पहाड़ी भाषा दी नौई चेतना .

Thursday, January 6, 2022

यादां फौजा दियां



फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च असां जितणा जाणदे
तिसते जादा जाणने दी तांह्ग असां जो रैंह्दी है। रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां फौजा दियां अपणियां यादां हिंदिया च लिखा दे थे। असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई अपणिया बोलिया च लिखा। तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई। हुण असां यादां दी एह् लड़ी सुरू कीती हैदूंई जबानां च। पेश है इसा लड़िया दा 
पंदह्रुआं मणका।


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सहीदाँ दियाँ समाधियाँ दे प्रदेसे च 

 तवाँग दे उपरले हिस्से यानी कि चूजे जीजी च अपणी पळटण दे  पिछले हिस्से च पुज्जी नै तित्थू दे रोजकणे टैम टेबल दे मुताबिक दूजे दिन भ्यागा 6 बजे असाँ जो जिस्मानी कसरत ताँईं कट्ठे होणा था।  जेह्ड़े जुआन पहलैं ही तित्थू रिहा दे थे तिन्हाँ जो हौळी कि खिट्ट लगाणे दा हुक्म होया कनै मिंजो साँह्ईं नौंएं आह्याँ जो चाळी-पंजताळी मिंट टहलणे जो बोल्या गिया।  अति ऊंचाई वाळे ठंडे  लाकेयाँ च जाणे ते पैह्लैं बदन जो तित्थु दे तापमान कनै माहौल दे मुताबिक ढाळना जरूरी हौंदा है। इक मुकर्रर्र समै तिक्कर जिस्मानी हरकत दा प्रोग्राम  पूरा करने ते परंत डॉक्टर फौजियाँ दा डॉक्टरी मुआयना करदे हन्न। पूरी तरहाँ फिट पाए जाणे पर ही अग्गैं जाणे दी जाज्त मिलदी है।

असाँ दूंहीं जो खाणा लैणे ताँईं लंगर च जाणा पोंदा था।  चाह् समै-समै पर कोई जुआन आई नै देई जाँदा थाभ्यागा पंज कि बजे तिस ते परंत ग्यारह बजे कनै फिरी दोपहराँ बाद तिन्न कि बजे।  जित्थु असाँ ठैह्रेयो थे तित्थु ते थोड़ी दूर थल्लैं सज्जे पासैं तवाँग दा मसहूर बौद्ध मठ  सुज्झदा था कनै खब्बे पासैं हिंदोस्तानी फौज दे पंजमें पहाड़ी डिवीजन दा हैडकुआटर था। डिवीजन हैडकुआटर दे उपरले पासैं इक हैलीपैड था। 

भ्यागा जाह्लू असाँ चूजे जीजी दे उपरले पासैं घुमणा गै ताँ तित्थू बोफ़ोर तोपाँ दी इक बैटरी नज़र आई। इक बैटरी यानी कि छे तोपाँ।  मास्टर होराँ दस्सेया था कि सैह् तोपाँ चीनी फौज जिसदा नाँ पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.) है, दियाँ हाखीं च रड़कदियाँ थियाँ।  चीनी फौज वूमला च हौणे वाळी हर फ्लैग मीटिंग च तिन्हाँ तोपाँ जो पिच्छैं टाह्णे  दी गल्ल करदी थी। इक तोपखाना रेजिमेंट च 4 बैटरियाँ हौंदियाँ हन्न।  जिन्हाँ च इक प्रशासनिक बैटरी हौंदी है जिस जो हैडकुआटर बैटरी ग्लाँदे हन्न।  बाकी तिन्न लड़ाकू बैटरियाँ हौदियाँ हन्न जिन्हाँ दे नाँपी’ (पापा) ‘क्यू’ (क्यूबेक) कनैआर’ (रोमियो) हौंदे हन्न। इन्फैंट्री बटालियन च तिन्हाँ दे बरोबर कंपणियाँ हौदियाँ हन्न जिन्हाँ दे नाँ ए, बी, सी, डी (अल्फा, ब्रावो, चार्ली, डेल्टा) बगैरा हौंदे हन्न।  तोपखाना रेजिमेंट दी हरेक लड़ाकू बैटरी च छे तोपाँ हौंदियाँ हन्न।  भारत-चीन सरहद पर, आम हालाताँ च, समै-समै पर दूंहीं मुल्काँ दे फौजी अफसर नुमाँइदेयाँ दियाँ फ्लैग मीटिंगाँ हौंदियाँ रैंह्दियाँ हन्न जिन्हाँ च छोटे-मोटे मुद्देयाँ कनै मतभेदाँ पर चर्चा करी नै तिन्हाँ दा हल निकाळेया जाँदा है। 

वापस आई नै असाँ ब्रेक-फ़ास्ट कित्ता कनै गपशप मारी। मैं मास्टर होराँ जो दस्सेया कि मिंजो तवाँग बाजार जाई करी इक रंगीन कैमरा खरीदणा है।  तिन्हाँ दिनाँ च फौज च कैमरा रखने वाळेयाँ कनै डायरी लिक्खणे वाळेयाँ दा रिकॉर्ड रक्खेया जाँदा  था। 

मिंजो फौजी एरिये ते बाहर जाणा था तिस ताँईं मिंजो ऑउट पास दी जरूरत पोणी थी। अपर तित्थु असाँ दोह्यो जणे सीनियर हौळदार थे इस ताँईं मैं मास्टर होराँ जो दस्सी करी तवाँग बाजार गिया कनै सौ रुपइए दे आसपासप्रीमियरब्राँड दा इक आम रंगीन कैमरा खरीदी नै लई आया।  ये मेरा दूजा कैमरा था पहला कैमरा अगफा क्लिक III (थर्ड) था।  सैह् दोह्यो कैमरे मेरे घरैं अज्ज भी कुत्हकी पैह्यो मिली जाणे। तिस बग्त डिजिटल कैमरे नीं हौंदे थे। तिस कैमरे कन्नै औत्थू खिंजिंह्याँ तस्वीराँ हुण धुंधळियाँ होई गइह्याँ हन्न। थल्लैं तिस कैमरे कन्नै लइह्यो इक तस्वीर दस्सणे ताँईं पाइह्यो। एह् है तद्कणे तवाँग दे उपरले हिस्से च पोणे वाळे चूजे जीजी दा इक नजारा। मेरे सज्जे पासैं पिच्छैं इक बंकर सुज्झा दा। इस पुराणे बंकर दे अंदर जाई नै मिंजो एह् सोची करी झणुणू ओआ दे थे कि 1962 दे भारत-चीन च म्हारे सूरमे इस बंकर ते लड़ेह्यो होंगे। 

तवाँग च पंज-छे दिन तिक्कर अपणे जिस्म जो अति ठंड कनै ऊंचाई दे माहौल च ढाळणे कनै डॉक्टरी जाँच च फिट पाए जाणे ते परंत ही मिंजो अपणी रेजिमेंट दे मेन हिस्से कन्नै मिलणे ताँईं लुम्पो तिक्कर दा अगला सफर सुरू करना था।  रोज भ्यागा असाँ घुमणे कनै हल्का दौड़ने ताँईं निकळदे थे। तिस बग्त तिक्कर   बोफ़ोर तोपाँ, खरीद च होई धांधळी दे झमेले च, घिरी चुक्किह्याँ थियाँ। दरअसल सैह् 155 मिलीमीटर तोपाँ फौज दे मध्यम तोपखाने दी ताकत जो बद्धाणे ताँईं खरीदियाँ गइयाँ थियाँ।  झमेले च घिरने ते परंत तिन्हाँ दे  कल पुर्जे नीं मिली सके। तिस वजह ते तिन्हाँ तोपाँ कनै लैस हर रेजिमेंट जो इक-दो तोपाँ खोली करी तिन्हाँ दे पुर्जेयाँ कन्नै दूजियाँ तोपाँ जो कम्म करने लायक बणाई नै रक्खणा पिया। बाद च कारगिल दी जंग दे टैमे म्हारे तोपचियाँ  तिन्हाँ तोपाँ दा इस्तेमाल बड़े कारगर ढंगे नै कित्ता कनै बड़े बद्धिया नतीजे हासल कित्ते। सोळा-स्तारा हजार फुट ते ज्यादा उच्चे कारगिल दे पहाड़ां पर गोले सट्टी करी पाकिस्तानी फौज जो लुकी बैह्णे ताँईं मजबूर करने वाळियाँ इन्हाँ तोपाँ म्हारे इन्फैंट्री दे जुआनाँ दी बड़ी मदत कित्ती थी। जेकर तिस बग्त बोफोर तोपाँ नीं हौंदियाँ ताँ कारगिल दी जंग जो जित्तणा म्हारी फौज ताँईं होर मुस्कल होई जाणा था।  अपणे समै च म्हारे तोपखाने दी सब्भते ज्यादा ऊंचाई तिक्कर  गोळे दागणे वाळी एह् इक मात्र तोप रहिओ है।  इसदे बैरल दा उठाण सह्त्तर डिग्री तिक्कर मुमकिन है कनै इसदी गोळा दागणे दी ताकत  चौबी किलोमीटर तिक्कर है। कई दसकाँ ते चली आइयाँ कनै  खरियाँ कि आजमाइह्याँ सोवियत यूनियन ते खरीदियाँ 130 मिलीमीटर एम-46 तोपाँ दियाँ अपणियाँ हदाँ हन्न।  इन्हाँ दे बैरल दा उठाण सिर्फ पंजताळी डिग्री है अपर इन्हाँ दी गोळा सटणे दी ताकत सताई किलोमीटर तिक्कर है। 

फौजाँ ताँईं  हथियार खरीदणे च म्हेसा धाँधली हौंदी रही है।  रफाल लड़ाकू होआई जहाज दी ख़रीद भी झमेलेयाँ च घिरी गई थी।  भारतीय सत्ता दे गलियारेयाँ च  भ्रष्टाचार एड्स साँह्ईं फैली गिह्या है। फिलहाल इसदा कोई इलाज नजर नीं ओंदा किंञा कि सत्ता दे ठेकेदार ही इस च लमोह्यो हौदे हन्न।  एह् म्हारे देस दी एयर फोर्स दी खुसकिस्मती है कि रफाल दा हाल बोफ़ोर तोपाँ साँह्ईं नीं होया। 

अगले दिन भ्यागा जाह्लू असाँ घुमणा गै ताँ मिंजो इक दूजी तोपखाना रेजिमेंट दे जुआन मिली गै जिन्हाँ ते मिंजो वीरपुर च तिन्हाँ दे मराठा कमाँडिंग अफसर दी अरुणाचल प्रदेश च सड़क हादसे च मौत होणे दी खबर मिल्ली थी।  मिंजो अपणे बाकम कर्नल अनिल दामोदर धरप होराँ दी बे टैमी मौत दी खबर सुणी करी बड़ा दुःख होया था।  तिस बजह ते मैं तैह्ड़ी तिन्हाँ जुआनाँ कन्नै ज्यादा गल्लबात नीं करी पाया था।  तवाँग च गल्लाँ ही गल्लाँ च मैं तिन्हाँ ते पुच्छेया कि तिन्हाँ दा नौआं सीओ कुण है ताँ पता चल्लेया कि तिन्हाँ दे उप कमाण अफसर  प्रमोट होई नै कमाण अफसर बणी गैह्यो थे।  कर्नल तीर्थ सिंह, वीर चक्र जो मैं जाणदा था। सैह् पठानकोट दे पासे दे रैह्णे वाळे इक डोगरा अफसर थे।  तिन्हाँ जो वीर चक्र सन् 1971 दे भारत पाकिस्तान जंग च बहादुरी कनै दुस्मण दा मुकाबला करने ताँईं मिल्लेह्या था।  तिस बग्त सैह् कैप्टन थे।  तिन्हाँ कन्नै जुड़िह्यो इक गल्ल याद आई गई। (.....सैह् अगली कड़िया च)

 

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शहीदों की समाधियों के प्रदेश में (पन्द्रहवीं कड़ी)

 तवाँग के ऊपरी भाग अर्थात् चूजे जीजी में स्थित अपनी पलटन के पिछले भाग में पहुंच कर वहाँ की रोजमर्रा की समय सारणी के अनुसार दूसरे दिन प्रातःकाल 6 बजे हमें शारीरिक प्रशिक्षण हेतु एकत्रित होना था। जो लोग पहले से वहाँ पर रह रहे थे उन्हें हल्की दौड़ लगाने के आदेश मिले जबकि मुझ जैसे नवागंतुकों को 40-45 मिनट टहलने के लिए कहा गया। अति ऊंचाई वाले ठंडे क्षेत्रों में जाने से पहले शरीर को वहाँ के तापमान व माहौल के अनुरूप ढालना आवश्यक होता है। एक निर्धारित अवधि तक शारीरिक गतिविधि कार्यक्रम  पूरा करने के उपराँत डॉक्टर द्वारा सैनिकों का शारीरिक परीक्षण किया जाता है। पूर्णतः फिट पाए जाने पर ही आगे जाने की अनुमति प्राप्त होती है। 

हम दोनों को अपना खाना लेने के लिए भोजन-पाकशाला में जाना पड़ता था। चाय समय-समय पर कोई सैनिक आकर दे जाता थाप्रातः लगभग पाँच बजे तदोपराँत ग्यारह बजे और फिर दोपहर बाद लगभग तीन बजे।  जहाँ हम ठहरे थे वहाँ से थोड़ी दूर नीचे दाईं ओर तवाँग का प्रसिद्ध बौद्ध मठ दिखाई देता था और बाईं ओर भारतीय सेना के 5वें पर्वतीय डिवीजन का मुख्यालय था। डिवीजन मुख्यालय के ऊपर की ओर एक हैलीपैड था।

सुबह जब हम चूजे जीजी के ऊपर की ओर चहलकदमी करने गए तो वहाँ बोफ़ोर तोपों की एक बैटरी नज़र आई। एक बैटरी अर्थात् 6 तोपें। मास्टर जी ने बताया था कि वो तोपें चीनी सेना, जिसका नाम पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.) है, की आखों में खटकती थीं। चीनी सेना वूमला में होने वाली हर फ्लैग मीटिंग में उन तोपों को पीछे हटाने की बात करती थी। एक तोपखाना रेजिमेंट में 4 बैटरियाँ होती हैं। जिनमें एक प्रशासनिक बैटरी होती है जिसे हैडक्वाटर बैटरी कहा जाता है। शेष तीन लड़ाकू बैटरियाँ होतीं हैं जिनके नामपी’ (पापा) ‘क्यू’ (क्यूबेक) औरआर’ (रोमियो) होते हैं। इन्फैंट्री बटालियन में इनकी समकक्ष कम्पनियाँ होती हैं जिनके नाम ए, बी, सी, डी (अल्फा, ब्रावो, चार्ली, डेल्टा) इत्यादि होते हैं। तोपखाना रेजिमेंट की प्रत्येक लड़ाकू बैटरी में 6 तोपें होती हैं। भारत-चीन सीमा पर सामान्य परिस्थितियों में समय-समय पर दोनों देशों की सेनाओं के प्रतिनिधि अफसरों की फ्लैग मीटिंग होती रहती हैं जिनमें छोटे-मोटे मुद्दों व मतभेदों पर चर्चा करके समाधान खोजा जाता है। 

वापस आकर हमने ब्रेक-फ़ास्ट किया और गपशप मारी। मैंने मास्टर जी को बताया कि मुझे तवाँग बाजार जाकर एक रंगीन कैमरा खरीदना है। सेना में उन दिनों कैमरा रखने वालों और डायरी लिखने वालों का रिकॉर्ड रखा जाता था। 

मुझे सैन्य क्षेत्र से बाहर जाना था। उस के लिए मुझे ऑउट पास की आवश्यकता पड़नी थी। परंतु हम दोनों वहाँ वरिष्ठ हवलदार थे अतः मैं मास्टर जी को सूचित कर नीचे तवाँग बाजार गया और 100 रुपए के आसपासप्रीमियरब्राँड का साधारण रंगीन कैमरा खरीद लाया। वो मेरा दूसरा कैमरा था पहला कैमरा अगफा क्लिक III था।  ये दोनों कैमरे मेरे घर के किसी कोने में आज भी पड़े मिल जाएंगे। उस समय डिजिटल कैमरों का प्रचलन शुरू नहीं हुआ था। उस कैमरे से वहाँ खींची गई तस्वीरें अब धुंधली हो गयी हैं। नीचे उस कैमरे से ली गई तस्वीर को स्कैन करके अवलोकनार्थ डाला गया है। ये है तब के तवाँग के ऊपरी भाग में स्थित चूजे जीजी का एक दृश्य। मेरे दाईं ओर पीछे एक बंकर दिख रहा है। इस पुराने बंकर के अंदर जाकर मैं यह सोच कर रोमाँचित हो रहा था कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में हमारे योद्धा इस बंकर से लड़े होंगे। 

तवाँग में 5-6 दिन तक अपने शरीर को अति ठंड और ऊंचाई के वातावरण में ढालने और डॉक्टरी परीक्षण में सही पाए जाने के बाद ही मुझे, अपनी रेजिमेंट के मुख्य भाग जो लुम्पो में स्थित था, में शामिल होने के लिए आगे की यात्रा आरम्भ करनी थी। हर सुबह हम घूमने और हल्का दौड़ने के लिए निकलते थे। उस समय तक बोफ़ोर तोपें खरीद में हुई धांधली के विवाद में घिर चुकीं थी। दरअसल ये 155 मिलीमीटर तोपें सेना के मध्यम तोपखाने की क्षमता को बढ़ाने के लिए खरीदी गईं थीं। विवाद में घिरने के बाद इनके कल-पुर्जे उपलब्ध नहीं हो पाए अतः इन तोपों से लैस हर रेजिमेंट में एक दो तोपों को खोल कर उनके कल-पुर्जों से  दूसरी तोपों को काम करने के लिए दुरुस्त रखा गया। बाद में कारगिल युद्ध के दौरान हमारे तोपचियों ने इन तोपों का संचालन बड़ी कुशलता के साथ किया और सराहनीय परिणाम प्राप्त किए। सोलह-सत्रह हजार फुट से अधिक ऊंचे कारगिल के पहाड़ों पर गोले गिरा कर पाकिस्तानी सैनिकों को रक्षात्मक स्थिति में रहने के लिए बाध्य करने वाली इन तोपों ने हमारे इन्फैंट्री के जवानों की महत्वपूर्ण सहायता की थी। अगर उस समय बोफोर तोपें न होतीं तो कारगिल की जंग को जीतना हमारी सेनाओं के लिए और अधिक कठिन हो जाता। अपने समय में हमारे तोपखाने में अधिक ऊंचाई तक गोले दागने वाली ये एक मात्र तोप रही है।  इसके बैरल का उठान सत्तर डिग्री तक संभव है और इसकी गोला दागने की क्षमता चौबीस किलोमीटर तक है। कई दशकों से चली आ रही बेहतरीन ढंग से आजमाई हुईं सोवियत यूनियन से खरीदी गई 130 मिलीमीटर एम-46 तोपों की अपनी सीमायें हैं। इनके बैरल का उठान मात्र पैंतालीस डिग्री है पर इनकी गोला फेंकने की क्षमता 27 कि. मी. तक है। 

सेनाओं के लिए हथियार खरीदने में हमेशा धांधली होती रही है।  रफाल लड़ाकू विमान की ख़रीद भी विवादों में घिर गई थी। भारतीय सत्ता के गलियारों में भ्रष्टाचार एड्स की तरह फैल गया है। फिलहाल इसका कोई उपचार संभव नहीं दिखता क्योंकि अक्सर सत्ता के ठेकेदार ही इसमें संलिप्त पाए जाते हैं। ये हमारे देश की वायुसेना का सौभाग्य है कि रफाल का हश्र बोफ़ोर तोपों जैसा नहीं हुआ। 

अगले दिन सुबह जब हम घूमने गए तो मुझे एक दूसरी तोपखाना यूनिट के वही जवान मिल गए जिनसे मुझे वीरपुर में उनके मराठा कमान अधिकारी की उस क्षेत्र में सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाने की खबर मिली थी।  मुझे अपने परिचित कर्नल अनिल दामोदर धरप की असमय मृत्यु की सूचना से बहुत दुःख हुआ था अतः मैं उस दिन उन जवानों से अधिक बात नहीं कर पाया था। तवाँग में बातों ही बातों में जब मैंने उनसे पूछा कि अब उनके नए सीओ कौन हैं तो उन्होंने बताया कि उनके उप-कमान अधिकारी पदोन्नत हो कर कर्नल रैंक में कमान अधिकारी बन गए थे। कर्नल तीर्थ सिंह, वीर चक्र को मैं जानता था। वह पठानकोट की तरफ के  रहने वाले एक डोगरा अफसर थे। उन्हें वीरचक्र 1971 के भारत-पाक युद्ध में बहादुरी के साथ दुश्मन का मुकाबला करने के लिए मिला था। उस समय वह कैप्टन थे।  उनके साथ जुड़ी हुई एक घटना की याद ताजा हो गई। (....अगली कड़ी में)

    भगत राम मंडोत्रा हिमाचल प्रदेश दे जिला कांगड़ा दी तहसील जयसिंहपुर दे गरां चंबी दे रैहणे वाल़े फौज दे तोपखाने दे रटैर तोपची हन।  फौज च रही नैं बत्ती साल देश दी सियोआ करी सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) दे औद्धे ते घरे जो आए। फौजी सर्विस दे दौरान तकरीबन तरताल़ी साल दिया उम्रा च एम.. (अंग्रेजी साहित्य) दी डिग्री हासिल कित्ती। इस ते परंत सठ साल दी उम्र होणे तिकर तकरीबन पंज साल आई.बी. , 'असिस्टेन्ट सेंट्रल इंटेलिजेंस अफसर' दी जिम्मेबारी निभाई।

      लिखणे दी सणक कालेज दे टैमें ते ही थी। फौज च ये लौ दबोई रही पर अंदरें-अंदरें अग्ग सिंजरदी रही।  आखिर च घरें आई सोशल मीडिया दे थ्रू ये लावा बाहर निकल़ेया।

     हाली तिकर हिमाचली पहाड़ी च चार कवता संग्रह- जुड़दे पुल, रिहड़ू खोळू, चिह्ड़ू-मिह्ड़ू, फुल्ल खटनाळुये दे, छपी चुक्केयो। इक्क हिंदी काव्य कथा "परमवीर गाथा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल - परमवीर चक्र विजेता" जो सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ते 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान 2018' मिली चुकेया।

    हुण फेस बुक दे ज़रिये 'ज़रा सुनिए तो' करी नैं कदी-कदी किछ न किछ सुणादे रैंहदे हन।

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