फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा ग्यारह्वां मणका।
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सहीदाँ दियाँ समाधियाँ दे परदेसे च
सेला दर्रे पर सज्जे बक्खें, उतरे पासें, चीन बक्खी
विकट पहाड़ां दी इक लड़ी नज़र औंदी है कनै खब्बे पासें थल्ले बक्खी पसरियो इक घाटी
है। तिसा ते होई नै ही तवाँग ताँईं सड़क जांदी है। असाँ दी गड्डी थल्ले बक्खी लोह्णा लग्गियो थी। जोंगा असाँ ते खरी गाँह् निकळी गइयो थी पर असाँ
दियाँ नज़राँ ते लुप्त नीं थी होइयो।
मैं कन्नै नायक याद राम यादव ताह्लू तिकर अप्पु
च खूब घुळी-मिळी गैह्यो थे। नायक यादवें मिंजो दस्सेया
कि पिछले दिनें असाँ फ़ौज दे किछ कायदेयाँ जो तोड़ेह्या था। जाह्लु असाँ बोमडिला दिया
ढळाना पर ल्हा पौणे दिया बजह ते रुकणे दे परंत चल्ले थे ताँ तिस बग्त असाँ कन्नै दूइयाँ
गड्डियाँ भी थियाँ अपर दिराँग च सारियाँ गड्डियाँ राती ताँईं रुकी गइयाँ थियाँ। सिर्फ किह्ली असाँ दी गड्डी ही सेंगे ताँईं
अग्गें निकळी थी। इक ताँ किह्ली गड्डी दूजी संझ की बत्तर यानि कि नेह्रे दी बेला — दोह्यो गल्लाँ तित्थु देयाँ कायदेयाँ दे खलाफ थियाँ। सीनियर मैं था इस
ताँईं नियमाँ जो तोड़ने ताँईं जवाबदेही भी मेरी ही थी। प्रभु दिया मेहरा ते सब्भ किछ
ठीक-ठाक रिहा था। उपकमान अफसर होराँ जो भी असाँ दिया खैरियता
दी फिकर थी ताँह्ईं ताँ सैह् ट्रांजिट कैम्प जो बार-बार फोन करी नै असाँ दे पौंह्चणे दे बारे च पुच्छा दे थे। तिस इलाके
च अमूमन आर्मी सप्लाई कोर दियाँ गड्डियाँ दे काफले चलदे थे कनै दूजियाँ यूनिटां दियाँ
छिटपुट गड्डियाँ तिन्हाँ काफलेयाँ कन्नै होई लैंदियाँ थियाँ।
मोटे तौर पर ज़मीनी फ़ौज जो दो खास हेस्सेयाँ
च बंडी सकदे हन्न। पहला हेस्सा लड़ाकू होंदा है जेह्ड़ा आमणे सामणे होई करी दुस्मणा कन्नै
लड़दा है। फ़ौज दा दूजा हेस्सा अपणे लड़ाकू हेस्से जो सिऔआँ दिंदा है जिंञा कि
कपड़े, खाणा, हथियार,
गोळा-बारूद,
बगैरा। ज़मीनी फ़ौज दे लड़ाकू हेस्से च आर्म्ड कोर (टैंकां आळी फ़ौज) आर्टिलरी (बड़ी तोपाँ कन्नै सज्जियो फ़ौज) इन्फेंट्री (पैदल
कनै बख्तरवन्द फ़ौज),
इंजीनियर कनै सिग्नल कोराँ सामल हन्न। अंग्रेजिया च इन्हाँ जो 'आर्म्स' गलाँदे हन्न। दूजे हेस्से च ज़मीनी फ़ौज
जो सहूलताँ देणे वाळे आर्मी सप्लाई कोर, ऑर्डनेंस
कोर, ईएमई, सेना मेडिकल कोर, सेना डेंटल कोर, आर्मी पोस्टल कोर, सेना पुलिस कोर, बगैरा औंदे हन्न।
इन्हाँ
जो 'सर्विसेज' बोल्या जांदा है। 'आर्म्स' जो फ़ौज दे 'टीथ' कनै 'सर्विसेज' जो 'टेल' मन्नेयाँ जांदा है। कोई भी फ़ौज कितणी असरदार
है एह् इस पर निर्भर करदा है कि तिसा दे 'टीथ' बड़े हन्न जाँ 'टेल'।
असाँ दिया फ़ौजा दे मोटे-मोटे दो कम्म होंदे हन्न। पहला कनै खास
कम्म अपणे देस दियाँ सरहदाँ दी फ्हाजत करना कनै दूजा कम्म है कुदरत दे कहर दे बग्त
कनै अंदरूनी खळबळी दे टैमे सादा औणे पर सरकार कनै प्रशासन दी मदत करना।
थोड़ी कि देर चलने दे परंत इक्की ठाहरी किछ
फ़ौजी चलदे-फिरदे नज़र औणा लगे। उपकमान अफ़सर होराँ दी
जोंगा तित्थु ही खड़ोतियो थी। नायक याद राम यादव होराँ मिंजो दस्सेया कि सैह्
जगह नूरानाँग थी कनै तिस बग्त तित्थु रखेह्यो फ़ौज दे गोळा-बारूद भंडार दी फ्हाजत ताँईं म्हारिया यूनिटा दी गार्ड तैनात थी। उपकमान अफ़सर होराँ गार्ड इंचार्ज जेसीओ (जूनियर कमीशंड आफिसर) ते किछ
पुच्छा दे थे कनै कन्नै-कन्नै तिन्हाँ जो हिदायताँ भी दिंदे जाह्दे
थे। गल्ल-बात दा खास मुद्दा गार्ड च सामल फ़ौजियाँ दियाँ
छुट्टियाँ कन्नै जुड़ेह्या था।
जेह्ड़े जुआन तिस बग्त डि्यूटिया पर नीं
थे, उन्हाँ च तकरीबन सारे ही, मेरे औणे दा पता लगणे पर, मिंजो नै आई करी मिले कनै हाल-चाल पुच्छेया। मिंजो चाह् पियाई।
मिंजो
खरा लगा कि मैं मिलणसार वीर-अहीराँ
दिया यूनिटा च सामल होणा जाह्दा था।
तित्थु ते विदा लई करी असाँ फिरी थल्ले पासे
बक्खी अपणा सफ़र जारी रखेया। थोड़िया कि देरा च इक मोड़े पर खब्बे पासें
सड़का ते किछ गज उप्पर लोहे जाँ लकड़ी दे खंभेयाँ पर मते सारे झंडे नज़र आए। किछ चिणाइया
दा कम्म भी लगेह्या सुज्झा दा था। मिंजो इंञा लगेया कि जिंञा तित्थु कोई मंदर
होए।
मैं नायक यादव होराँ ते तिस जगह दे बारे च पुछणे
ताँईं अपणी मुंडी तिन्हाँ पासें घुमाई ही थी कि तिन्हाँ सड़का दे किनारें गड्डी खड़ेरी
दित्ती। मैं कोई सुआल पुछदा तिसते पहलैं ही सैह् बोली पै, "बाबू जी एह् जसवंत गढ़ है। औआ जसवंत बाबा दे दर्सण करी लैंदे।" एह् गलाई नै सैह् गड्डिया ते उतरी गै। मैं 4 गढ़वाल
राईफल्स दे सूरमा राइफलमैन जसवंत सिंह दी वीरगाथा पैह्लैं ही कुत्ह्की पढ़ी रखिह्यो
थी। एह् मेरे बड़-भाग थे कि मिंजो तिस योद्धा दी समाधी दे दर्सण
करने दा मौका मिलेया। अपणे आपे जो समाधी दे साह्म्णे पाई करी मेरे जिस्म दे रौंगटे खड़ोई गै
थे।
मैं अपणिया सीटा पर हैराण होई बैठया चोंह् पासें
नज़र फेरी करी तिसा जगह दा जायजा लैह्दा ही था कि नायक यादव होराँ गड्डिया दी मेरे
पासे वाळी खिड़की थपथपाई,
"सर थल्लैं आई जा, जेह्ड़ा एत्थु आई करी जसवंत बाबा जी दे दर्सण नीं करदा सैह् ज़िंदा मुड़ी
करी नीं औंदा।" मैं बिचकी पिया कनै तरंत खिड़की खोली नै कुद्दी करी थल्लैं आई गिया किंञा
कि मिंजो सहीदाँ दियाँ समाधियाँ दे परदेसे ते ज़िंदा वापस जे जाणा था।
"औआ चलदे हन्न" मैं अपणिया वर्दिया दियाँ घरूंजिड़ियाँ कनै
बेल्ट जो ठीक-ठाक करदें तिस जो गलाया।
"चला।"
"यादव, क्या तुसाँ राइफलमैन जसवन्त सिंह रावत होराँ दिया बहादुरिया दी कहाणी
जाणदे?"
"हां, सर," नायक यादव होराँ समाधिया पासें अपणे कदम बढाँदेयाँ
बोले, "सन् 1962 दी
भारत-चीन जंग दे बग्त चीनी फ़ौजें साह्म्णें तवाँग
दे पासे ते इक बड़ा भारी हमला कित्ता था। इस जगह पर फोर गढ़वाल राइफल्स दा डिफेंस था। जसवंत बाबा होराँ अपणे दो साथियाँ कन्नै मिली
करी, रैफळ कनै एलएमजी दी मदता नै, भारी तदाद च अग्गें बद्धदे हमलवार चीनियाँ जो बहत्तर घंटे तिकर रोकी
रखेया था। सैह् इसा ही जगह पर सहीद होए थे कनै तिन्हाँ जो मरनें परंत महावीर चक्र
दित्ता गिया था।
मैं भी गढ़वाल राइफल्स दी चौथी बटालियन दे राइफलमैन
जसवन्त सिंह होराँ दे बारे च देहा ही पढ़ेह्या था।
ज़मींनी फ़ौज दे ज्यादातर अंगाँ च सब्भते छोटे
रैक जो 'सिपाही' गलाँदे हन्न। राजपुताना राइफल्स, जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स कनै गढ़वाल राइफल्स च इस रैंक जो ‘राइफलमैन’
बोलया जाँदा है। आर्म्ड कोर (टैंकाँ आळी फ़ौज) च ‘सवार’
गलाँदे हन्न। आर्टिलरी (तोपखाना)
कनै आर्मी एयर डिफेंस च इस जो ‘गनर’ करी नै जाणेयाँ जाँदा है ताँ सिग्नल कोर च सिग्नलमैन
बुलाया जाँदा है। 'ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स' च इस रैंक जो 'गार्डसमैन' गलाँदे हन्न। इस तरहाँ इस रैंक जो बख-बख हेस्सेयाँ च बख-बख नाँ
ते बुलाया जाँदा है।
सिपाही जाँ इसदे बरोबर दे रैंक ते उप्पर सिलसिलेवार लाँस नायक, नायक कनै हवलदार होंदे हन्न। एह् 'नॉन कमीशंड ऑफीसर्स' दे दर्जे च औंदे हन्न। हवलदार कनै तिस ते थल्ले वाळे रैंकां जो ओ आर (अदर रैंक्स) दे नाँ ते भी जाणेयाँ जाँदा है। इन्हाँ रैंकाँ दे नाँ तकरीबन सारे 'आर्म्स' कनै 'सर्विसेज' च इक्को जेहे हन्न। हवलदार ते उप्पर नायब सूबेदार, सूबेदार, सूबेदार मेजर दे रैंक औंदे हन्न। आर्म्ड कोर च इन्हाँ जो तरतीब कन्नै नायब रिसालदार, रिसालदार कनै रिसालदार मेजर बोलया जाँदा है। एह् 'जूनियर कमीशंड ऑफिसर्स' करी नै जाणे जाँदे हन्न। सन् 1965 ते पहलैं नायब सूबेदार जाँ नायब रिसालदार जो 'जमादार' बोलया जाँदा था। सूबेदार मेजर जाँ रिसालदार मेजर ते लई करी थल्लें सिपाही तिकर सब्भ जो 'पीबीओआर' (पर्सन्स बिलो ऑफिसर्स रैंक) भी गलाँदे हन्न।
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शहीदों की समाधियों प्रदेश में (ग्यारहवीं कड़ी)
मैं और नायक याद राम यादव तब तक आपस में अच्छी
तरह घुल-मिल गए थे। नायक यादव ने मुझे बताया कि हमने
पिछले दिन सेना के कुछ नियमों को तोड़ा था। जब हम बोमडिला की ढलान पर भूस्खलन होने के
कारण रुकने के बाद चले थे तो उस समय हमारे साथ दूसरी गाड़ियाँ भी थीं पर दिराँग में
सभी गाड़ियाँ रात के लिए रुक गईं थीं। केवल हमारी गाड़ी ही सेंगे के लिए आगे बढ़ी थी।
एक तो अकेली गाड़ी दूसरा साँयकाल अर्थात् अंधेरे की दस्तक, दोनों बातें वहाँ के नियमों के विरुद्ध थीं। सीनियर मैं था अतः नियमों
के उल्लंघन के लिए जवाबदेही भी मेरी ही थी। प्रभु कृपा से सब कुछ ठीक रहा था। उप-कमान अधिकारी को भी हमारी खैरियत की चिंता थी तभी तो वह ट्रांजिट कैंम्प
में बार-बार हमारे पहुंचने के बारे में पूछताछ कर रहे
थे। उस क्षेत्र में अक्सर सेना आपूर्ति कोर (आर्मी
सप्लाई कोर) की गाड़ियों के काफ़िले चलते थे और दूसरी यूनिटों
की छिटपुट गाड़ियाँ उस काफ़िले के साथ हो लेती थीं।
मोटे तौर पर स्थल सेना को दो मुख्य भागों
में बाँटा जा सकता है। पहला भाग लड़ाकू होता है जो आमने-सामने होकर, शत्रुओं से लड़ता है। सेना का दूसरा भाग
अपने लड़ाकू भाग को सेवाएं प्रदान करता है जैसे कि वस्त्र, भोजन, हथियार, गोला- बारूद, इत्यादि। थल सेना के लड़ाकू भाग में आर्म्ड
कोर (टैंकों वाली सेना), आर्टिलरी (बड़ी तोपों से सज्जित सेना), इन्फेंट्री (पैदल व बख्तरबन्द सेना), इंजीनियर और सिग्नल कोर शामिल हैं। इन्हें
अँग्रेजी में
'आर्म्स' कहा जाता है। दूसरे भाग में थल सेना को
सेवाएं प्रदान करने वाले आर्मी सप्लाई कोर, आर्डनेंस
कोर, ईएमई, सेना चिकित्सा कोर, सेना डेंटल कोर, सेना डाक सेवा
कोर, सेना पुलिस कोर, इत्यादि आते हैं। इन्हें 'सर्विसेज' कहा जाता है।
'आर्म्स' को सेना के 'टीथ' और 'सर्विसेज' को 'टेल' माना जाता है। कोई भी सेना कितनी असरदार
है ये इस पर निर्भर करता है कि उस के 'टीथ' बड़े हैं या 'टेल'।
हमारी सेनाओं के दो मुख्य कार्य होते हैं।
पहला और प्रमुख कार्य है अपने देश की सीमाओं की रक्षा करना और दूसरा कार्य है प्राकृतिक
आपदा के समय तथा आंतरिक अशांति के समय बुलाये जाने पर सरकार और प्रशासन की सहायता करना।
थोड़ी देर चलने के उपराँत एक जगह पर कुछ सैनिक
चलते-फिरते नज़र आने लगे। उप-कमान अधिकारी की जोंगा भी वहाँ ही रुकी हुई थी। नायक याद राम यादव ने
मुझे बताया कि वह जगह नूरानाँग थी और उस समय वहाँ स्थित सेना के गोला-बारूद भण्डार की सुरक्षा के लिए हमारी यूनिट की गार्ड तैनात थी। उप-कमान अधिकारी वहाँ के गार्ड इंचार्ज जेसीओ (जूनियर कमीशंड आफिसर) से कुछ
जानकारियाँ ले रहे थे और साथ साथ उनको निर्देश भी देते जा रहे थे। बातचीत का खास मुद्दा
गार्ड के सदस्यों की छुट्टियों से जुड़ा था।
जो जवान उस समय डयूटी पर नहीं थे, उनमें लगभग सभी मेरे आने का पता लगने पर मुझ से आ कर मिले और हाल चाल
पूछा। मुझे चाय पिलाई। मुझे अच्छा लगा था कि मैं मिलनसार वीर-अहीरों की यूनिट में शामिल होने जा रहा था।
वहाँ से विदा ले कर हमने फिर नीचे की ओर अपनी
यात्रा जारी रखी। कुछ ही देर में एक मोड़ पर बाईं ओर सड़क से कुछ गज ऊपर लोहे अथवा लकड़ी
के खंभों पर बहुत से झंडे दिखाई दिये। कुछ निर्माण कार्य भी दिखा। मुझे ऐसा लगा कि जैसे वहाँ कोई
मंदिर हो।
मैंने नायक यादव से उस जगह के बारे में पूछने
के लिये अपनी गर्दन उनकी ओर घुमाई ही थी कि उन्होने सड़क के किनारे पर गाड़ी खड़ी कर
दी। मैं कोई सवाल पूछता उससे पहले ही वह कहने लगे, "बाबू जी, यह जसवंत गढ़ है। आइये जसवंत बाबा जी के दर्शन कर लें।"
यह कह
कर वह गाड़ी से नीचे उतर गए। मैंने 4 गढ़वाल
राईफल्स के सूरमा राइफलमैन जसवंत सिंह की वीर गाथा पहले ही कहीं पढ़ रखी थी। भाग्य वश
अपने आप को उस योद्धा की समाधी के सामने पाकर मेरा जिस्म रोमाँचित हो उठा था।
मैं अपनी सीट पर हतप्रभ बैठा चारों और नज़र दौड़ा
कर उस स्थान का जायजा ले ही रहा था कि नायक यादव ने गाड़ी की मेरी तरफ वाली खिड़की थपथपाई, "सर, नीचे आ
जाइए जो यहाँ आकर जसवंत बाबा जी के दर्शन नही करता वह जिंदा वापस मुड़ कर नहीं आता।"
मैं चौंक पड़ा और तुरंत खिड़की खोल कर कूद कर नीचे
आ गया क्योंकि मुझे शहीदों की समाधियों के प्रदेश से जिंदा वापस जो लौटना था।
"आईए, चलते हैं।" मैंने अपनी वर्दी की सिलवटें और बेल्ट ठीक करते
हुए उनसे कहा।
‘चलिए।’
‘यादव,
क्या आप राइफलमैन जसवन्त सिंह रावत जी की वीरगाथा
के बारे में कुछ जानते है?’
"हां सर," नायक यादव ने समाधी की ओर अपने कदम बढ़ाते हुए
कहा, "सन् 1962 की
भारत-चीन जंग के दौरान चीनी फ़ौज ने सामने तवाँग
की तरफ से इस ओर एक बहुत बड़ा हमला किया था। इस जगह पर फोर गढ़वाल राइफल्स का डिफेंस था। जसवंत बाबा ने अपने दो साथियों के साथ मिल कर
राईफल और एलएमजी की मदद से भारी संख्या में आगे बढते हमलावर चीनियों को बहत्तर घण्टे
तक रोके रखा था। वे इसी जगह पर शहीद हुए थे और उन्हें मरणोपराँत 'महावीर चक्र' दिया गया
था।"
मैंने भी गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के
राइफलमैन जसवन्त सिंह के बारे में ऐसा ही पढ़ा था।
थल सेना के अधिकतर अंगों में निम्नतर रैंक को ‘सिपाही’
कहा जाता है। राजपुताना राइफल्स, जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स और गढ़वाल राइफल्स में इस रैंक को ‘राइफलमैन’
कहा जाता है। आर्म्ड कोर (टैंकों से सज्जित सेना) में ‘सवार’
कहते हैं। आर्टिलरी (तोपखाना)
और आर्मी एयर डिफेंस में इसे ‘गनर’ से जाना जाता है तो सिग्नल कोर में सिग्नलमैन पुकारा जाता है।'ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स' में इस
रैंक जो 'गार्डसमैन' कहते हैं। इस तरह इस रैंक को विभिन्न शाखाओं में विभिन्न संबोधनों से
बुलाया जाता है।
सिपाही अथवा इसके समकक्ष के ऊपर क्रमशः लांस नायक, नायक व हवलदार आते हैं। ये 'नॉन कमीशंड ऑफीसर्स' की श्रेणी में आते हैं। हवलदार और इससे नीचे वाले रैंकों को 'ओ आर' (अदर रैंक्स) के नाम से भी जाना जाता है। इन रैंकों के नाम लगभग सभी 'आर्म्स' और 'सर्विसेज' में एक से होते हैं। हवलदार के ऊपर नायब सूबेदार, सूबेदार, सूबेदार मेजर के रैंक आते हैं। आर्म्ड कोर में इन्हें क्रमशः नायब रिसालदार, रिसालदार और रिसालदार मेजर कहा जाता है। ये 'जूनियर कमीशंड ऑफिसर्स' कहलाते हैं। सन् 1965 से पहले नायब सूबेदार अथवा नायब रिसालदार को 'जमादार' कहा जाता था। सूबेदार मेजर अथवा रिसालदार मेजर से लेकर नीचे सिपाही अथवा उसके समकक्षों को 'पीबीओआर' (पर्सन्स बिलो ऑफिसर्स रैंक) भी कहते हैं।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही। आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।
हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तो' करी नैं कदी-कदी किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।
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