फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा बारह्वां मणका।
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सहीदाँ दियाँ समाधियाँ दे परदेसे च
सन् 1962 दे भारत-चीन जंग दे दौरान राइफलमैन जसबंत सिंह रावत होराँ सेला दी फ्हाज़त ताँईं तैनात गढ़वाल राइफल्स दी चौथी बटालियन च सामल थे। तिस बग्त चौथी गढ़वाल राइफल्स, 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड दी कमाण च चीनी फ़ौज कन्नै लड़ी थी। मसहूर ब्रिगेडियर होशियार सिंह तिस बग्त 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड दे कमांडर हौंदे थे। तवाँग दे पासे ते अग्गें बद्धदी चीनी फ़ौजा कन्नै चौथी गढ़वाल राइफल्स दे सूरमेयाँ तगड़े दो-दो हत्थ कित्ते थे। नेफा दे इलाके च एह् इक किह्ली बटालियन थी जिन्नै चीनी फौज़ दे दंद खट्टे कित्ते कनै जिसा जो बैटल ऑनर ‘नूरानाँग’ दित्ता गिया था।
मैं कनै नायक यादव, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र दी समाध पर गै कनै तिन्हाँ जो सेल्यूट कित्ता। तवाँग कनै तिस ते अग्गें पौंदी भारत-चीन सरहद तिकर जाणे ताँईं, इसा इक मात्र सड़का ते होई करी लंघणे वाळे सारे अफ़सर, जे.सी.ओ कनै जुआन, सहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ जो सन्मान देणे ताँईं तित्थू ज़रूर रुकदे हन्न। इक उड़दी गप्प दे मुताबक जेकर कोई तिसा समाधिया जो इज्ज़त दित्ते बगैर अग्गें निकळी जाँदा है ताँ सैह् फिरी मुड़ी करी नीं औंदा। इस रस्ते च सड़का दे दूंहीं पासें पत्थराँ दियाँ पट्टियाँ गड्डिह्याँ सुज्झदियाँ, जिन्हाँ च उन्हाँ लोकाँ दे नाँ लक्खोयो जेह्डे समै-समै पर तिस मुस्कल इलाके च हादसेयाँ दी बळि चढे़ह्यो। शायद इस उड़दी गप्प दे पिच्छें एही बजह होए। कनै फिरी अपणी जान कुसजो प्यारी नीं लगदी!
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ दी समाध ते किछ गज पहलैं दो तिन्न मंझले साइज दे बोर्ड लगेह्यो थे। तिन्हाँ बोर्डां च तिस इलाके च होइयो लड़ाइया दा व्यौरा कनै सहीदाँ दे नाँ दर्ज थे। तिस बग्त यानि के जुलाई सन् 1989 च तित्थू इक निक्के जेहे पराणे बंकर च राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ दी वर्दी कनै तिन्हां दियां इस्तेमाल कितिह्यां किच्छ चीजां रक्खिह्यां थियां। प्रेस कितिह्यो छैळ-बाँकिया वर्दिया पर सूबेदार मेजर दे रैंक लगेह्यो थे। जितणा कि मिंजो याद औआ दा तिस बग्त बंकर दे साह्म्णे इक छोटा जेहा पक्का टियाळा था तिस गास शिवलिंग जाँ शिव भगुआन दी मूर्त थी। टियाळा टिन्ना कन्नै छाह्या था। मैं टियाळे पर पंज रुप्पेइए चढ़ाई नै मत्था टेकेया कनै मन ही मन अपणे परुआरे सौगी अपणी भी खैर मंगी। तित्थू हाजिर इक जुआनें असां दे हत्थां पर प्रसाद दे किच्छ दाणे रक्खी दित्ते।
इक बोर्डे पर हिन्दिया च किच्छ इस तरहाँ
लक्खोया था—"राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र दी याद च, जिन्हाँ, अपणिया मर्ज़िया कन्नै, 17 नंवबर 1962 जो 'ए' कंपणी, चौथी बटालियन गढ़वाल राइफल्स दे हिस्से
दे तौर पर,
लाँस नायक त्रिलोक सिंह नेगी कनै राइफलमैन
गोपाल सिंह गुसाँईं दिया मदता कन्नै, अपणी
डिफेंस लाइन दे नेड़ें आइह्यो, कारगर
फैर करदी दुस्मण दी मीडियम मशीन गन जो साँत कित्ता था।
तैह्ड़ी
चौथी गढ़वाल राइफल्स नै तित्थू होए दुस्मण दे दो हमलेयाँ जो नाकामयाब करी दित्ता था।
जसवंत सिंह रावत कनै गोपाल सिंह गुसाँईं नै, त्रिलोक
सिंह नेगी दे कवरिंग फायर दी मदता ते, बड़ी
हिम्मता कन्नै दुस्मण दी एम.एम.जी दे पासें ग्रेनेड सट्टणे तिकर दी नेड़
हासल कित्ती कनै पंज चीनी फ़ौजियाँ दी टुकड़ी जो तबाह करी नै तिन्हाँ दी एम.एम.जी खोही लई पर वापस मुड़दिया वेला जसवंत
रावत कनै त्रिलोक नेगी सहीद होई गै। गोपाल गुसाँईं हालाँकि बुरे हालैं जख्मी होई चुक्केह्यो
थे, दुस्मणा ते खोहियो एम.एम.जी कन्नै वापस औणे च कामयाब रैह् थे।
तिस
पूरे हमले च तिन्न सौ चीनी फौज़ी मारे गै जाँ जख्मी होए जद कि गढ़वाल राइफल्स दे दो
सूरमे सहीद होए कनै अट्ठ जख्मी होए थे।”
तिस बग्त तिसा समाधिया दी देखरेख ताँईं तित्थू दो-तिन्न जुआन रैंह्दे थे। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ जो हर रोज़ टैमे-टैमे पर चाह् कनै खाणा परींह्दे हन्न कनै राती जो बाक़ायदा तिन्हाँ दा बिस्तरा लगाया जाँदा है।
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत होराँ दे बारे च कई दन्त कथाँ बणी गइह्याँ हन्न जिन्हाँ च इक कथा एह् भी है कि तिन्हाँ दो लोकल कुड़ियाँ, जिन्हाँ दे नाँ सेला कनै नूरा थे, दी मदत लई करी चीनी फ़ौज जो रोकी करी रक्खेया था। तिन्हाँ पर बणिह्यो फिल्म '72 घंटे' दी कहाणी भी इसा कथा पर चलदी है। अपर एह् गल्ल सच नीं लगदी किंञा कि से-ला कनै नूरानांग तित्थू जगहाँ दे नाँ हन्न जेह्डे सन् 1962 दे जंग ते पहले ते ही चलदे आए हन्न।
हुण जसवंत गढ़ च इक शानदार जुद्ध यादगार (वार मेमोरियल) बणी गइह्यो है।
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शहीदों की समाधियों के प्रदेश में (बारहवीं कड़ी)
सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान राइफलमैन जसबंत सिंह रावत सेला की रक्षा के लिए तैनात गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में शामिल थे। उस समय चौथी गढ़वाल राइफल्स, 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड की कमान में चीनी सेना से लड़ी थी। प्रसिद्ध ब्रिगेडियर होशियार सिंह तब 62 इन्फेंट्री ब्रिगेड के कमांडर थे। तवाँग की तरफ से आगे बढ़ रही चीनी सेना के साथ चौथी गढ़वाल राइफल्स के बहादुर जवानों ने डटकर लोहा लिया था। यह पूर्वी युद्ध क्षेत्र में एक मात्र बटालियन थी जिसने चीनी सेना के दाँत खट्टे किये थे और जिसे बैटल ऑनर ‘नूरानाँग’ से नवाजा गया था।
मैं और नायक यादव, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र, की समाधि पर गए और उन्हें सेल्यूट किया। तवाँग और उससे आगे स्थित भारत-चीन सीमा तक पहुंचने के लिए, इस एक मात्र सड़क मार्ग से हो कर गुजरने वाले अफ़सर और अन्य रैंक शहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को सम्मान देने के लिए यहाँ पर ज़रूर रुकते हैं। एक किंवदंती के अनुसार अगर कोई इस समाधि को सम्मान दिए बिना आगे जाता है तो वह वापस लौट कर नहीं आता। इस सड़क मार्ग के दोनों ओर कई स्थानों पर लगीं पाषाण पट्टिकाओं पर उन लोंगों के नाम भी लिखे दिख जाते हैं जो इस दुर्गम क्षेत्र में समय-समय पर विभिन्न दुर्घटनाओं का शिकार हुए हैं। सम्भवतः इस किंवदंती के पीछे यही कारण रहा है। और फिर अपनी जान किसको प्यारी नहीं होती!
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की समाधि से कुछ गज पहले दो-तीन मध्यम आकार के सूचनापट लगे हुए थे जिनमें उस क्षेत्र में हुई लड़ाई का संक्षिप्त वृत्ताँत और शहीदों के नाम दर्ज थे। उस समय अर्थात् जुलाई सन् 1989 में उस जगह पर स्थित एक छोटे से पुराने बंकर में उनकी वर्दी तथा उनके द्वारा प्रयुक्त कुछ वस्तुएं रखी थीं। अच्छी तरह से प्रेस की हुई वर्दी पर सूबेदार मेजर के रैंक लगे हुए थे। जहाँ तक मुझे याद है उस समय बंकर के सामने एक छोटा सा पक्का चबूतरा था उस पर शिवलिंग अथवा शिव भगवान की मूर्ति थी। चबूतरा टिन से छाया हुआ था। मैंने चबूतरे पर पाँच रुपए चढ़ा कर माथा टेका और अपने परिवार सहित अपनी सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना की थी। वहाँ उपस्थित जवान ने प्रसाद के कुछ दाने हमारी हथेलियों पर रख दिए थे।
एक सूचना पट पर कुछ इस प्रकार लिखा हुआ
था -
“राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र की याद में, जिन्होंने, स्वेच्छा से, 17 नवंबर 1962 को ए कंपनी, चौथी बटालियन गढ़वाल राइफल्स के हिस्से के रूप में, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाँईं की सहायता से, अपनी रक्षा पंक्ति के नजदीक आई हुई, कारगर फायर करती शत्रु की मीडियम मशीन गन को शाँत किया था। उस दिन चौथी गढ़वाल राइफल्स ने उस स्थान पर हुए दुश्मन के दो हमलों को असफल किया था। जसवंत सिंह रावत और गोपाल सिंह गुसाँईं ने, त्रिलोक सिंह नेगी के कवरिंग फायर की सहायता से, बड़े साहस के साथ शत्रु की एम.एम.जी की तरफ ग्रेनेड फेंकने तक की दूरी तय की, और पाँच चीनी सैनिकों की टुकड़ी को तबाह कर के उनकी एम.एम.जी छीन ली पर वापस लौटने की प्रक्रिया के दौरान जसवंत रावत और त्रिलोक नेगी शहीद हो गए। गोपाल गुसाँईं, यधपि गंभीर रूप से घायल हो चुके थे, शत्रु की छीनी हुई एम.एम.जी के साथ वापस लौटने में सफल हुए थे पूरे अभियान में 300 चीनी सैनिक मारे गए अथवा घायल हुए जबकि गढ़वाल राइफल्स के 2 सैनिक शहीद हुए और 8 घायल हुए थे।”
उस समय उस समाधि की देखरेख के लिए वहाँ पर 2-3 सैनिक रहते थे। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, महावीर चक्र को दिन में समय-समय पर चाय व भोजन परोसा जाता और रात को बाक़ायदा उनका बिस्तर लगाया जाता।
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत के बारे में कई दन्त कथाएं प्रचलित हैं जिनमें एक किंवदंती यह भी है कि उन्होंने दो स्थानीय लड़कियों, जिनके नाम सेला और नूरा थे, के सहयोग से चीनी सेना को रोके रखा था। पर यह सच प्रतीत नहीं होता है क्योंकि से-ला और नूरानांग वहाँ जगहों के नाम है जो 1962 के युद्ध से पहले से चले आ रहे हैं।
अब जसवंत गढ़ में एक भव्य युद्ध स्मारक बन
गया है।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही। आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।
हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तो' करी नैं कदी-कदी किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।
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