अज पेश है पुराणे छंद गंगी च अनंत आलोक होरां दी नौएं जमाने दी कविता।
अनंत आलोक होरां गंगिया दे बारे च भी दस्सा दे कनै अपणे छंदांं जो हिंदिया च समझा दे भी हन।
गंगी पारंपरिक और एक त्रिपदिक लोक छंद
है | इसकी
शुरुआत कब हुई कहा नहीं जा सकता लेकिन पंजाब में माहिया और हिमाचल में गंगी की बड़ी
लम्बी परंपरा रही है | यह एक मात्रिक छंद है और
आज भी हिंदी तथा पंजाबी में भी लिखा जा रहा है | हालाँकि इस छंद पर कवियों का कोई
विशेष ध्यान आज नहीं है, वैसे तो छंद से ही दूर है आज का कवि | इसीलिए कविता आम
जनमानस से दूर हुई जा रही है ; इस पर फिर कभी बात होगी फिलहाल कहना यह
है कि माहिया ही हिमाचल में गंगी के नाम से प्रचलित था जो अब छिटपुट ही मिलता है | हैरानी की बात है कि
प्रेम गीत के नाम से प्रचलित इस लोगगीत को आज की युवा पीढ़ी
जानती ही नहीं |
बारह दस बारह के इस मात्रिक छंद
में वाचिक परंपरा का निर्वाह होता है | इसके प्रथम और तृतीय पद में समान्त यानी काफिया रहता है और बीच का
पद स्वतन्त्र रहता है | किसी भी परंपरा में इसे समझने के लिए वहां के डायलेक्ट की
वाचिक परम्परा से वाकिफ होना निहायत जरूरी है | हिमाचल में सिरमौर, सोलन,
बिलासपुर, मंडी, ऊना, शिमला और चम्बा में इसका प्रचलन रहा है, जहाँ आज भी कुछ लोग
इसके बारे में जानते हैं | आज की तारीख में गंगी लगभग लुप्त प्राय विधा है | इसके
भाव पक्ष पर थोड़ी बात करूँ तो इसमें शुरू में प्रेम और एक प्रेम प्रस्ताव गंगी के
माध्यम से दिए जाते थे | इसे श्रम गीत कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि
ये गीत खेत-खलिहान, जंगल या रास्ते चलते जोर जोर से इस मकसद से गाये जाते हैं कि कहीं दूर
जंगल, खेत में या रास्ते से कोई जा रहा हो तो वह सुने और फिर जवाब दे |
इसकी शुरुआत नायक या
नायिका में से कोई भी कर सकता है जिसका जवाब उसे देना होता है जिसे लक्ष्य कर यह प्रस्ताव या तंज
किया जा रहा हो | जिसे निशाना बना कर ये गाया जाता है या जिस से
सवाल पूछा जा रहा हो, वह समझ ले और उसके पास इसका जवाब हो तो वह अवश्य देता है | इसमें सवाल-जवाब रहते हैं | यदि सामने वाला समझ न पाए या जवाब नहीं दे पाता तो एक दो गंगी और गाई जाती
है और फिर अंत में गंगी में यह गाया जाता है कि तुम हार गए हो, तुम्हें जवाब देना
नहीं आता है | गंगी बरसात के मौसम में विशेष रूप से गाई जाती है | इसकी एक विशेषता
यह भी है, जिसकी वजह से इसे श्रमगीत के रूप में जाना जा सकता है, कि इसे
वाद्य यंत्रों के बिना ही घर से दूर गाया जाता रहा है |
हालांकि आज कुछ लोकगायकों ने इसे म्यूजिक सहित रिकॉर्ड करवा कर संरक्षित किया है
और आम जन में फिर से प्रचलित करने का प्रयास किया है फिर भी यह बहुत कम लिखी जा रही
है | विशेषकर कविता की एक उपविधा के रूप में तो बहुत ही कम | हिमाचली लोक परंपरा में असंख्य गंगियाँ प्रचलन के
पिछवाड़े भले ही खड़ी हों लेकिन उनके जानने वाले कुछ लोग हैं अभी, मेरे संग्रह में
भी असंख्य ऐसी पारंपरिक गंगियाँ हैं, जिनका सन्दर्भ अगले आलेख में देने का प्रयास
करूँगा | फिलहाल आदरणीय अनूप सेठी जी के स्नेह आदेश पर इतना ही | इस नाचीज ने सिरमौरी गंगी के माध्यम से नए
बिम्ब, प्रतीकों और
फैंटेसी का प्रयोग करते हुए आधुनिक भाव-बोध को
गंगी के शिल्प में ढालने का लघुत्तम प्रयास किया है जिसकी बानगी आप नीचे हिंदी
भावार्थ सहित देख पढ़ सकते हैं :
इक
म्हारे बातो रे बे होए कुम्बड़े,
बातो लांदे खोड़िए नाथी |
नींज आई गुई तेरे कुम्बड़े |1|
नायक: मेरे और तुम्हारे बीच इतनी बातें हुईं कि उनके भारे यानी गट्ठर बांधे जा सकते हैं| हम बातें करते-करते थके नहीं अब तो ऐसा लगता है कि मुझे तुम्हारी गोद में ही नींद आ जाएगी |
बातो लाय लोई निच्छ्ले जिये ,
तेरा ए शड़ाना न आथी |
पट लाय राखा लोको री धिये |2|
नायिका: मैं तुम्हारे साथ जो भी बातें कर रही हूँ वह सब साफ़ मन से कर रही हूँ मेरे मन में ऐसा-वैसा कोई भाव नहीं है और जिस पर तुमने अपना सिर रखा है, ये तुम्हारा तकिया नहीं है किसी की धी का पट है |
दो
होरे बिउलो रे छिट्टे शाड़णे ,
ह्युन्ख्ड़े री तीन गुठिये |
घासो -बाखरो खे जादू छाड़णे |1|
नायक: हरे बियूह्ल (पेड़ का नाम) की पतली टहनियां को पानी में साड़ना और फिर रस्सी बनाने वाले लड़की के औजार, जो क्रॉस की तरह का होता है उसकी सहायता से रस्सी बनानी उसके बाद रस्सियों से गाय-बकरी को बाँधा जाना है |
बाटे शेल्लो री बे गुंदणी दाओं ,
ओबरे दी गाय-बोल्दो |
हामे बान्नी पाया सोंक्ला गाओं |2|
नायिका: शैल बाट कर दाँव यानी पशुओं को
बाँधने वाली बटनदार रस्सियाँ बना कर तुमने तो केवल पशु बांधे हैं हमने तो मुहब्बत
में पूरा गाँव बाँध दिया है |
तिन
बातो लाइ लोई जादू रे जोरे ,
धन्नो बाबा इंटरनेटो |
होए दुनिया दे मितोर-सोरे |1|
नायक: लगता है कि हम जादू के दम पर एक दूसरे से बातें कर रहे हैं | इस इन्टरनेट बाबा का धन्यवाद जिसने पूरी दुनिया में हमें मित्र और सगे सम्बन्धी दे दिए |
कोशो दूरो दे बे बेगे देखियों ,
छुईयों न तो का कोरियों |
उमड़ाई खे तो उंडे भेटिओं |2|
नायिका: कई कोस दूर होने पर भी दिखाई
दे जाते हैं, एक दूसरे को छू नहीं सकते तो क्या करें एक दूजे की याद तो मिट जाती
है |
चार
नेटो गाशे कोरी लोणी मितरी,
जिओ री बे पेटो भोउती |
घोरे-बायरो री इंदी भीतरी |1|
नायक: नेट पर दोस्ती करनी है | इस दिल के कई पेट हैं और घर की और बाहर की सभी दोस्तियाँ इसी के अन्दर रखनी हैं |
जिऊ आपणा रो जानी आपणी ,
मोयलो रे ठाठ देखयो |
गंगी फुकदी न छानी आपणी |2|
नायिका: दिल भी अपना और जान भी अपनी
दूसरे के महल देख कर हमें अपनी झोपडी नहीं फूकनी चाहिए |
पंज
म्हारे बागड़ी दी शुक्की ल्होस्णो,
नारणा तू पाणी देइ दे |
मोर जाणी भुक्खी -चिश्सी ल्होस्णो |1|
नायक / किसान: खेतों में बिना बारिश के लहसुन सूख जा रहे हैं, है ईश्वर पानी बरसा दे, ये लहसुन भूख और प्यास से मर जायेंगे |
काटी जान्ग्लो रो बोणी शोड़की ,
बाँव शुक्की खाले रो नाले |
मेरी पोणयारी आपी तोड़फी |2|
ईश्वर: जवाब आता है कि जंगल काट-काट कर तुमने सड़कें
बना डाली हैं, गाँव की बावड़ियाँ और कुएँ, खाले-नाले सब सब सूख गए हैं| मेरा तो
इंद्र धनुष खुद ही प्यासा है तुम्हें कहाँ से पानी दूँ | (गाँव में मान्यता है कि
इन्द्रधनुष के माध्यम से पानी ऊपर पहुँचता है और फिर वर्षा होती है |)
छे
गेऊं काटणी रा हेल्ला कोर दे ,
या तो दिल आपणा दे दे |
या तो मेरा दिल बेल्ला कोर दे |1|
नायक: गेहूं काटने का हेल्ला यानी सामूहिक श्रम (सहायता) कर दे, या तो अपना दिल मुझे दे दे या फिर मेरा दिल आजाद कर दे यानी मुझे लारे लप्पे में मत रख |
झुट्ठी लाईदी न दिन्नो रे धोले ,
तू तो बांडीं दिल सोबी खे ,
हामे रोइये नेबे एतड़े भोले |2|
नायिका: दिन के उजाले में झूठ नहीं
बोलते, तू तो सभी को दिल बांटता फिरता है, अब हमें मालूम हो गया है | हम अब इतने
भी भोले नहीं रह गए हैं |
सत्त
आई बिषड़ी रो पींगों पिंगणी ,
उंडी आय मेरी आन्गोय |
केल्ली बोयशियो रिंगो रिंगणी |1|
नायक: बिशु का त्यौहार है और पेड़ में झूले डालने का समय है, आ झूला झूलते हैं | लेकिन तू अन्य झूले में झूलेगी तो तुझे चक्कर आयेंगे, घूमने लगेगा सिर इस लिए मेरी गोद में आ जा, एक साथ झूला झूलेंगे |
मेरे पिंगणी ने भोउते उच्चे ,
सोब्बे जाणू तेरे जिओ री |
तूंए टोंडके बे भोउते लुच्चे |2|
नायिका: मुझे बहुत ऊँचा झूला नहीं
झूलना है, मैं तुम्हारे दिल की बात जानती हूँ | तुम लड़के लोग बहुत चालाक हो |
अठ
गुठ्ठे-गुठ्ठी री परेट कोरयो ,
जोवानी री देस्सो गोंवाई |
हामे रात भोरी चेट कोरयो |1|
नायक: अँगूठे-उँगलियों की परेड कर के जिन्दगी के दिन फिजूल गवां दिए हम लोगों ने दिन रात फोन पर चैट कर के |
सोबे बोयरी जमाना देखियो ,
विडिओ दे ओमड़ाइ खे |
हामे देसो -राती उंडे भेटियो |2|
नायिका: ये सकल जमाना हमें बैरी
नज़र आता है, जो हमें मिलने नहीं देता, बस वीडिओ काल के माध्यम से ही हम लोग मिल
सकते हैं, और इसके लिए कोई समय की पाबन्दी भी नहीं है कभी भी मिल सकते हैं ; लेकिन
रूबरू नहीं |
नौ
बातो भोउती थी जिओ भीतरी |
धन देवा नेट महाराज,
सारी दुनिया दी लागी मितरी |1|
नायक: मन में बहुत सारी बातें थीं जिन्हें बताने के लिए कोई विश्वसनीय दोस्त नहीं मिल रहा था लेकिन नेट देवता की वजह से सारी दुनिया में दोस्ती हो गई है और हम अनेक तरह की बातें और जानकारियां हासिल कर सकते हैं |
जेती तोलो री ए तेती गाशो री |
देखी भाली लाणी मितरी ,
भोरी दुनिया ए बोदमाशो री |2|.
नायिका: ये दुनिया बदमाश लोगों से भी
भरी पड़ी है इसलिए ध्यान से दोस्ती करना क्योंकि यहाँ लोग जितने ऊपर दिखाई देते हैं
उतने ही धरती के नीचे भी होते हैं, जिनका पता नहीं चलता |
दस
आगे बिशड़ी रो पाछे दा साजा ,
भावटे रा लॉकडाउनो |
भाना देवठी रा मिलणो आजा |1|
नायक: पहले बिशु का त्यौहार था जिसमें हमने मिलकर झूला झूला और इसके बाद सक्रांति का पर्व है | मंदिर जाने का बहाने ले कर मिलने के लिए आ जाओ |
ढालो दुरके दी लोणी ने भोगो ,
दुरा दुरा रोयी साजना ,
बेगे कोरोना रा चाली रा रोगो |2|
नायिका: देवठी यानी मंदिर में नहीं
जाना, दूर से ही नमस्कार करना, भोग प्रसाद भी नहीं लेना क्योंकि कोरोना बीमारी है
साजन इस लिए हम अब मिल नहीं सकते |
ग्यारा
काटे धोलू रे पूले बानणे,
कोमरी दी बाओं पायो |
तुम्मे कोईंथो मूले बानणे |1|
नायिका: घास काटते हुए जैसे घास के पूले बाँधते हैं, पूले की कमर में बांह डाल कर, वैसे ही कैंथ के पेड़ के नीचे तुम्हें भी अपनी बाहों में बांधना चाहती हूँ |
लुक्की छुप्पी रो तो देसो रे भेटो ,
देखी कोएँ वीडियो बाणों |
धारो-टिबड़ी दी राखणी झेटो |2|
नायक: छुप-छिपा कर तो बेशक हर रोज ही मिलते रहें लेकिन इस तरह बाँधने की बात मत कर और यदि तुम्हारा दिल कर रहा इस तरह आलिंगन को तो पहाड़ों और ऊँचे टीलों पर भी ध्यान रखो क्योंकि कोई हमारी वीडिओ भी बना सकता है |
बौह्त जबरजस्स गंगी
ReplyDeleteप्हाड़ीया पुराणीयां च
नौईं कवता टंगी।
भोत भोत धनबाद जी थारा, तुमें गंगी रे मर्म ताई पोंचे म्हारी लेखनी सफल ओई
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