सेना द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था।
तवाँग जंग से लगभग 29 किलोमीटर की दूरी पर दूसरी ओर ऊंचाई पर स्थित है। तवाँग-चू का पुल पार करने के कुछ देर बाद आबादी शुरू हो जाती है। तवाँग से कुछ दूर पहले बोमड़ीर आता है। उस समय तवाँग जाने वाले सेना की गाड़ियों के काफले बोमड़ीर में ही रुकते थे और वहीं से ही वापिस असम के तेजपुर और गुहाटी लौटने वाली सैनिक गाड़ियाँ चला करतीं थीं।
हमारी गाड़ियाँ तवाँग बाजार के बाहर-बाहर से होती हुईं लगभग 2 किलोमीटर ऊपर चढ़ाई पर स्थित ‘चूजे जीजी' नामक स्थान पर जा कर खड़ी हो गईं। नायक यादव ने मुझे बताया कि हम मंजिल पर पहुंच चुके थे। यहाँ पर मेरी नई रेजिमेंट का ‘रियर' (पिछला भाग) स्थित था। रेजिमेंट की गाड़ियों के बेड़े के साथ चालक दल उसी स्थान पर रहता था। रेजिमेंट का मुख्य अग्रिम भाग आगे लुम्पो नामक स्थान में था और एक बैटरी लुम्पो से भी आगे नीलिया में तैनात थी।
मेरी नई यूनिट का मुख्य कार्य सेना के पाँचवें माउंटेन डिवीज़न के अधीन 77 माउंटेन ब्रिगेड (चिंडिट) की भारत-चीन सीमा पर स्थित तीन इन्फेंट्री बटालियनों को, ज़रूरत पड़ने पर, आर्टिलरी फायर स्पोर्ट देना था। उस समय लुम्पो सड़क मार्ग से तवाँग से जुड़ा हुआ नहीं था। तवाँग से संकरी सी एक सड़क लुम्पो से तीन-चार किलोमीटर पीछे घुरसम नामक स्थान तक ही जा पाती थी। उस सड़क पर मात्र जीप/जोंगा और छोटे ट्रक वन टन ही मुश्किल से आवाजाही कर पाते थे क्योंकि वह सड़क कच्ची और उबड़-खाबड़ भी थी। इसी बजह से यूनिट की गाड़ियों का मुख्य बेड़ा तवाँग के ऊपरी भाग चूजे जीजी में रखना पड़ता था।
अरुणाचल प्रदेश में बहुत से स्थानों के नामों के साथ जीजी जुड़ा हुआ मिलता है जैसे कि चूजे जीजी। जीजी अंग्रेजी भाषा के शब्दों ‘ग्रेजिंग ग्राउंड' का छोटा रूप है जिनका अर्थ है—चारागाह अर्थात ये स्थान याकों की चारागाह होते हैं।
सेना की हर टुकड़ी (यूनिट) को नेतृत्व और प्रबंधन के लिए पिरामिड नुमा ढाँचे में संगठित किया जाता है। प्रायः सभी प्रकार की टुकड़ियों की सबसे छोटी इकाई अनुभाग (सेक्शन) होती है। उसके ऊपर की इकाई को विभिन्न प्रकार की सैनिक टुकड़ियों में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे टैंकों से सज्जित सेना (आर्म्ड कोर) में और बड़ी तोपों से सज्जित सेना (आर्टिलरी) में सेक्शन के ऊपर ट्रूप होता है जिसमें एक से अधिक अनुभाग (सेक्शन) होते हैं। पैदल सेना (इन्फेंट्री) में इस इकाई को प्लाटून के नाम से सम्बोधित किया जाता है। ट्रूप अथवा प्लाटून के ऊपर आर्म्ड कोर में ‘स्क्वाड्रन’ होता है, आर्टिलरी में ‘बैटरी’ होती है और इन्फेंट्री में ‘कंपनी’ होती है। इसके ऊपर रेजिमेंट अथवा बटालियन होती है।
उप-कमान अधिकारी महोदय सड़क के ऊपर की तरफ यूनिट के अफसरों के लिए बने बंकरनुमा आवास में चले गए। मुझे सड़क के नीचे की ओर एक झोंपड़े के पिछले भाग के अंदर अपना सामान ले जाने के लिए कहा गया। मैंने देखा उस झोंपड़े को टिन की चादरें लगा कर दो भागों में बांटा गया था। झोंपड़े का पिछला भाग लगभग उसका एक चौथाई भाग था जिसका दरवाज़ा सड़क की ओर खुलता था। अगला तीन चौथाई भाग तवाँग बाजार और तवाँग के प्रसिद्ध बौद्ध मठ की दिशा में खुला था और उसमें तिरपाल बिछा था। मैंने देख कर अंदाजा लगाया कि यह सैनिकों के लिए समय-समय पर चलने वाली कक्षाओं के लिए काम आता होगा।
मैं अपने ठहरने के स्थान का निरीक्षण कर ही रहा था कि उसी रेजिमेंट में सेवारत सेना शिक्षा कोर के एक हवलदार भी अपना सामान लेकर वहाँ मेरे पास आ गए। उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें मेरे साथ ठहरने के लिए भेजा गया है। वहाँ पर किसी का अकेले रहना, बिशेषकर रात को, सुरक्षित नहीं माना जाता था। इसीलिए उन्हें मेरे साथ रहने के लिए भेजा गया था। बैसे भी सेना में ‘साथी व्यवस्था' (Buddy system) होती है। हर सैनिक का एक जोड़ीदार होता है जो सुख-दुख में, खास करके युद्ध में भाग लेते समय, उसका साथ देता है।
एक दूसरे का परिचय पाकर हम कुछ ही देर में मित्र बन गए। मैं उनको ‘मास्टर जी’ करके संबोधित करता और वो मुझे ‘बाबू जी’ कह कर पुकारते। मास्टर जी हरियाणा के रहने वाले थे। उस समय तवाँग में बिजली की व्यवस्था नहीं थी। हमने रम की खाली बोतल के ढक्कन में छेद करके उसमें फटे कपड़े की बत्ती बना कर डाल दी। इस तरह बोतल में मिट्टी का तेल भर कर ज़रूरत पड़ने पर रात में रोशनी करने का इंतज़ाम हो गया।
भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर
दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन।
फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर
(ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) दे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी
सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.ए.
(अंग्रेजी साहित्य) दी डिग्री हासिल कित्ती। इस
ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी.
च, 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसर'
दी जिम्मेबारी निभाई।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें
ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी
रही। आखिर च घरें आई
सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार
कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी
चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट
अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली
चुकेया।
हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तो' करी नैं कदी-कदी
किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह बहुत ही उम्दा प्रस्तुति!
ReplyDeleteचंगा जी चंगा😀👌
और पंजाबी भाषा में तो और भी ज्यादा मजा आ गया पढ़कर!
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDelete