फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे, तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती है, दूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा चौबह्उआं मणका।
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समाधियाँ दे परदेस च
किंञा कि रेजिमेंट जाँ कोर दा वेतन लेखा कार्यालय, जेसीओ कनै जुआनाँ दी तनख्वाह कनै भत्तेयाँ दा ब्यौरा तिन्न-तिन्न महीनेयाँ दे हिसाबे नै भेजदा था इस करी नै हर महीने ताँईं दित्ती जाणे वाळी रकम लग्ग-लग्ग होंदी थी। तिसदी खास वजह पिछली तिमाही दे क्रेडिट जाँ डेबिट दी एडजस्टमेंट करना होंदी थी। पिछले महीने दी तनख्वाह बंडे जाणे परंत, हर ट्रेड जाँ सेक्शन जो अपणे जुआनाँ दी लगदे महीने दी तनख्वाह दी मंग लिखी करी दफ्तर च देणे ताँईं गलाया जाँदा था। तिस तनख्वाह दे मंग पत्र च हर जेसीओ जाँ जुआन दे नाँ दे अग्गे इक रकम लिखी होंदी थी जिस जो सैह् तिस महीने दी तनख्वाह दे तौर पर लैणा चाँह्दा था। कई जुआन जिन्हाँ जो तिस महीने पैसे दी जरूरत नीं होंदी थी, तिन्हाँ दे नाँ दे अग्गैं बहोत घट जाँ जीरो रकम लिखियो होंदी थी अपर मते सारे जुआन बढ़ाई-चढ़ाई नै पैसे दी मंग करदे थे।
पे क्लर्क, पिछले तिमाही लेखा विवरण दी बुनियाद पर, जोड़ी-घटाई नै हर आदमी दी सही तनख्वाह निकाळदा था कनै जेकर कुसी दी मंगिह्यो रकम तिसदी सही हकदारी ते ज्यादा होंदी थी ताँ मंगिह्यो रकम जो कट्टी नै जाँ तिस पर गोळ घेरा खिंजी करी तिस दे अग्गैं सही तनख्वाह दी रकम लिखी दिंदा था। जिन्हाँ दी तनख्वाह दी मंग तिन्हाँ दी सही हकदारी ते घट होंदी थी, तिस रकम जो तितणा ही रैह्णा दित्ता जाँदा था। सारे जेसीओ कनै जुआनाँ ताँईं इस तरहाँ निकाळी गई रकम दा जोड़ करी नै पे क्लर्क तिस च अपणे तज़ुर्बे दी बुनियाद पर इक होर लग्ग रकम जोड़ी दिंदा था। सैह लग्ग रकम जेसीओ कनै जुआनाँ दी तनख्वाह नै ताल्लुक रखणे वाळी चाणचक पोणे वाळी जरूरताँ कन्नै निपटणे ताँईं पे क्लर्क, तनख्वाह बंडे जाणे दे दिन तिकर, अपणे हत्थ च रखदा था कनै तनख्वाह दे भुगताण दे बग्त बंडी जाणे वाळी रकम च एडजस्ट करी दिंदा था। तिस रकम जो एडजस्ट करदे बग्त पे क्लर्क इस गल्ल दा ध्यान रखदा था कि कुसी जो फालतू भुगतान नीं होये।
फाइनल रकम जो ‘पे रिक्यूजीशन फॉर्म' च भरी करी कनै यूनिट दे कमाडिंग अफसर दे दस्तखत करवाई नै नियंत्रक रक्षा लेखा जो भेजी दित्ता जाँदा था। सैह् रिक्यूजीशन फॉर्म इक कंट्रोल्ड फॉर्म होया करदा था। नियंत्रक रक्षा लेखा तिसदे हर पन्ने दा हिसाब मंगदा था। जेकर कोई पन्ना, कुसी वजह ते, रद्द करना पई जाँदा था ताँ तिसदी खबर नियंत्रक रक्षा लेखा जो देणी पोंदी थी। नियंत्रक रक्षा लेखा दे दफ्तर च कमांडिंग अफसर दे दस्तखताँ दा नमूना रखेया रैंह्दा था। नियंत्रक रक्षा लेखा, दस्तखताँ दा मिलाण करी नै, मंगिह्यो रकम दा चेक, यूनिट दे इम्प्रेस्ट एकाउंट दे नाँ पर जारी करी दिंदा था। यूनिट दा इम्प्रेस्ट एकाउंट, आमतौर पर, भारतीय स्टेट बैंक दी नजदीकी ब्राँच च खोलेह्या होंदा था। सैह् चेक तिस खाते च जमा करी दिंदे थे कनै इक मुकर्रर बग्त ते अंदर तिस ते नकदी कड्ढी करी जुआनाँ जो बंडी दित्ती जाँदी थी। बैंक ते नकदी, इक बड्डे ट्रंक च भरी नै, हथियारबंद गार्द दी फ्हाजत च इक अफसर दे जरिये फौज दी गड्डी च लियाई जाँदी थी।
पे क्लर्क, अक्यूईटैंस रोल (Acquittance Roll) तैयार करदा था। हर जेसीओ कनै जुआन दे निजी ब्यौरे दे अग्गैं तिसजो दित्ती जाणे वाळी रकम पेंसिल कन्नै लिखी दित्ती जाँदी थी कनै जेसीओ जाँ जवान दे दस्तखत करवाई करी तनख्वाह बंडणे वाळे अफसर दे साह्म्णे रखी दित्ती जाँदी थी। तनख्वाह बंडणे वाळा अफसर पेंसिल कन्नै लिखिह्यो रकम जो पेन कन्नै लिखी करी तिस रकम दा भुगतान करी दिंदा था। कई तरहाँ दियाँ व्यस्तताँ दिया वजह ते सारे दे सारे जेसीओ कनै जुआन तनख्वाह लैणे ताँईं खुद हाजिर नीं होयी पांदे थे। इक अक्यूईटैंस रोल (Acquittance Roll) दी रकम इक जेसीओ जाँ जुआन जो देई दित्ती जाँदी थी जिसा जो सैह् अग्गैं होरनाँ जो बंडी दिंदा था।
तिस बग्त अज्जकल दी तरहाँ हर महीने जेकर तनख्वाह दी इक मुकर्रर रकम जेसीओ कनै जुआनाँ दे बैंक खातेयाँ च अपणे आप आई जाँदी होंदी ताँ तनख्वाह कनै भत्तेयाँ दी अदायगी ताँईं इक लम्मी प्रक्रिया ते नीं गुजरना पोंदा।
पैसे दी जरूरत ताँ सारेयाँ जो ही होंदी है। महीने दी 20 तारीख ते परंत कई जुआन पे क्लर्क व्हाली आई नै अपणी तनख्वाह दी रकम बधाणे ताँईं खुशामद करदे थे। तिसा हालता कन्नै निपटणा मिंजो बहोत मुश्किल लगदा था। कुसी जो नाँह् करना भी बुरी लगदी थी कनै ज्यादा पेमेंट होई जाणे दिया वजह ते कुसी जेसीओ जाँ जुआन दी क्वार्टरली स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट च ‘डेबिट' ओणे दा डर भी लगी रैंह्दा था किंञा कि ‘डेबिट' ताँईं पे क्लर्क जवाबदेह होंदा था।
मेरे सैन्य सेवाकाल (2007) तिकर जेसीओ कनै जुआनाँ दे वेतन भत्तेयाँ दे भुगताण दी प्रक्रिया येहो जेही ही रही। हाँ, सन् 2000 दे आसपास तिस च इक छोटा जेहा बदलाव होया था जिस ते सैह प्रक्रिया होर जटिल होई गई थी। यूनिट दे लेवल च जेसीओ कनै जुआनाँ जो नगद भुगतान न करी नै तिन्हाँ दे बैंक खातेयाँ दे जरिये पैसा देणा शुरू होई गिया था, बाकी प्रक्रिया च कोई बदलाव नीं आया था।
तनख्वाह बंडणे च इक खास रोल नभाणे दिया वजह ते फौजी क्लर्क दी नाराज़गी खामख्वाह कोई खरीददा नीं था। हकीकत च तिस बग्त दे फौजी क्लर्कां ते जेसीओ जुआन कनै अफसर, दोह्यो वर्ग, हिरख करदे थे किंञा कि सैह् दूजे जेसीओ कनै जवानाँ दे मुकाबले बेहतर हालत च होंदे थे कनै प्रशासनिक विषयाँ दे संबंध च लिखा-पढ़ी च सैह् अफसराँ ते कुत्थी बेहतर जाणकार होंदे थे। नौंयें अफसराँ जो फौजी क्लर्क ते बहुत कुछ सिखणा पोंदा था। बग्त गुजरने पर सैह् सिक्खी नै क्लर्कां दियाँ गलतियाँ निकालने जोगे होई जाँदे थे।
फौज दे क्लर्कां जो सिखलाई देणे ताँईं महाराष्ट्र दे औरंगाबाद च ‘आर्मी क्लर्क्स ट्रेनिंग' स्कूल होया करदा था जिसजो सन् 1993-94 दे आसपास डिसबैंड करी दित्ता गिया था। तिस स्कूल च थलसेना दे सारे क्लर्क, अपणी रेजिमेंट जाँ कोर दे ट्रेनिंग सेंटर च बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग पूरी करने ते परंत अगली सिखलाई ताँईं भेजे जाँदे थे। तित्थू नौ महीने दी लम्मी सिखलाई होंदी थी। तिस च सारे रंगरूटां जो ‘माइनर स्टाफ ड्यूटीज' पढ़ाइयाँ जाँदियाँ थियाँ। अफसराँ ताँईं सैही ‘स्टाफ ड्यूटीज' स्टाफ कॉलेज दे सिलेबस च शामिल हन्न। इसते इलावा तित्थू ‘मिलिट्री लॉ' कनै इंग्लिश पढ़ाई जाँदी थी कनै टाइपिंग सिखायी जाँदी थी। यूनिट दी डॉक्यूमेंटशन दी विस्तार च जाणकारी कनै तिसदा गहन भ्यास करवाया जाँदा था।
तिस बग्त दे फौजी क्लर्कां दे कई कम्म अज्जकल दे फौजी अफसर करदे हन्न।
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समाधियों के प्रदेश में (चौबीसवीं कड़ी)
चूंकि रेजिमेंट अथवा कोर का वेतन लेखा कार्यालय, जेसीओ व जवानों के वेतन व भत्तों का ब्यौरा त्रैमासिक आधार पर उपलब्ध कराता था इसलिए हर महीने के लिए दी जाने वाली राशि अलग-अलग होती थी। इसका प्रमुख कारण पिछली तिमाही के क्रेडिट अथवा डेबिट का समायोजन करना था। पिछले महीने का वेतन बंट जाने के उपराँत, हर ट्रेड अथवा सेक्शन को अपने जवानों की वर्तमान महीने के वेतन की मांग लिखित रूप में कार्यालय में देने के लिए कहा जाता था। उस वेतन मांग पत्र में हर जेसीओ अथवा जवान के नाम के आगे एक रकम लिखी होती थी जिसे वह उस महीने के वेतन के तौर पर लेना चाहता था। कई जवान जिनको उस महीने पैसे की जरूरत नहीं होती थी, उनके नाम के आगे बहुत कम अथवा शून्य राशि लिखी होती थी परंतु अधिकतर जवान बढ़ा-चढ़ा कर पैसे की मांग करते थे।
वेतन क्लर्क, पिछले त्रैमासिक लेखा विवरण के आधार पर, हर व्यक्ति के वेतन की गणना करता था और अगर किसी की मांगी गई राशि उसकी यथोचित हकदारी से अधिक होती थी तो मांगी गई राशि को काट कर अथवा उस पर गोल चक्र खींच कर उसके आगे यथोचित हकदारी वाली राशि लिख देता था। जिनकी वेतन मांग उनकी यथोचित हकदारी से कम होती थी उस राशि को उतना ही रहने दिया जाता था। सभी जेसीओ और जवानों के लिए इस तरह से निकाली गयी राशि को जोड़ करके वेतन क्लर्क उसमें अपने तज़ुर्बे के आधार पर एक अतिरिक्त राशि जोड़ देता था। वह अतिरिक्त राशि जेसीओ व जवानों की वेतन संबंधी आकस्मिक ज़रूरतों से निपटने के लिए वेतन क्लर्क, वेतन भुगतान वाले दिन तक, अपने हाथ में रखता था और वेतन भुगतान के समय देय राशि में समायोजित कर देता था। उस राशि को समायोजित करते समय वेतन क्लर्क इस बात का ध्यान रखता था कि किसी को हकदारी से अधिक भुगतान न हो।
अंतिम राशि को ‘पे रिक्यूजीशन फॉर्म' में भर कर और यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर से हस्ताक्षर करवा कर नियंत्रक रक्षा लेखा को भेज दिया जाता था। रिक्यूजीशन फॉर्म एक कंट्रोल्ड फॉर्म हुआ करता था। नियंत्रक रक्षा लेखा उसके हर पन्ने का हिसाब मांगता था। अगर कोई फॉर्म, किसी कारणवश, रद्द करना पड़ जाता था तो उसकी सूचना नियंत्रक रक्षा लेखा को देनी पड़ती थी। नियंत्रक रक्षा लेखा के कार्यालय में कमांडिंग अफसर के हस्ताक्षरों का नमूना रखा रहता था। नियंत्रक रक्षा लेखा, हस्ताक्षरों का मिलान करके, मांगी गयी राशि का चेक, यूनिट के इम्प्रेस्ट एकाउंट के नाम पर जारी कर देता था। यूनिट का इम्प्रेस्ट एकाउंट, आमतौर पर भारतीय स्टेट बैंक की निकटवर्ती शाखा में खोला गया होता था। वह चेक उस खाते में डाल दिया जाता था और निर्धारित समय सीमा के अंदर उस से नकदी निकाल कर जवानों में बाँट दी जाती थी। बैंक से नकदी, एक बड़े ट्रंक में भर कर, सशस्त्र गार्द की सुरक्षा में एक अफसर द्वारा सेना की गाड़ी में लाई जाती थी।
वेतन क्लर्क अक्यूईटैंस रोल (Acquittance Roll) तैयार करता था। हर जेसीओ व जवान के व्यक्तिगत ब्यौरे के आगे उसको देय राशि पेंसिल से लिख दी जाती थी और जेसीओ व जवान के हस्ताक्षर करवा कर वेतन वितरण करने वाले अफसर के सामने प्रस्तुत कर दी जाती थी। वेतन वितरण करने वाला अफसर पेंसिल से लिखी गई राशि को पेन से लिख कर उस राशि का भुगतान कर देता था। नाना प्रकार की व्यस्तताओं के कारण सारे के सारे जेसीओ व जवान वेतन लेने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो पाते थे। एक अक्यूईटैंस रोल की राशि एक जेसीओ अथवा जवान को दे दी जाती थी जिसे वह आगे औरों को बाँट देता था।
उस समय आजकल की तरह हर महीने अगर एक निर्धारित वेतन राशि जेसीओ व जवानों के बैंक खातों में स्वत: आ जाती होती तो वेतन व भत्तों की अदायगी के लिए एक लम्बी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता।
पैसे की जरूरत तो सभी को होती है। महीने की 20 तारीख के बाद कई जवान वेतन क्लर्क के पास आकर अपनी वेतन राशि बढ़ाने के लिए प्रार्थना करते थे। उस स्थिति से निपटना मुझे बहुत कठिन लगता था। किसी को इन्कार करना भी बुरा लगता था और अधिक अदायगी हो जाने के कारण किसी जेसीओ व जवान विशेष की क्वार्टरली स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट में ‘डेबिट' दिखाए जाने का डर भी लगा रहता था क्योंकि ‘डेबिट' के लिए वेतन क्लर्क जवाबदेह होता था।
मेरे सैन्य सेवाकाल (2007) तक जेसीओ व जवानों के वेतन भत्तों के भुगतान की प्रक्रिया यही रही। हाँ, सन् 2000 के आसपास उसमें एक छोटा सा बदलाव हुआ था जिसने उसे और जटिल बना दिया था। यूनिट के स्तर पर जेसीओ व जवानों को नगद भुगतान न कर के उनके बैंक खातों के जरिए पैसा दिया जाने लगा था, शेष प्रक्रिया में कोई परिवर्तन नहीं किया गया था।
वेतन वितरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण सैनिक क्लर्कों की नाराज़गी कोई मोल नहीं लेता था। हक़ीक़त में उस समय के सैनिक क्लर्कों से जेसीओ व जवान और अफसर, दोनों वर्ग, ईर्ष्या करते थे क्योंकि वह दूसरे जेसीओ व जवानों की तुलना में बेहतर स्थिति में होते थे और प्रशासनिक विषयों संबंधी लिखा-पढ़ी में वे अफसरों से कहीं बेहतर ज्ञान रखते थे। नये अफसरों को सैनिक क्लर्कों से बहुत कुछ सीखना पड़ता था। कालांतर में वे सीख कर क्लर्कों की गलतियाँ निकालने योग्य हो जाते थे।
सेना के क्लर्कों को प्रशिक्षित करने के लिए महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ‘आर्मी क्लर्क्स ट्रेनिंग' स्कूल हुआ करता था जिसे सन् 1993-94 के आसपास विघटित कर दिया गया था। उस स्कूल में थलसेना के समस्त क्लर्क, अपनी रेजिमेंट अथवा कोर के ट्रेनिंग सेंटर में बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग प्राप्त करने के उपराँत अग्रिम प्रशिक्षण के लिए भेजे जाते थे। उस प्रशिक्षण की अवधि नौ महीने होती थी। उसमें सभी प्रशिक्षणार्थियों को ‘माइनर स्टाफ ड्यूटीज' पढ़ाई जाती थीं। अफसरों को यही ‘स्टाफ ड्यूटीज' स्टाफ कॉलेज में पढ़ाए जाने का प्रवधान है। इसके अतिरिक्त वहाँ ‘मिलिट्री लॉ' और इंग्लिश पढ़ाई जाती थी और टाइपिंग सिखाई जाती थी। यूनिट की डॉक्यूमेंटशन की विस्तृत जानकारी व उसका गहन अभ्यास करवाया जाता था।
उस समय के सैनिक क्लर्कों के कई काम आजकल
के सैन्य अधिकारी करते हैं।
भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन। फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) दे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) दी डिग्री हासिल कित्ती। इस ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी. च, 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसर' दी जिम्मेबारी निभाई।
लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही। आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।
हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।
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