पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Sunday, August 6, 2023

यादां फौजा दियां

 


फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदेतिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती हैदूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा चौतुह्आं मणका।


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समाधियाँ दे परदेस च

 

आम शहरियाँ गास इंडियन पीनल कोड लागू होंदी है अपर भारत दी जमीनीं फौज देयाँ फौजियाँ पर इंडियन पीनल कोड दे अलावा आर्मी एक्ट-1950 भी लगदा है। इंञा ही होआई फौज कनैं समुंद्री फौज दे अपणे-अपणे एक्ट हन्न। इन्हाँ एक्टां दे जरिये आम शहरियाँ दे मुकाबलैं, फौजियाँ दे किछ मूळ इख्तियाराँ दी कट-पिट कित्ती जाँदी है। 

जेकर कोई फौजी इंडियन पीनल कोड दे मुताबिक कोई जुर्म करदा है ताँ पुलिस तिस्सेयो गिरफ्तार करी सकदी है।  हाँ, अपर तिस गिरफ्तारी दी खबर तिस फौजिये दे कमाँडिंग अफसर जो देणी होंदी है।  कत्ल कनैं बलात्कार जेहे जुर्माँ जो छड्डी करी, इक फौजी दे कित्तेह्याँ होर जुर्माँ देयाँ मुकदमेयाँ, जेकर तिसदा कमाँडिंग अफसर चाहे ताँ सिविल कोर्ट ते लयी नै  फौजी कोर्ट च चलायी सकदा है अपर तिस ताँईं फौज दे कम्पीटेंट अफसर दी लिखित हामी लैणी पोंदी है। सैह् कम्पीटेंट अफसर इक ब्रिगेड कमाँडर जाँ तिसते उपरला अफसर होयी सकदा है। 

फौज च मतियाँ किसमाँ दे कोर्ट होंदे हन्न जिंञा कि जनरल कोर्ट मार्शल (जी.सी.एम.), समरी जनरल कोर्ट मार्शल (एस.जी.सी.एम.), डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल (डी.सी.एम.) कनैं समरी कोर्ट मार्शल (एस.सी.एम.)।  इसदे अलावा कमाँडिंग अफसर, आर्मी एक्ट-1950 दी सेक्शन 80 दे तहत मिल्लिह्याँ पावराँ दा इस्तेमाल करदा होया, जज बणी करी छोटे-मोटे जुर्माँ दा निपटारा करी सकदा है। 

अरुणाचल प्रदेश च पोणे वाळे लुम्पो च मेरी पोस्टिंग दे दिनाँ दी ही गल्ल है। इक दिन मिंजो पळटण दे एडजुटेंट होराँ सद्दी करी दस्सेया कि पळटण दी 'क्यूबेक' बैट्री च इक गनर (डरैवर) है जिन्नी कोई सिविल ऑफेंस कित्तेह्या है कनै तिस गास सिविल च केस चल्लेह्या है अपर पुछणे पर सैह् किछ नीं दसदा है। तिसदे बैट्री कमाँडर होराँ पुलिस जो इस बारे च कई  चिट्ठियाँ लिखियाँ अपर कोई जवाब नीं आया।  लगदा है तिन्नी पुलिस जो घूस देयी करी अपणे बारे च कुसी जो भी कोई खबर नीं देणे ताँईं राजी करी लिह्या है। तिन्हाँ मिंजो एह् भी दस्सेया कि कमाँडिंग अफसर चाँह्दे हन्न कि मैं तिस फौजी ते कुसी तरहाँ सच्च उगलवाणे दी कोशिश कराँ। 

मैं तिस यूनिट च हाल ही च शामिल होह्या था। यूनिट दे  हैडकुआटर च कम्म करने वाळेयाँ ते अलावा मैं कुसी जो जाणदा तिकर नीं था। मैं तिस जुआन जो दिखेह्या भी नीं था। सोची-समझी करी मैं इस मामले च अपणे डिस्पैचर लाँस नायक कृष्ण कुमार यादव होराँ दी मदत लैणे दा फैसला कित्ता। मैं लाँस नायक यादव ते, तिस जुआन दा नाँ दस्सी करी, पुच्छेया कि सैह् कदेहा आदमी है। कनैं कन्नैं ही मैं एह् भी पुच्छी लिया कि पळटण दियाँ तमाम गड्डियाँ कनै डरैवर ताँ तवांग च हन्न, एह् जुआन, डरैवर होंदा होया भी लुम्पो च कजो है। मिंजो तिसदे बारे च लाँस नायक कृष्ण कुमार यादव होराँ जेह्ड़ा दस्सेया, सैह् किछ एहो जेहा था, "सर, सैह् अपराधी किस्म दा आदमी है। सैह् यू.पी. दे डकैताँ वाळे इलाके ते है। तिस्सेयो तवांग ते सद्दी करी एत्थू शायद इस ताँईं रखेह्या गिह्या है कि तित्थू कोई पंगा नी करी दे। सैह् इक बलात्कारी आत्मा है। एत्थू ओणे ते पहलैं जाह्लू यूनिट तिबड़ी (गुरदासपुर) च थी ताँ तित्थू भी तिन्नी इक कांड करी दित्ता था।" 

तैह्ड़ी मिंजो लाँस नायक यादव दे बोल किछ अटपटे जेहे लग्गे थे। 

"ठीक है यादव, जाह्लू सैह् असां दे दफ्तर दे अक्ख-वक्ख सुज्झे ताँ मिंजो दसनेयों," मैं तिन्हाँ जो ग्लाया था। 

अगले दिन भ्यागा तकरीबन दस बजे, मैं अपणे पराणे होयी चुक्केह्यो रेमिंगटन रैंड टाइप राइटर पर दवायी-दवायी करी, तोळा-तोळा उंगलियाँ मारदा होया अपणा कम्म निपटा दा था, ताह्लू लाँस नायक यादव मिंजो व्ह्ली आये कन्नै मेरे कन्न च फुसफुसाणा लग्गे, "सर, सैह् ऑफिस ते उपरले बंकर दे नेडैं पगडंडिया दे बाड़ दी रिपेयर करा दा है।" 

मैं अपणा कम्म छड्डी करी तिसली चला गिया। तित्थू सैह् दो-तिन्न दूजे जुआनाँ कन्नैं कम्मैं लग्गेह्या था। मिंजो सैह्  गुमसुम रैह्णे वाळा शांत सुभाओ दा, 28-30 साल दा, मंझोले कद दा, इक तगड़ा जुआन लग्गेया। मैं तिस पगडंडी च होयी करी अग्गैं जाणे दा नाटक कित्ता। तिन्हाँ च इकी-दूहीं मिंजो दिखी नै "राम-राम बाबू जी" बोल्या। मैं भी "राम-राम" बोली नै जवाब दित्ता। मेरी नज़र तिस पर ही थी। तिन्नी मुंड घुमायी करी मिंजो बक्खी इक सरसरी नजर मारी कनै मुड़ी अपणे कम्मैं लगी पिया।  मैं  नोट कित्ता कि तिन्नी मिंजो "राम-राम" भी नीं बोल्या था।  तिन्न-चार कदम अग्गैं निकळने परंत, पिच्छैं मुड़ी करी, मैं तिन्हाँ सब्भना बक्खी दिखदे होयें ग्लाया, "एह् बाड़ बड़ा छैळ सुज्झा दा। क्या एह् म्हारेयाँ जुआनाँ बणाह्या? "नहीं सर, एह् चौळ देयी करी सिविलियनाँ ते बणुआह्या है।" तिन्हाँ च इकन्ही खड़ोई नै जवाब दित्ता। 

"मैं यूनिट च नोआं-नोआं आह्या। तुसां दे बारे च बहोत सारी लिखा-पढ़ी करदा अपर कुसी जो नाँयें ते नीं जाणदा। ओआ इक-दूजे दा नाँ जाणदे। मेरा नाँ भगत राम है हवलदार (क्लर्क) भगत राम। मैं हिमाचल प्रदेश ते है। तुसां दा क्या नाँ है?" मैं तिन्हाँ च इक जुआन पासैं इशारा कित्ता। तिन्नी अपणा नाँ कनै स्टेट दा नाँ दस्सेया। मैं बारी-बारी सब्भना ते नाँ पुच्छे। तिसदा नाँ मैं जाणीबुज्झी सब्भना ते परंत पुच्छेया था। तिन्नी भी होरना साह्ईं अपणा नाँ कनै स्टेट दस्सेया था। तिसदे नाँ कन्नै यादव लग्गेह्या था कनै सैह् उत्तर प्रदेश ते था। मैं तिसदे मूंह्डे पर अपणा हत्थ रखेया कनै गल्ल करदा-करदा तिस्सेयो होरना जुआनाँ ते थोड़ा दरेडैं लई गिया। 

"खरा! ताँ तुसां दा नाँ एह् है! तुसां दे इक केस दे बारे च हेडकुआटर च इक चिट्टी आइह्यो है। चिट्ठी मिंजो व्ह्ली है," मैं झूठ-मूठ तुक्का मारेया था, "अगर तिस केस दे बारे च तुसां व्ह्ली कोई कागद होये ताँ मिंजो दसणा। तिस कागदे जो पढ़ी करी मैं, सी.ओ. साहब जो ग्लायी नै, जेकर तुसां दी कोई मदत करी सक्केया ताँ जरूर करह्गा।" 

"हाँ सर, मिंजो व्ह्ली कोर्ट दे फैसले दी नकल है।" 

"तिसजो अज्ज संझा मिंजो देई दिन्हयों। मैं राती पढ़ी नै कल भ्यागा तिस जो तुसां जो मोड़ी दिंह्गा।" 

मेरा दा सही पिह्या था। मैं सोच्चेह्या भी नीं था कि मेरा कम्म इतणिया असानिया कन्नै होयी जाणा है। 

(बाकी अगली कड़ी च) 

 

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समाधियों के प्रदेश में (चौंतीसवीं कड़ी) 

आम नागरिकों पर भारतीय दंड संहिता लागू होती है परन्तु भारतीय थल सेना के सैनिकों पर भारतीय दंड संहिता के अतिरिक्त सेना अधिनियम-1950 भी लागू होता है। इसी तरह वायु सेना और जल सेना के अपने-अपने अधिनियम हैं। इन अधिनियमों के द्वारा आम नागरिकों की तुलना में, सैनिकों के कुछ मौलिक अधिकारों में, कांट-छांट कर दी जाती है।

अगर कोई सैनिक भारतीय दंड संहिता के अनुसार कोई अपराध करता है तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है। हाँ, लेकिन उस गिरफ्तारी की सूचना उस सैनिक के कमान अधिकारी को देनी होती है। हत्या व बलात्कार जैसे अपराधों को छोड़ कर एक सैनिक द्वारा किये गये अन्य अपराधों से संबंधित मुकदमे, अगर उसका कमान अधिकारी चाहे तो सिविल कोर्ट से लेकर आर्मी कोर्ट में चला सकता है परंतु उसके लिए सेना के सक्षम अधिकारी की लिखित आज्ञा लेनी पड़ती है। वह सक्षम अधिकारी एक ब्रिगेड कमाँडर या उससे ऊपर का अधिकारी हो सकता है। 

सेना में कई तरह के कोर्ट होते हैं जैसे कि जनरल कोर्ट मार्शल (जी.सी.एम.), समरी जनरल कोर्ट मार्शल (एस.जी.सी.एम.), डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल (डी.सी.एम.) और समरी कोर्ट मार्शल (एस.सी.एम.)।  इसके अतिरिक्त कमान अधिकारी, सेना अधिनियम-1950 की धारा 80 के तहत मिली शक्तियों का उपयोग  करता हुआ, न्यायधीश बन कर छोटे-मोटे अपराधों का निपटारा कर सकता है। 

अरुणाचल प्रदेश में स्थित लुम्पो में मेरी तैनाती के दिनों की ही बात है। एक दिन मुझे यूनिट के एडजुटेंट ने बुला कर बताया कि यूनिट की 'क्यूबेक' बैट्री में एक गनर (ड्राईवर) है जिसने कोई सिविल ऑफेंस किया है और उस पर सिविल में मुकदमा चल रहा है लेकिन पूछने पर वह कुछ नहीं बताता है।  उसके बैट्री कमाँडर ने पुलिस को इस संबंध में कई पत्र लिखे परंतु कोई जवाब नहीं मिला। लगता है उसने पुलिस को रिश्वत देकर अपने बारे में किसी को भी कोई सूचना न देने के लिए मना लिया है। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि कमान अधिकारी चाहते हैं कि मैं उस सैनिक से किसी तरह सच्चाई उगलवाने का प्रयास करूं। 

मैं उस यूनिट में हाल ही में शामिल हुआ था। यूनिट के मुख्यालय में काम करने वालों के अतिरिक्त मैं किसी को जानता तक नहीं था। मैंने उस जवान को देखा भी नहीं था। सोच समझ कर मैंने इस मामले में अपने डिस्पैचर लाँस नायक कृष्ण कुमार यादव से सहायता लेने का निर्णय लिया। मैने लाँस नायक यादव से, उस सैनिक का नाम बताकर, पूछा कि वह कैसा आदमी है। और साथ में यह भी पूछ लिया कि यूनिट की तमाम गाड़ियाँ और ड्राइवर तो तवांग में हैं वह व्यक्ति ड्राइवर होते हुए भी लुम्पो में क्यों है। मुझे उसके बारे में लाँस नायक कृष्ण कुमार यादव ने जो कुछ बताया, वह कुछ इस प्रकार था, "सर, वह अपराधी किस्म का आदमी है। वह यू.पी. के डकैतों वाले इलाके से है। उसे तवांग से बुला कर यहाँ शायद इस लिए रखा गया है कि वहाँ कोई पंगा न कर दे। वह एक बलात्कारी आत्मा है। यहाँ आने से पहले जब यूनिट तिबड़ी (गुरदासपुर) में थी तो वहाँ भी उसने एक कांड कर दिया था।" 

उस दिन मुझे लाँस नायक यादव की शब्दावली कुछ अटपटी सी लगी थी। 

"ठीक है यादव, जब वह हमारे ऑफिस के आसपास नज़र आये तो मुझे उसे दिखाना,"। 

अगले दिन सुबह तकरीबन दस बजे, मैं अपने पुराने पड़ चुके रेमिंग्टन रैंड टाइप राइटर पर दबा-दबा कर, तेजी से उंगलियाँ मारता हुआ अपना काम निपटा रहा था, तभी लाँस नायक यादव मेरे पास आये और मेरे कान में फुसफुसाने लगे, "सर, वह ऑफिस से ऊपर वाले बंकर के पास पगडंडी के बाड़ की मुरम्मत कर रहा है।" 

मैं अपना काम छोड़ कर उसके पास चला गया। वहाँ  वह दो-तीन अन्य सैनिकों के साथ काम में व्यस्त था।  मुझे वह गुमसुम रहने वाला शांत स्वभाव का 28-30 साल का मंझोले कद का एक मजबूत युवक लगा। मैंने उस पगडंडी से आगे गुजरने का नाटक किया। उनमें से एक-दो ने मुझे देख कर "राम-राम बाबू जी" कहा। मैंने भी "राम-राम" कह कर जवाब दिया। मेरी नज़र उसकी तरफ थी। उसने सिर घुमाकर मेरी तरफ एक सरसरी नज़र डाली और फिर अपने काम में लग गया। मैंने नोट किया उसने मुझे "राम-राम" भी नहीं बोला था। तीन-चार कदम आगे निकलने के बाद, पीछे मुड़ कर मैंने उन सभी की ओर देखते हुए कहा, "यह बाड़ बहुत अच्छा दिख रहा है। क्या यह हमारे जवानों ने बनाया है?"  "नहीं सर, यह चावल देकर सिविलियनों से बनबाया हुआ है।" उन में से एक ने खड़े हो कर जवाब दिया था। 

"मैं यूनिट में नया-नया आया हूँ। आप लोगों के बारे में बहुत सी लिखा पढ़ी करता हूँ पर किसी को नाम से नहीं जानता। आओ एक-दूसरे का नाम जान लें। मेरा नाम भगत राम है हवलदार (क्लर्क) भगत राम। मैं हिमाचल प्रदेश से हूँ। आपका क्या नाम है?" मैंने उन में से एक सैनिक की ओर इशारा किया। उसने अपना नाम और राज्य का नाम बताया। मैंने बारी-बारी सबसे नाम पूछे। उसका नाम मैंने जानबूझ कर सबसे बाद में पूछा था। उसने भी रों की तरह अपना नाम और राज्य बताया था। उसके नाम के साथ यादव लगा हुआ था और वह उत्तर प्रदेश से था। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बात करते-करते उसे अन्य सैनिकों से थोड़ा दूर ले गया। 

"अच्छा! आपका नाम यह है! आपके एक केस के बारे में हेडक्वार्टर में एक चिट्टी आयी है। चिट्ठी मेरे पास है,"मैंने झूठ-मूठ तुक लगाया था, "अगर उस केस के बारे में आपके पास कोई कागज़ हो तो मुझे दिखाना। उस कागज को पढ़ कर मैं, सी.ओ. साहब को बोल कर, अगर आपकी कोई मदद कर सका तो जरूर करूंगा।" 

"हाँ सर, मेरे पास कोर्ट के फैसले की नकल है।" 

"उसे मुझे आज शाम को दे देना। मैं रात को पढ़ कर कल सुबह उसे आपको लौटा दूंगा।" 

मेरा दाँव सही पड़ा था। मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरा काम इतनी आसानी से हो जाएगा। 

(शेष अगली कड़ी में)

हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा से संबन्ध रखने वाले भगत राम मंडोत्रा एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उनकी  प्रकाशित पुस्तकें हैं      
 
जुड़दे पलरिह्ड़ू खोळूचिह्ड़ू मिह्ड़ूपरमवीर गाथा..फुल्ल खटनाळुये देमैं डोळदा रिहासूरमेयाँ च सूरमे और हिमाचल के शूरवीर योद्धा।
यदाकदा 
'फेस बुकपर 'ज़रा सुनिए तोकरके कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं।

5 comments:

  1. मण्डोतरा साहब तुसां भी जाणदे फौज बिच कमान अफसर होरां दे मते सूत्तर हुंदे जुआनां दा भला कराणे वास्ते, कोई प्रशासनिक तरीके ने ताँ कोई लीगली ताँ कोई मानवीय आधार पर, असां सब पूरे मनोजोग कन्नै अपणा कम्म करदे हन, पर इन्हाँ तुज़ुर्ब्यां जो कलमवद्ध करी प्रेरक दे रूप च स्थापित करना नोक्खा कनै आदरजोग कम्म ऐ, तुसां दा धन्नवाद कनै लख लख बधाई!

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    1. नवीन शर्मा 'विस्मित' साहब जी दिले ते धनवाद तुसां दा।

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  2. वाह, बड़े छैळ तरीके कन्ने तुसां कुसी भी घटना जो रखदे ।
    पढ़ने वाळा बह्झी ही जिन्दा !
    अगली कड़ी कधैड़ी ओढ़ी?

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  3. वाह , बड़ा ही बदिया!!

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    1. त्रिगर्ति जी दिले ते धनवाद तुसां दा।

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